
दीपक कुमार रथ
(editor@udayindia.in)
उद्धव ठाकरे को कुर्सी से हटाकर महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बनने वाले एकनाथ शिंदे ने 288 सदस्यों वाली महाराष्ट्र विधानसभा में 164 वोट से विश्वास मत हासिल कर लिया। उनके खिलाफ सिर्फ 99 वोट पड़े। दरअसल राज्यसभा चुनाव के दौरान ही शिवसेना में दरार दिखाई देने लगी थी। इस चुनाव में भाजपा की जीत से ही महा विकास अघाड़ी सरकार पर अस्थिरता का साया मंडराने लगा था। राज्यसभा चुनाव के परिणाम आते ही महाराष्ट्र में सरकार चला रही शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस में दरार दिखाई देने लगी थी। तीनों ने एक दूसरे पर इल्जाम लगाना शुरू कर दिया था। भीतरघात से घबराई शिवसेना ने राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी और उसके सुप्रीमो शरद पवार पर आरोप लगाया कि उन्होंने जीत के लिए दूसरे स्तर के वोट की तैयारी नहीं की थी। लेकिन शरद पवार को शिवसेना उम्मीदवार की हार से क्यों फर्क पड़ता क्योंकि उद्धव ठाकरे की मुश्किल बढ़ने से उन्हें राजनीतिक फायदा दिखाई दे रहा था। लेकिन एकनाथ शिंदे ने शरद पवार और उद्धव ठाकरे दोनों को ही आईना दिखा दिया। शिवसेना के बागी गुट की सबसे बड़ी शिकायत तो यही थी कि उद्धव ठाकरे ने अपनी कुर्सी बरकरार रखने के लिए सारे अहम मंत्रालयों को एनसीपी और कांग्रेस के हवाले कर दिया और अपने विधायकों की शिकायत अनसुनी करते रहे। इसके अलावा बागी शिवसेना विधायकों की सबसे बड़ी शिकायत थी कि मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के पास अपने ही विधायकों से मुलाकात करने के लिए वक्त नहीं था। ऐसे में विधायक अपने क्षेत्र की समस्या को लेकर आखिर कहां जाते? शिवसेना में सालों से काम कर रहे नेता इस बात से दुखी थे कि उनकी पार्टी ने हिंदुत्ववादी भाजपा का साथ छोड़ दिया और बाल ठाकरे के आदर्शों को ताक पर रख कर कांग्रेस की गोद में बैठ गयी।
यहां पर ये बताना जरुरी है कि महाराष्ट्र के वोटरों ने शिवसेना-भाजपा गठबंधन को साल 2019 में चुनाव जिता कर विधानसभा में भेजा था। लेकिन बाद में शिवसेना ने कांग्रेस और एनसीपी के साथ मिलकर सरकार बना ली। राजनीतिक पंडितों ने इसे मौकापरस्त गठबंधन करार दिया सिर्फ सत्ता के लिए बनाए गए इस बेमेल और अवसरवादी गठबंधन की वजह से राज्य में राजनीतिक और प्रशासनिक अस्थिरता पैदा हो गई थी। जिसकी वजह से उद्धव ठाकरे के नेतृत्व और उनकी सरकार के स्थायित्व पर सवाल उठने लगे थे। लोकतंत्र बचाने की आड़ में बनाए गए इस गठबंधन में मुख्यमंत्री का पद एक ऐसी पार्टी के पास था, जिसके पास 288 सदस्यों वाली महाराष्ट्र विधानसभा में मात्र 56 विधायक थे। शिवसेना ने भाजपा का डर दिखाकर कांग्रेस और एनसीपी को ब्लैकमेल किया। जिसकी वजह से उन दोनों ने अपनी तथाकथित धर्मनिरपेक्षता से किनारा करते हुए शिवसेना को समर्थन दे दिया। सबसे बड़ा मजाक तो ये है कि यह लोग संविधान, संघवाद और लोकतंत्र को बचाने के नाम पर अपनी राजनीतिक महत्वकांक्षा और लालच के पीछे भागते रहे, जिससे मतदाताओं का अपमान हुआ। उद्धव ठाकरे की ब्लैकमेलिंग की राजनीति से महाराष्ट्र में लोकतंत्र फेल होता हुआ दिखाई दे रहा था। क्योंकि जनता ने महा विकास अघाड़ी के बेमेल गठबंधन के लिए वोट नहीं दिया था। लेकिन अब एकनाथ शिंदे की सरकार से उम्मीद बंधी है कि वह बाला साहब ठाकरे के हिंदुत्व के आधार पर शासन चलाएंगे और राज्य को विकास की राह पर आगे बढ़ाएंगे। नई सरकार के गठन के बाद यह कहा जा सकता है कि उद्धव ठाकरे ने सत्ता के लिए हिंदुत्व को छोड़ दिया और देवेन्द्र फडणवीस ने हिंदुत्व के लिए सत्ता का त्याग लिया।