
केजरी भाई का हाल 100 चूहे खाकर बिल्ली के हज जाने जैसा है। पहले अड़ते हैं, फिर लड़ते हैं जब सब कुछ थम जाता है तो धीरे से मांफी मांग लेते हैं। शीला दीक्षित की लीला अब भूल गए हैं। जंग-से-जंग भी लड़ते हैं और मिलकर गुफ्तगू भी। कूड़ा सड़क पर बिखर जाता है, तो उन्हें सब याद आता है। अपने कानून मंत्री मामले में भी यही किया। पहले उनकी फर्जी डिग्री को सही बताने पर अड़ गए, फिर लड़ गए और जब पूर्व मंत्रीजी जेल में दाल-रोटी खा रहे हैं तो उन पर धोखा देने का आरोप जड़कर माफी मांग रहे हैं। जैसे दिल्ली की जनता को 49 दिन बहालकर मांफी मांग ली थी। भूषण-यादव पटकथा तो सब ने सुनी। ऐसे में खबरची यदि गाए ‘ऐसा कोई ठगा नहीं, जिसको ठगा नहीं’ तो भाई गाना तो बनता है।