
नई दिल्ली: राष्ट्रपति चुनाव के लिए सोमवार 18 जुलाई को वोट डाले गए। इसमें देश के सभी जन प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया। लेकिन इस चुनाव ने दिखा दिया कि भाजपा के सामने विपक्ष एकजुट बिल्कुल नहीं है। शरद पवार, अखिलेश यादव और सोनिया गांधी के समर्थक जन प्रतिनिधियों ने जमकर क्रॉस वोटिंग की और भाजपा समर्थित द्रौपदी मुर्मू को वोट दे दिया।
इन विपक्षी जन प्रतिनिधियों ने की क्रॉस वोटिंग
– शरद पवार की पार्टी एनसीपी से जीते झारखंड के विधायक कमलेश सिंह ने द्रौपदी मुर्मू के पक्ष में मतदान किया।
-गुजरात के एनसीपी विधायक कांधल एस. जडेजा ने भी एनडीए के पक्ष में वोट डाला। इन दोनों ने अंतरात्मा के आधार पर वोट डालने का दावा किया।
– गुजरात में भारतीय ट्राइबल पार्टी के नेता छोटूभाई वसावा ने भी द्रौपदी मुर्मू के लिए मतदान किया। उनका कहना था कि मैंने ऐसी नेता को वोट दिया है, जिसने गरीबों को आगे बढ़ाने के लिए काम किया है।
– अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी के भी दो विधायकों ने विद्रोह किया। उनके चाचा शिवपाल यादव ने खुलेआम द्रौपदी मुर्मू के लिए वोट डाला। इसके अलावा बरेली के भोजीपुरा के विधायक शहजील इस्लाम ने भी भाजपा उम्मीदवार के समर्थन में वोट किया।
– ओडिशा से कांग्रेस विधायक मोहम्मद मुकीम ने भी द्रौपदी मुर्मू को वोट दिया।
– हरियाणा के कांग्रेस विधायक कुलदीप विश्नोई ने भी भाजपा उम्मीदवार के पक्ष में मतदान किया। उन्होंने भी अंतरात्मा के आधार पर वोट करने का दावा किया। कुलदीप विश्नोई राज्यसभा चुनाव में भी अपनी पार्टी के खिलाफ मतदान कर चुके हैं।
क्या होती है क्रॉस वोटिंग
राष्ट्रपति चुनाव में कोई भी पार्टी मतदान के लिए व्हिप नहीं जारी कर सकती। सभी विधायकों और सांसदों को अपनी मर्जी के मुताबिक मतदान का अधिकार होता है। लेकिन पार्टियां मतदान के लिए निर्देश जरुर जारी करती हैं।
लेकिन जब जब कोई विधायक या सांसद अपनी पार्टी के निर्देश का उल्लंघन करते हुए विपक्षी उम्मीदवार को मत देता है तो उसे क्रॉस वोटिंग कहते हैं।
क्रॉस वोटिंग नहीं है अवैध मतदान
अवैध मतदान और क्रॉस वोटिंग में फर्क है। अवैध मतदान का मतलब गलत तरीके से मतदान किया जाना है। जिसकी गिनती नहीं होती है।
लेकिन क्रॉस वोटिंग में वोटों की गिनती होती है। यानी मतदान अवैध नहीं होता है। उसकी पूरी वैल्यू होती है।
क्रॉस वोटिंग का पता लगाना आसान
क्रॉस वोटिंग में कौन से जनप्रतिनिधि ने किसे वोट दिया। इसका पता पार्टियों को चल जाता है क्योंकि राष्ट्रपति-उपराष्ट्रपति चुनाव में पार्टी का एक प्रतिनिधि मौजूद रहता है। जो कि अपने दल के नेताओं के मतदान पर निगरानी रखता है।
हालांकि इस व्यवस्था के विरुद्ध कुलदीप नैयर ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। लेकिन यह याचिका खारिज हो गई थी। नैयर ने अपनी याचिका में राज्यसभा, राष्ट्रपति और उप राष्ट्रपति चुनाव में भी गुप्त मतदान कराने की मांग की थी। लेकिन यह मांग नहीं मानी गई।