
नई दिल्ली: National Herald Money Laundering Case कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और उनके सांसद बेटे राहुल गांधी के गले की हड्डी बन गया है। हालांकि कांग्रेस पार्टी इसे राजनीतिक मामला बताते हुए दोनों को बचाने की कोशिश कर रही है। लेकिन इस मामले को बारीकी से देखें तो साफ पता चलता है कि इसमें भारी वित्तीय हेराफेरी की गई है। जिसकी जांच चल रही है।
सत्ता के मद में कानून को रखा ताक पर
प्रवर्तन निदेशालय(Enforcement Directorate) की अब तक की जांच को ध्यान से देखा जाए तो नेशनल हेराल्ड केस इस बात का सटीक उदाहरण है कि कैसे सत्ता के मद में कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं ने कानून को बुरी तरह तोड़-मरोड़ दिया।
दरअसल साल 2010 में गांधी परिवार ने एक कंपनी बनाई, जिसका नाम था यंग इंडियन लिमिटेड यानी YIL। इस कंपनी को 5 लाख की पूंजी(Paid-up Capital) से शुरु किया गया। इस कंपनी के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर में सोनिया गांधी(Congress President Sonia Gandhi), राहुल गांधी(Rahul Gandhi) और प्रियंका वाड्रा(Priyanka Vadra) शामिल थे। जिनके पास कंपनी के 76 फीसदी शेयर थे। बाकी के 24 फीसदी शेयर गांधी परिवार के करीबियों मोतीलाल वोरा और ऑस्कर फर्नान्डीज के पास थे। इन दोनों का अब निधन हो चुका है। जिसके बाद YIL को कोलकाता की एक मुखौटा कंपनी(Shell Company) से एक करोड़ रुपए का लोन मिला। जिसमें से 50 लाख रुपए देकर गांधी परिवार की कंपनी यंग इंडियन लिमिटेड(Young Indian Limited) ने असोसिएट जर्नल लिमिटेड(AJL) पर कब्जा कर लिया। जिसके पास 800 करोड़ रुपए की बेशकीमती जमीन थी।
यानी सिर्फ 50 लाख रुपए देकर आठ अरब की संपत्ति पर कब्जा कर लिया गया। यह कारनामा तब किया गया जब केन्द्र में कांग्रेस पार्टी की सरकार(UPA 2) थी। जिसका पूरा फायदा गांधी परिवार ने उठाया।
क्या है असोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड(AJL) का इतिहास
AJL कंपनी की शुरुआत साल 1938 में पंडित जवाहर लाल नेहरु(Jawahar Lal Nehru) ने की थी। जिसका मकसद गुलाम भारत में देश की जनता की आवाज को स्थान देने के लिए समाचार पत्रों का प्रकाशन करना था। इस कंपनी की शुरुआत भले ही जवाहरलाल नेहरु ने की थी, लेकिन इसमें 5000 और स्वतंत्रता सेनानियों को भी शेयर होल्डर बनाया गया था।
AJL ने नेशनल हेराल्ड नाम से अंग्रेजी, नवजीवन नाम से हिंदी और कौमी आवाज के नाम से उर्दू का अखबार छापना शुरु किया। इस कंपनी को दिल्ली, मुंबई, पंचकूला, लखनऊ और पटना जैसी जगहों पर बेहद कीमती जमीनें अलॉट की गई थीं। इसमें से दिल्ली की बिल्डिंग बेहद व्यस्त ITO चौराहे के पास बहादुर शाह जफर मार्ग पर स्थित है। जिसे हेराल्ड हाउस के नाम से जाना जाता है। इस बिल्डिंग में पासपोर्ट दफ्तर(Passport Office) है। जिसके लिए सरकार अच्छा खासा किराया भी कंपनी को देती रही है।
