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साक्षात हैं प्रमाण लेकिन, फिर भी हो रहा हिंदू आस्था का अपमान : आखिर कब तक !

साक्षात हैं प्रमाण लेकिन, फिर भी हो रहा हिंदू आस्था का अपमान : आखिर कब तक !

अयोध्या विवाद के समाधान के बाद अब काशी में ज्ञानवापी और मथुरा में शाही ईदगाह विवाद भी निर्णायक दौर में पहुंच रहे हैं । ज्ञातव्य है कि श्री राम जन्मभूमि मुक्ति यज्ञ के समय से ही उत्तर प्रदेश में हिन्दू आस्था के तीन प्रमुख केन्द्रों को हिन्दुओं को सौंपे जाने की मांग हो रही है । इनमें श्री राम जन्म भूमि के अतिरिक्त जो दो अन्य केंद्र हैं वे श्री कृष्ण जन्मभूमि तथा ज्ञानवापी परिसर जिसके अन्दर प्राचीन श्री विश्वेश्वर महादेव ज्योतिर्लिंग विद्यमान माने जाते हैं ।

जब से काशी के ज्ञानवापी परिसर में सर्वेक्षण का आरम्भ हुआ,  वहां से लगातार उस स्थल के प्राचीन मंदिर होने के प्रमाण सामने आ  रहे थे और अंतिम दिन तो  शिवलिंग ही प्राप्त हो गया ।

प्राचीन मंदिर मिलने के बाद जहां पूरे देशभर  में  शिवभक्तों में प्रसन्नता और हर्ष की लहर दौड़ गयी वहीं  सेकुलर राजनैतिक दलों ने अपनी विकृत राजनीति शुरू कर दी। भाजपा विरोधी  सभी राजनैतिक दलों के नेता और उनके सहयोगी इस समय टीवी चैनलों पर आकर तथा सोशल मीडिया में न केवल हिंदू समाज, भाजपा व संघ के खिलाफ अपमानजनक बयानबाजी कर रहे हैं वरन भगवान शिव, शिवलिंग और  सनातन धर्म पर भी अभद्र टिप्पणी करके  देश का  वातावरण जहरीला बनाने का प्रयास कर रहे हैं।

यह सत्य सामने आ चुका है कि ज्ञानवापी परिसर  के वजूखाने वाले स्थान पर शिविलंग उपस्थित है। देश के मान्य पुरातत्वविद, इतिहासविद तथा मद्रास सहित कई आईआईटी प्रोफेसर पुष्टि कर रहे हैं  कि यह शिवलिंग ही है, जबकि दूसरा क्यां पक्ष शरारती तौर ओपर इसे फव्वारा कहकर उपहास करने का प्रयत्न कर रहा है। क्योंकि अभी मामला न्यायालय में है अत: अंतिम निर्णय भी वहीं होगा कि यह क्या है।

जैसे ही वादी पक्ष द्वारा  ज्ञानवापी परिसर में शिवलिंग मिलने का दावा किया गया उसी समय से इन सभी हिंदू विरोधी ताकतों में हाहाकार मच गया और वे अनर्गल प्रलाप करने लगे। चुनाव प्रचार के दौरान ये मक्कार  दल अपने आपको सबसे बड़ा हिंदू साबित करने में लगे थे और मंदिर – मंदिर घूम रहे थे, कोई नेता अपने आपको शिवभक्त बता रहा था तो कोई रामभक्त और किसी के सपनों में सीधे श्री कृष्ण ही आने लगे थे लेकिन ज्ञानवापी की असलियत सामने आते ही इनकी भी असलियत  सामने आ गयी ।

