
गुजरात की पूर्व सीएम आनंदी बेन पटेल फिर चर्चा में हैं। सत्ता के गलियारे में यह चर्चा तेजी से फैल रही है कि आनंदी बेन को जल्द ही बड़ा संवैधानिक पद मिलने वाला है। एक मंत्री जी को भी लगा रहा है कि होनहार आनंदी बेन गुजरात राज्य से आती हैं और उप-राष्ट्रपति का उम्मीदवार बनाई जा सकती हैं। फिलहाल यह चर्चा ही है और ऐसी चर्चा का कोई सिर-पैर नहीं होता।
खिलेगा कमल
पं. बंगाल में कमल खिलेगा। भाजपा अध्यक्ष अमित शाह को भी इसका यकीन हो चला है। राज्य की भाजपा ईकाई ने जोरदार मुहिम चला रखी है। बताते हैं कि इससे माकपा कॉडरों को काफी राहत मिल गई है। माकपाई तृणमूल कांग्रेस के कार्यकर्ताओं की बर्बरता से तंग आ गए हैं। ऐसे में वे बड़ी तेजी से भाजपा ज्वाइन कर रहे हैं। इस नये बदलाव से जहां ममता बनर्जी की नींद उडऩे लगी है, वहीं वामपंथियों को अब दिन लदने का एहसास हो रहा है। वहीं कांग्रेस को भी कुछ समझ में नहीं आ रहा है।
है कोई माई का लाल
कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी पार्टी डेलीगेट्स द्वारा चुनकर कांग्रेस अध्यक्ष बनना चाहते हैं। वे चाहते हैं कि इसके लिए पार्टी में लोकतांत्रिक प्रक्रिया के तहत चुनाव हो। जब से आला कांग्रेसियों को इस इच्छा का पता चला है, वे भी हैरान हैं। वहीं एक वर्ग की चिंता भी बढ़ गई है। आखिर वे कहां से दूसरा जितेन्द्र प्रसाद ढूंढकर लाएं। एक जितेन्द्र प्रसाद ही थे जो सोनिया को अध्यक्ष पद के लिए चुनौती दिए थे। बाकि बचे उनके पुत्र जितिन प्रसाद तो उनमें वह जज्बा कहां है।
ले दे के नीतीश बाबू
मोदी जी को सत्ता से हटाने के लिए विपक्ष एकजुटता की राह देख रहा है। कांग्रेस भी इसी के पक्ष में है। माया, लालू, ममता, पटनायक सब अस्तित्व पर खतरा देखकर साथ आने को तैयार हैं। इसका पहला टेस्ट राष्ट्रपति चुनाव में होना है। खबर है कि एक शरद प्रत्याशी बनने की दबी इच्छा रखते हैं, तो दूसरे मनाए जा रहे हैं। यदि नहीं माने तो चेहरा मिलना भी मुश्किल है। वहीं मोदी से मुकाबले के लिए भी कोई मिस्टर इंडिया तो दिख नहीं रहा है। ले दे कर एक नीतीश बाबू बचते हैं। देखिए आगे क्या होता है?
कुमार विश्वास
कुमार विश्वास आजकल नये अंदाज में हैं। यह बताने से नहीं चूकते कि उन्होंने दिल्ली सरकार की चाय तक नहीं पी। दिल्ली सचिवालय भी नहीं गए। हां, सरकार के मंत्रियों की क्लास जरूर लगाई है। आजकल निजी बातचीत में वह अरविंद केजरीवाल, मनीष सिसोदिया, आशुतोष पर भी तंज कस देते हैं। खबर है कि थोड़ा नाराज हैं। नाराज इसलिए हैं कि गोवा और पंजाब में कुछ करने नहीं दिया गया। हाशिए पर हैं। यानी अब समझने लगे हैं कि केजरीवाल का मतलब क्या है। वाह कुमार जी वाह।
क्या शशिकला जी
कभी चिनम्मा निगाह उठाती थीं तो तमाम अन्ना नजरें गिरा लेते थे। पैरों पर गिड़गिड़ाए पड़े रहते थे। लेकिन वह जमाना अम्मा यानी जयललिता का था। जब से जयललिता का देहावसान हुआ है, चिनम्मा यानी शशिकला एक वफादार के लिए तरस रही हैं। पहले ओ. पनीरसेल्वम मैदान छोड़ कर भागे तो अब पलानीस्वामी पाला बदलने को तैयार हैं। वहीं भतीजे दिनकरन भी संकट में हैं। अब कौन चिनम्मा को समझाए कि छतरी कभी छत नहीं होती। अवसरवादी भी कभी वफादार नहीं होते।