
हाल ही में हिंदुस्तान एरोनॉटिक लिमिटेड (एचएएल) द्वारा निर्मित तेजस लड़ाकू विमान के लिए 48,000 करोड़ रूपये की डील को स्वीकृती और एचएएल द्वारा ही विकसित एंटी-एयरफील्ड रक्षा उपकरण का ओडिशा के तट पर किया गया सफल परीक्षण स्वदेशी के क्षेत्र में एक ऐतिहासिक कदम है। इसके अलावा रक्षा मंत्रालय ने भी मोदी सरकार के आत्मनिर्भर अभियान में अनुकरणीय कदम उठाया। स्वदेशी आयुध और रक्षा उत्पादों का निर्माण रक्षा उत्पादों के आयत को रोकेगा, जो न केवल भारत की अर्थव्यवस्था को लाभ पहुंचायेगा, बल्कि इससे भारत भी रक्षा उत्पादन के क्षेत्र में विश्वभर में एक ताकत के रूप में उभरेगा। इस प्रकार की पहल इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि भारत रक्षा उत्पादों के खरीदार देशों क्षेत्र में सबसे बड़े देशों की श्रेणी में आता हैं। इसके अलावा अभी हाल ही में चीन और पाकिस्तान से सटे सीमावर्ती क्षेत्रों में चुनौतियां और बढ़ी हैं। साथ ही साथ, रक्षा क्षेत्र में होने वाले सौदो में बिचौलियों की भूमिका भी समाप्त हो जाऐगी। जैसे-जैसे भारत में डिफेन्स इंडस्ट्री बढ़ेगी, वैसे-वैसे यहां रोजगार सृजन के अवसर भी बढेंगे। अत: भारत का पैसा भारत में ही रहेगा। इस पृष्ठभूमि में यहां यह चर्चा करना महत्वपूर्ण है कि आज देश की कई सरकारी और पब्लिक सेक्टर कंपनियां विश्वस्तरीय हथियारों का निर्माण कर रही हैं। आज भारत विश्वभर में 42 देशों को रक्षा उत्पादों का निर्यात कर रहा है। मेक इन इंडिया को आगे बढ़ाते हुए आत्मनिर्भर भारत के मिशन को पूरा करने के लिए, केंद्र सरकार ने 2024 तक 35000 करोड़ रुपये तक के वार्षिक रक्षा निर्यात का लक्ष्य रखा है। यदि हम डाटा पर ध्यान दें तो वर्ष 2016-2017 में रक्षा निर्यात कुल 1521 करोड़ रुपये का था, जो अब 2018-19 में बढक़र 10,745 करोड़ तक पंहुचा गया। यानि निर्यात के क्षेत्र में कुल 700 प्रतिशत की वृद्धि!
आजादी के बाद की दोहरी नीति, आधुनिकता की कमी, नेताओं के स्वार्थ और निजी सेक्टर की भागीदारी की कमी के कारण भारत में रक्षा उत्पादों की भरपाई विदेशी कंपनियां ही करती रही हैं। फलत:, यह हम सभी भारतीयों के लिए एक गंभीर चिंतन का विषय है कि भारत जैसा शक्तिशाली देश भी दुनिया के दूसरे में हथियारों का सबसे बड़ा आयातक देश है। यह न केवल भारत की विदेशी मुद्रा को कम करता है, बल्कि रक्षा उत्पादों के लिए हम केवल पांच या छ: देश पर ही निर्भर हो जाते हैं और ऐसा हमें कारगिल युद्ध के दौरान देखने को मिला। शीतयुद्ध के दौरान समस्या वैसी नहीं थी क्योंकि सोवियत यूनियन को हम भारतीय मुद्रा में भुगतान करते थे। लेकिन शीतयुद्ध के बाद यह सुविधा बंद हो गयी। जिससे हमारी रणनीतिक जिम्मेदारी और भी बढ़ गयी। इसलिए स्वदेशी रक्षा उत्पादन हमें रणनीतिक स्वतंत्रता देता है। और 24X7 रक्षा तैयारियों को भी मजबूत करता है। सैन्य उपकरण का लेन-देन पूरे विश्वभर में काफी उंचे स्तर पर है। इसी संदर्भ में स्वदेशी निर्माण राष्ट्र की सुरक्षा को बल प्रदान करता है और दूसरे देशों पर निर्भरता को भी कम करता है। लेकिन दुर्भाग्य से भारत उन देशों की श्रेणी में आता है जो रक्षा उत्पादों का आयात करते रहे है। लेकिन मोदी सरकार के मेक इन इंडिया और आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत रक्षा उत्पादन के क्षेत्र में भारत शीघ्र ही आत्मनिर्भर देश बनकर उभरेगा। विश्वभर में इस क्षेत्र में शक्तिशाली देश होने के साथ ही भारत को यह सुनिश्चित करना होगा कि किसी भी प्रकार की राजनीति इसमें बाधा न बने। रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता यह साफ सन्देश देती है कि कुशल शासन के माध्यम से इस क्षेत्र में काफी सुधार लाये जा सकते हैं। क्योंकि पिछली सरकारों की ‘चलता है’नीति ने दूसरे देशों पर निर्भर होने पर विवश कर दिया। अत: वर्तमान सरकार को धन्यवाद, जिसने रक्षा जरूरतों को पूरा करने के लिए इस प्रकार के सराहनीय कदम उठाये।
दीपक कुमार रथ
(editor@udayindia.in)