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सत्ता के घोड़े पर सवार शिंदे : फडणवीस के हाथ में लगाम

सत्ता के घोड़े पर सवार शिंदे : फडणवीस के हाथ में लगाम

घुड़सवारी करने के दो तरीके होते हैं। पहला कि आपके पांव रकाब में मजबूती से जमे हों, लगाम आपके हाथ में हो और आप जिधर मर्जी आए उधर अपने घोड़े को ले जा सकें। दूसरा तरीका ये है कि रकाब में तो आपका पांव हो, लेकिन घोड़े की लगाम किसी और के हाथ में हो। वो आपको जहां ले जाना चाहे, आपको वहीं जाना होगा।

महाराष्ट्र में सत्ता के घोड़े को चलाने का दूसरा तरीका आजमाया जा रहा है। घोड़े की काठी  पर तो एकनाथ शिंदे बैठे हुए हैं। लेकिन लगाम देवेन्द्र फडणवीस के हाथ में है, जो कि भाजपा आलाकमान के इशारे पर घोड़े को कभी भी और कहीं भी मोड़ सकते हैं।

महाराष्ट्र में राजनीतिक उथल-पुथल खत्म हो चुकी है। एकनाथ शिंदे मुख्यमंत्री और देवेन्द्र फडणवीस उप-मुख्यमंत्री पद की शपथ ले चुके हैं। हालांकि शुरूआत में ऐसा लग रहा था कि देवेन्द्र फडणवीस का मुख्यमंत्री  बनना तय है। लेकिन अंतिम समय में एकनाथ शिंदे को मुख्यमंत्री पद की कुर्सी सौंपकर भारतीय जनता पार्टी ने सबको चौंका दिया। लेकिन यह एक सोचा समझा फैसला था। जिसके जरिए भाजपा ने एक तीर से छह निशाने साधे है।

 

  1. भाजपा ने खुद पर आंच नहीं आने दी

महाराष्ट्र में जब से राजनीतिक ड्रामा शुरू हुआ। तब से ही उद्धव ठाकरे, शरद पवार और कांग्रेस ने भाजपा पर निशाना साधना शुरू कर दिया था कि उन्होंने सत्ता के लालच में अच्छी भली चल रही उद्धव ठाकरे की सरकार को संकट में डाल दिया। लेकिन भाजपा नेताओं ने हमेशा से इस आरोप का खंडन किया। भाजपा का कहना था कि उद्धव ठाकरे से एकनाथ शिंदे गुट का विद्रोह शिवसेना का आंतरिक मामला है। जिससे उनका कोई लेना देना नहीं है।

जून के आखिरी सप्ताह में शिवसेना के मुखपत्र सामना में एक लेख छापा गया। जिसमें भाजपा पर आरोप लगाया गया कि वह छत्रपति शिवाजी के अखंड महाराष्ट्र के तीन टुकड़े करना चाहती है। इसके लिए उसने शिवसेना के विधायकों को भड़काया जा रहा है। इस लेख में दावा किया गया था कि गृहमंत्री अमित शाह ने शिंदे गुट के विधायकों के साथ मुलाकात की है। जिसकी वजह से वह लोग उद्धव ठाकरे के खिलाफ मोर्चा खोले बैठे हैं।

हालांकि भाजपा ने हमेशा से उद्धव गुट के इस आरोप का खंडन किया और शिंदे गुट की बगावत को शिवसेना की अंदरुनी कलह का नतीजा करार दिया। लेकिन जिस तरह महाराष्ट्र से निकले शिवसेना के बागियों ने भाजपा शासित गुजरात और फिर असम में जाकर शरण ली। उससे आम लोगों को भी ऐसा लगने लगा था कि शिंदे गुट के विद्रोह के पीछे कहीं न कहीं भाजपा जरुर है।

