
जो बाइडेन ने अमेरिका का राष्ट्रपति चुनाव जीत लिया है। इसी के साथ वो डोनाल्ड ट्रंप को हराकर अमेरिका के 46वें राष्ट्रपति बन गए हैं। 77 साल 11 महीने के जो बाइडेन लंबे समय से राजनीति कर रहे हैं। ओबामा सरकार के दौरान जो बाइडेन उपराष्ट्रपति थे। मतलब बाइडेन राजनीति के पुराने खिलाड़ी हैं। ऐसे में बतौर राष्ट्रपति बाइडेन पुराने राष्ट्रपतियों की राह पर चलेंगे या नई लकीर खींचेंगे, यह देखने वाली बात होगी। भारत के लिहाज से देखें तो कुछ क्षेत्र ऐसे हैं जहां वे वर्तमान राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के ढर्रे पर चलेंगे। कुछ में वे बदलाव कर सकते हैं। 21वीं सदी में भारत और अमेरिका के रक्षा, रणनीतिक और सुरक्षा संबंध मजबूत हुए हैं, फिर राष्ट्रपति की कुर्सी पर चाहे रिपब्लिकन बैठा रहा हो या डेमोक्रेट। यही ट्रेंड बाइडेन प्रशासन में भी बरकरार रहने के आसार हैं।
जो बाइडेन के साथ कमला हैरिस भी हैं जो उप-राष्ट्रपति होंगी। वह नीतिगत मामलों में बड़ी भूमिका निभा सकती हैं क्योंकि बाइडेन इशारा कर चुके हैं कि वह एक कार्यकाल के लिए ही राष्ट्रपति रहेंगे। हैरिस 2024 के लिए राष्ट्रपति उम्मीदवार हो सकती हैं, ऐसे में विभिन्न मुद्दों पर उनकी राय बहुत महत्वपूर्ण हो जाती है। बाइडेन ने अपने चुनाव प्रसार के दौरान भारतीय-अमेरिकियों से संपर्क किया है। वह भारत के लिए उदार सोच रखते हैं। चूंकि अमेरिका और भारत के रिश्ते अब संस्थागत हो चले हैं, ऐसे में उसमें बदलाव कर पाना मुश्किल होगा। बाइडेन के प्रमुख रणनीतिकार एंथनी ब्लिंकेन कह चुके हैं, ‘हम एक जैसी वैश्विक चुनौतियों से बिना भारत को साथ लिए नहीं निपट सकते। भारत के साथ रिश्तों को मजबूत और गहरा करना हमारी उच्च प्राथमिकता में रहने वाला है।’
होंगे ये बदलाव…
- कट्टरता-आतंकवाद पर ट्रंप के मुकाबले आक्रामकता घट सकती है।
- भारत के साथ संबंध में ज्यादा बदलाव की संभावना नहीं है।
- अमेरिका-चीन के साथ संबंध में सुधार आ सकता है। बातचीत आगे बढ़ेगी। हमने देखा कि ट्रंप के कार्यकाल में ये संबंध बेहद खराब हो गए थे।
- अमेरिका-चीन ट्रेड वॉर जो ट्रंप के काल में प्रचंडता पर था, वो धीरे-धीरे खत्म हो सकता है।
- अमेरिका में अश्वेत विरोध और आंदोलन कम हो सकते हैं।
- इमीग्रेशन पॉलिसी पर बाइडेन का रुख ट्रंप के मुकाबले थोड़ा नरम हैं, इसीलिए मैक्सिको से आने वाले लोगों को राहत दी जा सकती है।
- सबसे बड़ी बात, बाइडेन के आने से अमेरिका में ग्रीन कार्ड देने की संख्या बढ़ सकती है।
भारत को होंगे ये फायदे और नुकसान
- भारत-अमेरिका रक्षा संबंध की बात करें तो बड़े बदलाव की संभावना नहीं है। संयुक्त युद्धाभ्यास और सैन्य समझौते पहले की तरह होते रहेंगे।
- भारत-अमेरिका आर्थिक संबंध और बेहतर हो सकते हैं। दोनों देश के बीच कारोबार बढ़ सकता है।
- अच्छी खबर ये हैं कि भारतीयों को ज्यादा ग्रीन कार्ड मिल पाएगा यानी ज्यादा भारतीय अमेरिका में बस पाएंगे।
- भारत-चीन तनाव को कम करने के लिए जो बाइडेन भारत पर दबाव बना सकता है, क्योंकि डेमोक्रेटिक पार्टी का रुख चीन के प्रति थोड़ा नरम रहा है।
- भारत-पाकिस्तान संबंध की बात करें तो इस पर बहुत बदलाव नहीं होगा क्योंकि भारत ने साफ कर दिया है कि वो अपनी हितों की रक्षा जरूर करेगा।
- आईटी सेक्टर की कंपनियों को जो बाइडेन के आने का फायदा होगा।
