ब्रेकिंग न्यूज़ 

केरल में सामाजिक संस्कृति और लोकतंत्र की हत्या

केरल में सामाजिक संस्कृति और लोकतंत्र की हत्या

आज के युग में राजनीति और लोकतंत्र एक-दूसरे के पर्यायवाची बन चुके हैं। राजतंत्र के साथ-साथ हर प्रकार के अत्याचारी और हिंसक राजनीतिक गतिविधियों का युग अब समाप्त हो चुका है। आज हर प्रकार का अत्याचार और हिंसा सभ्य समाज में कानूनी रूप से अपराध घोषित हो चुके हैं। परन्तु हिंसक आन्दोलनों से जिस कम्युनिस्ट विचारधारा का जन्म हुआ था वह विचारधारा आज भी हिंसा को अपना प्रमुख हथियार बनाकर राजनीतिक गतिविधियों में भाग ले रही है। हिंसक प्रवृत्ति के लोग लोकतंत्र के मनोविज्ञान को समझ ही नहीं सकते। इसी प्रकार हिंसा के बल पर कुछ मुस्लिम संगठनों ने अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं का मार्ग तैयार किया तो एक भयानक आतंकवाद का जन्म हुआ।

भारतीय जनता पार्टी एक राष्ट्रवादी और सांस्कृतिक राजनीतिक दल के रूप में जानी जाती है। केवल इसी कारण इसे अन्य राजनीतिक दलों से भिन्न माना जाता है। इस राजनीतिक दल का इतिहास राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की स्थापना से जुड़ा है जिसमें डॉ. केशवराव हेडगेवार जी ने पथ प्रदर्शक की भूमिका निभाई और उन्होंने इसकी प्रेरणा स्वामी दयानन्द सरस्वती, स्वामी विवेकानन्द, श्री अरविन्दो घोष, श्री लोकमान्य तिलक तथा महात्मा गांधी जैसे महापुरुषों के सामाजिक और राष्ट्रवादी विचारों से प्राप्त की। इस अद्वितीय राजनीतिक दल की अपनी घोषणा है कि हिन्दूवाद का अर्थ एक व्यापक मानवतावाद के रूप में समझा जाना चाहिए जिसके मूल में सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के विचार हों। मानवतावादी संस्कृति मनुष्य से मांग करती है कि वह दूसरों के परोपकार और विचारों को खुलकर प्रकट करने अर्थात् सच्चे लोकतंत्र जैसी परंपराओं को अपनाये। भारतीय जनता पार्टी ने सदैव इस मानवतावादी संस्कृति के सहारे ही अपनी राजनीतिक गतिविधियों का संचालन किया।

हाल ही में केरल के कोझीकोड़ नामक शहर में भारतीय जनता पार्टी का राष्ट्रीय अधिवेशन सम्पन्न हुआ। केरल के विषय में कई वर्षों से मेरे मन में अनेकों प्रकार की जिज्ञासाएं विद्यमान थीं। केरल में कई दशकों से कम्युनिस्ट पार्टी की सरकार स्थापित रही है। केरल की प्राकृतिक छटा लेखकों को यह लिखने के लिए मजबूर करती है कि यहां परमात्मा का वास है। केरल ने शिक्षा में भी अग्रणी प्रगति हासिल की है। केरल के लोग विदेशों में भी अपनी भारी अनुपातिक संख्या के लिए जाने जाते हैं। केरल में ईसाई मिशनरी और इस्लामिक गतिविधियों को भी आवश्यकता से अधिक राजनीतिक संरक्षण मिलता है। केरल में राष्ट्रवादी विचारधारा का सदैव विरोध होता रहा है। संभवत: इसी कारण अक्सर हिन्दू समुदाय के प्रखर नेताओं के द्वारा जब धर्म के स्थान पर मानवतावादी संस्कृति और राजनीति के नाम पर राष्ट्रवादी दृष्टिकोण उजागर किये जाते हैं तो ऐसे लोगों को कुचलने के लिए अन्य सभी स्थानीय ताकतें एकजुट होकर कार्य करती हैं।