लेकिन भारतीय जनता पार्टी के शीर्ष नेताओं ने एकनाथ शिंदे को मुख्यमंत्री बनवाकर भाजपा पर लग रहे इस आरोप को हमेशा के लिए दफन कर दिया। अब कोई भी ये नहीं कह सकता कि भाजपा नेताओं ने शिवसेना में बगावत भड़काई थी। अगर भाजपा की तरफ से कोई मुख्यमंत्री बन जाता तो उद्धव ठाकरे और शरद पवार इस मुद्दे को पूरे प्रदेश में उठाते और इसे मराठी अस्मिता से जोड़कर भाजपा की छवि धूमिल करने की कोशिश करते। लेकिन शिंदे को मुख्यमंत्री बनाने के मास्टर स्ट्रोक के बाद उनकी बोलती बंद हो गई है। ठाकरे और पवार ने दबी जुबान से शिंदे को मुख्यमंत्री बनने की बधाई दी है। उनके पास इसके अलावा कोई चारा बचा भी नहीं था।

 

  1. शिवसेना को ठाकरे परिवार के शिकंजे से बाहर निकाल लिया

महाराष्ट्र की राजनीति में शिवसेना हमेशा से बड़े भाई और भाजपा ने छोटे भाई की भूमिका निभाई है। बाला साहेब ठाकरे के जमाने से ही यह व्यवस्था चली आ रही है। इसे भाजपा के वरिष्ठ नेताओं ने भी हमेशा स्वीकार किया है। लेकिन उद्धव ठाकरे का व्यक्तित्व बाल ठाकरे के जैसा नहीं है। हालांकि वो उनके बेटे हैं, लेकिन सीनियर ठाकरे जैसी दूरदृष्टि और राजनीतिक परिपक्वता का उद्धव में अभाव है। जिसकी वजह से शिवसेना को बड़े भाई की भूमिका में रखने में भाजपा को परेशानी होने लगी थी।

शिवसेना की राजनीति पूरी तरह हिंदुत्व और सनातनी मुद्दों पर केन्द्रित थी। लेकिन जब से उद्धव ठाकरे ने शरद पवार और कांग्रेस का दामन थाम लिया था। तब से शिवसेना हिंदुत्व के मुद्दों को ठंडे बस्ते में डालने लगी थी। खुद शिवसेना के जमीनी नेताओं को इससे परेशानी होने लगी थी। ठाकरे परिवार की सत्ता की लोलुपता इतनी ज्यादा बढ़ गई थी कि उन्होंने हिंदुत्व से जुड़े मुद्दों पर समझौता करना शुरू कर दिया था-

’ पालघर में हिंदू संन्यासियों की हत्या के मामले में लापरवाही बरती गई

’ हनुमान चालीसा पढ़ने के रोकने के लिए सांसद नवनीत राणा और उनके पति को जेल भेज दिया गया

’ हिंदू आतंकवाद की थ्योरी गढ़ने वाले परमबीर सिंह को मुंबई पुलिस का कमिश्नर बना दिया गया

’ मस्जिदों में लाउडस्पीकर का विरोध करने और मंदिरों को लाउडस्पीकर देने की घोषणा करने वाले भाजपा नेता मोहित कांबोज को उद्धव सरकार ने निशाना बनाया

’ कट्टरपंथियों के विरोध के डर से विधानसभा सत्र की शुरूआत में वंदे मातरम के गान की परंपरा बंद करवाई

’ राहुल गांधी के वीर सावरकर विरोधी बयान पर उद्धव ठाकरे चुप्पी साधे रहे

’ मुंबई के गेटवे आॅफ इंडिया पर फ्री कश्मीर के झंडे लहराए गए, लेकिन उद्धव सरकार ने कोई कार्रवाई नहीं की

’ औरंगाबाद का नाम बदलकर संभाजीनगर करने के मुद्दे को उद्धव ठाकरे आखिरी समय तक टालते रहे। बाद में सरकार गिरने से एक दिन पहले उन्होंने इसपर मजबूरी में फैसला किया।

