
गुजरात के नए मुख्यमंत्री भूपेन्द्र पटेल ने युवा और ऊर्जा से भरे मंत्रियों के साथ सुचारु शासन हेतु सरकार बनाई है। अब श्री पटेल के सिर पर खुद को पटेल समुदाय के मसीहा के रूप में साबित करने की बहुत बड़ी जिम्मेदारी है। गुजरात के लोग मोदी-शैली की राजनीति और सुशासन से परिचित हैं। गुजरात के लोग ‘गुजरात के गौरव’ के बारे में बहुत अधिक चिंतित हैं। इसलिए, वे ऐसे चेहरे के बारे में अधिक चिंतित हैं, जो गुजराती अस्मिता को बचा और संरक्षित कर सके। केशुभाई पटेल के बाद, नरेंद्र मोदी ने गुजराती अस्मिता को राज्य के अंदर और बाहर संरक्षित किया और उसे फैलाया। गिर के शेर की तरह, मोदी दहाड़ सके और देश पर राज कर सके और भारत और विदेशों में लाखों दिल जीत सके। मोदी का करिश्माई नेतृत्व अभी भी गुजरात के लोगों के बीच लोकप्रिय है। उन्हें लगता है कि सरदार पटेल के बाद मोदी गुजरात का ऐसा नेता है, जिन्होंने अब तक लाखों लोगों का दिल जीता है। इसलिए, भले ही मोदी गुजरात की राजनीति में शीर्ष पर न हों, लोग जानते हैं कि वह राज्य के विकास की देखभाल करेंगे, और जो कोई भी मुख्यमंत्री होगा, उसे मोदी का आशीर्वाद होगा। जब मोदी अपने गृह राज्य के लिए राजनीतिक लड़ाई में आएंगे, तो लोग जाति की राजनीति को नजरअंदाज करते हुए उनका समर्थन करेंगे। हालांकि, इस बार पार्टी ने एक कठिन निर्णय लिया है और पार्टी को क्रमबद्द तरीके में रखा है, और सरकार के गठन में जातिगत राजनीति का अच्छी तरह से ध्यान रखा है। भूपेन्द्र पटेल जमीन से जमीन से जुड़े, सीधे-सादे पाटीदार नेता हैं, और निस्संदेह, एक अच्छे विकल्प हैं, जो किसी भी राजनीतिक विवाद, समूहवाद से बहुत ऊपर रहे हैं। सार्वजनिक जीवन में वे साफ छवि रखते हैं। मुझे याद है जब मैं उनसे मिलने गया था जब वे अहमदाबाद नगरपालिका के अध्यक्ष थे। कोई भी उनसे मिल सकता है, अपने मुद्दों को साझा कर सकता है और आम जनता के प्रति उनका दृष्टिकोण मृदुभाषी है।
अब मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने के बाद भूपेन्द्र भाई को मौजूदा राजनीतिक हालात में सुशासन के लिए अपनी प्रशासनिक क्षमता दिखानी है। यहां यह उल्लेखनीय है की शासन का अनुभव रखने वाले सभी वरिष्ठ मंत्रियों को उनकी अलोकप्रिय मानसिकता के कारण हटा दिया गया है। इसलिए, पार्टी सभी जातियों के नए युवा चेहरों को लेकर आई, और संदेश स्पष्ट है की भाजपा की बदलती रणनीति में ‘नॉन-परफॉर्मर’ के लिए कोई जगह नहीं है। भूपेन्द्र पटेल को सुशासन की संतुलित रणनीति और बदलती खट्टी-मीठी परिस्थितियों में सबको साथ लेकर चलना है। राजनीतिक पंडितों के बीच यह चर्चा है कि वह वरिष्ठ नौकरशाहों और वरिष्ठ नेताओं के रिमोट कंट्रोल में होंगे। लेकिन किसी भी स्थिति में, उनका राजनीतिक दृष्टिकोण, सुशासन के लिए प्रशासन की वेल-ऑयल्ड मशीनरी के रूप में परिलक्षित होना चाहिए। नहीं तो कई असंतुष्ट नेता उन्हें बदनाम करने के अभी से राह देख रहे हैं, जैसा कि पिछले सीएम ने झेला था। बेशक भूपेन्द्र भाई को विभिन्न आध्यात्मिक, सामाजिक और राजनीतिक समूहों का आशीर्वाद मिला है जिनका गुजराती समाज पर अच्छा प्रभाव हैं, लेकिन उनके सभी फैसले केंद्रीय भाजपा की निगरानी में रहेंगे। एक नेता के रूप में अपनी दक्षता साबित करने के लिए उनके पास बहुत कम समय है और साथ ही उन्हें आगामी विधानसभा चुनाव को ध्यान में रखते हुए निर्णय लेने होंगे। उम्मीद है कि वह सुशासन के लिए जनता की अपेक्षाओं को पूरा करने के लिए कदम उठाएंगे, क्योंकि एक तरफ उन्हें मोदी का पुरजोर समर्थन है तो दूसरी तरफ उन्हें पाटीदार समुदाय का मजबूत समर्थन हासिल है, जिससे वे ताल्लुक रखते हैं। अंत में, यह जिम्मेदारी उनके लिए एक लिटमस टेस्ट की तरह है।
दीपक कुमार रथ
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