
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉक्टर मोहन भागवत ने दिल्ली के विज्ञान भवन की व्याख्यान माला में संघ के लचीलेपन के बारे में कहा था – ‘हमें संघ में समयानुकूल परिवर्तन करने के लिए किसी की अनुमति की आवश्यकता नहीं हैं क्योंकि संघ संस्थापक डॉक्टर हेडगेवार ने ये अनुमति पहले से दे रखी है।’
अभी हाल ही में संघ की सबसे बड़ी निर्णायक संस्था अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा में चुनाव के बाद संघ में संगठनातमक स्तर पर आए बदलाव चर्चा में हैं। अपेक्षाकृत कम आयु के दत्तात्रेय होसबले को संघ का सरकार्यवाह बनाया गया है। संघ के सरकार्यवाह दिन प्रतिदिन के कार्यों के लिए जिम्मेदार होते हैं। यदि किसी संस्थान से तुलना करनी हो तो मुख्य कार्यकारी अधिकारी का काम संघ में सरकार्यवाह करते हैं। संघ के प्रमुख सरसंघचालक मित्र और मार्ग दर्शक की भूमिका में रहते हैं। संघ में बाला साहब देवरस, जो की संघ के तीसरे प्रमुख थे, ने सामूहिक निर्णय की पद्धति विकसित की थी। संघ के दूसरे सरसंघचालक श्री माधव सदशिव गोलवलकर उपाख्य ‘गुरु जी’ के समय तक ‘एक चाल का अनुवर्तित्व’ का पालन होता था अर्थात् जो सरसंघचालक ने कह दिया, सभी स्वयंसेवकों को उसी का पालन करना है।
संघ में प्रत्येक तीसरे वर्ष सरकार्यवाह का चुनाव होता है। संघ की कार्य पद्धति की विलक्षणताओं में से एक आम सहमति का नियम है। संघ ने जब से अपना लिखित संविधान सरकार को दिया तब से अब तक कोई भी चुनाव छूटा नहीं है। केवल 1975 में एक बार आपातकाल में चुनाव की प्रक्रिया नहीं हो पायी थी। संघ के इतिहास में आज तक के सभी चुनाव आम सहमति से ही हुए हैं। प्रत्येक बदलाव महत्वपूर्ण परिवर्तन ले कर आता है जो कि समयानुकूल होता है। संघ के मूल उद्देश्य तथा इसके गुरु भगवा ध्वज के अतिरिक्त सभी कुछ परिवर्तनीय है। विचार की प्राथमिकता होने के कारण ही किसी व्यक्ति को नहीं भगवा ध्वज को संघ में गुरु का स्थान प्राप्त है। इस बार के परिवर्तन को भी पीढ़ीगत परिवर्तन के रूप में देखा जा सकता है। भय्या जी जोशी सरकार्यवाह के दायित्व पर 62 साल की आयु में आए थे।
उस समय सह सरकार्यवाह के रूप में सुरेश सोनी जो लगभग उसी आयु के थे टीम में आए थे। अब इस चुनाव में दोनों स्वत:अपनी आयु के कारण नयी पीढ़ी के लिए स्थान बना कर दायित्व मुक्त हो गए हैं। वर्तमान के सरकार्यवाह एक नयी कम आयु की टीम के साथ आए हैं। दो नए सह सरकार्यवाह तथा प्रचार प्रमुख की नियुक्ति भी हुई है। संघ के नए सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबले लम्बे समय विद्यार्थियों के बीच काम करते रहे हैं। कर्नाटक के शिवमोगा जिले में जन्मे दत्ताजी 1972 से अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद में विभिन्न जिम्मदारियों पर रहे। 2003 तक विद्यार्थी परिषद और उसके बाद संघ में विभिन्न दायित्वों को निभाया। अंग्रेजी साहित्य में स्नातकोत्तर संघ के नए सरकार्यवाह कई भाषाओं के ज्ञाता हैं और एक पत्रिका का सम्पादन भी कर चुके हैं। विभिन्न राजनीतिक विचारधाराओं से सम्बंधित लोगों से उनके मधुर सम्बंध हैं। विद्यार्थी परिषद में दत्ता जी ने ‘वल्र्ड ऑर्गनायजेशन फॉर स्टूडेंट एंड यूथ’ की स्थापना की थी, जो भारत में रहने वाले विदेशी मूल के छात्रों का एक सशक्त सांस्कृतिक संगठन है। विद्यार्थी परिषद तथा संघ की कार्य पद्धति में मूल अंतर गति का है। आज का भाजपा का अधिकतर नेतृत्व विद्यार्थी परिषद से ही आता है। वर्तमान सरकार्यवाह की टीम में दो नए सह सरकार्यवाह भी हैं जिनके से एक अरुण कुमार लम्बे समय तक जम्मू-कश्मीर में प्रचारक रहे हैं। तथा जम्मू- कश्मीर के विषय तथा आंतरिक सुरक्षा के विषय में उनका गहरा अध्ययन है। दिल्ली से जम्मू-कश्मीर के सम्बंध में चलने वाले थिंक टैंक जम्मू-कश्मीर अध्ययन केंद्र की स्थापना में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही है। दूसरे सह सरकार्यवाह राम दत्त गणित में स्नातकोत्तर तथा गोल्ड मेडलिस्ट हैं। पहले छतीसगढ़ मध्य भारत तथा फिर बिहार के क्षेत्र प्रचारक रहे। नए नामों में एक नाम प्रचार प्रमुख सुनील आंबेकर का है जो लम्बे समय तक दत्तात्रेय होसबले के साथ विद्यार्थी परिषद में रहे हैं। वह हाल ही में अपनी पुस्तक ‘राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ- स्वर्णिम भारत के दिशा सूत्र’ के कारण चर्चा में रहे हैं। इसी प्रकार भाजपा से मूल संगठन में लौटे रामलाल भी एक कुशल संगठक के रूप में जाने जाते हैं। उन्हें अखिल भारतीय संपर्क प्रमुख का दायित्व दिया गया है।
दत्तात्रेय होसबले अगले तीन वर्ष तक संघ के सरकार्यवाह रहेंगे। अगले तीन वर्षों में कई महत्वपूर्ण घटनाक्रम भी हैं मसलन आम चुनावों की तैयारी व देश की स्वतंत्रता का अमृत महोत्सव। संघ व उससे प्रेरित संगठन इन अवसरों के माध्यम से समाज के संगठन के अपने सतत कार्य को कैसे और गति प्रदान करते हैं व इन प्रयासों की दिशा व दशा कैसी होगी, आने वाले तीन वर्षों में यह देखना दिलचस्प होगा।
राजीव तुली