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क्या है ज्ञानवापी का सच : विवाद की जड़

क्या है ज्ञानवापी का सच : विवाद की जड़

वाराणसी के विख्यात काशी विश्वनाथ मंदिर जो भी गया है, वहां मंदिर के दीवार से सटी मस्जिद जरूर देखा है। ज्ञानवापी के नाम से विख्यात यह मस्जिद भगवान विश्वनाथ के मंदिर से इतनी चिपकी हुई सी सटी है कि वह शक पैदा करती है। ऐतिहासिक और पौराणिक तथ्य तो बाद में आते हैं, लेकिन तात्कालिक साक्ष्य इस मस्जिद पर शक करने के लिए काफी हैं। मंदिर पर अपनी राजनीतिक विचारधारा के हिसाब से इस मंदिर और मस्जिद पर विचार प्रगट करने वालों को छोड़ दें, तो आम नागरिक भी यही मानता है कि यहां मंदिर रहा होगा और आक्रांताओं ने इसे तोड़कर जबरिया वहां मस्जिद बना दी। इस आम मान्यता और साक्ष्य ही रहे कि वाराणसी की सत्र अदालत ने अप्रैल 2021 में हरिहर पांडेय नामक एक शख्स की याचिका पर सुनवाई करते हुए ज्ञानवापी का पुरातात्विक सर्वेक्षण करने का आदेश दे दिया था। हालांकि उस पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मस्जिद कमेटी के पक्षकारों की अपील के बाद रोक लगा दी थी। बाद में सत्र अदालत ने इस मस्जिद का सर्वेक्षण कराने का आदेश दिया और इसके लिए अजय मिश्र की अगुआई में दो कोर्ट कमिश्नर नियुक्त कर दिए। विशाल सिंह दूसरे कोर्ट कमिश्नर रहे। इस सर्वे को रोकने के लिए स्थानीय मुसलमानों के एक समूह ने भरपूर कोशिश की, छह और सात मई को प्रदर्शन के बाद कोर्ट कमिश्नर अपना काम नहीं कर पाए। लेकिन बाद में भारी सुरक्षा के बीच जब इसका सर्वे हुआ तो हिंदू पक्ष का दावा मजबूत होता नजर आया। कोर्ट के समक्ष पेश रिपोर्ट में दावा किया गया है कि ज्ञानवापी परिसर में उत्तर से पश्चिम दीवार के कोने पर पुराने मंदिरों का मलबा मिला जिस पर देवी-देवताओं की कलाकृति बनी हुई थीं। इसके अलावा उत्तर से पश्चिम की तरफ चलते हुए पश्चिम की तरफ चलते हुए बीच के सिलावट पर शेषनाग की कलाकृति और नागफनी जैसी आकृतियां भी देखी गई हैं। कोर्ट में प्रस्तुत रिपोर्ट के मुताबिक, छह मई को किए गए सर्वे के दौरान बैरिकेडिंग के बाहर उत्तर से पश्चिम दीवार के कोने पर पुराने मंदिरों का मलबा मिला, जिस पर देवी-देवताओं की कलाकृति बनी हुई थी और अन्य शिलापट पट्ट थे, जिन पर कमल की कलाकृति भी नजर आ रही है। इस रिपोर्ट के मुताबिक मस्जिद परिसर के पत्थरों के भीतर की तरफ कुछ कलाकृतियां आकार में स्पष्ट रूप से कमल और ऐसी ही सनातनी आकृतियां थीं। इस रिपोर्ट के मुताबिक मस्जिद के उत्तर पश्चिमी कोने पर गिट्टी-सीमेन्ट से चबूतरे पर नए निर्माण को देखा जा सकता है। जिसकी कोर्ट कमिश्नर ने बाकायदा वीडियोग्राफी भी कराई इसी रिपोर्ट के मुताबिक, उत्तर से पश्चिम की तरफ चलते हुए मध्य शिला पट्ट पर शेषनाग की कलाकृति, नाग के फन जैसी आकृतियां भी दिखी हैं। मस्जिद के शिलापट्ट पर सिन्दूरी रंग की उभरी हुई कलाकृति भी थी। शिलापट्ट पर देव विग्रह, जिसमें चार मूर्तियों की आकृति बनी है, जिस पर सिन्दूरी रंग लगा हुआ है, चौथी आकृति जो मूर्ति की तरह प्रतीत हो रही है, उस पर उस पर सिन्दूर का मोटा लेप लगा हुआ है।