ज्ञानवापी विवाद पर जब मुस्लिम पक्षकार ने कहा कि वहां पर शिवलिंग नहीं फ व्वारा  मिला है तो सबसे पहले कांग्रेस के नेताओं ने भी यही बयान देकर मुसलमानों को कांग्रेस के साथ खड़ा होने का संदेश  दे दिया था। इसके बाद तो होड़ सी लग गयी। सपा, बसपा, टीमसी सहित वामपंथी विचारधारा के लोग सोशल मीडिया पर लगातार भगवान शिव  तथा शिवलिंग  पर बहुत ही अभद्र टिप्पणियां कर रहे हैं। तीन महिला मुस्लिम पत्रकारों तथा टीएमसी सांसद  तथा हिन्दू कॉलेज के एक अध्यापक ने तो नीचता  की सारी सीमाएं ही लांघ दी। यह टिप्पणियां इतनी अश्लील  और अभद्र है कि इनका उल्लेख नहीं किया जा सकता। यह हिंदू समाज का धैर्य ही है कि वह इनता सब कुछ सुनकर भी शांत  रहकर माननीय न्यायपालिका पर भरोसा रखते हुए अंतिम निर्णय की प्रतीक्षा कर रहा है।

अभी जब सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल ही रही थी उसी दिन (शुक्रवार 20.05.20222) को  जिस प्रकार से मुस्लिम समाज ने ज्ञानवापी मस्जिद मे निर्धार्रत संख्या से अधिक जाकर नमाज अदा करने की कोशिश  की वह यह बताता है कि एक पक्ष में धैर्य की कितनी कमी है और वह भीड़ की ताकत के बल पर हिंदू समाज को भी धमकाना चाह रहा है और देश की न्यायपालिका को भी परोक्ष रूप से धमकाना चाह रहा था।  लेकिन देश की न्यायपालिका बहुत ही मजबूत कंधों पर स्थित है और वह किसी भी पक्ष के दबाव में आये बिना अपना काम कर रही है। सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान भी मुस्लिम पक्षकार विवाद के चलते साम्प्रदायिक सौहार्द्र बिगडऩे की धमकी दे रहे थे लेकिन माननीय न्यायालय उनके दबाव में नहीं आया और संतुलन स्थापित करते हुए सराहनीय आदेश  दिया।

कुछ राजनैतिक दल कितनी नीचता पर उतरे हुए हैं इसका अनुमान लखनऊ विश्व विद्यालय की एक घटना से लगाया जा सकता है जहां एक प्रोफेसर ने भगवान शिव, शिवलिंग व हिंदू देवी- देवताओं के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणियां करके वातावरण को खराब करने का प्रयास किया। जब प्रशासन ने उनके खिलाफ कार्यवाही शुरू  की तब पर्दे के पीछे से जो राजनैतिक दल उनको अपना संरक्षण प्रदान कर रहे थे, वह सभी दल बाहर आ गये। विश्व विद्यालय के रिटायर्ड शिक्षकों सहित सपा, बसपा, वामपंथी, छात्र संगठनों के समूह सहित प्रदेश  की राजनीति में अपनी जमीन खो चुके भीम आर्मी प्रमुख चंद्रशेखर रावण भी मैदान में कूद पड़े। भगवान शिव का अपमान करने वाले प्रोफेसर के समर्थन में चंद्रशेखर रावण ने कहा कि वह सरकार से जवाब मागेंगे कि उतर प्रदेश में  कानून का राज है या फिर मनुस्मृति का? यह सभी दल चाहते हैं कि हिंदू समाज के लोग केवल और केवल अपना अपमान सहते रहें और उसके खिलाफ आवाज भी न उठायें। इन सेकुलर ताकतों की नजर में हिंदू समाज के पास  अभिव्यक्ति की आजादी का व उसकी रक्षा करने का भी अधिकार नहीं प्राप्त है जबकि तथाकथित अल्पसंख्यक समाज के लिए नकली आंसू बहाना ही सबसे बड़ा सत्य है।

