
हमारा दिल हर पल धड़कता रहता है, जीवन के आखिरी पलों तक ये सिलसिला लगातार यूं ही चलता रहता है। जिस दिन किसी व्यक्ति का दिल धड़कना बंद हो जाता है, उस दिन उसके जीवन का भी अंत हो जाता है, इसलिए अपने दिल का ख्याल रखना बहुत जरूरी है, क्योंकि जब तक ये स्वस्थ है, तभी तक हम हैं। वल्र्ड हार्ट डे यानी विश्व हृदय दिवस की शुरुआत वर्ष 2000 में इसीलिए की गई थी, ताकि हृदय रोगों के प्रति लोगों के मन में जागरूकता पैदा की जाए। यदि कोई व्यक्ति अचेत हो जाए तो यह जानने के लिए कि वह जीवित है कि नहीं, सबसे पहले उसके ह्रदय की धड़कनों को और सांसों को ही चेक किया जाता है। जब हम खुश रहते हैं तो हमारे दिल की धड़कनें भी सही अनुपात में रहती हैं और शरीर में ऑक्सीजन का प्रवाह तेज होता है, जिससे शरीर तरोताजा महसूस करता है।
हमारा दिल हमारे जीवन का आधार तो है ही साथ ही साथ यह हमारी भावनाओं का केंद्र भी है और भावनाओं से जुड़ा होने की वजह से ही कविताओं, कहानियों, शेरो-शायरी और फिल्मों में भी दिल को बहुत महत्व दिया गया है। भावनाओं का केंद्र होने की वजह से ही जब हम खुशी या दुखी होते हैं, हमें डर या घबराहट महसूस होती है तो हमारे दिल पर इसका तुरंत असर पड़ता है और हमारा दिल जोर-जोर से धड़कने लगता है। कोई किसी से खुश होने पर कहता है कि तुमने मेरा दिल जीत लिया, अगर कोई भावनाओं की कद्र नहीं करता तो उसे हम पत्थर दिल कहते हैं, प्रेम में किसी को धोखा देने वाले को दिल फरेब कहा जाता है और जो दूसरों को खुश रखना जानते हैं उनको दिलदार कहा जाता है, कभी लोग कहते हैं कि दिल में दर्द सा है, कभी कहते हैं दिल नहीं लगता, कभी दिल आ गया है, दिल ले गया है, दिल खुश हो गया है, दिल मांगे मोर। खुश होने पर लोग कहते हैं कि हमारा दिल बहुत खुश है, कहीं अच्छा लगता है तो कहते हैं, यहां हमारा दिल लगता है और जब कहीं मन नहीं लगता तो कहते हैं कि हमारा कहीं दिल ही नहीं लगता, इस प्रकार एक ही दिल को अलग-अलग भावनाओं के साथ व्यक्त किया जाता है, घबराहट में लोगों के मुंह से ऐसा भी कहते सुना जाता है कि एक पल के लिए तो मुझे हार्ट अटैक ही आ गया था और किसी दुख से या सदमे से लोग कहते हैं कि मेरा दिल ही टूट गया। अब सोचने की बात है कि टूटे हुए दिल के साथ भला कोई कैसे जीवित रह सकता है? किंतु हम अपनी भावनाओं को दिल के साथ जोडऩे के आदी हो चुके हैं, इसीलिए हमें जब भी जैसा भी फील होता है, हम उसे दिल के रूप में ही व्यक्त करते हैं। आजकल तो इमोजी के रूप में भी जो मैसेज भेजे जाते हैं, उनमें भी ज्यादातर बड़ी संख्या में दिल की इमोजी भेजी जाती है। किंतु जब यह सुनने को मिलता है कि फलां को दिल का दौरा पड़ गया तो सुनने वाला भी सदमे में आ जाता है, क्योंकि दिल का दौरा पडऩे का मतलब है, मौत का खतरा। आजकल हर व्यक्ति इसी डर के साए में जी रहा है कि कहीं उसे दिल का दौरा ना पड़ जाए यानी उसका दिल कहीं रुक ना जाए।
