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वंशवाद और चीन के मिश्रित जहर से श्रीलंका बर्बाद, भारत के लिए भी बड़ा सबक

वंशवाद और चीन के मिश्रित जहर से श्रीलंका बर्बाद, भारत के लिए भी बड़ा सबक

नई दिल्ली: पड़ोसी देश श्रीलंका भारी मुसीबत में है। लोग दाने-दाने के लिए तरस रहे हैं, स्कूल-कॉलेज-अस्पताल सब बंद पड़े हैं, पेट्रोल पंपों पर मारा मारी मची है। नाराज जनता ने राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के घरों पर कब्जा कर लिया है। सीमाओं की रक्षक श्रीलंकाई सेना अपनी ही जनता से जूझ रही है। पूरे देश में अराजकता फैली हुई है।

श्रीलंका की ये हालत इसलिए हुई है, क्योंकि वहां एक ही खानदान यानी राजपक्षे परिवार ने पूरी सत्ता पर कब्जा जमा लिया था। इस परिवार ने अपने निजी हितों के लिए पूरे देश को चीन के हाथों बंधक बना दिया। श्रीलंका की स्थिति भारत के लिए भी एक सबक है। क्योंकि यहां भी गांधी, लालू, मुलायम, करुणानिधि, केसीआर, रेड्डी, हुड्डा जैसे कई राजनीतिक परिवार मौजूद हैं। जो सत्ता को अपने हाथ में बनाए रखने के लिए हर हथकंडा आजमाते रहते हैं।

इन सबमें सबसे आगे है सोनिया गांधी और उनका खानदान, जिसने 135 साल पुरानी कांग्रेस पार्टी पर कब्जा कर रखा है। इस एक परिवार के पास कांग्रेस अध्यक्ष, पार्टी महासचिव, सांसद जैसे कई पद मौजूद हैं और ये लोग पूरे देश पर यही फॉर्मूला लागू करने की ख्वाहिश रखते हैं। बिल्कुल श्रीलंका के राजपक्षे परिवार की तरह-

राजपक्षे परिवार का श्रीलंका पर एकछत्र राज

श्रीलंका के पतन की कहानी राजपक्षे परिवार के उत्थान के साथ ही शुरु होती है। इस खानदान के मुखिया महिंदा राजपक्षे हैं, जो श्रीलंका के प्रधानमंत्री बने। उसके बाद उन्होंने अपने भाई गोटबाया राजपक्षे को राष्ट्रपति बनवा दिया। जिसके बाद राजपक्षे परिवार ने अपने हितों के लिए श्रीलंका की नीतियों को तोड़ना-मरोड़ना शुरु कर दिया। हालत ये हो गई कि राजपक्षे परिवार के पास ही श्रीलंका के सभी अहम पद सिमटकर रह गए। ऐसा लगा कि पूरे श्रीलंका में राजपक्षे परिवार के अलावा कोई और योग्य है ही नहीं-

– प्रधानमंत्री का पद महिंदा राजपक्षे के पास
-राष्ट्रपति और रक्षा मंत्री – गोटबाया राजपक्षे (भाई)
-वित्त मंत्री – बासिल राजपक्षे (भाई)
-सिंचाई मंत्री – चमाल राजपक्षे (भाई)
-खेल मंत्री – नमल राजपक्षे (बेटे)

यानी श्रीलंका की राजनीति में हर अहम पद पर राजपक्षे परिवार से जुड़ा व्यक्ति काबिज हो गया। यही नहीं प्रशासन, सेना, पुलिस, ब्यूरोक्रेसी में भी राजपक्षे परिवार ने अपने विश्वासपात्रों को बिठा दिया और पूरे श्रीलंका पर एक तरह से कब्जा कर लिया। पूरे देश पर राजपक्षे परिवार की अधिनायकवादी सत्ता काबिज हो गई।

दूर बैठा चीन राजपक्षे परिवार की इस कामयाबी को गौर से देख रहा था। उसने समझ लिया कि अब श्रीलंका को अपने झांसे में लिया जा सकता है।

चीन को पसंद है अधिनायकवाद

चीन को लोकतांत्रिक सत्ता पसंद नहीं है। वहां एक पार्टी का तानाशाही शासन है। इसलिए दुनिया में जहां भी अधिनायकवाद होता है। वहां के हालात चीन अपनी घुसपैंठ बनाने की कोशिश जरुर करता है। इसकी मूल वजह ये है कि लोकतांत्रिक देशों में सत्ता के कई केन्द्र होते हैं। जिन्हें एक साथ खरीद पाना संभव नहीं होता। लेकिन अधिनायकवादी सत्ता के शीर्ष पर बैठे किसी तानाशाह के जमीर का सौदा करना आसान होता है और चीन इसमें माहिर है। श्रीलंका में भी उसने यही फॉर्मूला आजमाया।

श्रीलंका की सत्ता पर दो दशकों से काबिज राजपक्षे परिवार को चीन ने कैसे अपने झांसे में लिया इसका खुलासा अभी तक तो नहीं हो पाया है। लेकिन वहां के हालात देखकर लगता है कि राजपक्षे परिवार ने श्रीलंका की राष्ट्रीय नीतियों को चीन के पक्ष में बुरी तरह झुका दिया। जिसका नतीजा ये रहा कि –

