
”किसी भी लोकतांत्रिक देश का राजनीतिक प्रतिनिधित्व तब तक अधूरा है जब तक उसमें समाज के पिछड़े समूह का प्रतिनिधित्व सुनिश्चित न किया गया हो।’’
—बाबा भीम राव अम्बेडकर
बाबा भीम राव अम्बेडकर अपने सम्पूर्ण जीवन में सिर्फ इसी प्रयास में कार्यरत रहे कि किस प्रकार एक ऐसे समाज का निर्माण किया जाये जिसमें समाज के सबसे पिछड़े समूह के व्यक्ति की भी भागीदारी हो। ऐसे समाज को उन्होंने सामाजिक न्याय पर आधारित समाज और ऐसी राजनीतिक व्यवस्था जो राजनीतिक समानता पर आधारित हों उसे सामाजिक न्याय पर आधारित व्यवस्था कहा। इस प्रकार सामाजिक न्याय पर आधारित संसदीय व्यवस्था से तात्पर्य एक ऐसे मंत्रिमंडल के गठन से है जिसके अन्तर्गत पंक्ति में सबसे अंतिम छोर पर खड़े व्यक्ति का भी प्रतिनिधित्व सुनिश्चित किया गया हो। अत: वर्तमान में मोदी सरकार के द्वारा मंत्रिमंडल में जिस प्रकार के बदलाव कर मंत्रिमंडल का विस्तार किया गया है वह वास्तव में बाबा भीम राव अम्बेडकर के उसी समाज की तस्वीर का वास्तविक रूपांतरण पेश करता है जिसका आधार उन्होंने सामाजिक न्याय को माना था।
हाल ही में मोदी सरकार के द्वारा मंत्रिमंडल में फेरबदल तो किया ही गया है साथ ही मंत्रिमंडल का विस्तार भी किया गया है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नये मंत्रिमंडल मे कुल 43 नये मंत्रियों को शामिल किया गया है जिनमें 15 कैबिनेट और 28 राज्यमंत्री शामिल है। नये मंत्रिमंडल में 36 नए चेहरों को शामिल किया गया है और 7 राज्य मंत्रियों को प्रमोट करके मंत्रिमंडल में जगह दी गई है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की कैबिनेट का विस्तार और फेरबदल वास्तव में दो महत्वपूर्ण और दूरदर्शी संदेशों पर निर्धारित किया गया है। पहला सरकार में किसी भी मंत्री के द्वारा चाहे वह पूर्व में कितना भी अनुभवी रहा हों यदि वह वर्तमान में जिम्मेदारी से अपना काम करने में असफल रहा है तो वह अपने मंत्री पद पर बने रहने योग्य नही है। यह पहला संदेश केन्द्र सरकार के कामकाजों को दुरूस्त और मजबूत बनाने से संबंधित माना जा सकता है। वहीं दूसरी ओर जिस तरह से मंत्रिमंडल में दलित समुदाय और अन्य पिछड़ा वर्ग के साथ-साथ आदिवासी समुदायों और महिलाओं की भागीदारी में बढ़ोतरी की गई है यह अपने आप में मोदी सरकार द्वारा सामाजिक न्याय पर आधारित सरकार के गठन और क्षेत्रीय राजनीति को मजबूत करने से संबंधित संदेश है। मसलन अन्य पिछड़ा वर्ग से 27 मंत्री, अनुसूचित जाति से 12 मंत्री और अनुसूचित जनजाति से 8 मंत्रियों का चुनाव, जिसमें शामिल किये गये अनुसूचित जनजाति के मंत्री किसी एक या दो समुदायों से न होकर आठ अलग-अलग उपजनजातियों का प्रतिनिधित्व करते है यह अपने आप में मोदी सरकार की सामाजिक न्याय की भावना को दर्शाता है।
मोदी सरकार ने जिस प्रकार मंत्रिमंडल का विस्तार और फेरबदल कर सामाजिक न्याय के साथ गर्वेनेंस को जोड़ा हैं वह भारतीय लोकतंत्र को तो मजबूत करेगा ही साथ ही यह भविष्य की सरकारों के समक्ष एक उदाहरण भी पेश करता हैं। ऐसा इसलिये कहा जा सकता है क्योंकि जिस तरह से दलित, पिछड़ा वर्ग और आदिवासी समुदायों तथा महिलाओं की मंत्रिमंडल में बढ़ती हिस्सेंदारी नए भारत की तस्वीर बयां करती है उसी प्रकार मोदी सरकार का यह नया मंत्रिमंडल राजनीतिक समानता और सामाजिक न्याय के रूप में समाज के प्रत्येक वर्ग का ज्यादा से ज्यादा प्रतिनिधित्व जिसका वादा संविधान लागू करते समय किया गया था उस वादे को भी साकार करता हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि आज तक इतनी संख्या में किसी भी केंद्रीय मंत्रिमंडल में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और महिलाओं की न तो संख्या रही है और न ही इनको राजनीतिक प्रतिनिधित्व और सत्ता में हिस्सेदारी देने की इतनी बढ़ी कोशिश पहले कभी हुई हैं।