इस समय दुनिया संकट के जिस दौर से गुजर रही है, उसमें ये खतरा बहुत बढ़ गया है। लोगों को अपने भविष्य की चिंता सता रही है। वे घबराकर एक दूसरे से पूछ रहे हैं कि ये मुश्किल दौर आखिर कब समाप्त होगा? दौर कितना भी मुश्किल क्यों न हो एक न एक दिन वो बीत ही जाता है। इस पर मशहूर शायर फैज अहमद फैज की ये पंक्तियां याद आती हैं-
‘दिल ना उम्मीद तो नहीं नाकाम ही तो है
लंबी है गम की शाम मगर शाम ही तो है’
यानी अपने जीवन की असफलताओं से नाउम्मीद होने की जरूरत नहीं, गमों की शाम कितनी भी लंबी हो, एक न एक दिन बीत ही जाएगी और फिर एक दिन वह सवेरा जरूर आएगा जो हमारे जीवन के अंधेरों को दूर कर देगा। हमारा दिल बिना रुके बिना थके धड़कता रहता है और हमें अपने दिल से सीख लेने की जरूरत है। हमारा दिल हमारा सबसे पक्का और अच्छा दोस्त है। दिल हर रोज 1 लाख 15 हजार बार धड़कता है, इसकी एक-एक धड़कन अमूल्य है। एक धड़कन का भी नुकसान, हमारे जीवन के लिए खतरनाक साबित हो सकता है।
ह्रदय 1 दिन में 7.5 हजार लीटर खून शरीर में पंप करता है और हृदय का वजन लगभग 450 ग्राम होता है, लेकिन पुरुषों का दिल महिलाओं के मुकाबले 60 ग्राम ज्यादा भारी होता है। आंकड़े कहते हैं कि महिलाओं के मुकाबले पुरुष आसानी से हार्टअटैक का शिकार हो जाते हैं। हृदय शरीर की सभी धमनियों तक रक्त पहुंचाता है और इन धमनियों की लंबाई 96 हजार किलोमीटर से ज्यादा होती है। जीवन भर में दिल औसतन ढाई सौ करोड़ बार धड़कता है। शरीर के सभी अंगों तक रक्त पहुंचाने के लिए दिल को लगभग उतनी ही शक्ति लगानी पड़ती है, जितनी शक्ति हमें टेनिस की एक बाल को पूरी तरह दबाने के लिए लगानी पड़ती है, यानी दिल का काम आसान नहीं है, इसलिए हमें अपने शरीर को स्वस्थ रखने के लिए दिल के स्वास्थ्य पर पूरा ध्यान देना होगा।
ह्रदय रोग भारत में होने वाली मौतों के सबसे बड़े कारणों में से एक है। इंडियन हॉर्ट एसोसिएशन के मुताबिक भारत में हर साल 17 लाख लोगों की मौत दिल की बीमारियों के कारण होती है, इनमें से 50 प्रतिशत हार्टअटैक उन लोगों को आते हैं, जिनकी उम्र 50 वर्ष से कम होती है जबकि इनमें 25 प्रतिशत लोग 40 वर्ष से कम उम्र के होते हैं। एक आंकड़े के मुताबिक वर्ष 2030 तक भारत में हृदय रोगों की वजह से हर साल ढाई करोड़ लोगों की मृत्यु होने की संभावना है, यानी कोरोना वायरस से भी ज्यादा दिल की बीमारियां खतरनाक हैं। पुराने समय में हृदय रोगों की बीमारियां ज्यादातर उम्रदराज लोगों को ही होती थीं और हार्ट अटैक के शिकार भी ज्यादातर बुजुर्ग ही होते थे लेकिन आजकल युवा भी बड़ी संख्या में हृदय रोगों के शिकार हो रहे हैं और इसका कारण है, आजकल की आपा-धापी भरी जिंदगी, खाने-पीने की गलत आदतें, शराब और सिगरेट का शौक, जरूरत से ज्यादा तनाव, काम का प्रेशर, रिश्तों में कड़वाहट का होना, डिप्रेशन और एंग्जायटी आदि।
