
वर्तमान में पांच राज्यों में हुऐ विधानसभा चुनावों के अपने राजनीतिक मायने है। मसलन इन पांच राज्यों के चुनावों को कही न कही 2024 के लोकसभा चुनावों से जोड़ कर भी देखा जा रहा है। चुनावों के सियासी परिणाम कही न कही कांग्रेस और बीजेपी के लिए भविष्य की रणनीति भी तय करेंगे क्योंकि एक और जहां चुनावों में विजय बीजेपी को राजनीतिक रूप से मजबूत करेंगी और 2024 के लोकसभा चुनाव में जीत की राह आसान करेंगी तो वही दूसरी और अपने खोए हुऐ जनाधार को बचाने के लिए ये पांच राज्यों के चुनाव कांग्रेस को एक नई ऊर्जा देने का काम कर सकते है।
बहरहाल पांच राज्यों में हुऐ चुनावों के परिणाम ने एक बार फिर से भारतीय लोकतंत्र मजबूत किया है साथ ही यह भी स्पष्ट किया है कि जातीय, कटटरता और सम्प्रदायिकता के आधार पर चुनाव नही जीता जा सकता। मसलन चुनावों ने यूपी की प्रमुख विपक्षी पार्टी समाजवादी पार्टी यानी सपा और यूपी में कभी सत्तारूढ़ रही बहुजन समाज पार्टी यानी बीएसपी और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस समेत विभिन्न छोटे-मोटे दलों को भी कुछ सीख देने की कोशिश की है, यदि इन पार्टियों का नेतृत्व इसे समझने की कोशिश करें तो। दरअसल इन पार्टियों को अपनी घिसी-पिटी सियासी रणनीति में आमूलचूल बदलाव लाना होगा, अन्यथा बीजेपी से बची राजनैतिक जगह को आप भर देगी और गैर भाजपा विपक्ष दिल्ली-पंजाब की तरह हाथ मलता रह जायेगा।
देखा जाए तो आम चुनाव 2024 के पहले यूपी समेत पांच विधानसभा चुनाव 2022 को सेमीफाइनल करार देने वाले लोगों के लिए भी इसमें बहुत बड़ा सन्देश छिपा हुआ है। वाकई उत्तर प्रदेश और पंजाब जैसे दो बड़े राज्यों और उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर जैसे 3 छोटे राज्यों से आये चुनाव परिणामों ने एक बार फिर से यह बात स्थापित करने की कोशिश की है कि भारतीय राजनीति की परंपरागत चुनावी धारा बदल रही है और उसकी जगह एक नई आधुनिक धारा ले रही है, जो जातिवाद, क्षेत्रवाद, सम्प्रदायवाद, परिवारवाद, पूंजीवाद, बाहुबल, तुष्टिकरण जैसे पुराने राजनैतिक दांव-पेंच से इतर सुशासन, विकासवाद, हिंदुत्व और संतुलित समीकरण को साधकर मूल्यों व वसूलों की राजनीति को बढ़ावा देने तथा सबको समान अवसर, सत्तागत सहूलियत व जनसुविधाएं देने की कोशिशों पर आधारित है। यही वजह है कि कुछेक अपवादों को छोड़कर बीजेपी लगातार आगे बढ़ रही है और सात-आठ साल पहले गठित आम आदमी पार्टी, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस जैसी सवा सौ साल पुरानी पार्टी की जगह धीरे-धीरे ले रही है। क्योंकि समाजवादी सियासत करने वाले क्षेत्रीय दल भी कांग्रेसी सियासी लकीरों की नकल करने के कारण भारतीय राजनीति में लगातार अपनी प्रासंगिकता खोते चले जा रहे हैं।
पंजाब में कांग्रेस नेता नवजोत सिंह सिद्धू, उत्तर प्रदेश में सपा नेता स्वामी प्रसाद मौर्य तथा उत्तराखंड में कांग्रेस नेता हरीश रावत की पराजय बहुत कुछ चुगली कर रही है कि आखिर इन तपे-तपाये नेताओं की शिकस्त के मायने क्या हैं? शायद यह कि हिन्दुस्तान को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और असम के मुख्यमंत्री हेमंत बिस्वा जैसे स्पष्ट और पारदर्शी सनातनी नेता की जरुरत है, जो केंद्रीय स्तर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह के नक्शेकदम पर चलकर देश को एक नई राजनैतिक दिशा देने को अग्रसर हैं। जिस तरह से दिल्ली, महाराष्ट्र, केरल, पश्चिम बंगाल के बाद अब पंजाब में बीजेपी को उम्मीदों के अनुरूप सफलता नहीं मिली है, उसके परिप्रेक्ष्य में यूपी, उत्तराखंड, मणिपुर व गोवा की ताजा राजनीतिक सफलता उसका उत्साह बढ़ाने को काफी है। सच कहा जाए तो उत्तर प्रदेश में 1985 की कांग्रेस सरकार के बाद बीजेपी की योगी सरकार ही ऐसी सरकार है जो फिर से सत्ता में अपनी वापसी कर रही है। लगभग 37 साल बाद बन रहे इस रिकॉर्ड के पीछे कई प्रमुख कारण हैं। राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो सीएम योगी आदित्यनाथ सत्ता में फिर से अपनी वापसी के लिए आत्मविश्वास से लबरेज रहे। क्योंकि उन्होंने सुशासन और विकास के अलावा जनता की हर छोटी बड़ी तकलीफ को समझकर उसे ईमानदारी पूर्वक दूर करने की कोशिश की और अपने अधिकारियों के ऊपर भी सतत निगरानी रखे।