विरोधी दलों के बड़े नेता भी नफरत भरे बयान दे रहे हैं। उतर प्रदेश में समाजवादी नेता अखिलेश  यादव जो विधानसभा चुनावों में ब्राहमण समाज के वोटों के लिए लालायित हो रहे थे और अयोध्या के लिए बड़ी- बड़ी घोषणाएं कर रहे थे आज कह  रहे हैं कि बीजेपी वाले कुछ भी करा सकते हैं। एक समय में इन लोगों  ने रात के अंधेरे में मूर्तियां रखवा दी थीं और यह भी कहा कि हमारे हिंदू धर्म में कहीं भी पत्थर रख दो एक लाल झंडा रख दो पीपल के पेड़ के नीचे तो वह मंदिर हो जाता है। अब अयोध्या, काशी, मथुरा जैसे विवादों पर उनकी विकृत सोच का खुलासा हो गया  है। सोशल मीडिया पर अखिलेश  यादव की तीखी आलोचना भी हो रही है और उनके खिलाफ धार्मिक भावनाओं को आहत करने के कारण मुकद्मा भी लिखा गया है। सपा के संभल से मुस्लिम सांसद शफीकुररहमान बर्क ने कहा कि ज्ञानवापी मस्जिद में कोई शिवलिंग नहीं है, इससे देश का माहौल खराब हो रहा है। उन्होंने आगे कहाकि कतुब मीनार और ज्ञानवापी मस्जिद अभी की नहीं है। इस मुद्दे को खत्म किया जाये।

राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत जो अपने राज्य में मुस्लिम तुष्टिकरण के चलते खराब हो रही कानून व्यवस्था को संभाल नहीं पा रहे हैं वे  कह रहे हैं कि देश  में एक नया तमाशा  चल रहा है, मतलब हिन्दू आस्था की बात कांग्रेसियों के लिए तमाशा है  जबकि वास्तविकता यह है कि असली तमाशा  राजस्थान में चल रहा है जिसे पूरा देश  देख व समझ रहा है। आज राजस्थान बहुत ही भयावह दौर से गुजर रहा है।  अशोक  गहलोत को बहुत ही समझदार माना जाता रहा है लेकिन वर्तमान में उन्होंने जो बयान दिये हैं उससे कांग्रेस पार्टी रसातल में ही जायेगी। बसपा नेत्री मायावती भी कह रही हैं कि आजादी के इतने सालों के बाद काशी, मथुरा, ताजमहल की आड़ में धार्मिक भावनाओं को भड़काया जा रहा है। यह वही मायावती हैं जिन्होंने विगत विधानसभा चुनावों में अपनी जनसभाओ में ब्राहमण समाज का मत पाने के लिए अपनी जनसभाओं  में जय श्री राम के नारे लगवा दिये थे और मुस्लिम समाज का मत पाने के लिए मुस्लिम लीग जैसी हो गयी थीं।

ज्ञानवापी विवाद अब निर्णायक चरण में पहुंच रहा है लेकिन अभी भी कम से कम एक – दो साल का समय तो लग ही जायेगा। यह भी तय हो गया है कि यह मामला अयोध्या की तरह लम्बा नहीं चलने जा रहा है जिसके कारण भी फर्जी सेक्युलर ताकतों के  दिलों  की धड़कने बहुत तेज हो गयी हैं।

ज्ञानवापी विवाद में सर्वे के बाद जब से शिवलिंग मिला है  तब से एआईएमआईएम नेता ओवैसी भी बहुत सक्रिय हो गये हैं तथा दिनभर कोई न कोई भड़काऊ बयाबाजी कर रहे हैं। ओवैसी अपने आपको मुस्लिम समाज के बीच सबसे बड़े मुस्लिम नेता के रूप में पेश कर रहे हैं। वहीं जम्मू-कश्मीर  में गुपकार गठबंधन के नेता भी ज्ञानवापी मस्जिद में शिवलिंग मिलने के बाद बौखलाहट में आकर बयानबाजी कर रहे हैं और  देश  का माहौल खराब करने का प्रयास  कर  रहे हैं।

इतने वर्षों तक हमारे भगवान किस हाल में थे ये जानने और इसका पता चलने के बाद प्रतिदिन किये जा रहे ईश अपमान के बाद भी हिंदू समाज बहत ही धैर्य व शांति  के साथ न्याय की प्रतीक्षा कर  रहा है,  यही हिंदुत्व और सनातन की ताकत है कि वो देश में  निर्धारित न्याय-व्यवस्था से ही आगे बढ़ता है।


मृत्युंजय दीक्षित 

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