उद्धव ठाकरे की इन हरकतों की वजह से शिवसेना विधायक परेशान थे। जिन्होंने एकनाथ शिंदे के रुप में अपना तारणहार तलाश कर लिया। अब भारतीय जनता पार्टी ने शिंदे को मुख्यमंत्री बनाकर शिवसैनिकों की मुराद पूरी कर दी है।  मुख्यमंत्री बनने के बाद एकनाथ शिंदे ने अपने ट्विटर प्रोफाइल की फोटो बदली है। नई फोटो में वह बाला साहब के चरणों में बैठे दिखाई दे रहे हैं। यह उनकी खुद को बाल ठाकरे का असली हिंदूवादी उत्तराधिकारी साबित करने की कवायद है। इसे उद्धव ठाकरे की राजनीति की इतिश्री समझ लेना चाहिए।

 

  1. भाजपा ने मराठा वोट बैंक तक पहुंच बनाई

भारतीय जनता पार्टी को हमेशा से ब्राह्मण, बनिया और मध्य वर्ग की पार्टी माना जाता है। लेकिन पिछले कुछ समय से भाजपा ने कई नए वोट बैंक अपने साथ जोड़े हैं। लेकिन महाराष्ट्र के मराठा वोट बैंक में कभी भी भाजपा का मजबूत आधार नहीं रहा है। एकनाथ शिंदे को मुख्यमंत्री बनाकर भाजपा ने मराठा वोट बैंक में अपनी जबरदस्त पकड़ बनाई है।

महाराष्ट्र में 32 फीसदी मराठा वोट हैं। जो किसी भी पार्टी की तकदीर बदल सकते हैं। अभी तक मराठा वोट का बड़ा हिस्सा शरद पवार के इर्द-गिर्द एकजुट हुआ करता था। लेकिन एकनाथ शिंदे को मुख्यमंत्री बनाना मराठा वोट के लिए चुंबक का काम करेगा। अब अगले चुनाव में भारतीय जनता पार्टी एकनाथ शिंदे को आगे करके मराठा वोट बैंक अपने पाले में करने की उम्मीद कर सकती है।

 

  1. भाजपा की नजर 2024 पर

भारतीय जनता पार्टी के लिए साल 2024 में होने वाला आम चुनाव बेहद अहम है। क्योंकि भारतीय जनता पार्टी मुख्य रुप से उत्तर भारत की पार्टी मानी जाती है। यूपी, एमपी, बिहार, हरियाणा, उत्तराखंड, राजस्थान, दिल्ली, झारखंड, छत्तीसगढ़ और गुजरात जैसे राज्यों में पार्टी का बेहद मजबूत आधार है। लेकिन भाजपा की मुश्किल ये है कि उसने इन राज्यों की अधिकतम सीटें जीत रखी हैं। यानी कि इन राज्यों में अब उसके प्रसार की कोई गुंजाइश नहीं है।

उदारहण के दौर पर दिल्ली की सभी 7, उत्तर प्रदेश की 80 में से 66, बिहार की 40 में से 39, झारखंड की सभी 12, गुजरात की सभी 26, हरियाणा की सभी 10, हिमाचल की सभी 4, उत्तराखंड की सभी 5, असम की 14 में से 9, महाराष्ट्र की 48 में से 41 सीटें, मध्य प्रदेश की 29 में से 28 सीटें भाजपा ने जीत रखी हैं। ऐसे में उसे अपना विस्तार करने के लिए नए वोट बैंक जोड़ने और नए इलाकों में खुद का प्रसार करने की जरुरत  है।

इस नजरिए से भी एकनाथ शिंदे को मुख्यमंत्री बनाना भाजपा के लिए फायदे का सौदा हो सकता है। क्योंकि इससे भाजपा की पकड़ महाराष्ट्र के ग्रामीण इलाकों पर मजबूत हो सकती है। दूसरा एकनाथ शिंदे को मुख्यमंत्री बनाने का असर देश के दूसरे उन राज्यों पर भी दिख सकता है, जो कि भाजपा की पहुंच से अभी बाहर हैं।

 

