
बॉलीवुड में नशे की जड़ें बहुत गहरी हैं और शाहरुख खान के बेटे आर्यन खान की गिरफ्तारी इस तथ्य को और स्थापित करती है। नारकोटिक्स कण्ट्रोल ब्यूरो अर्थात एनसीबी पिछले डेढ़ साल से ड्रग रैकेट के खिलाफ कार्रवाइयां कर रही है। कई पैडलर्स पकड़े गए हैं। तमाम बड़े लोगों से पूछताछ हुई। कुछ को जेल भी जाना पड़ा। मगर क्या जमीन पर एनसीबी की कार्रवाइयों का कोई डर दिख रहा है? शायद नहीं। कुछ लोगों के लिए कानून का होना ना होना मायने ही नहीं रखता। मुंबई क्रूज शिप ड्रग केस इसका जीता जागता उदाहरण है जिस पर चिंता करने के साथ ज्यादा से ज्यादा बात होनी चाहिए थी। इस परिप्रेक्ष्य में इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता की सरकार को इस बात का श्रेय तो देना पड़ेगा कि उसने शाहरूख के बेटे के लिए कोई लिहाजदारी नहीं दिखाई। वास्तव में नशेड़ी तो अपना ही नुकसान करते हैं, जैसे कि आत्महत्या करने वाले करते हैं। नशे और आत्महत्या, दोनों ही अनुचित हैं और अकरणीय हैं लेकिन इन्हें अपराध किस तर्क के आधार पर कहा जा सकता हैं? उन्हें आप सजा देकर कैसे रोक सकते हैं? सख्त सजाओं के बावजूद नशे और आत्महत्याओं के आंकड़े बढ़ते जा रहे हैं। इन्हें रोका जा सकता है— शिक्षा और संस्कार से! यदि बच्चों में यह संस्कार डाल दिया जाए कि यदि तुम नशा करोगे तो आदमी से जानवर बन जाओगे याने जब तक तुम नशे में रहोगे, तुम्हारी स्वतंत्र चेतना लुप्त हो जाएगी तो वे अपने आप सभी नशों से दूर रहेंगे।
हिन्दी फिल्म इंडस्ट्री यानी बॉलीवुड इन दिनों बेहद मुश्किल वक्त से गुजर रहा है और इसमें काम करने वाले कई प्रमुख चेहरों पर फैंस की उंगलियां उठ रही हैं। सुशांत सिंह राजपूत की मौत के बाद जिस तरह बॉलीवुड माफियाओं की बात सामने आई और फिर सीबीआई जांच में ड्रग्स एंगल सामने आने के बाद जिस तरह से हर दिन फिल्म इंडस्ट्री के कई फेमस सेलेब्स पर ड्रग्स की खरीद फरोख्त और सेवन के आरोप लगते जा रहे हैं, उससे सोशल मीडिया पर हंगामा मचा हुआ है और लोग इन स्टार्स से सवाल पूछ रहे हैं कि बड़े पर्दे पर नशामुक्ति और डिप्रेशन को लेकर ज्ञान देने वालीं इन मोहतरमाओं की दुनिया तो खुद ही ड्रग्स और गांजे के साये से घिरी हुई हैं, ये क्या दूसरों के लिए आदर्श साबित होंगी? जेल में भी मादक-द्रव्यों का सेवन जमकर चलता है याने कानून पूरी तरह से नाकारा हो सकता है जबकि नशा-विरोधी संस्कार हमेशा मनुष्य को सुदृढ़ बनाए रखता है। मुझे खुशी है कि केंद्रीय सामाजिक न्याय मंत्रालय ने अपनी राय जाहिर करते हुए कहा है कि नशाखोरी के ऐसे मामलों को ‘अपराध’ की श्रेणी से निकालकर ‘सुधार’ की श्रेणी में डालिए। इस संबंध में संसद के अगले सत्र में ही नया कानून लाया जाना चाहिए और अंग्रेज के जमाने के पोगापंथी कानून को बदला जाना चाहिए। पुराने कानून से नशाबंदी तो नहीं हो पा रही है बल्कि रिश्वतखोरी और अवैध व्यापार में बढ़ोतरी हो रही है। यदि इस कानून में संशोधन होता है और समस्त नशीले पदार्थों के उत्पादन, भंडारण और व्यापार पर प्रतिबंध लगता है तो भारत को दुनिया का शायद अप्रतिम देश होने का सम्मान मिल सकता है।
दीपक कुमार रथ
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