– श्रीलंका ने चीन से भारी ब्याज पर कर्ज लिया, हालत ये है कि फिलहाल श्रीलंका पर चीन का 5 अरब डॉलर से ज्यादा का कर्ज है। जिसका ब्याज चुकाना ही मुश्किल है

-चीनी कंपनियों ने श्रीलंका में बड़े बड़े प्रोजेक्ट हासिल किए। जिसमें कोलंबो पोर्ट सिटी, हंबनटोटा बंदरगाह जैसी परियोजनाएं शामिल हैं।

– चीन ने श्रीलंका में लगभग मुफ्त में हजारो किलोमीटर जमीन हासिल कर ली

– चीनी कंपनियों ने श्रीलंका की प्रशासनिक व्यवस्था को भ्रष्ट और रिश्वतखोर बना दिया

– चीन पर निर्भरता ने श्रीलंका की अपने सबसे नजदीकी दोस्त भारत से दूरी बढ़ा दी

-श्रीलंका की अर्थव्यवस्था जो कि पहले आत्मनिर्भर थी वह पूरी तरह चीन पर निर्भर हो गई

नतीजा ये रहा कि जो श्रीलंका मानव विकास सूचकांक में एशिया में पहले नंबर पर था। वहां कुपोषण और भूख से मौतें हो रही हैं। लोग रसोई गैस और राशन के लिए तरस रहे हैं। यह राजपक्षे परिवार के वंशवाद और चीन की साजिश का मिलाजुला नतीजा है।

श्रीलंका के हालात भारत के लिए सबक

ऐसा नही है कि चीन ने श्रीलंका की तरह भारत पर डोरे डालने की कोशिश नहीं की है। लेकिन हमारी मजबूत लोकतांत्रिक परंपरा की वजह से चीन की दाल भारत में नहीं गल पाती है। लेकिन भारत के मशहूर गांधी परिवार से चीन के रिश्ते छिपाए नहीं छिपते।

गांधी परिवार से चीन से बड़े मधुर संबंध हैं। इस बात का खुलासा साल 2017 में हो चुका है। जब डोकलाम में भारत और चीन की सेनाएं एक दूसरे के सामने हथियार ताने हुए खड़ी थीं, तब तत्कालीन कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने 8 जुलाई को आधी रात के अंधेरे में तत्कालीन चीनी राजदूत लुओ झाओहुई(Luo Zhaohui) से मुलाकात की थी।

कांग्रेस ने इस मुलाकात के बारे में जानकारी छिपाने की कोशिश भी की। लेकिन चीनी दूतावास की हड़बड़ी की वजह से इस बात का खुलासा हो गया। क्योंकि चीनी दूतावास ने अपनी वेबसाइट पर राहुल गांधी और लुओ झाओहुई की मुलाकात की जानकारी शेयर कर दी। हालांकि बाद में राहुल गांधी को नुकसान होने के डर से इसे हटा दिया गया था लेकिन तब तक इसका स्क्रीन शॉट वायरल हो चुका था।

बाद में जब डोकलाम में भारत चीन के बीच युद्ध जैसी परिस्थिति में राहुल गांधी के चीनी राजदूत लुओ झाओहुई से मुलाकात की आलोचना होने लगी। तब राहुल गांधी ने ढाई दिनों के बाद ट्विट करके इसका खुलासा किया। जब सब कुछ सही था, तो राहुल गांधी ढाई दिनों तक इस मुलाकात को छिपाने की कोशिश क्यों करते रहे?

गांधी परिवार से चीन के मधुर संबंधों का सबूत

कांग्रेस आलाकमान के साथ चीन के बेहद मधुर संबंध हैं। इस बात का सबूत कई बार मिला है। जैसे-
– राहुल गांधी जब मानसरोवर यात्रा पर गए थे, तो चीनी दूतावास ने भारतीय विदेश मंत्रालय से आग्रह किया था, कि उन्हें प्रोटोकॉल देते हुए औपचारिक रुप से विदा करने की अनुमति दी जाए।

– भारतीय उद्योगपतियों के साथ हुई एक बैठक में राहुल गांधी ने उन्हें चीन से भी निवेश मंगाए जाने के बारे में सलाह दी थी।

– राहुल गांधी जब जर्मनी के दौरे पर गए थे, तो उनसे भारतीय उपमहाद्वीप में सत्ता संतुलन के बारे में प्रश्न किया गया, तो उन्होंने भारत को अमेरिका के साथ चीन से भी संबंधों में संतुलन बनाकर रखने की वकालत की थी।

– साल 2008 में बीजिंग ओलंपिक के समय तत्कालीन कांग्रेस और यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी को ही नहीं बल्कि नाती-पोतों सहित उनके पूरे परिवार को चीन ने विशेष रुप से आमंत्रित किया था।

इन सभी सबूतों ये यह स्पष्ट हो जाता है कि श्रीलंका में राजपक्षे परिवार की तरह भारत के गांधी परिवार से भी चीन के बेहद करीबी रिश्ते हैं। ऐसे में अगर गांधी परिवार किसी तरह सत्ता में आने में सफल हो जाता है तो भारत की हालत क्या श्रीलंका की तरह होने का खतरा उत्पन्न नहीं हो जाएगा?

 

अंशुमान आनंद

 

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