
बीते दिनों जब हम लोग मकर संक्रांति मना रहे थे, प्रशांत महासागर में ज्वालामुखी फटने से टोंगा के लोगों का संपर्क शेष दुनिया से कट गया। इसी क्षेत्र में हंगा-टोंगा-हंगा-हापी ज्वालामुखी एक अर्से से सक्रिय है। पर विस्फोट पहले कभी इस तरह भयानक नहीं हुआ था। इसकी आवाज हजारों मील दूर अमरीका के अलास्का तक सुना गया। टोंगा में बिजली की आपूर्ति ठप हो गई। फोन और इंटरनेट जैसी संचार सुविधाओं के बंद होने से आधुनिक तकनीक से लोगों का संबंध विच्छेद हो गया। पांच दिनों बाद सीमित सुविधाएं बहाल होने पर टोंगा की सरकार द्वारा तीन टापुओं पर हुई भारी क्षति और चार लोगों की मौत का जिक्र किया गया। इसके अलावा पेरु में भी दो लोग मारे गए हैं। आज कुदरत का यह कोप कई अहम वजहों से चर्चा में है। इसके बाद सूचना क्रांति के इस युग में भी वास्तविक स्थिति से जुड़ी जानकारियों का अभाव अखड़ता है।
इस हादसे के बाद एहतियात के तौर पर न्यूजीलैंड, फिजी, पेरु, ऑस्ट्रेलिया, जापान, चिली और अमरीका जैसे देशों में सुनामी की लहरों की चेतावनी जारी किया गया। लिहाजा यह ज्वालामुखी विस्फोट सम्पूर्ण प्रशांत क्षेत्र को अशांत कर देता है। टोंगा के कई टापुओं पर लोगों को 1.2 मीटर तक ऊंची लहरों का सामना करना पड़ा। आसमान से गिरते राख के कारण सांस लेना भी दूभर हो गया और पानी के प्राय: सभी स्रोत दूषित हो गए हैं। राख की काली परत पूरे टोंगा पर फैल गया है। आपदाओं की इस श्रृंखला का रहस्य अभी तक सामने नहीं आया है। हालांकि अमेरिकन जियोलॉजिकल सर्वे द्वारा 5.8 क्षमता का भूकंप भी रिकॉर्ड किया गया। साथ ही न्यूजीलैंड की ओर से जारी चेतावनियों में ज्वालामुखी विस्फोट और सुनामी के दोहराने की आशंका व्यक्त की गई है।
इस ज्वालामुखी विस्फोट के कारण जलीय जीवों को अपूरणीय क्षति हुई है। जैवविविधता की यह क्षति समुद्री क्षेत्र तक ही सीमित नहीं है। घटनास्थल से 10000 किलोमीटर दूर पेरु में हुई दुर्घटना से इसका अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है। सुनामी की चपेट में आने पर देश के सबसे बड़े तेल शोधक कारखाने से भारी मात्रा में रिसाव की खबर आती है। इसके कारण 18000 वर्ग किलोमीटर के दायरे में पाये जाने वाले जीवधारियों का मृत शरीर फैला हुआ है। आधुनिक तकनीक के इस युग में पृथ्वी पर मौजूद बीस लाख प्रजाति के जीवों की संख्या में डेढ़ से ढाई लाख तक की कमी दर्ज की गयी है। सभ्यताओं के पतन की गाथा जैवविविधताओं के अनवरत क्षति की कहानी दोहराती है।
प्रशांत महासागर में ‘रिंग ऑफ फायर’ नामक क्षेत्र 40000 किलोमीटर लंबा व 500 किलोमीटर चौड़ा है। दुनिया की दो तिहाई ज्वालामुखी की दास्तान कहने वाले इस क्षेत्र की आकृति घोड़े के नाल जैसी है। टोंगा दक्षिण प्रशांत क्षेत्र में स्थित एक पोलिनेसियन देश है। इसके 169 द्वीप 750 वर्ग किलोमीटर में फैले हैं। हालांकि इनमें से कुल 36 द्वीपों पर लगभग एक लाख लोग बसते हैं। टोंगा की राजधानी नुकुआलोफा से 65 किलोमीटर दूर स्थित हंगा-टोंगा और हंगा-हापी नामक दो द्वीप 2009 में हुए ज्वालामुखी विस्फोट के कारण एक हो गए थे। पिछले साल 20 दिसंबर से 5 जनवरी तक यह टापू बराबर सुलगता रहा है। तब से शुरु हुए इस भयानक विस्फोट के बाद समुद्र तल से 17 किलोमीटर ऊपर तक गैस फैलने के साथ ही दोनों टापू अलग हो गए। परंतु इनका आकार सिमट कर छोटा हो गया है। यही ठोस पदार्थ आसमान छूकर धरती पर लौटने के क्रम में पत्थरों की बारिश का सबब बना था।
आंधियों का पीछा करते जार्ज कोरोनिस की ऑडियो विजुअल सीरीज ‘ऐंग्री प्लेनेट’ का एक चैप्टर टोंगा के इसी इलाके की संवेदनशीलता को उकेरती है। हालांकि ज्वालामुखी फटने और सुनामी की भयानक लहरें प्राकृतिक आपदाएं हैं। आधुनिक तकनीक पर आधारित सभ्यता इनकी विभीषिका बढ़ाने में मदद ही करती है। विपत्ति के ऐसे समय सुविधा संपन्न विकसित देश मानवता की सेवा के नाम पर मदद का हाथ बढ़ाती है। प्रशांत क्षेत्र के न्यूजीलैंड, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और जापान जैसे देशों ने टोंगा टापू वासियों की मदद के लिए हाथ बढ़ाया है। किन्तु मूक और बेवश जीव-जंतु और पेड़-पौधों की क्षति को ध्यान में रख कर कोई प्रयास नहीं किया गया है। ऐसी दशा में संभव है कि कुदरत ही किसी दिन इनके लिए मदद का हाथ बढ़ाए।
कौशल किशोर