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दुतीचंद विवादों के साथ दौडऩे वाली धाविका

दुतीचंद विवादों के साथ दौडऩे वाली धाविका

ओडि़शा के ट्रैक इतिहास की अबतक की सबसे यशस्वी धाविका दुतीचंद ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपने राज्य को विशेष पहचान दी है। 2018 के एशियन गेम्स की 100 व 200 मीटर दौड़ की दोहरी रजत पदक विजेता, गत वर्ष विश्व विश्वविद्यालय खेलों में 100 मीटर की स्वर्ण पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला एथलीट दुतीचंद ने ट्रैक पर  बड़ी सुर्खियां बटोरी हैं। पर इसके साथ विवाद भी मानो उनके साथ बगल वाले ट्रैक पर फर्राटा भरता चल रहा है। विवाद के साथ उसने चोली दामन का संबंध बना लिया है। कभी जेंडर का मामला हो तो कभी समलिंगी संबंध का या फिर अपने परिवार से अनबन की बात हो वे हमेशा चर्चा में बनी रहती हैं।

अब एक ताजा विवाद में वे ओडि़शा सरकार से ही उलझ गई हैं।  कोरोना महामारी की वजह से टोक्यो ओलिंपिक खेलों के एक वर्ष तक टल जाने की वजह से संसार के सभी खिलाडिय़ों की तैयारी योजना को झटका लगा है। सबकी अपनी परेशानियां सामने आ रही हैं। सभी नई परिस्थितियों के अनुसार अपने प्रशिक्षण सूची बनाने में जुटे हैं। ऐसे में दुतीचंद ने प्रशिक्षण के लिये पैसे का अभाव के नाम पर एक नया बखेड़ा खड़ा कर दिया है। उसने हाल ही में सोशल मीडिया पर पैसे जुटाने के लिये अपनी बीएमडब्ल्यू कार बेचने का प्रस्ताव रख दिया। उसके पोस्टिंग से ऐसा लगा कि वह बहुत गरीब हो गई है। उच्च स्तरीय तैयारी के लिये उसके पास पुष्टिकर आहार हेतु पैसे नहीं हैं।

पिछले चार-पांच वर्षों में राज्य सरकार ने उसकी मैदानी सफलता के लिये करोड़ों रुपये की प्रोत्साहन राशि देने के साथ उसे ओडि़शा खनन निगम में अधिकारी स्तर पर नियुक्ति दी है। इसके अलावा कलिंग इंस्टीट्यूट (किट्स)उसे पूरा संरक्षण दे रहा है। इस परिप्रेक्ष्य में दुतीचंद के कार बेचने की पोस्टिंग  राज्य सरकार को अत्यंत नागवार गुजरी है। राज्य की नवीन पटनायक सरकार पूरे देश में खेलों को प्रोत्साहन देने वाली छवि के साथ उभरी है। ऐसे में  यंहा के एक तारका एथलीट द्वारा अपने को असहाय, पैसे की कमी का रोना रोते देखकर सरकारी प्रशासन काफी क्षुब्ध हुआ है।

दुती चंद की ट्रेनिंग के लिए फंडिंग विवाद पर ओड़िशा सरकार का कहना है कि उनकी तरफ से लगातार इस एथलीट की आर्थिक मदद की जा रही है। दुतीचंद की पोस्टिंग के जवाब में सरकार ने 2015 से 2019 के बीच दुतीचंद को दिये गये धनराशि का विवरण सार्वजनिक किया है। जिसके अनुसार पिछले चार वर्षों में सरकार ने उसे 4.9 करोड़ रुपये दिये हैं।

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ओडि़शा सरकार के खेल एवं युवा मामलों के विभाग के 16 जुलाई को एक बयान के अनुसार,  दुतीचंद को, ‘2018 के एशियन गेम्स में जीते गए पदकों के लिए तीन करोड़ रुपये का वित्तीय अनुदान, 2015-19 के दौरान प्रशिक्षण और वित्तीय सहयोग के तौर पर 30 लाख रुपये  और टोक्यो ओलंपिक की तैयारियों के लिए 2 किस्तों में 50 लाख रूपये जारी किये गये हैं।’

ओडि़शा सरकार ने यह भी कहा कि उसने दुती को ओडि़शा खनन कारपोरेशन (ओएमसी) में ग्रुप ए स्तर के अधिकारी के पद पर नियुक्ति दी है।  जिससे उसे अपने प्रशिक्षण  और वित्तीय प्रोत्साहन के लिए 29 लाख रूपये की राशि मिली है।

ओडि़शा सरकार ने अपने बयान में दुतीचंद को मिल रहे वेतन का ब्यौरा भी दिया है, ‘ उसे हर महीने कुल वेतन 84,604 रूपये (जून 2020 का वेतन) मिलता है। उसे दफ्तर आने से पूरी छूट है। वह अपना जरूरत नहीं होती ताकि वो पूरा ध्यान ट्रेनिंग पर लगा सके इसी वजह से ओएमसी में नियुक्ति के बाद दुती को कोई काम नहीं दिया गया है।’

