
भारतीय जनता पार्टी ने उत्तर भारत में पूरी तरह पांव फैला लिया है। अब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह की नजर दक्षिण भारत पर है। हैदराबाद में भाजपा राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक आयोजित कराने का उद्देश्य ही दक्षिण में भगवा ध्वज लहराना है। कार्यकारिणी के दौरान दिए गए भाजपा के बड़े नेताओं के बयान पर गौर किया जाए, तो पता चलता है कि 2024 के आम चुनाव के लिए उन्होंने दक्षिण विजय के लिए योजना तैयार कर ली है।
कर्नाटक के बाद तेलंगाना पर नजर
दक्षिण भारत के प्रवेश द्वार कर्नाटक पर भाजपा काफी समय से काबिज है। कर्नाटक विधानसभा में भाजपा की सरकार है और 2019 के चुनाव में राज्य की 28 में से 25 लोकसभा सीटों पर भाजपा का कब्जा है। अब उसकी नजर तेलंगाना पर है।
2019 में तेलंगाना की 17 लोकसभा सीटों में से भाजपा को 4 सीटें मिली थी। आदिलाबाद, करीमनगर, निजामाबाद, सिकंदराबाद की इन 4 सीटों का महत्व काफी ज्यादा है। इन चार सीटों पर जीत का मतलब है कि तेलंगाना की जनता ने पीएम मोदी की विकास की राजनीति को समझ लिया है। इसी संकेत को समझते हुए भाजपा ने दक्षिण भारत में आगे बढ़ने के लिए कर्नाटक से आगे तेलंगाना को चुना है।
प्रधानमंत्री मोदी ने 3 जून 2022 को भाजपा राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक संपन्न होने के बाद हैदराबाद के परेड ग्राउंड में जो भाषण दिया उसमें उन्होंने खास तौर पर तेलंगाना का उल्लेख करते हुए कहा कि ‘2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने जितना जनसमर्थन तेलंगाना में हासिल किया था। उसमें लगातार बढ़ोत्तरी हो रही है। भाजपा ने जितना समर्थन तेलंगाना मे हासिल किया है वह बढ़ रहा है। यह भाजपा के प्रति आपके प्यार को दिखाता है। ग्रेटर हैदराबाद के चुनाव में भाजपा को मिले समर्थन की झलक हमने देखी। देश के राज्यों में जहां जहां भाजपा की डबल इंजन की सरकार है वहां विकास की गति तेज हुई है। अब तेलंगाना में भी इसकी जरुरत है। मुझे खुशी है कि तेलंगाना की जनता इसके लिए रास्ता बना रही है’।
दक्षिण भारत में प्रसार के लिए
भाजपा बेकरार
भारतीय जनता पार्टी उत्तर भारतीय राज्यों में अपने चरम पर पहुंच चुकी है। 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने दिल्ली की सभी 7, उत्तर प्रदेश की 80 में से 66, बिहार की 40 में से 39, झारखंड की सभी 12, गुजरात की सभी 26, हरियाणा की सभी 10, हिमाचल की सभी 4, उत्तराखंड की सभी 5, असम की 14 में से 9, महाराष्ट्र की 48 में से 41, मध्य प्रदेश की 29 में से 28, छत्तीसगढ़ की 11 में से 9, जम्मू कश्मीर की 6 में से 3, राजस्थान की सभी 25 सीटें जीत रखी हैं। उत्तर भारत में भाजपा के पास पंजाब के अलावा कहीं और ज्यादा प्रसार की गुंजाइश नहीं है। जहां की 13 लोकसभा सीटों में से उसके पास मात्र 2 सीटें हैं।
लेकिन दक्षिण भारत में भाजपा के पास आगे बढ़ने की बहुत गुंजाइश है, क्योंकि-
’ दक्षिण भारत की 130 सीटों में से भाजपा के पास मात्र 32 सीटें ही हैं।
’ कर्नाटक की 28 सीटों में से भाजपा के पास 25 सीटें हैं।
’ तमिलनाडु की 39 सीटों में से भाजपा के पास मात्र 1 सीट है।
’ केरल की 20 लोकसभा सीटों में से भाजपा एक भी नहीं जीत पाई।
’ आंध्र प्रदेश में लोकसभा की 25 सीटें हैं। जिसमें से भाजपा केवल दो जीत पाई।
’ तेलंगाना में लोकसभा की 17 सीटें हैं. जिसमें से भाजपा 4 सीटों पर काबिज है।
’ दक्षिण में भाजपा के पास जीतने के लिए 98 सीटें हैं। जिसपर मेहनत करके वह आगे बढ़ सकती है।
भारतीय जनता पार्टी को अगर 2024 के लोकसभा चुनाव में केन्द्र पर अपना कब्जा बनाए रखना है तो उसे दक्षिण भारत पर ध्यान देना ही होगी। इसलिए भाजपा दक्षिण के राज्यों के लिए अपनी विशेष ताकत झोंक रही है।
