
दिल्ली की सीमाओं पर पिछले करीब तीन महीने से जारी किसान आंदोलन का सचमुच वही घोषित मकसद है, जिसका दावा किसान आंदोलनकारी कर रहे हैं? यह सवाल इन दिनों पूरे देश में पूछा जा रहा है। इस सवाल का जवाब हर पक्ष अपने-अपने राजनीतिक विचारों और मर्यादाओं के अनुसार दे रहा है। किसान संगठनों का दावा है कि उनके आंदोलन का उद्देश्य उन तीन किसान कानूनों की वापसी है, जो उनकी नजर में किसान और कृषि संस्कृति विरोधी हैं। लेकिन किसान आंदोलन को बेजा मानने वाले लोगों का दावा है कि दिल्ली की सीमाओं पर धरनारत आम किसानों की मांग और उनके धरने का मकसद बेशक वही है, जिसका दावा किसान संगठन कर रहे हैं। लेकिन इसके पीछे का तथ्य कुछ और है। तीनों कृषि कानूनों के समर्थकों का दावा है कि किसानों को कुछ निहित स्वार्थी तत्वों ने बरगलाया है। उनकी भावनाओं को भडक़ा कर ये संगठन अपने भारत विरोधी एजेंडा को सफल बनाने के लिए इन किसानों का इस्तेमाल कर रहे हैं। यही वजह है कि आंदोलनकारियों को पर्दे के पीछे से भरपूर आर्थिक मदद दी जा रही है।
किसान आंदोलन का परोक्ष रूप से समर्थन और आर्थिक मदद के लिए विदेश संचालित खालिस्तान समर्थक संस्था पोयेटिक जस्टिस फाउंडेशन पर आरोप लगता रहा है। इस सिलसिले में इन्फोर्समेंट डाइरेक्टरेट यानी प्रवर्तन निदेशालय और राष्ट्रीय जांच संस्था यानी एनआईए ने जांच भी शुरू कर दी है। इसके तहत दोनों एजेंसियां किसान आंदोलनकारियों के बैंक खातों और उनमें हुए लेन-देन पर निगाह रखे हुए हैं। लेकिन इस आंदोलन में विदेशी पैसा और हाथ होने की सार्वजनिक तौर पर पहली पुष्टि तब हुई, जब अमेरिका की मशहूर गायिका रिहाना का ट्वीट किसान आंदोलन के समर्थन में सामने आया। चूंकि रिहाना के ट्वीटर पर दस करोड़ से ज्यादा फालोवर हैं, लिहाजा माना गया कि इसके लिए उन्होंने मोटी रकम ली। तीन फरवरी को जब यह ट्वीट माइक्रोब्लॉगिंग साइट पर आया, उसके बाद आंदोलनकारियों और उनके समर्थकों का भाव ऐसा था, मानो उनकी मनचाही मुराद पूरी हो गई। वहीं आंदोलन विरोधियों ने इस ट्वीट की पड़ताल शुरू कर दी। चूंकि आज का दौर संचार क्रांति का है और आज सूचनाओं को छुपा पाना कम से कम पहले की तरह आसान नहीं रहा। रिहाना के ट्वीट की सच्चाई भी जल्द ही सामने आ गई। रिहाना के ट्वीट के बाद अमेरिकी उपराष्ट्रपति कमला हैरिस की भतीजी मीना हैरिस ने भी किसानों के साथ एकजुटता जताई। माना जा रहा है कि इसके पीछे भी बड़ी रकम की भूमिका हो सकती है।
इंस्टाग्राम और ट्वीटर पर मशहूर सेलिब्रिटी के बारे में सर्वविदित है कि वे ट्वीटर अपने कारोबार और कैरियर के अलावा किसी अन्य विषय पर ट्वीट करती हैं तो बाकायदा इसकी वे अपने कद और फॉलोवर की संख्या के हिसाब से फीस लेती हैं। बहुत लोगों को लगता है कि रिहाना को तो पंजाब का प भी नहीं पता, वह भला क्यों करके पंजाब के आंदोलनरत किसानों के समर्थन में ट्वीट करने लगीं। बहरहाल खोजकर्ताओं ने पता लगा लिया कि रिहाना को इस ट्वीट के लिए ढाई मिलियन डॉलर बतौर फीस चुकाई गई थी। जाहिर है कि इतनी बड़ी रकम उस आंदोलन के समर्थन में खर्च नहीं की जा सकती, जिसका मकसद सिर्फ भारत के तीन कानून हटाना है।
इसी बीच यह भी पता चला कि किसान आंदोलन के समर्थन में एक ऐसा विज्ञापन अमेरिका के नेशनल फुटबाल लीग ‘सुपर बाउल 2021’ पर भी चला है। यह वीडियो इन दिनों सोशल मीडिया पर खूब वायरल रहा। 