
संयुक्त राष्ट्र: दुनिया में मजहबी नफरत के खिलाफ दोहरे मानदंड नहीं हो सकते हैं। ऐसा बिल्कुल नहीं हो सकता है कि अब्राहमिक मजहबों(Abrahmic Religions)(इस्लाम, ईसाई, यहूदी) धर्मों के लिए एक मानदंड अपनाए जाएं और हिंदू, सिख, बौद्ध जैसे धर्मों के लिए अलग मानदंड अपनाए जाएं।
संयुक्त राष्ट्र(United Nation) में भारत के स्थायी प्रतिनिधि टीएस गुरुमूर्ति(TS Gurumurthi) ने शुक्रवार की रात धार्मिक भय यानी रिलिजियोफोबिया के खिलाफ हमारे देश का पक्ष रखा। गुरुमूर्ति ‘घृणास्पद भाषण(Hate Speech) से निपटने के लिए अंतरराष्ट्रीय दिवस’ की पहली वर्षगांठ के मौके पर आयोजित कार्यक्रम के मौके पर बोल रहे थे।
दोहरा मानदंड ना अपनाए अंतरराष्ट्रीय समुदाय
भारत प्रतिनिधि टीएस गुरुमूर्ति ने साफ तौर पर भारत का नजरिया बताते हुए कहा कि ‘जैसा कि हमने बार-बार जोर दिया है कि केवल एक या दो धर्मों को शामिल कर रिलिजियोफोबिया(Religionfobia) के मुकाबले की कवायद चुनिंदा नहीं होनी चाहिए, बल्कि गैर-अब्राहम धर्मों के खिलाफ भी यह फोबिया पर समान रूप से लागू होनी चाहिए। जब तक ऐसा नहीं किया जाता, ऐसे अंतरराष्ट्रीय दिवस अपने उद्देश्यों को कभी हासिल नहीं कर पाएंगे। रिलिजियोफोबिया पर दोहरे मापदंड नहीं हो सकते।’
गुरुमूर्ति का पूरा भाषण सुनने के लिए यहां पर क्लिक करें–
कट्टरपंथियों के निशाने पर रहा है भारत
संयुक्त राष्ट्र में भारत पहले भी कह चुका है कि हिंदू मंदिर, बौद्ध मठ और सिख गुरुद्वारों पर भी अतीत में हमले होते रहे हैं। लेकिन इसपर अंतरराष्ट्रीय समुदाय का ध्यान कभी नहीं जाता है। क्योंकि यह सभी हमले गैर-अब्राहमिक मजहबी संस्थानों पर होते रहे हैं।
गुरुमूर्ति बता चुके हैं कि भारत ने हमेशा सभी धर्मों को शरण दी है, चाहे वो अब्राहमिक हों या गैर अब्राहमिक। भारत के नजरिए से सभी धर्म एक समान हैं। भारत की इसी बहु सांस्कृतिक विशेषता ने सदियों से हमारे देश को सभी धर्मों के लोगों के लिए सुरक्षित आश्रय स्थल बनाया है, चाहे वो यहूदी हों या पारसी या फिर तिब्बती।
गुरुमूर्ति ने कहा कि ‘यह हमारे देश की अंतर्निहित ताकत है जिसने समय के साथ कट्टरपंथ और आतंकवाद(terrorism) का सामना किया है।’
शिक्षा से करें आतंकवाद का मुकाबला
संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि गुरुमूर्ति ने कहा कि आतंकवाद का मुकाबला सिर्फ शिक्षा से ही हो सकता है। उनके बयान के मुताबिक ‘भारत आतंकवाद का सबसे बड़ा शिकार रहा है, खासकर सीमा पार आतंकवाद का। हम देशों से एक ऐसी शिक्षा प्रणाली विकसित करने का आह्वान करते हैं जो बहुलवाद और लोकतंत्र के सिद्धांतों को बढ़ावा देकर उनका मुकाबला करने में सही मायने में योगदान दे।’
संयुक्त राष्ट्र ने मजहबी शिक्षाओं के खिलाफ बोलने के खिलाफ एक खास दिन तय किया है, जिसे No Hate Speech मुहिम का नाम दिया गया है। दो दिन पहले इसी की पहली वर्षगांठ थी। जिस मौके पर एक कार्यक्रम का आयोजित किया गया था। यूएन में भारत के स्थायी प्रतिनिधि टी.एस.गुरुमूर्ति इसी मौके पर अपने विचार प्रकट कर रहे थे।