सभी शिलापट्ट भूमि पर काफी लंबे समय से पड़े प्रतीत हो रहे हैं। ये पहली नजर में किसी बड़े भवन के खंडित अंश नजर आते हैं। इन पर उभरी कुछ कलाकृतियां मस्जिद की पीछे की पश्चिम दीवार पर उभरी कलाकृतियों जैसी दिख रही है। मस्जिद की बैरिकेटिंग की गई है। यहां से लेकर मस्जिद की पश्चिम दीवार के बीच मलबे का ढेर पड़ा है। ये शिलापट्ट पत्थर भी उन्हीं का हिस्सा नजर आ रहे हैं।  इन पर उभरी कुछ कलाकृतियां मस्जिद की पीछे की पश्चिमी दीवार पर उभरी कलाकृतियों जैसी नजर आ रही हैं। इसके साथ ही यहां एक ऐसा कथित फव्वारा है, जो शिवलिंग प्रतीत हो रहा है। इसे लेकर काफी विवाद भी है। वैसे हिंदू पक्ष का दावा है कि वाराणसी में काशी विश्वनाथ मंदिर परिसर में ही ज्ञानवापी मस्जिद बनी हुई है। मस्जिद को प्राचीन विश्वेश्वर मंदिर तोड़कर उसके पर बनाया गया है। इसको लेकर 1991 में वाराणसी की लोकल कोर्ट में एक मुकदमा दायर किया गया।  दावा किया कि औरंगजेब ने यहां मंदिर तोड़कर उस पर मस्जिद बनवाई थी। हिन्दू पक्ष की ओर से ये दावा किया जाता है कि विवादित ढांचे के फर्श के नीचे 100 फीट ऊंचा आदि विश्वेश्वर का स्वयम्भू ज्योतिर्लिंग स्थापित है। विवादित स्थल के भूतल में तहखाना और मस्जिद के गुम्बद के पीछे प्राचीन मंदिर की दीवार का दावा किया जाता है। वादी हिंदू पक्ष  के वकील विजय शंकर रस्तोगी के पास पूरे ज्ञानवापी परिसर का नक्शा मौजूद है, जिसमें मस्जिद के प्रवेश द्वार के बाद चारों तरफ देवी-देवताओं के मंदिरों का जिक्र है। बीच में विश्वेश्वर मंदिर है। परिसर में ही ज्ञानकूप और नंदी विराजमान हैं। मस्जिद की दीवारों पर नक्काशियों से देवी देवताओं के चित्र उकेरे गए हैं। स्कंद पुराण में भी इन बातों का वर्णन है।