मसलन यह कहना कि 21वीं सदी का मंत्रिमंडल कैसा होना चाहिए, सरकार कैसी होनी चाहिए। सामाजिक न्याय को सुनिश्चित करता मोदी सरकार का यह नया मंत्रिमंडल इन तमाम प्रश्नों का उत्तर हैं। गौर करने का विषय यह भी है कि जब कभी भी पिछड़े वर्गो को मंत्रिमंडल में शामिल किया जाता है तों अक्सर यह आरोप लगाया जाता रहा है कि सरकार ने मेरिट या योग्यता का ध्यान नहीं रखा बल्कि जाति के आधार पर मंत्रियों का चुनाव किया है किन्तु वर्तमान मंत्रिमंडल में पिछड़ा वर्ग सें शामिल किये गये सभी मंत्रियों की मेरिट और योग्यता का पूरा ध्यान रखा गया है। इसका उदाहरण यह है कि शामिल किये गये सभी मंत्रियो में कोई उच्च शिक्षा प्राप्त है तो कोई डॉक्टर, इंजीनियर, आईआईटियन, प्रशासनिक नौकरशाह और वकील है। नये मंत्रिमंडल के माध्यम से भारतीय राजनीति में ऐसा पहली बार हुआ है कि नॉर्थ ईस्ट राज्यों के लोगों को इतनी बढ़ी संख्या में मंत्रिमंडल में स्थान मिला है। इतने बड़े स्तर पर समाज के हर तबके से प्रतिनिधित्व की सुनिश्चित्ता इस बात का परिचायक है कि जिस तरीके से राज्यों की भागीदारी मंत्रिमंडल में सुनिश्चित करके सरकार ने केंद्र को तो मजबूती दी ही है साथ ही कहीं न कहीं राज्यों को भी मजबूत करने की कोशिश की है।
महिलाओं की संख्या जिस तरीके से इस मत्रिमंडल में दिखाई दे रही है वह इससे पहले भारतीय राजनीतिक इतिहास में कहीं नही देखने को मिली। अत: 11 महिलाओं को मंत्रिमंडल में शामिल करना इस बात को स्पष्ट करता है कि मोदी जी का नारी सशक्तिकरण का नारा अन्य राजनीतिक दलों की भांति कोरा चुनावी नारा नहीं है अपितु नए मंत्रिमंडल में महिलाओं की सख्या में इजाफा करना व उन्हें महत्वपूर्ण मंत्रालयों को देना मोदी सरकार की नारी सशक्तिकरण की ओर आस्था और प्रतिबद्धता का भी परिचायक है।
मंत्रिमंडल के विस्तार और फेरबदल ने एक बात यह भी स्पष्ट कर दी है कि पार्टी में किसी भी व्यक्ति की योग्यता उसके काम से निर्धारित की जाएगी न कि छवि से इसी का ही नतीजा है मंत्रिमडल से चार बड़़े चेहरों को बाहर का रास्ता भी दिखा दिया गया है। स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन, कानून और आईटी मंत्री रवि शंकर प्रसाद, पर्यावरण एवं सूचना मंत्री प्रकाश जावड़ेकर जैसे बड़े मंत्रियों का मंत्रिमंडल से हटाया जाना इस बात की ओर भी ईशारा करता है कि मोदी सरकार के प्रत्येक मंत्री का बने रहना उनकी प्रोगरेस रिपोर्ट और जबावदेहिता पर निर्भर करेगा न कि उनकी छवि या राजनीतिक अनुभव पर नहीं। इस प्रकार निष्कर्षत: यह कहा जा सकता है कि मोदी सरकार के मंत्रीमंडल का विस्तार वास्तव में सामाजिक न्याय और एक सशक्त भारत की ओर बढ़ती उस सरकार का उदाहरण है जिसका सपना बाबा भीम राव अम्बेडकर ने देखा था।
डॉ. प्रीति
(लेखिका, असिस्टेंट प्रोफेसर, शिवाजी कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय, हैं)