डॉक्टरों की सलाह के मुताबिक अब 20-39 वर्ष के युवाओं को भी समय-समय पर अपने हृदय की जांच कराते रहना चाहिए। कोरोना महामारी के इस दौर में हृदय रोगों का खतरा और भी बढ़ गया है। विशेषज्ञ मानते हैं कि कोरोना वायरस के इस दौर में भारत में दिल के मरीजों की संख्या 10-20 प्रतिशत तक बढ़ गई है। ये संख्या इसलिए भी ज्यादा हो सकती है क्योंकि संक्रमण के डर से बहुत से लोग आजकल अस्पतालों में जाने से और वहां जांच कराने से भी बच रहे हैं। वैज्ञानिकों एवं डॉक्टरों के अनुसार कोविड-19 यानी कोरोना वायरस लोगों के हृदय पर भी बुरा असर डाल रहा है। कोरोना वायरस से संक्रमित व्यक्ति के दिल में सूजन आ सकती है और अक्सर लोगों को इसके बारे में पता भी नहीं चल पाता। यहां तक कि जो लोग एसिंप्टोमेटिक हैं, यानी जिनमें कोरोना वायरस के लक्षण नहीं हैं, उनके हृदय को भी संक्रमण की वजह से नुकसान हो सकता है। डॉक्टरों का कहना है कि कई मामलों में तो हृदय को पहुंचे नुकसान की भरपाई शरीर कर लेता है, लेकिन कई मामलों में हृदय को हमेशा के लिए नुकसान हो जाता है, इसलिए शरीर में खून पंप करने वाली इस सबसे अहम मशीन दिल की देखभाल की जरूरत अब कोरोना संक्रमण के दौरान और भी बढ़ गई है। एक स्टडी ने भारत में दिल के मरीजों की चिंता को बढ़ा दिया है। स्टडी में 45 से 80 वर्ष की आयु के रोगियों पर अध्ययन किया गया और कोरोना के दिल पर पडऩे वाले असर से जुड़ी समस्याओं को देखा गया। एक स्वस्थ व्यक्ति की सामान्य हृदय गति 60 से 100 बीट्स प्रति मिनट के बीच होती है, लेकिन 7 कोरोना से संक्रमित मरीजों में ह्रदय की अधिकतम गति 42 बीट्स प्रति मिनट और न्यूनतम 30 बीट्स प्रति मिनट थी, जो कि बहुत कम थी। इन सात मरीजों में से पांच को पेसमेकर लगाने की जरूरत पड़ी। ये सभी मरीज दिल की बीमारी के इलाज के लिए अस्पताल आए थे लेकिन इनके टेस्ट कोरोना पॉजिटिव पाए गए थे। ऐसे मामले भी सामने आए, जिसमें मरीज के परिवार वाले हार्टअटैक के शक में उसे अस्पताल लेकर आए थे, लेकिन बाद में पता चला कि मरीज को हार्टअटैक नहीं हुआ है, बल्कि कोरोना की वजह से ब्लड क्लॉटिंग हुई है, यानी खून जम गया है। कोरोना दिल की मांसपेशियों की सूजन बढ़ा देता है, जिससे मांसपेशियां कमजोर हो जाती हैं और उनमें खून जमने लगता है। सामान्य मरीजों में सर्दी जुकाम आसानी से ठीक हो जाता है, लेकिन दिल के मरीजों की सांस इस वजह से फूलने लगती है और मौत होने का खतरा बढ़ जाता