सरकार द्वारा दुतीचंद को अबतक किये गये सहायता, प्रोत्साहन राशि के खुलासे से वह तिलमिला  गई हैं। उसे सरकार के इस कदम की उम्मीद नहीं थी।

दुतीचंद ने सरकार द्वारा  उसे दिये गए राशि का विवरण सार्वजनिक करने पर रोष प्रकट करते हुए कहा ‘‘अगर कोई खिलाड़ी अच्छा प्रदर्शन कर रहा है तो उसकी सहायता करना सरकार की जिम्मेदारी है। मैं दुखी हूं क्योंकि दुनिया या भारत में कोई भी सरकार किसी भी खिलाड़ी के प्रशिक्षण पर किये खर्च का ब्यौरा मीडिया को नहीं बताती। फिर ओड़िशा में सरकार से सहायता पाने वाली मैं इकलौती खिलाड़ी नहीं हूं। अन्य कई खिलाड़ियों को भी सहायता मिली है उनका विवरण क्यों कभी नहीं दिया गया?

24 वर्षीय धाविका ने कहा कि उसने मिली सहायता राशि के खर्च के बिल सरकार को दिये हैं।

दुतीचंद ने विवरण पर  आपत्ति दर्ज करते हुए कहा कि सरकार ने दी गई सहायता में उनके वेतन को भी जोड़ा है। ‘‘29 लाख रुपये में मेरा वेतन शामिल है। मुझे समझ नहीं आ रहा कि यह किस तरह से मेरे प्रशिक्षण के लिये सहायता राशि है? मैं ओएमसी की कर्मचारी हूं अत: वेतन की हकदार हूं। ’’

उसने यह भी कहा, ‘जब मैं मेडल जीतती हूं तो मुझे लगता है कि मैं अपने देश के साथ अपने नियोक्ता के लिए भी कुछ कर रही हूं। मैं उन्हें भी गौरवान्वित करती हूं। मैं घर पर खाली नहीं बैठती और ना ही मैंने पदक जीतना बंद कर दिया है। कार्यालय में कागज कलम के साथ काम करने की बजाय मैं  मैदानों और स्टेडियम में ट्रेनिंग पर खून पसीना बहाती हूं।.’

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राज्य सरकार के बयान से एक दिन पहले दुती ने उस विवाद को दबाने की कोशिश की थी जो उसके बीएमडब्ल्यू कार को बेचने के लिए की गयी पोस्टिंग से खड़ा हो गया था। अपनी लग्जरी कार को बेचने संबंधी बयान पर सफाई देते हुए दुतीचंद ने कहा कि वह अपनी कार ट्रेनिंग के लिए पैसे जुटाने के इरादे से नहीं बेच रही थी बल्कि इस कार के रखरखाव का खर्चा उसकी पंहुच से बाहर होने की वजह से उसने कार को बेचने का मन बनाया था।

जब सरकार के बयान पर दुतीचंद से संपर्क किया गया तो उसका जवाब था:  ‘‘इन वर्षों में ओडि़शा सरकार द्वारा मुहैया कराई गई सहायता के लिए मैं आभारी हूं। परंतु चार करोड़ रुपये की सहायता की बात सही तस्वीर पेश नहीं करती। सबों को लगेगा कि दुती ने इतना पैसा खर्च कर दिया है।  इस चार करोड़ में 3 करोड़  तो पुरस्कार राशि है जो ओड़ीशा सरकार ने मुझे 2018 एशियन गेम्स में 2 रजत पदक जीतने के लिए दी थी।’’ यह उसी तरह है जिस तरह पीवी सिंधू या किसी अन्य पदक विजेता को उनकी राज्य सरकारें नगद पुरस्कार राशि देती है। इसे प्रशिक्षण के लिए वित्तीय सहायता के तौर पर नहीं देखा जाना चाहिए।’’

अब दुतीचंद ने कह रही है कि उसकी कार बेचने की कोई योजना नहीं है क्योंकि किट के संस्थापक  और सांसद अच्युत सामंत ने उसके प्रशिक्षण के लिये वित्तीय सहायता देने का आश्वासन दिया है। दुतीचंद द्वारा सोशल मीडिया में बीएमडब्ल्यू कार बेचने के संदेश के बाद खेल दुनिया में तीव्र प्रतिक्रिया  देखने को मिली थी। सरकार की प्रतिक्रिया से उसे महसूस हुआ है कि उससे गलती हो गई है।

मैं सोशल मीडिया पर अपने  कार को बेचने के लिए गई थी। मुझे कार से लगाव है पर उसके रखरखाव के लिए मेरे पास संसाधन की कमी हो गई है। और मैं उसका उपयोग नहीं कर पा रही थी। मैंने कभी नहीं कहा कि प्रशिक्षण के लिये पैसे जुटाने के लिए मैं कार बेचना चाहती हूं।