राष्ट्रीय अधिवेशन के दौरान मेरी इन सभी जिज्ञासाओं का उत्तर उस समय प्राप्त हो गया जब मैंने भाजपा की केरल शाखा के द्वारा ‘आहूति’ नामक स्मारिका का अवलोकन किया।  इस स्मारिका में ऐसे सैकड़ों लोगों का चित्र सहित परिचय प्रस्तुत किया गया था जिन्होंने विगत कुछ दशकों के दौरान मानवतावादी संस्कृति और राजनीति के राष्ट्रीय दृष्टिकोण का ध्वजवाहक बनने की हिम्मत जुटाई और परिणामस्वरूप इन सब महानुभावों को भिन्न-भिन्न प्रकार से प्रायोजित अत्यन्त भयावह हिंसा का शिकार होना पड़ा और अपनी जान गंवानी पड़ी। वैसे तो एक व्यक्ति के सामाजिक कार्यों और राजनीतिक विचारों के कारण उसकी हत्या करना वास्तव में लोकतंत्र की ही हत्या होती है। ऐसी हत्याओं का सीधा संकेत यही जाता है कि हत्या करने वाले लोगों के तार एक ऐसी विचारधारा के साथ जुड़े हैं जो लोकतांत्रिक तरीके से राजनीतिक विचारों के आदान-प्रदान और नि:स्वार्थ समाजसेवा के बल पर राजनीतिक छवि बनाने वाले लोगों को अपने मार्ग से हटाना ही एक मात्र तरीका मानती है। एक अध्यापक के रूप में समाजसेवा करने वाले श्री जयकृष्णन की हत्या निर्मम तरीके से की गई जब वे कक्षा में बच्चों को पढ़ा रहे थे। इतना ही नहीं बल्कि अपराधियों ने कक्षा के ब्लैकबोर्ड पर लिखा कि इस हत्या की सूचना पुलिस या अदालत में देने वाले का भी यही हाल किया जायेगा। इस निर्मम हत्या को देखने वाले 10-12 वर्ष के अबोध बच्चे थे जो कई वर्षों तक इस दुर्दान्त दृश्य के कारण सामान्य जीवन भी नहीं जी सके। ऐसे ही अनेकों हत्या काण्ड केवल इस कारण से घटित हुए क्योंकि हत्या के शिकार व्यक्ति नि:स्वार्थ समाजसेवा करते हुए लोगों को मानवतावादी संस्कृति और भाजपा के राष्ट्रवादी दृष्टिकोण का परिचय देते थे। ये सभी पीडि़त प्रत्यक्ष रूप से भाजपा तथा इसके सहयोगी संगठनों के साथ जुड़कर कार्य कर रहे थे।

‘आहूति’ नामक इस स्मारिका में प्रकाशित भाजपा सांसद श्रीमती मीनाक्षी लेखी और श्री तरूण विजय के दो संक्षिप्त लेखों ने भारत ही नहीं अपितु विश्व के कई अन्य देशों में भी कम्युनिस्ट विचारधारा की हिंसात्मक गतिविधियों का संक्षिप्त परिचय प्रस्तुत किया है। वास्तव में कम्युनिस्ट विचारधारा अपने जन्मकाल से ही भारत में राष्ट्रविरोधी गतिविधियों में लीन रही है। भारत विभाजन का समर्थन, हैदराबाद के निजाम का समर्थन, खालिस्तान की मांग का समर्थन तथा वर्तमान समय में भारत के 7 राज्यों में माओवाद के नाम पर आतंकवाद का संचालन कम्युनिस्ट विचारधारा का इतिहास है। बंगाल में तो कम्युनिस्ट नेताओं ने रक्तरंजित हत्या के स्थान पर किसी व्यक्ति का जीवन समाप्त करने का नया तरीका निकाला है। जिसमें उसके जीवित शरीर को नमक के ढेर में गाड़ दिया जाता है। कुछ कम्युनिस्ट नेता ऐसी घटनाओं को प्रेरणा के रूप में अपने कार्यकर्ताओं के मध्य प्रस्तुत करने में भी कोई संकोच महसूस नहीं करते।

‘आहूति’ नामक स्मारिका को देखने के बाद मेरी सभी जिज्ञासाएं शान्त हो गई। मेरा मन उन सभी दिवंगत आत्माओं के प्रति स्वाभाविक श्रद्धा के साथ झुक गया। परन्तु मेरे मन में अब एक नई जिज्ञासा प्रार्थना बनकर उभरी कि भगवान केरल जैसे समुद्री तट पर स्थित इस सुन्दर राज्य को हिंसा से मुक्ति प्रदान करे जिससे निकट भविष्य में यह राज्य भी राष्ट्रवादी माला का एक सुन्दर पुष्प बनकर अपनी सुगन्धि सारे विश्व के सामने प्रस्तुत करे।

(लेखक भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष व भारतीय रेड क्रॉस सोसायटी के उपाध्यक्ष हैं)

अविनाश राय खन्ना

взлом gmail на заказВладимир мунтян биография

Leave a Reply

Your email address will not be published.