  1. भाजपा की अनुशासित पार्टी की छवि हुई मजबूत

महाराष्ट्र में आखिरी समय तक यह तय माना जा रहा था कि मुख्यमंत्री की कुर्सी देवेन्द्र फडणवीस को मिलेगी। लेकिन ऐन मौके पर फैसला बदल दिया गया। फडणवीस ने खुद प्रेस कांफ्रेन्स करके ऐलान किया कि महाराष्ट्र के नए मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे होंगे। हालांकि इसके एक दिन पहले भाजपा के सभी विधायक देवेन्द्र फडणवीस के घर पर इकट्ठा होकर उन्हें मिठाई भी खिला चुके थे। उनका मुख्यमंत्री बनना महज औपचारिकता माना जा रहा था।  लेकिन भाजपा आलाकमान के आदेश के बाद पूरा परिदृश्य बदल गया।

पिछले कई हफ्तों से लगातार चर्चा में रहने वाले देवेन्द्र फडणवीस नेपथ्य में चले गए। 106 विधायकों वाली महाराष्ट्र विधानसभा की सबसे बड़ी पार्टी ने महज 40 विधायकों  के नेता एकनाथ शिंदे को मुख्यमंत्री बनाना स्वीकार कर लिया। भाजपा आलाकमान के इस फैसले के खिलाफ एक आवाज भी नहीं उठी।

खास बात ये है कि देवेन्द्र फडणवीस ने पहले सरकार से बाहर रहने की घोषणा की। लेकिन भाजपा के वरिष्ठ नेताओं के समझाने के बाद वह डिप्टी सीएम बनने के लिए तैयार हो गए। फडणवीस पूरे 5 साल तक मुख्यमंत्री की कुर्सी संभाल चुके हैं। पूरे राज्य में उनकी स्वीकार्यता है। भाजपा के सभी विधायक उनके नेतृत्व में एकजुट हैं। लेकिन फडणवीस या उनके किसी भी विधायक ने पार्टी आलाकमान के आदेश के खिलाफ कोई बयान नहीं दिया और सिर झुका कर उनके फैसले को स्वीकार कर लिया। यह भाजपा के अनुशासित पार्टी होने का सबसे बड़ा सबूत है।

फडणवीस और भाजपा विधायकों की यह अनुशासनप्रियता बताती है कि भारतीय जनता पार्टी की पूरी मशीनरी एकजुट है। वह लंबे फायदे के सामने छोटे नुकसान को सहने की क्षमता रखती है। यह एक ऐसी विशेषता है जो पार्टी को बहुत आगे ले जाने की क्षमता रखती है। भाजपा की यही सबसे बड़ी मजबूती है।

 

  1. शिंदे को उम्मीद से ज्यादा देकर हमेशा के लिए अपना कर्जदार बना लिया

भारतीय जनता पार्टी ने एकनाथ शिंदे को मुख्यमंत्री बनाकर गरीबों की समर्थक पार्टी होने के अपने दावे पर एक बार फिर मुहर लगाई है। एकनाथ शिंदे मुंबई में आॅटो चलाते थे। उन्होंने अपना करियर आनंद दीघे नाम के बड़े शिवसेना नेता के ड्राईवर के तौर पर शुरू किया था। उन्होंने कभी सपने में भी नहीं सोचा होगा कि एक दिन वह महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बनेंगे। लेकिन भाजपा ने सबसे बड़ी पार्टी होने के बावजूद उन्हें मुख्यमंत्री की कुर्सी सौंपी है। उम्मीद है कि एकनाथ शिंदे इस एहसान को पूरी जिंदगी नहीं भूलेंगे।

एकनाथ शिंदे एहसान भूलने वाले शख्स हैं भी नहीं। भले ही उन्होंने उद्धव ठाकरे से बगावत की है। लेकिन आज भी वह दिवंगत बाला साहेब ठाकरे और अपने स्वर्गीय राजनीतिक गुरु आनंद दीघे को हमेशा याद करते हैं। भाजपा ने ऐसे शख्स पर दांव लगाकर गलती नहीं की है। शिंदे हमेशा भाजपा के लिए उपयोगी साबित होंगे।

अंशुमान आनंद

 

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