
भारत के महान स्वतंत्रता सेनानी डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ने अपना समूचा जीवन हिंदू समाज व राष्ट्र के लिए समर्पित कर दिया था। बीसवीं शताब्दी का यह अजातशत्रु महान मानव शिल्पी था। वह संगठन मन्त्र के उद्गाता और हिन्दू जीवन में जन-जागरण का शंखनाद करने वाले ऋषि थे। डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार का जीवन राष्ट्र-भक्ति की प्रेरणा का अखंड स्रोत है। मातृभूमि के उत्थान की भावना की अखंड ज्योति उनके मन मन्दिर में जीवन पर्यन्त ज्योतित रही। शास्त्र के ज्ञाता केशव बलिराम हेडगेवार का जन्म 1 अप्रैल, 1889 को नागपुर, महाराष्ट्र में हुआ था। डॉ. हेडगेवार ने लोगों से जुडऩे का एक सरल, अनोखा और शक्तिशाली तंत्र तैयार किया। वह शानदार रणनीतिकार, शक्तिशाली सिद्धांतकार और एक महान प्रेरक थे। केशव बलिराम हेडगेवार ने भारत में हिंदू सभ्यता और हिंदुओं की प्रधानता को बनाए रखने के लिए भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के वैचारिक विकल्प के रूप में 1925 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की स्थापना की। डॉ. हेडगेवार ने वैचारिक युद्ध की आवाज बुलंद की और स्वतंत्रता के बाद के भारत में आरएसएस ने साफ-सुथरी राजनीतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और सभ्यतागत मुद्दों की एक जटिल श्रृंखला को संबोधित किया। समाज के कमजोर वर्गों के उत्थान की यह उनकी सोच ही है कि आज वनवासी कल्याण आश्रम, एकल विद्यालय समेत संघ के सैकड़ों प्रकल्प संस्थानिक और संघ के स्वयंसेवकों के व्यक्तिगत प्रयासों से लगातार चल रहे हैं।
आरएसएस के संस्थापक डॉ. हेडगेवार अपने विचार में स्पष्ट थे कि एक छोटा ब्रिटिश प्रशासन भारत जैसे बड़े देश पर शासन करने में इसलिए सक्षम था क्योंकि हिंदू विभाजित थे, और उनमें वीरता और नागरिक चरित्र की कमी थी। इसलिए, शुरुआती दिनों में उन्होंने ध्यान हिंदुओं को संगठित और एकजुट करने के साथ-साथ मार्शल आर्ट और हथियारों के प्रशिक्षण पर भी था। वह खतरनाक समय था और आजादी की लड़ाई के साथ-साथ, मुस्लिम लीग द्वारा किये गए सामूहिक हमलों और हिंदुओं की हत्या के साथ, हिंदुओं की सुरक्षा के लिए यह कैडर आवश्यक था। गुरुजी गोलवलकर ने भी इसी तरह से कैडर को मजबूत करने पर अपना ध्यान केंद्रित रखा। यहां यह उल्लेखनीय है कि किसी दल द्वारा, अस्पृश्यता के मुद्दे को उजागर नहीं किया गया। हमें यह याद रखना चाहिए कि 20वीं सदी की शुरुआत में, भारत एक जातिवादी समाज था और गांधीजी जैसे शीर्ष नेताओं ने भी अंतर-जातीय विवाह का समर्थन नहीं किया क्योंकि वे वर्ण व्यवस्था में विश्वास करते थे। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की शुरुआत 1885 में हुई थी और इसे हमेशा उच्च जाति की हिंदू पार्टी के रूप में देखा जाता था। किन्तु 1917 में जाकर ही कांग्रेस ने अस्पृश्यता की प्रथा को रोकने के लिए एक प्रस्ताव पारित करने पर विचार किया। यहां भी डॉ. अम्बेडकर और अन्य नेताओं ने महसूस किया कि यह केवल शब्दार्थ है और किसी भी नेता ने अस्पृश्यता के खिलाफ लडऩे के लिए जमीन पर कोई काम नहीं किया। लेकिन आरएसएस, जैसे-जैसे ताकत में बढ़ता गया और अपनी गैर-भेदभावपूर्ण प्रथाओं के कारण, कैडर ने भी अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों सहित कई जातियों को प्रतिबिंबित किया। हमेशा समय के साथ विकसित होते हुए, डॉक्टर हेडगेवार ने अपने एक भाषण में अस्पृश्यता की प्रथा की निंदा करते हुए कहा, ‘अगर अस्पृश्यता गलत नहीं है, तो दुनिया में कुछ भी गलत नहीं है।’ उन्होंने स्वयंसेवकों को हिंदू समाज से जाति आधारित अस्पृश्यता को दूर करने के लिए काम करने का आह्वान किया। उनका यह उपदेश और दृढ़ता ही थी कि हिन्दू समाज से अस्पृश्यता के दोष को एक हद तक मिटाया जा सका।
दीपक कुमार रथ
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