है। कोरोना काल में फेफड़े और दिमाग के साथ-साथ दिल के मरीज भी फिलहाल खराब दौर से गुजर रहे हैं, लेकिन कोरोना का संक्रमण होने पर उन्हें बहुत ज्यादा घबराने की जरूरत नहीं है। सबसे पहले उन्हें तनाव से दूर रहना चाहिए, अपनी सभी दवाएं समय पर लेनी चाहिए, ताजा और गर्म खाना खाएं, रात में 8 घंटे की नींद अवश्य लें, रोज सैर करनी चाहिए और हल्की एक्सरसाइज करनी चाहिए। दिल के मरीज अगर कोरोना के डर की वजह से अस्पताल नहीं जा रहे हैं तो ये खतरनाक साबित हो सकता है, इसलिए लक्षणों को नजरअंदाज ना करें, पहले फोन पर डॉक्टर से सलाह लें और अगर जरूरत पड़े तो अस्पताल जाने में देर ना करें।
विशेषज्ञों का कहना है कि अलग-अलग उम्र के लोगों को अपने दिल का ख्याल अलग-अलग तरीकों से रखना चाहिए। बचपन से लेकर 20 वर्ष तक की उम्र में दिल सबसे ज्यादा मजबूत होता है, इस उम्र में व्यक्ति जितना खेलेगा-कूदेगा, उतना ही उसके हृदय का स्वास्थ्य अच्छा रहेगा। इस उम्र के लोगों को अपने दिल को स्वस्थ रखने के लिए साइकिलिंग और व्यायाम करना चाहिए। 20 से 30 वर्ष की उम्र के लोगों को साइकिलिंग, स्वीमिंग और रनिंग करनी चाहिए, ये सारे व्यायाम 30 वर्ष की उम्र के बाद भी किए जा सकते हैं, लेकिन यदि ये व्यायाम 35 से 40 वर्ष की उम्र के बाद शुरू किए जा रहे हैं तो डॉक्टर सलाह देते हैं कि रनिंग और साइकिलिंग की बजाय सुबह शाम तेज चहल कदमी करनी चाहिए और जिम में भी हल्के-फुल्के व्यायाम ही करने चाहिए। 21 से 40 वर्ष की उम्र में अपने स्वास्थ्य पर सबसे अधिक ध्यान देना चाहिए क्योंकि यदि इस उम्र में हम सेहत पर ध्यान देंगे तो ये हमें बुढ़ापे तक स्वस्थ रखेगा।
तेजी से बदलते हुए लाइफस्टाइल के कारण लोगों के दिल कमजोर होते जा रहे हैं। कुछ समय पहले दिल्ली, मुंबई और हैदराबाद जैसे शहरों में एक स्टडी की गई थी, जिसके मुताबिक यहां रहने वाले 64 प्रतिशत लोगों को हृदय रोग होने का खतरा है और इसके पीछे का सबसे बड़ा कारण है गलत लाइफस्टाइल। जानकारों के अनुसार 90 प्रतिशत से ज्यादा दिल की बीमारियों के लिए धूम्रपान और शराब पीने जैसी बुरी आदतें जिम्मेदार हैं। कंप्यूटर, टेलीविजन या मोबाइल फोन की स्क्रीन पर रोजाना 4 घंटे से ज्यादा समय बिताने से लोगों में दिल की बीमारी का खतरा 80 प्रतिशत तक बढ़ जाता है। कनाडा में हुई एक स्टडी के मुताबिक जंक फूड, ज्यादा नमक और ज्यादा तेल वाला खाना खाने वालों में भी दिल की बीमारियों का खतरा 35 प्रतिशत तक बढ़ जाता है। इसलिए हमें खुद को और अपने दिल को स्वस्थ रखने के लिए अपनी लाइफ स्टाइल को व्यवस्थित करना होगा, अपनी गलत आदतों को छोडऩा होगा तथा अपने दिल के स्वास्थ्य पर पूरा-पूरा ध्यान देना होगा तभी हम एक लंबा स्वस्थ जीवन बिता सकेंगे।
रंजना मिश्रा