
यह सत्य है कि प्रकृति की गति बिना किसी बाहरी दबावों के अपने गतिपथ पर निरंतर चलती रहती है। वह तबाही भी लाती है और साथ ही नवनिर्माण भी करती रहती है। भावनात्मक आवेग उसे छूते नहीं।
26 मई को चक्रवात ‘यास’ ने ओड़िशा के तटीय इलाकों में तेज हवाओं और वर्षा से लोगों को आतंकित कर दिया। लोग अपने जीवन रक्षा के लिए सरकारी आश्रय स्थलों में शरण लेने को विवश हुए थे। सरकार के अग्रिम प्रयासों की वजह से इस बार भी जीवन क्षति न के बराबर हुई। लोगों की जीवन रक्षा तो हुई पर इसके साथ कई नई जिंदगियों को खिलने का मौका भी मिला। यास प्रभावित क्षेत्रों में 350 से अधिक शिशुओं ने जन्म लिया। कौतूहल की बात यह रही कि इन नवजात शिशुओं में दो माता पिता ने अपने बच्चों का नामकरण “यास” किया।
सरकार ने अपने सुरक्षा उपायों के तहत तटीय इलाकों से लगभग पांच लाख लोगों को सुरक्षित स्थानों पर स्थानांतरित किया था। इनमें अनेकों गर्भवती महिलाएं भी थीं। सरकार ने यास प्रभावित जिलों- बालेश्वर, भद्रक, केंद्रापाड़ा, जगतसिंहपुर, मयूरभंज, केओंझर, ढेंकानाल – के 6,500 गर्भवती महिलाओं को , जिनकी प्रसूति तिथि 1 जून के आस पास थी, उन्हें अस्पतालों में भर्ती कराया था।
इन 350 नवजात बच्चों में यास चक्रवात से सबसे बुरी तरह प्रभावित बालेश्वर जिले में 165 नवजात शिशुओं को संसार में आने का अवसर मिला। सर्वाधिक प्रभावित बालेश्वर जिले में यास चक्रवात ने 26 मई सुबह नौ जमीन को छुआ और उसे जिले को पार करने में तीन चार घँटे लग गये। जाते जाते यह बर्बादी की बड़ी दस्तान लिख गया। पर तबाही के बीच भी प्रकृति ने नई जिंदगियों को खिलखिलाने के क्रम को नहीं रोका। बालेश्वर जिले में ही 165 नन्हें बच्चों की किलकारियां गूंजी। इनमें 79 लड़के और 86 लड़कियां हैं। सभी नवजात शिशु स्वस्थ हैं।
भुवनेश्वर से सतीश शर्मा