इन चुनाव परिणामों के बाद भारत का उदारवादी तबका कुछ ज्यादा ही उम्मीद पाले हुए है, जैसेकि डेमोक्रेटिक उम्मीदवार जो बाइडेन और कमला हैरिस के चुनाव जीत जाने से बहुत कुछ बदल जाएगा। और उनकी इस खुशफहमी की वजह पिछले कुछ वर्षों में भारत के तमाम राजनीतिक संदर्भों में आई जो बाइडेन और कमला हैरिस की प्रतिक्रियाएं हैं। पहले एक नजर उन प्रतिक्रियाओं पर डाल लेते हैं।
पिछले साल के आखिर और इस साल के शुरुआती महीनों में भारत में नागरिकता संशोधन कानून और नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजन के मुद्दे पर देशव्यापी विरोध प्रदर्शन चल रहा था। सीएए-एनआरसी पर देशभर में विरोध-प्रदर्शन के बीच जो बाइडेन ने टिप्पणी करते हुए कहा था, ‘भारत का मूल लोकतांत्रिक और सेक्युलेरिज्म का रहा है, ऐसे में ताजा कानून इनसे मेल नहीं खाता है।’
जबकि कमला हैरिस ने भी सीएए-एनआरसी के विरोध में कड़ी प्रतिक्रिया दिया था। कमला हैरिस उन अमेरिकी सीनेटर्स में थीं जिन्होंने भारत सरकार के नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) के खिलाफ मजबूती से आवाज़ उठाई थी। साथ ही उन्होंने दिसंबर, 2019 में इसके खिलाफ एक प्रस्ताव पेश किया था। इस प्रस्ताव के बाद भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने अपने अमेरिकी दौरे के दौरान सीनेटर प्रमिला जयपाल से मिलने से इनकार कर दिया था। तब कमला हैरिस ने जयपाल के समर्थन में ट्वीट करके भारत के विदेश मंत्री की इस हरकत की कड़ी आलोचना की थी।
जम्मू-कश्मीर से धारा 370 को डायल्यूट करने, तमाम कश्मीरी नेताओं को उनके ही घरों में कैद करके रखने और पूरे राज्य में कफर्यू लगाकर जीवन की मूलभूत सुविधाओं से कश्मीरी अवाम को मरहूम रखने के मुद्दे पर डेमोक्रेट्स उम्मीदवार जो बाइडेन ने अपना विरोध जताया था। इसके बारे में उन्होंने अपने चुनाव प्रचार में भी कई बार जिक्र किया था। वहीं उपराष्ट्रपति उम्मीदवार कमला हैरिस ने भी जम्मू-कश्मीर में लंबे वक्त तक नजरबंदी के मसले पर मुखर होकर कहा था कि ‘हम उनके साथ खड़े हैं, मानवाधिकार के नियमों का उल्लंघन पूरी तरह गलत है।’
लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए की भारत एक बाजार है और जो बाइडेन पूंजीवादी यूएसए के राष्ट्रपति होंगे। इस पृष्ठभूमि में यह जिक्र करना अनुचित नहीं होगा की उपराष्ट्रपति के पद पर रहते हुए भारत और अमेरिका के बीच हुई न्यूक्लियर डील में अहम भूमिका निभाने वाले जो बाइडेन ने चुनावी कैंपेन में भारत और अमेरिका के संबंधों को मजबूत करने की बात कहा है। उन्होंने चुनावी प्रचार के दौरान कहा है कि राष्ट्रपति बनने के बाद वो भारत के साथ जारी ट्रेड समेत अन्य कुछ समस्याओं को दूर करेंगे और भारत से दोस्ती और मजबूत करेंगे।
जाहिर है किसी देश की नीतियां सिर्फ वैचारिक समानता से नहीं तय होती हैं। ये तय होती हैं दो देशों के के बीच होने वाले नफा-नुकसान के आकलन से। वैश्वीकरण के जरिए अमेरिकी पूंजी के निवेश के लिए बाज़ार खोजने निकले यूएसए के लिए भारत एक बड़ा बाजार है, एक बड़ा अवसर। साथ ही भारत अमेरिका के लड़ाकू हथियारों के बड़े खरीदार के रूप में उभरा है। अमेरिकी अर्थव्यवस्था को मंदी और कोविड-19 महामारी के झटकों से उबारने के लिए भारत के साथ मौजूदा संबंध को बेहतर करके चलने में ही अमेरिका का हित है। साथ ही चीनी उत्पादों के संदर्भ में तथा 130 करोड़ उपभोक्ता वाले विशाल भारतीय बाजार को साथ लिए बिना यूएसए चीन की तेजी से उभरती अर्थव्यवस्था को कंट्रोल नहीं कर पाएगा।
उदय इंडिया ब्यूरो