
2017 के सर्द दिसंबर में आए चुनाव नतीजों ने हिमाचल भारतीय जनता पार्टी को नए जोश से भर दिया था। हिमाचल प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी की राजनीति दो व्यक्तियों शांता कुमार और प्रेमकुमार धूमल के इर्द-गिर्द सिमटी रहती थी। तीन साल पहले हुए चुनावों में शांता कुमार देश की सबसे बड़ी पंचायत लोकसभा पहुंच चुके थे, इसलिए उम्मीद की जा रही थी कि प्रेमकुमार धूमल को फिर से हिमभूमि की कमान मिल सकेगी। लेकिन धूमल का दुर्भाग्य, वे राज्य की सुजानपुर सीट से अपने कांग्रेसी प्रतिद्वंद्वी राजेंद्र सिंह राणा के हाथों साढ़े तीन हजार वोटों से चुनाव हार गए।
जैसा कि मीडिया की कवायद होती है, राज्य से राष्ट्रीय राजनीति पर तेजी से छाते चले गए जगतप्रकाश नड्डा के नाम पर दांव लगाने की तैयारियां शुरू हो गईं। लेकिन जैसा कि भारतीय जनता पार्टी की केंद्रीय राजनीति में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के उभार के बाद होता है, वैसा ही इस बार भी हुआ। मोदी-अमित शाह की जोड़ी ने चर्चा से दूर जयराम ठाकुर को 27 दिसंबर 2017 को हिमाचल प्रदेश की कमान थमा दी। इसके साथ ही हिमाचल प्रदेश में दो व्यक्तियों से इतर तीसरे व्यक्ति की भारतीय जनता पार्टी की राजनीति में शुरूआत हुई। तब सवाल उठाए गए थे कि शांता कुमार और धूमल जैसे विराट राजनीतिक हस्तियों के होते हुए जयराम ठाकुर राज्य की राजनीति में कितना प्रभाव डाल सकेंगे?
इस साल के अंत में हिमाचल में विधानसभा के चुनाव होने हैं। चूंकि भारतीय जनता पार्टी अब हर बार अपनी सरकारों के कामों की उपलब्धियों के आधार पर ही चुनावों में उतर रही है। ऐसे में लाजिमी है कि जयराम ठाकुर की उपलब्धियों और कामों की मीमांसा हो। बीते 25 जनवरी को हिमाचल प्रदेश ने अपनी राज्य यात्रा के पचास साल पूरे कर लिए हैं। साफ है कि अगला विधान सभा चुनाव हिमाचल की पांच दशक की यात्रा के संदर्भ में भी होगा। जिस पर आधी सदी की विकास यात्रा की भी छाप होगी। पूर्ण राज्य का दर्जा हासिल करने के 50 वर्षों में हिमाचल ने तमाम चुनौतियों का भले ही सामना किया, लेकिन उसने विकास यात्रा की कई कहानियां गढ़ी हैं।
हिमाचल भारत का ऐसा राज्य है, जहां बिजली उत्पादन राज्य के खर्च की सीमा से ज्यादा है। राज्य के हर गांव में बहुत पहले ही बिजली पहुंच चुकी थी। जयराम सरकार की उपलब्धि यह है कि वह लगातार हर गांव में नल से जल पहुंचाने की दिशा में जुटी हुई है। हिमाचल अपनी विकास यात्रा की वजह से दूसरे पहाड़ी राज्यों के लिए प्रतिमान बनकर उभरा है। हिमाचल प्रदेश के इतिहास में 7.63 लाख नल कनेक्शन लगे थे। उधर, जल जीवन मिशन के तहत बीते ढाई साल में ही हिमाचल प्रदेश में 8.35 लाख नए घरेलू नल कनेक्शन लगाए गए हैं।
1971 में जब राज्य पंजाब से अलग हुआ, तब यहां प्रति व्यक्ति आय 651 रुपये सालाना थी, जो अब बढ़कर दो लाख एक हजार 854 रुपए हो गई है। यह आंकड़ा राष्ट्रीय प्रति व्यक्ति आय 51 हजार 528 रुपये से अधिक है। निश्चित तौर पर इसमें जयराम ठाकुर सरकार की भी बड़ी भूमिका है।
पचास साल पहले हिमाचल प्रदेश जब गठित हुआ था, तब यहां सिर्फ 10 जिले थे। उनकी संख्या अब बढ़कर 12 हो गई है। इसके साथ ही उपमंडलों की संख्या भी बीते 50 वर्षों में 34 से 78 हो गई है। वर्तमान सरकार में ही करीब 10 नए उपमंडल बनाए गए, ताकि पहाड़ी इलाकों के लोगों को अपने प्रशासनिक कार्यों को पूरा करने के लिए दूर-दराज की यात्राएं ना करनी पड़ें। इससे सरकारी तंत्र को अपनी तमाम योजनाओं की मॉनीटरिंग करने में सुविधा हो रही है।
हिमाचल प्रदेश में रेल नेटवर्क नाम मात्र का है। ऐसे में सड़कों को यहां की लाइफ लाइन यानी जीवन रेखा कहा जा सकता है। पहाड़ी राज्यों और इलाकों में सड़क निर्माण ना सिर्फ उपलब्धि है, बल्कि चुनौती भी है। क्योंकि मैदानी इलाकों में जितने समय, धन और श्रम से एक किलोमीटर सड़क बनाई जा सकती है, पहाड़ी इलाकों में उसका दोगुना श्रम, धन और समय लगता है। कई बार इससे भी ज्यादा श्रम, धन और वक्त खर्च होता है। राज्य बनने से पहले हिमाचल में सड़कों की लंबाई 10 हज़ार 617 किलोमीटर थी, जो आज 37 हजार 808 किलोमीटर तक पहुंच गई है। मौजूदा जयराम सरकार के सवा चार साल के कार्यकाल में, वैश्विक कोविड महामारी के बावजूद सड़कों की लंबाई में तीन हजार 795 किलोमीटर की बढ़ोत्तरी हुई है। यह आंकड़ा दूसरी सरकारों के पांच साल के कार्यकाल में बनी सड़कों से कहीं ज्यादा है।