उसने यह भी कहा कोई भी प्रायोजक महामारी में मुझ पर पैसा लगाना नहीं चाहता। मुझे पैसे चाहिये इसलिए प्रशिक्षण व आहार के लिये पैसा के लिये गाड़ी बेचना चाहती हूं।

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पर 15 जुलाई को उसने पलटी मारी और कहा वह प्रशिक्षण के पैसे के लिए कार नहीं बेच रही।

पिछले वर्ष रांची में 100 मीटर दौड़ में 11.24 सेकेंड का नया कीर्तिमान बनाने वाली दुतीचंद इन दिनों भुबनेश्वर में रहकर  कलिंग स्टेडियम में अभ्यास में जुटी है।  गत वर्ष ही उसने नपोली (इटली ) में विश्व विश्वविद्यालय खेलों में 100 मीटर दौड़ में 11.89 सेकेंड में स्वर्ण पदक जीतकर इन खेलों में स्वर्ण पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला एथलीट होने का गौरव भी हासिल किया है।

एक निर्धन परिवार से आकर प्रसिद्धि के शिखर तक पंहुचने वाली दुतीचंद कहती हैं कि उन्होंने कभी पुरस्कार राशि की मांग नहीं की ऐसे में उसे पुरस्कार राशि की याद दिलाकर उसे अपमानित किया जा रहा है।

दुतीचंद बिलाशक एक जुझारू और जीवट भरी एथलीट हैं। इतनी कम उम्र उसके खिलाड़ी जीवन में जो बाधाएं आईं वे अन्य अच्छे लोगों का मनोबल तोड़ सकती थी । 2014 में  एशियन जूनियर एथलेटिक्स में दो स्वर्ण पदक जीतने के बाद उसके सामने संभावनाओं के नये द्वार खुल रहे थे कि उसके जेंडर को लेकर विवाद खड़ा हो गया। उसके शरीर में  पुरूष हारमोन hyperandrogemism  की अधिकता की वजह से  महिला एथलीट के रूप में भाग लेने से प्रतिबंधित कर दिया गया। इस प्रतिबंध की वजह से 2014 के राष्ट्रमंडल खेल और एशियन गेम्स के लिये भारतीय दल उसे बाहर कर दिया गया। पर उसने हिम्मत नहीं हारी।

2015 court of Arbitration for sports ने उसे पुरूष होने के दाग से मुक्त किया। 2016 उसने वापसी करते हुए रियो ओलिंपिक खेलों के लिए दल में स्थान प्राप्त किया। उसके बाद से वह निरंतर अपना प्रदर्शन सुधार रही हैं।

गत वर्ष दुतीचंद पुन: एक बार विवाद में उलझ गई। गत वर्ष मई महीने में उसने खुलेआम स्वीकारा कि वे एक समलिंगी संबंध में है। अपने गांव की एक लडक़ी के साथ उसके गहरे अंतरंग संबंध हैं। इतना साहस दिखाने वाली वे पहली भारतीय एथलीट हैं। उसने कहा कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा समलिंगी संबंध में कानून में बदलाव से उसे यह हिम्मत मिली। उसने कहा किसी से डरने की जरूरत नहीं है सबकी अपनी जिंदगी है। उसके इस स्वीकारोक्ति की वजह से अब अपने परिवार से अनबन हो गई है। उसकी माँ, बड़ी बहन, जो राष्ट्रीय स्तर की एथलीट रही हैं, ने उसका बहिष्कार कर दिया है। इससे नाराज दुतीचंद ने भी बड़ी बहन पर समलिंगी होने का पलटा आरोप लगा दिया है।

घर परिवार से पंगा लेने के बाद अब सरकार के साथ पंगे से उसे एहसास हुआ कि उसने सरकार को गलत तरीके से छेड़ दिया है।

तेज गतिवान पैरों के साथ तेज जुबान दुतीचंद के लिये नई मुसीबत लेकर आई है। इससे उसके खेल कैरियर पर क्या प्रभाव पड़ेगा यह देखना रोचक होगा। ओलिंपिक खेल एक वर्ष के लिये टल गये हैं। ओलिंपिक पदक जीतना हर खिलाड़ी का सपना होता है। पर उसके लिये शारीरिक क्षमता के साथ मानसिक दृढ़ता, एकाग्रता का होना जरूरी होता है।

सरकार की भरसक सहायता के बावजूद अपने को पीडि़त, असहाय दिखाने की कोशिश दुतीचंद को भारी न पड़ जाये। अपने रवैये से उसने लोगों की सहानुभूति खोई है। अगर इससे दुतीचंद के प्रदर्शन पर प्रभाव पड़ता है तो वह स्वंय उसके साथ साथ देश के लिये भी नुकसानदेह सिद्ध होगा।

 

 सतीश शर्मा

 

 

 

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