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भारत का गौरवशाली इतिहास फिर से लिखने की जरुरत, गृहमंत्री ने दिया है संकेत

भारत का गौरवशाली इतिहास फिर से लिखने की जरुरत, गृहमंत्री ने दिया है संकेत

नई दिल्ली: अखंड भारत (अफगानिस्तान से लेकर बांग्लादेश और कश्मीर से लेकर केरल तक) का एक गौरवशाली इतिहास रहा है। लेकिन इसको जानबूझकर दबाया गया। भारतीय इतिहास (Indian History) लिखने वाले पश्चिमी और वामपंथी मानसिकता(Leftist Historians) के लेखकों ने भारत की पराजय की गाथाओं को विस्तार से लिखा। यही नहीं उन्होंने हमारे इतिहास के गौरवपूर्ण पन्नों को या तो छिपा दिया या फिर चंद पंक्तियों में समेट दिया। लेकिन आजादी के 75 सालों बाद अब वक्त आ गया है कि इन गलतियों को सुधार लिया जाए। देश के लोगों को बताया जाए कि आखिर वो कौन सी खास बात थी कि भारतीयों ने हजारों साल की गुलामी में रहने के बावजूद अपनी संस्कृति और धर्म की सफलतापूर्वक रक्षा की।

गृहमंत्री अमित शाह(Home Minister Amit Shah) ने शुक्रवार यानी 10 जून को इतिहास लेखन की विसंगतियों की तरफ इशारा किया। उन्होंने साफ तौर पर कहा कि अब हमें हमारा इतिहास लिखने से कोई नहीं रोक सकता।

मुगलों के इतिहास का ज्यादा बखान

गृहमंत्री अमित शाह ने साफ तौर पर कहा कि ‘ज्यादातर इतिहासकारों ने मुगलों के इतिहास को प्रमुखता दी और पांड्य, चोल, मौर्य, गुप्त साम्राज्य के गौरवशाली इतिहास को नजरअंदाज किया। उन्होंने कहा कि इतिहास लिखने वालों ने साम्राज्यों का जब भी जिक्र किया तो मुगल साम्राज्य(Mughal empire) की ही चर्चा की।’

उन्होंने वर्तमान इतिहासकारों से आह्वान किया कि ‘हमें टीका-टिप्पणी छोड़कर हमारे गौरवशाली इतिहास को जनता के सामने रखना चाहिए। संदर्भ ग्रंथों की रचना करनी चाहिए। धीरे-धीरे…जो इतिहास हम मानते हैं गलत है, वह अपने आप निकल जाएगा। सत्य फिर से उजागर हो जाएगा।’

गृहमंत्री अमित शाह दिल्ली में आयोजित एक किताब विमोचन के कार्यक्रम में बोल रहे थे। गृहमंत्री का भाषण सुनने के लिए यहां पर क्लिक करें-

भारतीय राजवंशों को भुला दिया गया

गृहमंत्री अमित शाह ने खास तौर पर भारतीय राजवंशों का जिक्र किया और कहा कि ‘पांड्य साम्राज्य 800 साल तक चला जबकि अहोम साम्राज्य असम में 650 साल तक चला। इस साम्राज्य ने बख्तियार खिलजी से लेकर औरंगजेब तक को परास्त किया और असम को स्वतंत्र रखा। इसी प्रकार पल्लव साम्राज्य 600 साल तक, चालुक्य साम्राज्य 600 साल तक, मौर्य साम्राज्य 500 साल तक तथा गुप्त साम्राज्य 400 साल तक चला।’


शाह ने बाजीराव पेशवा का खास तौर पर जिक्र किया और कहा कि ‘बाजीराव पेशवा ने अटक से कटक तक भगवा फहराने का काम किया था लेकिन इस प्रकार के कई ऐसे व्यक्तित्व रहे हैं जिनके जीवन को भी न्याय नहीं मिला। हमें इस दिशा में भी काम करना चाहिए। हमारे साम्राज्यों के बारे में काम करना चाहिए।’

गृहमंत्री ने इतिहास के पुनर्लेखन (rewriting of History) की आवश्यकता जताते हुए कहा कि ‘जब हमारा प्रयास किसी से बड़ा होता है तो अपने आप झूठ का प्रयास छोटा हो जाता है। हमें प्रयास बड़ा करने पर ध्यान देना चाहिए। झूठ पर टीका-टिप्पणी करने से भी झूठ प्रचारित होता है। हमें हमारा इतिहास लिखने से कोई नहीं रोकता है। अब हम स्वतंत्र हैं। किसी के मोहताज नहीं हैं। हम हमारा इतिहास खुद लिख सकते हैं।’

वामपंथी इतिहासकारों ने की है भारत के खिलाफ साजिश

जैसा कि गृहमंत्री ने संकेत दिया कि भारतीयों को उनकी विरासत से काटने की साजिश की गई है। हमारी इतिहास की किताबें इस बात का लिखित सबूत हैं कि कैसे पश्चिमी नजरिए के वामपंथी इतिहासकारों ने भारतीयों को उनके आध्यात्मिक और सांस्कृतिक मूल्यों से काटने की कोशिश की। ऐसे में सवाल उठता है कि इसकी वजह क्या है?