उन्होंने केंद्र सरकार की योजनाओं, यथा- प्रधानमंत्री आवास, राशन, आयुष्मान भारत, किसान सम्मान निधि, पीएम स्वनिधि योजना, उज्जवला योजना, बिजली कनेक्शन, मुद्रा लोन समेत व्यापारियों, महिलाओं और समाज के अन्य वर्गों के लिए लागू की गई योजनाओं को ईमानदारी पूर्वक लागू करवाया। वहीं, कोरोना जैसी वैश्विक महामारी से निपटने के लिए सरकार की ओर से सबको कोरोना की मुफ्त वैक्सीन व समुचित इलाज के प्रयत्न भी प्रमुख कारण है, जिसे लोगों ने महसूस किया।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा कानून व्यवस्था का सफल क्रियान्वयन और बाहुबलियों-भ्रष्टाचारियों के खिलाफ बुलडोजर चलवाने का मुद्दा भी प्रमुख रहा है, क्योंकि जनता ऐसी ही सख्ती चाहती है। वहीं, भाजपा ने अपनी युगान्तकारी नीतियों से सभी सामाजिक वर्गों के बीच संपर्क का सघन अभियान चलाया। उसने महिलाओं, युवाओं के साथ ही सभी सामाजिक वर्गों व जातियों के बीच अपनी पैठ और गहरी की, जिसका सकारात्मक नतीजा यह हुआ कि भाजपा को सभी वर्गों का वोट मिला।
अंत-अंत तक सब लोग बीजेपी के पक्ष में जुटे रहे, पन्ना प्रमुखों ने घर-घर बीजेपी के पक्ष में माहौल बनाया। जिलों में विधानसभा स्तर तक बनी चुनाव संचालन समितियों के माध्यम से भाजपा ने हर बूथ स्तर तक की निगरानी सुनिश्चित की। जबकि मीडिया का एक वर्ग और विपक्ष सत्ता विरोधी कयासों को तूल देते हुए आत्ममुग्ध रहा। इसी प्रकार उत्तराखंड में तीन-तीन मुख्यमंत्री बदलने के बावजूद भाजपा को स्पष्ट बहुमत मिलना यह जाहिर करता है कि पार्टी रणनीतिकारों के राजनीतिक प्रयोग सफल रहे हैं। यह जीत इसलिए महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि राजनेता व मीडिया यहां पर कांग्रेस की सत्ता में वापसी के संकेत दे रहे थे। लेकिन मतदाताओं के सकारात्मक मिजाज ने इन अटकलों की हवा निकाल दी। यहां बीएसपी को 2 सीट मिलना महत्वपूर्ण है, जो कभी यूपी में बीजेपी की सहयोगी पार्टी रही है। वहीं, गोवा में भी पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर पर्रिकर को खोने के बाद और उनके पुत्र के पार्टी छोडऩे के बाद भी बीजेपी को वहां बहुमत मिलना यह साबित करता है कि बीजेपी का सियासी अंदाज लोगों को पसंद है। यह बात इसलिए कि यहां भी मीडिया कांग्रेस या आप के मजबूत होने और सत्ता में आने के संकेत दे रही थी, जो पूरी तरह से सच नहीं निकली। यहां कांग्रेस, एमजीपी के अलावा अन्य को भी सीटें मिली हैं, जिनमें से कुछ बीजेपी के स्वाभाविक मददगार साबित होंगे।
वहीं मणिपुर में भी बीजेपी को बहुमत मिला है, जबकि कांग्रेस, एनपीएफ, एनपीपी और अन्य की मजबूत स्थिति यह दर्शाती है कि यहां भी भाजपा का भविष्य उज्ज्वल है और कई दल रणनीतिक रूप से उसके लिए मददगार साबित होंगे। यहां पर एनडीए की सहयोगी जदयू ने भी अच्छा प्रदर्शन करके भाजपा को चौंका दिया है। जहां तक पंजाब की बात है तो वहां कांग्रेस का अंतर्कलह उसे ले डूबा और बीजेपी की पुरानी सहयोगी पार्टी अकाली दल बादल द्वारा बीजेपी का साथ छोडऩा उसकी सत्ता में फिर से वापसी पर विराम लगा दिया। इसकी भरपाई के लिए बीजेपी ने कांग्रेस के पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह की नई पार्टी से अंतिम समय में समझौता तो कर लिया, लेकिन उससे चुनावी सफलता में तब्दील नहीं किया जा सका। इन्हीं बातों का फायदा वहां पर सियासी फील्डिंग कर रही आप को मिला और जनता ने उसकी रणनीति पर भरोसा जताकर दो-तिहाई बहुमत दे दिया। हालांकि, इस बात की अटकलें लगाई जा रही हैं कि आप के पीछे खालिस्तानी ताकतें खड़ी हैं। जो कि कांग्रेस और बीजेपी की सियासी मुश्किलें भविष्य में बढ़ाएंगी ही।
रोहित