
भारतीय इतिहास के देदीप्यमान नक्षत्र प्रात : स्मरणीय डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार का जीवन राष्ट्र भक्ति की प्रेरणा का अखंड स्रोत है। ‘क्रियासिद्धि : सत्तवे भवति महतां नोपकरणे’ का सुभाषित उन पर पूरी तरह घटित होता है। मातृभूमि के उत्थान की भावना की अखंड ज्योति उनके मन मन्दिर में जीवन पर्यन्त ज्योतित रही। शास्त्र के ज्ञाता केशव बलिराम हेडगेवार का जन्म 1 अप्रैल, 1889 को नागपुर, महाराष्ट्र में हुआ था। महाराष्ट्र, आंध्र-प्रदेश और कर्नाटक में नए साल के रूप में मनाए जाने वाले पर्व गुडी पड़वा के दिन जन्में केशव बलिराम हेडगेवार महाराष्ट्र के देशस्थ ब्राह्मण परिवार से संबंध रखते थे। मूलत: इनका परिवार महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश के बॉर्डर पर स्थित बोधन तालुके से संबंध रखता था।
संघ की स्थापना और आरंभिक जीवन
हेडगेवार को प्रारंभिक शिक्षा उनके बड़े भाई द्वारा प्रदान की गई। जब उनकी अवस्था 8 वर्ष की थी, तब उनके स्कूल में रानी विक्टोरिया के राज्याभिषेक के अवसर पर मिठाइयां बांटी जा रही थी। उन्होंने उस मिठाई को कूड़े के ढेर में फेंक दिया। बारह वर्ष की अवस्था में नागपुर के सीताबर्डी किले से अंग्रेजों का झण्डा उतारकर भगवा झण्डा लहराने के लिए किले तक सुरंग खोदने का प्रयास किया।
कक्षा दसवीं में पढ़ते समय स्कूल के निरीक्षक के सामने ‘वन्देमातरम्’ का घोष करते हुए उनका स्वागत किया, परिणामस्वरूप उन्हें स्कूल से निकाल दिया गया। इसके पश्चात् यवतमाल की राष्ट्रीय पाठशाला में प्रवेश लेने पर उन्हें ब्रिटिश सरकार ने बन्द करवा दिया। पूना के नेशनल स्कूल में प्रवेश लेकर उन्होंने मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण की। मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद हेडगेवार ने चिकित्सा क्षेत्र में पढ़ाई करने के लिए कोलकाता जाने का निर्णय किया। प्रख्यात स्वतंत्रता सेनानी और मोतियाबिंद पर पहला शोध करने वाले डॉ. बी.एस. मुंजू ने हेडगेवार को चिकित्सा अध्ययन के लिए 1910 में कोलकाता भेजा था।
कलकता में रहते हुए केशव बलिराम हेडगेवार ने अनुशीलन समिति और युगांतर जैसे विद्रोही संगठनों से अंग्रेजी सरकार से निपटने के लिए विभिन्न विधाएं सीखीं। अनुशीलन समिति की सदस्यता ग्रहण करने के साथ ही वह राम प्रसाद बिस्मिल के संपर्क में आ गए। केशब चक्रवर्ती के छद्म नाम का सहारा लेकर हेडगेवार ने काकोरी कांड में भी भागीदारी निभाई थी जिसके बाद वह भूमिगत हो गए थे। इस संगठन में अपने अनुभव के दौरान हेडगेवार ने यह बात जान ली थी कि स्वतंत्रता के लिए अंग्रेजी सरकार से लड़ रहे भारतीय विद्रोही अपने मकसद को पाने के लिए कितने ही सुदृढ क्यों ना हों, लेकिन फिर भी भारत जैसे देश में एक सशस्त्र विद्रोह को भड़काना संभव नहीं है। इसीलिए नागपुर वापस लौटने के बाद उनका सशस्त्र आंदोलनों से मोह भंग हो गया। नागपुर लौटने के बाद हेडगेवार समाज सेवा और तिलक के साथ कांग्रेस पार्टी से मिलकर कांग्रेस के लिए कार्य करने लगे थे। कांग्रेस में रहते हुए वह डॉ. मुंजू के और नजदीक आ गए थे जो जल्द ही हेडगेवार को हिन्दू दर्शनशास्त्र में मार्गदर्शन देने लगे थे।
