
हाल ही में दिल्ली में हुई एक घटना ने भारत में एक बार फिर से सेक्युलरिज्म को लेकर एक नई बहस छेड़ दी है, जहां हनुमान जयंती के पर्व के दिन कुछ मुस्लिम दंगाइयों ने हिन्दुओं की शोभायात्रा पर पथराव कर दिया लेकिन सवाल यह उठता है कि किसी सभ्य समाज में ऐसी घटनाओं को बर्दाश्त किया जा सकता है?
ऐसे मे कल्पना कीजिये अगर यही घटना किसी हिन्दू संगठन द्वारा की जाती तो अभी सारे बुद्धिजीवी हल्ला मचाने लग जाते कि भारत में मुस्लिम सुरक्षित नहीं है। मोदी राज में मुसलमानों पर अत्याचार हो रहा है
लेकिन इन बुद्धिजीवियों का यह कैसा दोहरा चरित्र है कि यह हर घटना का समर्थन अपने फायदे और नुकसान के आधार पर ही करते है। कभी-कभी तो लगता है कि समाज को बांटने और भारत मे साम्प्रदायिकता को फैलाने में इन बुद्धिजीवियों का ही हाथ है। क्योंकि यह बुद्धिजीवी समाज में हर घटना को हिन्दू-मुस्लिम तस्वीर से देखते है और तो और इस तस्वीर को मीडिया और अन्य तार्किक तरीको से सही साबित करने का भी प्रयास करते है।
बहरहाल जब महाराष्ट्र में किसी धर्म विशेष समुदाय के लोगों द्वारा एक सोची समझी चाल के द्वारा हिन्दू धर्म के साधुओ की निर्मम हत्या कर दी जाती है, तो इस घटना पर कोई तथाकथित बुद्धिजीवी सड़को पर नहीं
आता, कोई अपने अवार्ड वापस नहीं करता, और तो और कोई इस घटना के विषय मे चर्चा भी नहीं करता। बल्कि वह तो यहां तक प्रचार करते है कि इस घटना को हिन्दू-मुस्लिम रंग न दिया जाये।
लेकिन वहीं जब मुस्लिमों के साथ कुछ होता है तो यह बुद्धिजीवी प्रचार करते है कि अल्पसंख्यकों को दबाया जा रहा है भारत में मुस्लिम सुरक्षित नहीं है।
और तो और भारत के अंदर आतंक फैलाने वाले लोगो को जब न्यायलय द्वारा दंड दिया जाता है तो यही बुद्धिजीवी धर्मनिरपेक्षता का झंडा उठा कर कहते है की अफजल गुरु को इसलिए मारा गया क्योंकि वह मुस्लिम था।
सोचने वाली बात यह है कि यह बुद्धिजीवी सहिष्णुता पर प्रवचन तो देते है लेकिन सच का सामना करने से डरते है।
ऐसा लगता है कि हमारा सिस्टम खुद से ही डरता है, हमें यकीन है कि हम हिन्दुओं के समर्थन में नहीं बोल पायेंगे, इसलिए हम यह मानने से भी डरते है कि हिन्दुओं के साथ कुछ बुरा हुआ है। क्योंकि मन में डर होता है कि फिर कही बाकि जगहों पर लोग मुसलमानों को तंग करने लगेंगे, पर क्या यह तरीका सही है ऐसा नहीं हो सकता कि हम सबको न्याय दिला पाए।
आजकल पूरे भारत में बहस छिड़ी है सहनशीलता को लेकर, लेकिन सहनशीलता क्या होती है, अगर यह समझना है तो एक बार हिन्दुओं का इतिहास पढि़ए। जहां 15 अगस्त 1947 को जब भारत आजाद हुआ तब हम भी चाहते तो पाकिस्तान की तरह भारत को भी हिन्दू राष्ट्र घोषित कर देते, क्योंकि उस समय भारत की अधिकांश जनसंख्या हिन्दू थी और मुस्लिम समाज का अनुयायी जिन्ना मुस्लिम समुदाय के लिये अलग राष्ट्र की मांग पाकिस्तान के रूप मे कर चुका था। लेकिन हमने ऐसा नहीं किया क्योंकि हम शुरुआत से ही सर्व धर्म समभाव की अवधारणा को मानते आये है और इस भावना का ही परिणाम था की हमने यह हक पूरी तरह से मुस्लिम समुदाय पर छोड़ दिया की वे चाहे तो पाकिस्तान जा सकते है और चाहे तो भारत में ही रह सकते है। मसलन परिणाम यह निकला की उस समय पाकिस्तान जाने वाले मुसलमानों की तुलना में भारत रुकने वाले मुसलमानो की संख्या ज्यादा थी। लेकिन आज ये बुद्धिजीवी इतने भ्रष्ट हो गये है की यह अब भारत मे धर्मनिरपेक्षता की आड़ में भारत में जहर घोलने का प्रयास कर रहे है।
तभी तो ये धर्म के ठेकदार अर्थात कुछ छंदम बुद्धिजीवी हाथो में झंडा लेकर निकल पड़ते है यह कहते हुए कि भारत में अल्पसंख्यकों के अधिकारों का हनन हो रहा है।
