
फिल्मों की तरह सियासत में जोडिय़ों का खासा वजूद रहा है और कुछ हद तक आज भी इसी पर अमल हो रहा है। सियासत में आज भी कई जोडिय़ा धमाल मचा रही है और कुछ मचाने को तैयार है। जिस भारतीय जनता पार्टी में आज शाह और मोदी की जोड़ी देश में अपना परचम लहराए हुए है इसी भाजपा में पहले कभी अटल आडवाणी की जोड़ी ने भी अपना कमाल दिखाया था। सियासत में आज भी उसे सबसे कामयाब जोड़ी माना जाता है। पांच राज्यों के होने वाले चुनाव में उत्तर प्रदेश में जहां मोदी योगी की जोड़ी अपना दमखम दिखाने को कीलकांटें के साथ तैयार है तो विपक्ष में इस बार अखिलेश यादव के साथ रालोद के मुखिया जयंत चौधरी भी दिखायी देगे। अजित सिंह के निधन के बाद चुनावी राजनीति में जयंत का पहला लिटमेस टेस्ट होने जा रहा है। इससे पहले वे मथुरा के सांसद रह चुके है। राहुल गांधी और मायावती के बाद अब अखिलेश की जयंत के साथ जोड़ी बनी है। खास बात यह है कि यह तीसरा चुनाव है जिसमे अखिलेश ने तीसरा नया साथ किया है। इससे पहले वे 2017 में राहुल गांधी और 2019 के लोकसभा चुनाव में मायावती के साथ थे इस बार वे जयंत के साथ दिखाई देंगे। कांग्रेस ने चूकि अभी तक किसी दल से कोई तालमेल नहीं किया है तो यूपी कांग्रेस की प्रभारी और महासचिव प्रियंका गांधी के साथ उनके भाई राहुल गांधी ही चुनावी सभाओं में दिख रहे है। यूपी में प्रियंका गांधी इस समय कांग्रेस का चेहरा है। वे अकेले दम पर चुनाव में अपनी ताकत दिखाने को तैयार है किसी दल का साथ लिए बिना कांग्रेस ने इस बार अकेले ही चुनाव लडऩे का एलान कि या है। प्रदेश में सपा और रालोद में इससे पहले गठबंधन ही नहीं रहा बल्कि दोनों दलों ने मिलकर सरकार चलाई है। मुलायम और अजित के बाद दोनों नेताओं के पुत्र गठबंधन की राजनीति को आगे बढ़ा रहे है।
यूपी में समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव और कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी के बीच 2017 के विधानसभा चुनाव में गठबंधन हुआ था। इस गठबंधन की जोड़ी ने 29 जनवरी 2017 को साथ मिलकर चुनाव लडऩे का एलान किया था। उस समय 403 सदस्यीय विधानसभा में सपा 298 और कांग्रेस ने 105 सीटों पर मिलकर चुनाव लड़ा था। उस समय दोनों नेताओं की प्रेस कांफ्रेंस की करते हुए साझा फोटो जारी हुई थी और उसका स्लोगन था यूपी को ये साथ पसंद है। लेकिन जो चुनाव नतीजे आये उसने इस पसंद को बहुत जल्दी नापसंद कर दिया। तब सपा को 47 और कांग्रेस को मात्र सात सीटे मिली थी। इस गठबंधन के बाद दोनो नेताओं ने साझा रैलियां भी की थी। लेकिन यह जोड़ी जनता में अपना कोई प्रभाव नहीं छोड़ पाई। समाजवादी पार्टी का कांग्रेस से मोहभंग हुआ और 2019 का लोकसभा चुनाव उसने बसपा के साथ मिलकर चुनाव लड़ा। बसपा से सपा का दूसरी बार गठबंधन 25 साल बाद हुआ था। इससे पहले दोनों दलों के बीच 1993 में हुआ था तब मुलायम और कांशीराम के बीच यह गठबंधन हुआ था। इस गठबंधन की सरकार भी बनी थी लेकिन यह गठबंधन सरकार अपने कार्यकाल का दो साल भी पूरा नहीं कर पाई थी। 2019 के लोकसभा चुनाव में सपा के प्रमुख अखिलेश यादव ने सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव की मर्जी के खिलाफ लोकसभा चुनाव से पूर्व 12जनवरी 2019 को स्थानीय एक पंचसितारा होटल में बसपा से गठबंधन का एलान किया। इस तालमेल में समाजवादी पार्टी 37 और बसपा 38 सीटों पर मैंदान में थी। सपा ने अपनी 37 सीटों पर दो सीटे कांग्रेस और एक सीट रालोद के लिए छोड़ी थी। नतीजे आए तो सपा के पैरोतले जमीन खिसक गयी। सपा को मात्र 5 और बसपा को 10 सीटे मिली। इस गठबंधन में बसपा शून्य से दस पर पहुंच गयी जबकि सपा सिमट कर पांच पर आ गयी। इसके बावजूद मायावती ने गठबंधन को घाटे का सौदा बताया और गठबंधन तोड़ दिया। इस बार बसपा अकेले और सपा कुछ चिल्लर पार्टियों के अलावा रालोद के साथ चुनाव मैंदान में आ रही है। इस बार समाजवादी पार्टी के साथ जो दल उनमें सबसे प्रमुख दल राष्टरीय लोकदल है जिसका पश्चिम उत्तर प्रदेश में खासा प्रभाव माना जाता है। चौ. अजित सिंह के निधन के बाद अब उनके पुत्र रालोद की अगुवाई कर वहां चुनाव मैंदान में उतरने जा रहे है। इस दिशा में सपा और रालोद चुनाव से पहले मिलकर वहां कई साझा रैलियां कर चुके है। देखना यह होगा कि यह जोड़ी वहां क्या कमाल दिखाती है।
योगेश श्रीवास्तव