देश पर 40 साल तक राज करना चाहती है भाजपा
भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अधिवेशन के दौरान गृहमंत्री अमित शाह ने जो राजनीतिक प्रस्ताव पेश किया। उसमें साफ तौर पर कहा गया है कि भारतीय जनता पार्टी अगले 40 साल तक देश पर शासन करने की इच्छा रखती है।
शाह ने अपने राजनीतिक प्रस्ताव में कहा कि ‘असम में भाजपा की विजय पूर्वोत्तर में भाजपा की स्थायी उपस्थिति का प्रतीक है। मणिपुर में भी भाजपा की दोबारा सरकार बनी है। आज पूर्वोत्तर भारत भाजपा के गढ़ के तौर पर स्थापित हो चुका है। पश्चिमी बंगाल और तेलंगाना में भी परिवारवाद की राजनीति से मुक्ति मिलेगी। बंगाल, केरल, तेलंगाना, ओडिशा, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु में भी भाजपा की सरकार बनेगी। सुरक्षित और समृद्ध भारत के लिए अगले 30 से 40 साल तक देश और राज्यों में भाजपा की सरकार होनी जरुरी है।’
गृहमंत्री अमित शाह को राजनीति का चाणक्य कहा जाता है। उन्होंने अगले 40 साल तक भाजपा को चुनाव जिताने का लक्ष्य तय कर रखा है। इसमें दक्षिण भारत की बहुत बड़ी भूमिका है। यही वजह है कि भाजपा ने कर्नाटक के बाद तेलंगाना पर फोकस किया है।
परिवारवाद पर हमला करके तेलंगाना, आंध्र, तमिलनाडु तीनों निशाने पर
राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक के दौरान भाजपा के सभी प्रमुख नेताओं का परिवारवाद पर खास तौर पर निशाना रहा। प्रधानमंत्री मोदी के भाषण के ठीक पहले भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने अपने संबोधन में कहा कि ‘यहां मौजूद लोगों के जोश को देखकर लगता है कि यहां से के. चंद्रशेखर राव की सरकार जाने वाली है। क्योंकि उनका परिवारवाद घटिया स्तर तक पहुंच चुका है। उनके बेटी, बेटा और दोनों दामाद मिलकर प्रदेश को लूट रहे हैं’। नड्डा ने अपने भाषण में तेलंगाना की कालेश्वरम सिंचाई परियोजना विशेष तौर पर उल्लेख करते हुए कहा कि ‘केसीआर और उनके परिवार के भ्रष्टाचार की वजह से कालेश्वरम परियोजना का बजट 32 हजार करोड़ से एक लाख 32 हजार करोड़ तक पहुंच गया। यह परियोजना केसीआर के लिए एटीएम बन गई है।’
प्रधानमंत्री मोदी ने भी अपने भाषण में केसीआर के परिवारवाद को खास तौर पर निशाने पर रखा। अमित शाह के राजनीति प्रस्ताव में भी परिवारवाद का जिक्र था। भाजपा नेताओं का परिवारवाद पर हमला दक्षिण विजय की रणनीति का हिस्सा है। क्योंकि दक्षिण भारत के तीन अहम राज्य पारिवारिक पृष्ठभूमि वाले नेताओं के कब्जे में है-
’ तेलंगाना में के. चंद्रशेखर राव और उनका परिवार सत्ता में है
’ तमिलनाडु में दिवंगत नेता करुणानिधि के बेटे स्टालिन मुख्यमंत्री हैं
’ आंध्र प्रदेश में वाई. राजशेखर रेड्डी के बेटे जगनमोहन रेड्डी मुख्यमंत्री हैं। उन्होंने पार्टी भी अपने पिता के नाम पर वाईएसआर कांग्रेस बना रखी है।
दक्षिण भारत के इन तीनों बड़े राज्यों में लोकसभा की 71 सीटें मौजूद हैं। भाजपा नेताओं ने परिवारवाद पर हमला करके इन तीनों राज्यों के नेताओं के खिलाफ बिगुल फूंक दिया है। हालांकि उन्होंने जिक्र सिर्फ तेलंगाना का किया है। लेकिन चेतावनी तीनों राज्यों पर काबिज परिवारवादियों के लिए एक जैसी है।
भाजपा पूरी तैयारी के साथ दक्षिण भारत का किला जीतने के लिए मैदान में उतर रही है। वैसे भी दक्षिण में जीत हासिल किए बिना उसका अखिल भारतीय पार्टी बनने का सपना पूरा नहीं हो सकता है। भाजपा की कोशिशों की सफलता असफलता का फैसला 2024 के लोकसभा चुनाव के परिणाम करेंगे। जिसके लिए जंग का आगाज तेलंगाना से हो चुका है।
अंशुमान आनंद