
टोक्यो ओलंपिक में पहली बार कुल सात पदक लाकर भारतीय खिलाडिय़ों ने देश में यकायक एक नई खेल संस्कृति के पुष्पित और पल्लवित होने के शुभ संकेत दिए हैं। इस अति अभिनन्दनीय अभियान की खास बात यह रही कि कुछ मामलों में तो हमारे देश से प्रत्येक स्तर पर शक्तिशाली रूस, ब्रिटेन, और जर्मनी भी हम से पिछड़ गए। यह बहुत बड़ी उपलब्धि है। पुरूष हॉकी में भले 41 साल बाद हमारे यहां ब्रांज ही सही, कोई पदक तो आया, लेकिन इस पराक्रम पर पाकिस्तान तक दांतों तले उंगलियां दबा रहा है। कोविड 19 की पहली धमक के पहले ही केन्द्र सरकार खेलो इंडिया की नीति को अंगीकृत कर चुकी थी, जिसके सकारात्मक परिणाम देखने को मिले। बावजूद इसके ध्यान में रखना ही पड़ेगा कि जब तक कॉरपोरेट सेक्टर या उद्यम जगत क्रिकेट के अलावा भी अन्य खेलों की परवरिश, संरक्षण और उनके परफॉर्मेंस में पूरी रुचि नहीं लेता तब तक देश में एक सम्पूर्ण खेल क्रान्ति की बातें करना सिवाय जबानी जमा खर्च से ज्यादा कुछ नहीं है। नीरज चोपड़ा के सम्बंध में कई लोगों तक यह खबर नहीं पहुंच पाई कि प्रैक्टिस के वक्त उनकी कोहनी में गम्भीर चोट आ गई थी। नीरज चोपड़ा के लिए वह समय बड़ा चुनौतीपूर्ण था, लेकिन इसी बीच मशहूर कॉरपोरेट जिंदल स्टिल्स एण्ड वर्क्स ने उनके ट्रीटमेंट, ट्रेनिंग, डायट, परफॉर्मेंस आदि में व्यक्तिगत रुचि दिखाई। केन्द्र और हरियाणा सरकारें, तो खैर अपने स्तर पर सक्रिय थीं ही सही, लेकिन नीरज चोपड़ा के भाला उर्फ जेवलियन थ्रो फेंकने में जिंदल स्टिल्स एण्ड वर्क्स की भूमिका से भी इनकार नहीं किया जा सकता।
खेलों में कॉरपोरेट सेक्टर की भूमिका का सबसे पहला प्रमाण सालों पहले मिला था। तब क्रिकेट में भारत के पास तेज गति के गिने चुने बॉलर थे। हमारा पूरा आक्रमण स्पिनर्स उर्फ फिरकी बॉलिंग पर टिका हुआ था। इस एक कमी के कारण टीम इंडिया की जगहंसाई होती थी। इसी बीच एमआरएफ टायर्स का उत्पादन करने वाली एमआरएफ कम्पनी ने ही क्रिकेट के तेज गेंदबाज तैयार करने का दायित्व खुद संभाला। इसमें किसी सरकार का कोई आर्थिक या अन्य सहयोग नहीं लिया गया। उस वक्त ऑस्ट्रेलिया के तूफानी गेंदबाज डेनिस लिली, और जयोफ थॉमसन रिटायर हुए ही थे। एमआरएफ प्रबंधकों ने अपनी क्रिकेट एकडेमी की चाभी उन्हें सौपीं, और अलग हो गए। एकेडमी की अन्य सभी आवश्यकताओं का ख्याल कम्पनी के वरिष्ठ अधिकारियों के हाथों में था। नतीजा यह हुआ कि उक्त मद्रास रबर फैक्ट्री तेज गति के बॉलर्स का कारखाना भी बन गई। इसी पैमाने को किक्रेट की आईपीएल में भी अपनाया गया, जिसमें कई कार्पोरेट्स की अपनी अपनी टीमें हैं। इसी के चलते क्रिकेट सालों से भारत का धर्म बन चुका है और सचिन तेंदुलकर उसके भगवान कहे जाते हैं। टोक्यो ओलंपिक के पहले कोरोना के कारण आर्थिकी को मिली तमाम चुनौतियों के बावजूद भारत आज दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती इकोनॉमी है और कहा, तो यहां तक जाता है कि हम कुछ ही सालों में दुनिया की पहली तीन इकॉनामी में सम्म्लित हो जाएंगे। विदेशी मुद्रा के मामले में भारत पांचवें स्थान पर है और विश्व के 71 अरबपति देशों में भारत थर्ड वन है। हमें हॉकी के जादूगर स्व. मेजर धयानचंद पर बड़ा गुरुर है। यह होना भी चाहिए लेकिन उन्हें भारत रत्न से सम्मानित करने की बजाय स्व. राजीव रत्न पुरस्कार का नाम बदलकर ध्यानचंद कर दिया गया। बहुत कम लोग जानते होंगे कि शुरू-शुरू में तो ध्यानचंद के पास हॉकी की स्टिक भी नहीं थी। वे पेड़ की टहनी से स्टिक बनाकर अभ्यास किया करते थे। उनके ध्यानचंद नाम पडऩे के पीछे का किस्सा भी कम रोचक नहीं है। दरअसल, उनका असली नाम ध्यानसिंह था, लेकिन चूंकि वे अक्सर रात की चांदनी में ही प्रैक्टिस किया करते थे इसलिए उनके साथियों ने उनका नाम ध्यानचंद रख दिया।
देश की कुल आबादी 1 अरब 39 करोड़ तक बताई जाती है। टोक्यो ओलंपिक में कुल 33 खेलों का आयोजन हुआ। कई लोग यह कहने वाले भी मिल जाएंगे कि जनसंख्या के मामले में दूसरे स्थान पर स्थित भारत को सिर्फ 7 पदक मिले। उनमें से भी स्वर्ण पदक एक है। यानी संतोषी सदा सुखी, लेकिन यह मात्र कहावत है, अजर अमरवाणी नहीं है। यह भी हो सकता हैं कि हमारी कमियों को छिपाने का यह पुराना नुस्खा हो जिससे उबरने के अलावा कोई और चारा नहीं। यूं खेलो इंडिया मुहिम और ओडिशा में वहां की प्रदेश सरकार ने हॉकी के लिए 2000 के बाद अभी तो जो कुछ भी किया है वह काबिल-ए-तारीफ इसलिए है कि अक्सर ऐसी तमाम सरकारी योजनाएं ध्वस्त कर दी जाती हैं। अब यदि एक एक कॉर्पोरेट को एक खेल की परवरिश और संरक्षण का दायित्व सौंप दिया जाए, परिणाम सकारात्मक आने की गुंजाइश अधिक रहेगी। कार्पोरेट कल्चर पूरी सख्ती से प्रोफेशनल होता है। एमआरएफ और जिंदल स्टील्स एण्ड वक्र्स ने इस सत्य को पूरी तरह उजागर कर दिया।
नवीन जैन