दरअसल भारत दुनिया का इकलौता ऐसा देश है जो हजारों सालों से लगातार चली आ रही एक आध्यात्मिक चेतना(Spiritual consciousness) से जुड़ा है। जो उसके संस्कारों में बसा हुआ है। दुनिया का ऐसा कोई वैज्ञानिक, दार्शनिक और आध्यामिक सूत्र नहीं है, जिसे भारतीय नहीं जानते हों। इसके बावजूद भारत को सैकड़ों सालों की गुलामी का शिकार होना पड़ा।

ऐसा इसलिए नहीं हुआ क्योंकि भारत कमजोर था। बल्कि इसलिए हुआ क्योंकि भारतीयों ने सांस्कृतिक और आध्यात्मिक (Cultural and spiritual) रुप से इतनी उन्नति कर ली थी कि उन्हें लगता था कि पूरी दुनिया उनके जैसी ही सभ्य और उन्नत है। लेकिन इस्लामी और पश्चिमी बर्बरों ने भारतीयों की इसी भलमनसाहत का लाभ उठाकर उन्हें गुलाम बनाने में सफलता हासिल की।

लेकिन वो जानते थे कि अगर भारत अपनी प्राचीन विरासत से परिचित हो गया तो वो फिर से उठेगा और पूरी दुनिया पर अपना राज कायम कर लेगा। यही वजह है कि भारत को उसके असली स्वरुप से परिचित कराने से रोकने की कोशिश अब तक की जाती रही है। इसीलिए हमारे इतिहास को तोड़ा मरोड़ा गया।

गलत इतिहास बनाकर भारतीयों को नीचा दिखाने की कोशिश 

भारतीयों को उनकी विरासत भुलाने के लिए सदियों तक झूठ का सहारा लिया गया। जिसका असर इतिहास की किताबों में अब भी दिखाई देता है। बेहद शातिर वामपंथी और पश्चिमी लेखकों ने तो भारत को एक देश मानने से भी इनकार कर दिया था।
– वामपंथ के जनक कार्ल मार्क्स(Karl Marx) ने 22 जुलाई, 1853 के लेख में कहा था, ‘भारतीय समाज का कोई इतिहास ही नहीं है…जिसे हम उसका इतिहास कहते हैं, वह वास्तव में निरंतर आक्रांताओं का इतिहास है’।
– ब्रिटिश जॉन स्ट्रैची ने 1780 में कहा कि भारत नाम का कोई देश नहीं है।

लेकिन ऐसे लोग यह भूल जाते हैं कि अंग्रेजी का इंडिया शब्द ग्रीक इण्डिका से निकला है। जिस शब्द का इस्तेमाल हेरोटोडस ने 600 ई.पू. में किया था।

पश्चिमी और वामपंथी इतिहासकारों के पास इस सवाल का जवाब नहीं है कि-

– जब भारत था ही नहीं तो सिकंदर(Alexander) और सेल्यूकस कहां पहुंचे थे?
-जिस जमाने में ऑक्सफोर्ड(Oxford) और कैम्ब्रिज(Cambridge) का नामोनिशान नहीं था. तब तक्षशिला, नालंदा और उज्जैन जैसे विश्वविद्यालय किस जगह स्थित थे?
– ह्वेनसांग(Huensang), इत्सिंग, फाहियान(Fahyan) जैसे यात्रियों ने किस देश की यात्रा की?
– कोलंबस किस इंडिया की खोज में पूरे समुद्र की यात्रा कर रहा था?
– अंग्रेजों (English), फ्रांसीसियों(French), डच(Dutch) और पुर्तगालियों (Portuguese)ने अपनी कंपनियों का नाम ‘ईस्ट इंडिया कम्पनी'(East India Company) क्यों रखा?

लेकिन दुखद ये है कि भारत को आजादी मिलने के 75 सालों बाद भी अंग्रेजी शिक्षा प्राप्त इतिहासकारों ने ब्रिटिश शासकों की साजिश को लगातार आगे बढ़ाया और एक तरह से देश के साथ गद्दारी की। लेकिन अब भारत जाग गया है। गृहमंत्री अमित शाह के बयान ने एक उम्मीद जगा दी है कि आखिरकार भारत के इतिहास के साथ न्याय होगा और हम अपनी गौरवपूर्ण विरासत को पहचानेंगे।

 

अंशुमान आनंंद

 

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