इसके बाद डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार को उन लोगों के बीच पहचाना गया, जो ‘हिंदुत्व’ और ‘भारत’ की खो चुकी अस्मिता को पुनर्स्थापित करने के लिए संघर्षरत थे। अपना स्वप्न साकार करने के लिए डॉ. हेडगेवार ने सन् 1925 में ‘राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ’ स्थापना की। डॉ. हेडगेवार ने यह स्पष्ट किया कि ‘हिन्दुत्व ही राष्ट्रीयत्व है।’ हिन्दुओं ने ही अपने पुरुषार्थ के बल पर इस देश को ‘सोने की चिडिय़ा’ बनाया। जाति-पांति एवं छुआछूत के भेद का शिकार होकर असंगठित दुर्बल होने के कारण हिन्दू समाज को मुट्ठी भर लुटेरों के हाथों हार खानी पड़ी।
हमारी मां-बहिनों को घोर अपमान सहना पड़ा और हमें गुलामी का अभिशाप। उन्होंने निर्भीक स्वर में हिन्दू राष्ट्र की घोषणा की। 1922 ई. में भारत के राजनीतिक पटल पर गांधी के आने के पश्चात ही मुस्लिम सांप्रदायिकता ने अपना सिर उठाना प्रारंभ कर दिया। खिलाफत आंदोलन को गांधी जी का सहयोग प्राप्त था – तत्पश्चात नागपुर व अन्य कई स्थानों पर हिन्दू, मुस्लिम दंगे प्रारंभ हो गये तथा नागपुर के कुछ हिन्दू नेताओं ने समझ लिया कि हिन्दू एकता ही उनकी सुरक्षा कर सकती है। ऐसी स्थिति में कई हिन्दू नेता केरल की स्थिति जानने एवं वहां के लूटे-पिटे हिंदुओं की सहायता के लिए मालाबार-केरल गये, इनमें नागपुर के प्रमुख हिन्दू महासभाई नेता डॉ. बालकृष्ण शिवराम मुंजे, डॉ. हेडगेवार, आर्य समाज के नेता स्वामी श्रद्धानंद जी आदि थे, उसके थोड़े समय बाद नागपुर तथा अन्य कई शहरों में भी हिन्दू-मुस्लिम दंगे हुए। ऐसी घटनाओं से विचलित होकर नागपुर में डॉ. मुंजे ने कुछ प्रसिद्ध हिन्दू नेताओं की बैठक बुलाई, जिनमें डॉ. हेडगेवार एवं डॉ. परांजपे भी थे, इस बैठक में उन्होंने एक हिन्दू-मिलीशिया बनाने का निर्णय लिया, उद्देश्य था ‘हिंदुओं की रक्षा करना एवं हिन्दुस्थान को एक सशक्त हिन्दू राष्ट्र बनाना’। इस मिलीशिया को खड़े करने की जिम्मेवारी धर्मवीर डॉ. मुंजे ने डॉ. केशव बलीराम हेडगेवार को दी।
डॉ. साहब ऐसे व्यक्ति थे, जिन्होंने व्यक्ति की क्षमताओं को उभारने के लिये नये-नये तौर-तरीके विकसित किये। हालांकि प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की असफल क्रान्ति और तत्कालीन परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए उन्होंने एक अर्ध-सैनिक संगठन की नींव रखी। इस प्रकार 28/9/1925 (विजय दशमी दिवस) को अपने पिता-तुल्य गुरु डॉ. बालकृष्ण शिवराम मुंजे, उनके शिष्य डॉ. हेडगेवार, श्री परांजपे और बापू साहिब सोनी ने एक हिन्दू युवक क्लब की नींव डाली, जिसका नाम कालांतर में राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ दिया गया। यहां पर उल्लेखनीय है कि इस राष्ट्र जागरण मिशन का आधार बना – वीर सावरकर का राष्ट्र दर्शन ग्रन्थ (हिंदुत्व) जिसमे हिन्दू की परिभाषा यह की गई थी- आ सिंधु-सिंधु पर्यन्ता, यस्य भारत भूमिका। पितृभू-पुण्यभू भुश्चेव सा वै हिन्दू रीती स्मृता।
इस श्लोक के अनुसार ‘भारत के वह सभी लोग हिन्दू हैं जो इस देश को पितृभूमि-पुण्यभूमि मानते हैं’। इनमे सनातनी, आर्यसमाजी, जैन, बौद्ध, सिख आदि पंथों एवं धर्म विचार को मानने वाले व उनका आचरण करने वाले समस्त जन को हिन्दू के व्यापक दायरे में रखा गया था। मुसलमान व ईसाई इस परिभाषा में नहीं आते थे अत: उनको इस मिलीशिया में ना लेने का निर्णय लिया गया और केवल हिंदुओं को ही लिया जाना तय हुआ, मुख्य मन्त्र था ‘अस्पष्टता निवारण एवं हिंदुओं का सैनिकी करण’।
