ब्रेकिंग न्यूज़ 

अलविदा बप्पी दा

अलविदा बप्पी दा

पिछले कुछ दिन संगीत प्रेमियों के लिए बड़ा दुखदायी रहा है। दो हफ्तों के भीतर ही संगीत की दुनिया को दूसरा बड़ा सदमा लगा। लता दी के बाद बप्पी दा भी इस दुनिया को छोड़ गए।   अब इसे ये संयोग नहीं कहेंगे तो क्या कहेंगे कि नवंबर में बप्पी दा के जन्मदिन पर लता दी ने उनके बचपन की एक तस्वीर सोशल मीडिया में पोस्ट की थी। जिसमें बप्पी दा लता दी की गोद में बैठे हुए थे। लता दी ने लिखा था- ईश्वर तुम्हें हमेशा स्वस्थ और खुश रखे। और देखिये लता दी के जाने के बाद बप्पी दा भी उनके पास ही चले गए। 69 साल की उम्र में बप्पी लाहिड़ी ने दुनिया को अलविदा कह दिया। 17 फरवरी को विले पार्ले के पवन हंस स्थित श्मशान घाट में उनके बेटे बप्पा लाहिड़ी ने उन्हें मुखाग्नि दी। आपको बता दें कि बप्पी दा का निधन 15 फरवरी को रात 11:45 बजे के आस-पास हुआ था। लेकिन, अगले दिन यानी 16 फरवरी को उनका अंतिम संस्कार नहीं किया जा सका, क्योंकि उनके बेटे बप्पा लाहिड़ी अमेरिका में थे और वे 16 की देर रात मुंबई पहुंचे थे। बप्पी लाहिड़ी पिछले काफी दिनों से बीमार थे। वे ऑब्स्ट्रक्टिव स्लीप एपनिया और रीकरेंट चेस्ट इन्फेक्शन से जूझ रहे थे। इसी के चलते सिंगर को जुहू के क्रिटिकेयर हॉस्पिटल में 29 दिनों तक भर्ती कराया गया था। बाद में 15 फरवरी को वे डिस्चार्ज हो गए थे। उसके कुछ ही घंटों बाद सिंगर का निधन हो गया। तबीयत बिगडऩे पर बप्पी लाहिड़ी को फिर से अस्पताल ले जाया गया लेकिन तब तक उन्होंने दुनिया छोड़ दी थी। अस्पताल में बेटी की गोद में सिंगर ने अंतिम सांस ली।

बप्पी दा का अंदाज ही अलग था। उनका संगीत अलग था। वह डिस्को किंग माने जाते थे। 80 के दशक में बप्पी दा ने फिल्म इंडस्ट्री में जो धूम मचाई वो हर संगीतकार के बस की बात नहीं। साल 1982 में निर्माता प्रकाश मेहरा एक नई फिल्म बनाने की तैयारी में थे। उस वक्त तक प्रकाश मेहरा अमिताभ बच्चन के साथ जंजीर, मुकद्दर का सिंकदर और लावारिस जैसी सुपरहिट फिल्म बना चुके थे।  बतौर संगीतकार कल्याण जी आनंद जी प्रकाश मेहरा की टीम का हिस्सा थे। इन तीनों ही फिल्म का संगीत कल्याण जी आनंद जी ने ही दिया था। लेकिन संगीत की दुनिया तेजी से बदल रही थी। हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में एक नए संगीतकार ने पदार्पण किया था और वो बड़े-बड़े संगीतकारों को चुनौती दे रहा था। प्रकाश मेहरा ने वक्त की नब्ज को भांपकर अपनी नई फिल्म के लिए भी इसी नए संगीतकार को चुना। वो फिल्म थी- नमक हलाल। बाकी जो हुआ वो इतिहास में दर्ज है। ये फिल्म इंडस्ट्री में बप्पी लाहिड़ी युग की धमाकेदार शुरूआत थी।

इसी साल दिसंबर में एक और फिल्म ‘डिस्को डांसर’ रिलीज हुई थी। उस फिल्म को बब्बर सुभाष (जिन्हें फिल्म इंडस्ट्री में बी सुभाष के नाम से जाना जाता है)ने बनाया था। फिल्म में मिथुन चक्रवर्ती थे। एक बार फिर बप्पी लाहिड़ी की बनाई धुनों से सजी इस फिल्म ने तहलका मचा दिया। वो हिंदुस्तान की पहली ऐसी फिल्म थी जिसने 100 करोड़ रुपये का बिजनेस किया था। इस फिल्म के गाने आई एम ए डिस्को डांसर, जिमी-जिमी आजा आजा, कोई यहां आहा नाचे-नाचे, याद आ रहा है, गोरों की ना कालों की दुनिया है दिलवालों की ने तहलका मचा दिया। ये नए किस्म का संगीत था। बप्पी लाहिड़ी देखते-देखते डिस्को किंग बन गए।