कोविड ने पूरी दुनिया को प्रभावित किया। इसका असर हिमाचल पर भी रहा। लेकिन जयराम ठाकुर की अगुआई में भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने महामारी के रोकथाम की दिशा में बेहतर काम किया। पहाड़ी राज्य होने के बावजूद वयस्क लोगों के शत-प्रतिशत टीकाकरण में हिमाचल देश में पहले नंबर पर रहा।
जयराम ठाकुर के नेतृत्व में हिमाचल प्रदेश ने सामाजिक सुरक्षा के क्षेत्र में कई प्रतिमान स्थापित किए हैं। राज्य की हिमकेयर योजना के तहत सरकारी और निजी अस्पतालों में पांच लाख तक का निशुल्क इलाज की व्यवस्था की गई है। इसी तरह जयराम सरकार की एक और महत्वपूर्ण योजना है, सहारा। इसके तहत उन व्यक्तियों को हर महीने तीन हजार मासिक की सहायता दी जा रही है, जो बीमारी या दुर्घटना की वजह से काम करने योग्य नहीं रह गए हैं और उन्हें अपनी जरूरतों के लिए दूसरों पर निर्भर होना पड़ा है। देश में अपनी तरह की यह अकेली योजना है। इसी तरह बुजुर्गों के लिए वृद्धावस्था पेंशन की उम्र सीमा 80 से घटाकर 60 वर्ष कर दी गई। पहले इसके लिए आय सीमा की शर्त थी, जयराम सरकार ने उसे भी खत्म कर दिया है। कहा जा सकता है कि जयराम ठाकुर की अगुआई में हिमाचल पश्चिमी विकसित देशों की तरह आगे बढ़ रहा है, जहां बीमार, अशक्त और कमजोर व्यक्ति को जीवन यापन के लिए दूसरों पर निर्भर नहीं होना पड़ता, सरकारी तौर पर उनकी सामाजिक सुरक्षा का ध्यान रखा जाता है।
हिमाचल की आमदनी और यहां के रोजगार में बागवानी और पर्यटन का बड़ा योगदान है। इसे देखते हुए जयराम सरकार ने राजधानी शिमला समेत प्रमुख पर्यटक स्थल मनाली और धर्मशाला जैसे शहरों में विश्वस्तरीय बुनियादी ढांचा का तेजी से विकास किया है। इस वजह से विदेशी और देशी पर्यटकों के लिए हिमाचल प्रमुख पसंद बनकर उभरा है। राज्य की प्रशासनिक संस्कृति का असर और जयराम सरकार की दूरदृष्टि और स्पष्ट नजरिया है कि हिमाचल प्रदेश दूसरे पहाड़ी राज्यों की तुलना में आगे खड़ा है। बेहतर प्रशासनिक सूचकांक में हिमाचल ने उत्तर-पूर्वी और पहाड़ी राज्यों में पहला स्थान हासिल किया है। इसी सूचकांक के सार्वजनिक संरचना और उपयोग श्रेणी में भी हिमाचल ने उत्तर-पूर्वी और पहाड़ी राज्यों में पहला स्थान हासिल किया। हिमाचल प्रदेश में पिछले चार सालों में हुए विकास के लिए हिमाचल को कई प्रतिष्ठित और राष्ट्रीय स्तर के पुरस्कार मिले हैं। नीति आयोग के सतत विकास लक्ष्यों को हासिल करने में हिमाचल पहाड़ी राज्यों में पहले पायदान और देशभर में दूसरे स्थान पर रहा है। इसी तरह देश के 56 शहरों में हिमाचल की राजधानी शिमला भी अव्वल रह चुकी है।
यह जयराम सरकार की कामयाबी ही कही जाएगी कि स्वास्थ्य, शिक्षा, बागवानी, कृषि आदि तमाम क्षेत्रों में हिमाचल को बेहतर प्रदर्शन के लिए नीति आयोग समेत कई प्रतिष्ठित संस्थाओं एवं प्रतिष्ठानों ने सम्मानित किया है। पारदर्शी शासन और बेहतर कानून व्यवस्था से हिमाचल के लोगों के जीवन स्तर और खुशहाली में ही इजाफा नहीं हुआ है बल्कि राज्य के ईज ऑफ डूइंग बिजनस रैंकिंग में भी सुधार हुआ है। निवेशकों के दो बड़े सम्मेलन राज्य सरकार आयोजित कर चुकी है। जिससे हिमाचल में सैकड़ों उद्योगों के माध्यम से हजारों करोड़ का निवेश धरातल पर उतर रहा है। जयराम सरकार को उम्मीद है कि इससे राज्य की आर्थिकी को ना सिर्फ बल मिलेगा, भविष्य में बड़े पैमाने पर यहां रोजगार के अवसर भी पैदा होंगे।
पहाड़ी इलाकों की अपनी समस्याएं होती हैं, लेकिन इनकी अपनी क्षमताएं भी होती हैं। हिमाचल की भी ऐसी खूबियां और खामियां हैं। इसके बावजूद जयराम ठाकुर की अगुआई में हिमाचल ने जिस तरह बागवानी, पर्यटन और ऊर्जा के क्षेत्र में अपनी क्षमताओं की पहचान करके इन क्षेत्रों पर फोकस किया है, वह दूसरे पहाड़ी राज्यों के लिए नजीर हो सकता है।
उमेश चतुर्वेदी