डॉ. हेडगेवार ने कहते हैं ‘कई सज्जन यह कहते हुए भी नहीं हिचकिचाते की हिन्दुस्थान केवल हिन्दुओ का ही कैसे? यह तो उन सभी लोगों का है जो यहां बसते हैं। खेद है की इस प्रकार का कथन/आक्षेप करने वाले सज्जनों को राष्ट्र शब्द का अर्थ ही ज्ञात नहीं। केवल भूमि के किसी टुकड़े को राष्ट्र नहीं कहते। एक विचार-एक आचार-एक सभ्यता एवं परम्परा में जो लोग पुरातन काल से रहते चले आए हैं उन्हीं लोगों की संस्कृति से राष्ट्र बनता है। इस देश को हमारे ही कारण हिन्दुस्थान नाम दिया गया है। दूसरे लोग यदि समोपचार से इस देश में बसना चाहते हैं तो अवश्य बस सकते हैं। हमने उन्हें न कभी मना किया है न करेंगे। किंतु जो हमारे घर अतिथि बन कर आते हैं और हमारे ही गले पर छुरी फेरने पर उतारू हो जाते हैं उनके लिए यहां रत्ती भर भी स्थान नहीं मिलेगा। संघ की इस विचारधारा को पहले आप ठीक ठाक समझ लीजिए।’
जात ना पूछो साधु की
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रथम सरसंघचालक डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ने जब संघ की शुरुआत की तो उनका मानना था कि विगत कुछ शतकों में हिन्दू समाज विभाजित हो चुका है। उन्होंने हिन्दू समाज में चल रही जातिगत व्यवस्था पर कठोर प्रहार किए। वह कहा करते थे ‘अपना संपूर्ण कार्य हिन्दू समाज का संगठन करना है। हिन्दू समाज के किसी भी अंग की उपेक्षा करने से यह कार्य सिद्ध नहीं होगा। हिन्दू मात्र से हमारा व्यवहार स्नेहपूर्ण होना चाहिए। जातिगत ऊंच-नीच का भाव हमारे मन को कभी स्पर्श न करे। ऊंच-नीच, जात-पात के आधार पर सोचना भी पाप है। संघ के स्वयंसेवकों के मन में ऐसे घृणित और समाज के लिए घातक विचारों को कभी स्थान नहीं मिलना चाहिए। राष्ट्र के प्रति भक्ति रखने वाला प्रत्येक हिन्दू मेरा भाई है। यही दृढ़ भावना प्रत्येक स्वयंसेवक की होनी चाहिए।’
डॉ. हेडगेवार ने जिस संघ की शुरुआत की आज वह वट वृक्ष बन गया है। उसकी शाखाओं का लगातार विस्तार हो रहा है। स्वयंसेवक बिना किसी स्वार्थ के संघ कार्य करने में जुटे हैं। इन सभी कार्यों में से एक कार्य सामाजिक समरसता का भी है। देश में जातिगत व्यवस्था पूरी तरह खत्म हो और संपूर्ण हिन्दू समाज एकजुट हो इसके लिए संघ लगातार कार्य कर रहा है।
धर्मवीर डॉक्टर मुंजे और वीर सावरकर के सान्निध्य में डॉक्टर हेडगेवार ने भारत की गुलामी के कारणों को बड़ी बारीकी से पहचाना और इसके स्थाई समाधान हेतु संघ कार्य प्रारम्भ किया। इन्होंने सदैव यही बताने का प्रयास किया कि नई चुनौतियों का सामना करने के लिए हमें नये तरीकों से काम करना पड़ेगा और स्वयं को बदलना होगा, अब ये पुराने तरीके काम नहीं आएंगे।
डॉ. हेडगेवार के व्यक्तित्व को समग्रता व संपूर्णता में ही समझा जा सकता है। उनमें देश की स्वाधीनता के लिए एक विशेष आग्रह, दृष्टिकोण और दर्शन बाल्यकाल से ही सक्रिय थे। ऐसा लगता है कि जन्म से ही वे इस देश से, यहां की संस्कृति व परंपराओं से परिचित थे। यह निर्विवाद सत्य है कि उन्होंने संघ की स्थापना देश की स्वाधीनता तथा इसे परम वैभव पर पहुंचाने के उद्देश्य से ही की थी। इस कार्य के लिए उन्होंने समाज को वैसी ही दृष्टि दी जैसी गीता में श्रीकृष्ण ने अर्जुन को दी थी। हेडगेवार ने देश को उसके स्वरूप का बोध कराया। उन्होंने व्यक्ति की क्षमताओं को उभारने के लिए नए तौर-तरीके विकसित किए। उनकी सोच युवाओं के व्यक्तित्व, बौद्धिक एवं शारीरिक क्षमता का विकास कर उन्हें एक आदर्श नागरिक बनाती है।
नीलाभ कृष्ण