8 फरवरी यानी सोमवार को कई वेरीफाईड ट्विटर अकाउंट से इस वीडियो के चलवाने का दावा किया गया। यहां यह बताना जरूरी है कि ‘सुपर बाउल’ अमेरिका में सबसे ज्यादा देखी जाने वाली खेल टूर्नामेंट है। इसके आयोजन के दौरान किसी भी विज्ञापन के प्रसारण की कीमत 36 से 44 करोड़ रुपए होती है। सोशल मीडिया पर वायरल हुए वीडियो 30 सेकंड का है। यह लीग अमेरिका के कैलिफोर्निया राज्य के फ्रेस्नो काउंटी में आयोजित की गई थी। सात फरवरी रविवार को लीग शुरूआत के पहले कमर्शियल ब्रेक के दौरान चलाए गए तीस सेकंड के इस वीडियो विज्ञापन की शुरूआत मार्टिन लूथर किंग जूनियर की एक कहावत से होती है। इसके बाद इस वीडियो में देश में चल रहे किसान आंदोलन से जुड़ी तस्वीरें दिखायी जाती हैं। ऐसा करते हुए बताया जाता है कि यह इतिहास का सबसे बड़ा विरोध प्रदर्शन है। जिस आंदोलन के लिए किसी एक फिल्मी हस्ती को एक करोड़ अस्सी लाख का भुगतान सिर्फ एक ट्वीटर के लिए किया जाता हो, जिस आंदोलन के बारे में विदेशी लोगों को बताने वाले विज्ञापन के प्रसारण के लिए एक बार के लिए भारतीय मुद्रा में 36 से 44 करोड़ रूपए खर्च किए जाते हों, उसकी सैद्धांतिकी पर सवाल उठेंगे ही और उसके मकसद का छिद्रान्वेषण भी होगा।
किसान आंदोलन के पीछे विदेशी ताकतों के हाथ का सबूत स्वीडन की युवा पर्यावरणविद् ग्रेटा थनबर्ग के किसान आंदोलन समर्थन में किए गए ट्वीट से खुद-ब-खुद सामने आ गया। ग्रेटा ने ना सिर्फ ट्वीटर पर किसान आंदोलन का समर्थन किया, बल्कि उसके साथ गूगल ड्राइव पर सेव किया आंदोलन से जुड़ा टूलकिट भी जारी कर दिया। यह बात और है कि जब उन्हें अपनी गलती का अहसास हुआ तो उन्होंने तत्काल हटा दिया। तब तक देर हो चुकी थी और कई लोगों ने उस टूलकिट का स्क्रीन शॉट ले लिया था। इस टूलकिट में बाकायदा अंतरराष्ट्रीय हस्तियों से किसान संगठनों के समर्थन में ट्वीट कराने आदि का जिक्र था।
यहां ध्यान दिया जाना चाहिए कि जिस समय रिहाना ने ट्वीट किया, उसी समय वयस्क फिल्मों की पूर्व लेबनानी अभिनेत्री मियां खलीफा ने भी ट्वीट किया। जाहिर है कि उन्हें भी इसके लिए फीस दी गई होगी। वैसे भी इन सेलिब्रिटी का अतीत में कभी गंभीर सरोकारों के लिए इस तरह से अभियान चलाने का उदाहरण नहीं है। इसलिए उनके ट्वीट के पीछे विदेशी पैसे का हाथ होने का संदेह होना जायज है।
वैसे दिल्ली में किसान संगठनों के धरने के पहले ही महीने पंजाब से जुड़े किसान संगठन ‘भारतीय किसान यूनियन (उग्राहन)’ के खाते में विदेशों से चंदे आने लगे थे। इसे लेकर उनके बैंक पंजाब एंड सिंध बैंक की मोंगा जिला स्थित शाखा के अधिकारियों ने संगठन को बुलाकर जल्द से जल्द विदेशी चंदा अधिनियम के तहत पैसे लेने के लिए संबंधित विभाग से मंजूरी लेने की चेतावनी दी थी। किसान संगठन उग्राहन के अध्यक्ष जोगेंद्र सिंह उग्रा ने इसकी तस्दीक भी की।
वैसे भी दिल्ली-सोनीपत सीमा स्थित सिंघु बॉर्डर पर जारी आंदोलन में जिस तरह सहायता मिल रही है और जिस तरह के स्टाल लगे हैं, उससे स्पष्ट है कि इस आंदोलन को विदेशी सिख संगठनों से खुला समर्थन मिल रहा है। इनमें अगर पीठ पीछे कुछ भारत विरोधी ताकतें भी हो सकती हैं। सिंघु सीमा पर सिख कौंसिल ऑफ न्यूजीलैंड का स्टॉल लगा है, जहां से आंदोलनकारियों को जरूरत का तमाम सामान मुहैया कराया जाता रहा। इसी तरह यहां न्यूयॉर्क के अंतरराष्ट्रीय सिख संगठन ‘यूनाइटेड सिख’ का भी स्टॉल लगा रहा, जहां पर चिकित्सा सेवाएं और खाने-पीने की चीजें मिलती रही हैं। इसी तरह कनाडा में रहने वाले कुछ सिख भी सिंघु बॉर्डर पर अपने स्टॉल लगाकर आंदोलनकारी किसानों को जरूरत का सामान उपलब्ध कराते रहे।
जिस तरह छब्बीस जनवरी के दिन दिल्ली के दिल लाल किले पर किसान आंदोलनकारियों की आड़ में विदेशी ताकतों ने हंगामा किया, उससे स्पष्ट हो गया कि विदेशी ताकतों का मकसद किसानों की मदद करना कम, उनके बहाने भारत को अस्थिर करना ज्यादा है। एनआईए और दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने आंदोलन के नाम पर हंगामा करने वालों की धरपकड़ तेज की है, उससे उम्मीद बढ़ी है कि आंदोलन के पीछे के विदेशी हाथों के खिलाफ पुख्ता सबूत मिलेंगे।
उमेश चतुर्वेदी