हिंदू पक्ष के दावे जैसे तथ्य और प्रमाण मिलने के बाद हिंदू पक्ष का प्रसन्न होना स्वाभाविक है। अगर मान्यताओं कि करें तो ज्ञानवापी वो जगह है जहां भगवान विश्वेश्वर (काशी विश्वनाथ) का स्वयंभू ज्योतिर्लिंग है और खुद इस स्वयंभू ज्योतिर्लिंग का भगवान शंकर ने यहां जलाभिषेक किया था। हिन्दू पक्ष के वादी हरिहर पांडेय का दावा रहा है कि पृथ्वी पर गंगा अवतरण के पहले भगवान शंकर ने अपने त्रिशूल से इस जगह पर कूप का निर्माण कर इस स्वयंभू ज्योतिर्लिंग का अभिषेक किया था, उसके बाद भगवान शंकर ने इसी कूप के करीब बैठकर मां पार्वती को ज्ञान दिया था। इसलिए उस जगह का नाम ज्ञानवापी पड़ा। आज भी इस बात का प्रमाण वहां की दीवारों पर है। मस्जिद की ओर देखता नंदी, दीवारों से सटा श्रृंगार गौरी का मंदिर और ज्ञानवापी की दीवारों पर हिन्दू धर्म से जुड़े कई चिन्ह इस बात का प्रमाण हैं। ऐसी मान्यता है कि औरंगजेब ने ज्ञानवापी को तोड़कर मस्जिद बनवाया था। वाराणसी को लोग ज्ञानवापी मस्जिद को औरंगजेब की कट्टरता का प्रमाण मानते हैं। एक ऐतिहासिक तथ्य के अनुसार 18 अप्रैल 1669 को औरंगजेब ने एक फरमान जारी कर काशी विश्वनाथ मंदिर ध्वस्त करने का आदेश दिया। यह फरमान एशियाटिक लाइब्रेरी, कोलकाता में आज भी सुरक्षित है। उस समय के लेखक साकी मुस्तइद खां द्वारा लिखित ‘मासीदे आलमगिरी’ में इस ध्वंस का वर्णन है। 2 सितंबर 1669 को औरंगजेब को मंदिर तोडऩे का कार्य पूरा होने की सूचना दी गई थी।

1777-80 में इंदौर की महारानी अहिल्याबाई द्वारा इस मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया गया था। अहिल्याबाई होलकर ने इसी परिसर में विश्वनाथ मंदिर बनवाया जिस पर पंजाब के महाराजा रणजीत सिंह ने सोने का छत्र बनवाया। ग्वालियर की महारानी बैजाबाई ने ज्ञानवापी का मंडप बनवाया और महाराजा नेपाल ने वहां विशाल नंदी प्रतिमा स्थापित करवाई। नंदी प्रतिमा का मुख उल्टा होने का रहस्य यही है कि पहले मंदिर जहां थी, वहां मस्जिद बना ली गई।

बहरहाल यह विवाद इतना बढ़ गया है कि एआईएमएम के नेता ओवैसी जहां मस्जिद के बचाव में उतर आए हैं, वहीं हिंदुत्ववादी राजनीति सर्वे रिपोर्ट से खुश है। यह बात और है कि इसी बीच नागपुर से संघ प्रमुख मोहन भागवत का एक बयान आ गया कि हर मस्जिद में शिवलिंग ना खोजा जाए, इसका प्रतिकार हिंदुत्ववादी विचारधारा ही ज्यादा कर रही है। इसी बीच इसी मसले पर हुई एक टीवी चर्चा में भाजपा प्रवक्ता नुपूर शर्मा और नवीन जिंदल ने ऐसा बोल दिया कि उनके बयान को उनकी ही पार्टी ने गलत मानते हुए उन्हें निलंबित कर दिया। इनके निलंबन के बाद हिंदुत्ववादी वैचारिक समूहों के निशाने पर अब भाजपा भी आ गई है।

भारतीय जनता पार्टी पर चाहे जितने भी दवाब हों, लेकिन यह सच है कि ज्ञानवापी के सर्वे में जो कुछ मिला है, वह इसी तथ्य को साबित करता है कि वहां मंदिर था, जिसे तोड़कर मस्जिद बनाई गई। इससे हिंदुत्ववादी वैचारिक समूह उत्साहित हैं, उन्हें लगता है कि मध्यकाल में आक्रांताओं ने उनके वैचारिक और पूजनीय गृहों पर जो कब्जा किया था, वे अब मुक्त हो सकेंगे। वहीं राजनीति अपने-अपने ढंग से इस मामले पर अपने फायदे के हिसाब से प्रतिक्रियाएं दे रही है।

 

 

उमेश चतुर्वेदी

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