यह कंपनी आजादी के बाद हाल फिलहाल यानी साल 2008 तक अखबारों का प्रकाशन करती रही। लेकिन धीरे धीरे कंपनी घाटे में आ गई और उसपर 90 करोड़ रुपए का कर्ज हो गया। ये कर्ज कांग्रेस पार्टी ने AJL को दिया था। घाटे में चल रही कंपनी ने अखबारों का प्रकाशन बंद कर दिया। हालांकि यह कर्ज कंपनी की संपत्तियों को बेचकर चुकाया जा सकता था। लेकिन ऐसा नहीं किया गया। इसके बजाए AJLको बेचने का फैसला किया गया। इसे खरीदने के लिए ही गांधी परिवार ने यंग इंडियन लिमिटेड कंपनी का निर्माण किया था।
AJL के अधिग्रहण से शेयरधारक अनभिज्ञ
AJL का जब निर्माण किया गया था तब इसके 5000 शेयर धारक थे। लेकिन इन शेयर धारकों को कंपनी के अधिग्रहण के बारे में कोई जानकारी नहीं दी गई। जब गांधी परिवार की यंग इंडियन लिमिटेड ने AJL का अधिग्रहण किया उसके पहले साल 2010 में कंपनी के सभी शेयरधारकों के शेयर ट्रांसफर करा लिए गए थे। इन शेयरधारकों में पूर्व कानून मंत्री शांति भूषण, महाराष्ट्र हाईकोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश मार्कंडेय काटजू जैसे बड़े नाम भी शामिल थे। जिनके पास खानदानी रुप से AJL कंपनी के शेयर मौजूद थे। लेकिन इन लोगों को बिना कोई लिखित जानकारी दिए ही उनके हिस्से के शेयर वापस ले लिए गए।
साल 2013 में AJL अधिग्रहण का मामला अदालत पहुंचा
AJL के शेयरधारकों को बिना जानकारी दिए उनके शेयर छीन लेने का मामला साल 2013 में अदालत में पहुंच गया। सांसद और वकील सुब्रमण्यम स्वामी ने दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की। इस याचिका में आरोप लगाया गया कि गांधी परिवार के स्वामित्व वाली यंग इंडियन लिमिटेड ने गैरकानूनी रुप से AJL का अधिग्रहण किया है। इसके लिए शेयरधारकों को कोई जानकारी नहीं दी गई। इसलिए इसमें धोखाधड़ी और विश्वास तोड़ने (Breach of Trust) का मामला बनता है। आरोप ये भी लगाया गया कि मात्र 50 लाख रुपए देकर 90 करोड़ की कर्ज वसूली और 2000 करोड़ से ज्यादा की स्थायी संपत्ति पर मालिकाना हक हासिल कर लिया गया।
अब तक हुई है ये कार्यवाही
– साल 2016 में प्रवर्तन निदेशालय ने कांग्रेस पार्टी के पूर्व कोषाध्यक्ष मोतीलाल वोरा और हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र हुड्डा के खिलाफ काला धन शोधन का मामला दर्ज किया। ये केस केन्द्रीय जांच ब्यूरो(CBI) में दर्ज प्राथमिकी पर आधारित था।
– 2016 में ही ईडी ने अपनी जांच में इस केस में कालाधन शोधन का भी मामला पाया। क्योंकि AJL को कांग्रेस ने 90 करोड़ रुपये का कर्ज दिया था। लेकिन जब गांधी परिवार की कंपनी यंग इंडियन लिमिटेड ने AJL पर कब्जा कर लिया तो मात्र 50 लाख रुपए के एवज में 90 करोड़ का यह कर्ज माफ कर दिया गया।
– 3 दिसंबर 2018 को ईडी ने पंचकूला में AJL के एक प्लॉट को अटैच कर लिया। जिसकी बाजार के हिसाब से कीमत 65 करोड़ रुपए थी। जिसपर गांधी परिवार की कंपनी यंग इंडियन लिमिटेड ने कब्जा कर रखा था।
– साल 2022 में ईडी ने यंग इंडियन और सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा समेत इसके पदाधिकारियों व शेयरहोल्डरों के खिलाफ एक और जांच शुरू की।
– 11-12 अप्रैल 2022 को ईडी ने कांग्रेस नेताओं मल्लिकार्जुन खड़गे और पवन बंसल से पूछताछ की।
– जून के महीने में सोनिया और राहुल गांधी को इस मामले में पूछताछ के लिए समन भेजा गया।