बप्पी लाहिड़ी के पिता अपारेश लाहिड़ी भी अच्छे गायक थे। मां बांसरी लाहिड़ी भी शास्त्रीय संगीत की नामी कलाकार थीं। बप्पी ने तीन साल की उम्र में तबला बजाना शुरू कर दिया था। बनारस के विश्वविख्यात तबला वादक गुदई महाराज जी ने भी उन्हें तबले की बारीकियां बताईं। एल्विस प्रेसले उनके आदर्श थे। एल्विस प्रेसले के लिए बप्पी लाहिड़ी पागल थे। छोटे थे तब से ही उन्होंने यह सोच रखा था कि सफलता मिलने पर वो वैसे ही ‘स्टाइल स्टेटमेंट’ देंगे जो प्रेसले का है। ये बचपन से ही मेहनत और संगीत की आराधना का असर था कि बप्पी लाहिड़ी ने अपनी फिल्मों में तड़क-भड़क से हटकर कुछ बेहद मेलोडियस गाने श्रोताओं के सामने पेश किये। इंतहा हो गई इंतजार की, याद आ रहा है तेरा प्यार, चलते-चलते मेरे ये गीत याद रखना, किसी नजर को तेरा इंतजार आज भी है और दिल में हो तुम जैसे दर्जनों गाने इस फेहरिस्त में शामिल हैं। बप्पी लाहिड़ी ने फिल्म नन्हा शिकारी में अपना पहला म्यूजिक स्कोर दिया था। उनके पॉपुलर गानों में याद आ रहा, तम्मा-तम्मा अगेन, तम्मा-तम्मा लोगे यार बिना चैन कहां रे, रात बाकी बात बाकी, दे-दे प्यार.. और ये लिस्ट अनगिनत है।

उनका बॉलीवुड में आखिरी गाना फिल्म बागी 3 के लिए था। गाने का नाम बंकस था। बीच के दशकों में जरूर बप्पी दा लोगों की नजरों से ओझल हो गए थे लेकिन कुछ साल पहले फिल्म डर्टी पिक्चर का गाना ऊ लाला ऊ लाला से उन्होंने इस नयी जनरेशन को भी अपना दीवाना बना दिया था। अपने शानदार संगीत के अलावा वो अपने स्टाइल स्टेटमेंट की वजह से भी जाने जाते थे। उनके गले में सोने की कई चेन होती थीं। दिन हो या रात उनकी आंखों पर चश्मा होता था। उनपर मीम्स बनते थे। लेकिन उन्हें उन मीम्स से नहीं बल्कि उन दो लॉकेट से प्यार था जो उनकी मां और पत्नी ने दिया था। उन्हें लगता था कि उनकी कामयाबी में उनके उन दो लॉकेट का भी रोल है। कहा जाता है कि बप्पी दा की सफलता से तत्कालीन संगीतकार बहुत नाराज थे और सबसे ज्यादा नुकसान तो पंचम दा का हुआ था। हिंदी फिल्मों में वेस्टर्न इंस्ट्रूमेंट को लाने का श्रेय पंचम दा को ही दिया जाता था। बप्पी लाहिड़ी उनसे भी कई कदम आगे निकलकर प्रयोग कर रहे थे। उनके प्रयोग लोगों को पसंद भी आ रहे थे। यही वजह थी कि बप्पी लाहिड़ी के काम को लेकर ज्यादातर संगीतकारों में नाराजगी का माहौल था।

कहा जाता है कि आरडी बर्मन तो उनसे इतने नाराज थे कि उन्होंने अपनी पत्नी आशा भोसले को बप्पी लाहिड़ी की फिल्मों में गाने से मना ही कर दिया था। हालांकि कुछ सालों बाद आशा भोंसले ने फिर बप्पी लाहिड़ी के लिए गाना गाया। बप्पी लाहिड़ी के निधन से म्जूयिक जगत को जो नुकसान हुआ है उसकी कभी भरपाई नहीं हो सकती। अपने संगीत के जरिए बप्पी लाहिड़ी हमेशा अमर रहेंगे। 70-80  के दशक में बप्पी दा ने कई सुपरहिट और आइकॉनिक गाने दिए थे। उनके गानों पर आज भी लोग थिरकते हैं।

नीलाभ कृष्ण

Leave a Reply

Your email address will not be published.