तथाकथित बुद्धिजीवी भारत में एक तरह का प्रोपेगेंडा चला रहे हैं कि वर्तमान की सरकार में अल्पसंख्यक सुरक्षित नहीं है। यही प्रोपेगेंडा चला-चला कर तो कई तथाकथित बुद्धिजीवियों को तो अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार भी मिल गया है।
पूरे विश्व में भारत ही एक ऐसा देश है जहां जनसंख्या में ज्यादा होना ही हिन्दुओं के लिए नुकसान का कारण बन गया है। क्योंकि जब कभी हिन्दुओं के साथ सोची समझी रणनीति के तहत कोई घटना अर्थात् (मॉबलिचिंग) घटित होती है तो ये घटना तथाकथित बुद्विजीवियों के लिये कोई सामान्य सी घटना बन जाती है। मसलन सेकुलरिज्म के नाम पर ऐसी घटनाओं को होने दिया जाता है। लेकिन वही यदि कोई सामान्य सी घटना भी मुसलमानों के साथ घटित होती है तो यह तथाकथित बुद्विजीवी पूरे भारत में सेकुलरिज्म को लेकर ढोल पीटने लगते है कि भारत में मुसलमान सुरक्षित नही है, सामान्य सी घटना को मॉब लीचिंग के रूप में परिभाषित करके विश्व में भारत को लेकर यह प्रचार करते है कि भारत में अल्पसंख्यक सुरक्षित नही है।
बहरहाल आजकल भारत में सेक्युलरिज्म को लेकर एक अलग ही दिखावे का फैशन चल रहा है। आप कितने ज्यादा सेक्युलर है यह इससे ही प्रमाणित होगा कि आप कितना ज्यादा हिन्दू देवी-देवाताओ के बारे में गलत कहते है। यहां सोचने वाली बात यह है कि आपके किसी भी सगंठन से वैचारिक मतभेद हो सकते है लेकिन मतभेदो के आधार पर अगर आप हिन्दू देवी-देवाताओ के बारे कुछ गलत कहेगें तो ऐसा किसी भी सभ्य समाज में बर्दाश्त नही किया जाएगा। क्योंकि धर्मनिरपेक्षता की दुहाई देने वाले ये तार्किक लोग, यह भूल जाते है की धर्मनिरपेक्षता सभी धर्मो के सम्मान से जुड़ा है जहां किसी धर्म के बारे में अपमानजनक टिप्पणी करना आपराधिक गतिविधि है। लेकिन इन बातों को दरकिनार करके कांग्रेस पार्टी के कुछ तथाकथित नेता इस हद तक गिर चुके है कि वह भारत के लोगो की आत्मा को आहत करने से भी नही कतराते और हाल ही मे ऐसा ही हुआ। जब काग्रेस पार्टी के नेता पंकज पुनिया ने श्रीराम जी को लेकर अपशब्द कहें। ऐसे ही (जयचंद) कि वजह से भारत में अभी धर्मो के बीच में मतभेद देखने को मिलता है और यही मतभेद आगे जाकर देश में सांप्रदायिक उन्माद को बढ़ाता है। मसलन कांग्रेस पार्टी की भी यह मानसिकता कहिए कि अपने शुरुआती चरण से वर्तमान तक वह छंदम धर्मनिरपेक्षता को लेकर दिखावा करती रही है। चाहे 1947 हो या फिर 2020 उसकी राजनीति सिर्फ और सिर्फ मुस्लिमों तक ही केंद्रित रही है। भारत की बहुसंख्यक जनता अर्थात हिंदुओं की उसने शुरू से ही अनदेखी की है।
वर्तमान मोदी सरकार के किये गए कार्यों का ही परिणाम है बहुसंख्यक हिंदू अपने आप को आज भारत में सुरक्षित मानता है। चाहे राम जन्म भूमि का मुद्दा हो या फिर जम्मू-कश्मीर से 370 हटाकर कश्मीरी पंडितो को न्याय दिलाना। मोदी सरकार के द्वारा लिए गए ये निर्णय वर्तमान ही नही बल्कि आने वाले भविष्य के पटल पर भारत को प्रभावी भूमिका में खड़ा कर दिया है। आज भारत की महान संस्कृति का ही प्रभाव हुआ है कि पूरा विश्व आज हाथ मिलाने की परंपरा को त्याग कर हाथ जोडऩे अर्थात नमस्ते की परंपरा को अपना रहा है।
साथ ही इसी मोदी सरकार के द्वारा जम्मू- कश्मीर के युवा अब अपना भविष्य आतंक के कारण दबाने की और नहीं बल्कि अपने भविष्य को बनाने की ओर अपने कदम उठाने की ओर देख रहे है। इसी मोदी सरकार का प्रयास है की तीन तलाक को हटा कर आज मुस्लिम महिलाएं भी अपने हक और सम्मान की बात करने लगी है।
रोहित