
स्वाधीन भारत की शिक्षा का सबसे बड़ा संकट यह रहा है कि उसकी नाभि-नाल उस देसी शिक्षा व्यवस्था से नहीं जुड़ा रहा, जिसकी चर्चा धर्मपाल ने अपनी पुस्तक ‘ ब्यूटीफुल ट्री’ में की है। यह ठीक है कि आजादी के बाद भारत के सामने नवनिर्माण की चुनौती थी। लेकिन यह भी सच है कि भारत की चुनौतियों से निपटने के लिए ऐसी पीढ़ी का भी निर्माण करना था, जो अपनी देसी शिक्षा के साथ ही आधुनिक ज्ञान से लैस हो। लेकिन स्वाधीन भारत के नव नियंताओं ने पश्चिमोन्मुखी शिक्षा पर ज्यादा भरोसा किया। नियंताओं ने गांधी की उस शिक्षा व्यवस्था को भी भारतीय संविधान में आत्मसात नहीं किया,जिसकी कल्पना उन्होंने अपनी पुस्तक हिन्द स्वराज में की थी।
इन सन्दर्भो में देखें तो नई शिक्षा नीति बहुत क्रांतिकारी कही जा सकती है। आधुनिक शिक्षा की एक बड़ी कमजोरी बच्चों पर बढ़ता होमवर्क का बोझ भी। लेकिन नई शिक्षा नीति में इस होमवर्क पर भी ध्यान दिया गया है। नई नीति में दूसरी कक्षा तक बच्चों को कोई भी होमवर्क नहीं दिया जाएगा।
इसके तहत तीसरी, चौथी तथा पांचवी के बच्चों को प्रत्येक हफ्ते में केवल दो घंटे का होमवर्क देने का प्रावधान किया गया है। इसी प्रकार छठी से लेकर आठवीं के बच्चों को रोजाना सिर्फ एक घंटे का होमवर्क देने की तैयारी है। इसी तरह 9वी से 12वीं तक के बच्चों को प्रतिदिन दो घंटे का होमवर्क दिया जाएगा।
शिक्षा का मकसद ऐसा नागरिक बनाना होना चाहिए, जिसके पास गहन ज्ञान की ठोस बुनियाद हो, जिसके आधार पर विकसित उसका व्यक्तित्व तार्किक, चिंतनशील और काल, माहौल एवं परिस्थिति के अनुसार फैसला ले सके। नई शिक्षा नीति मूल की ओर बढ़ने की भी कोशिश करती नजर आ रही है। पढ़ाई में संस्कृत और भारत की अन्य प्राचीन भाषाएं पढ़ने का विकल्प रखना इसका ही उदाहरण माना जा सकता है। नई नीति के तहत छात्र अगर चाहे तो यम प्राचीन भारतीय भाषाएं पढ़ सकेंगे। इसके जरिए वे जहां पारम्परिक साहित्यिक खजाने से परिचित होंगे, वहीं प्राचीन ज्ञान से भी सम्पर्क कर सकेंगे।
नई शिक्षा नीति में इस धारणा को भी तोड़ने की कोशिश है कि शिक्षा सिर्फ नौकरी के लिए ही बनी है। स्नातक कोर्स को तीन या चार साल का करना और उसमें कई सारे एग्जिट विकल्प का होना भी इसी का प्रमाण है। ये एक्जिट विकल्प के उचित सर्टिफिकेशन का प्रावधान होना नौकरी से भी शिक्षा को जोड़ता दिखता है। एग्जिट प्रावधान के तहत यदि छात्र ने 1 साल स्नातक कोर्स में पढ़ाई की है तो उसे सर्टिफिकेट दिया जाएगा, 2 साल के बाद एडवांस डिप्लोमा दिया जाएगा, 3 साल के बाद डिग्री दी जाएगी और 4 साल के बाद रिसर्च के साथ बैचलर की डिग्री दी जाएगी। नई शिक्षा नीति के क्रियान्वयन की रफ्तार बढ़ाने के लिए केंद्र द्वारा राज्य सरकारों तथा कुलपतियों से लगातार बातचीत की जा रही है। अलग-अलग स्तरों पर नये सिरे से नियामकीय ढांचा बनाने की दिशा में भी काम जारी है। नयी शिक्षा नीति के तहत शैक्षणिक संस्थानों में इसी अकादमिक सत्र से कुछ गतिविधियां शुरू हो गई हैं। कुछ ऐसी व्यवस्थाएं की गईं कि जुलाई 2022 में शुरू होने वाले अगले अकादमिक सत्र में यह नीति देश भर में अच्छी तरह लागू की जा सके। मध्य प्रदेश सरकार ने इस नीति को लागू करने की घोषणा करने में देर नहीं लगाई। इसके बाद कर्नाटक इसे लागू करने वाला देश का दूसरा राज्य रहा। उत्तराखंड समेत कई विश्वविद्यालयों में भी इसे लागू किया जा चुका है। नई शिक्षा नीति का ही परिणाम है कि केंद्रीय विश्वविद्यालयों में प्रवेश के पुरानी मेरिट पद्धति की जगह टेस्ट के जरिए दाखिला दिया जाएगा। यानी रट्टा मार की जगह गहनता के आधार पर छात्र चुने जा रहे हैं।
1986 के बाद आई नई शिक्षा नीति को कह सकते हैं कि वह नए और पुराने का संगम तो है ही, वह पुरातन की बुनियाद पर आधुनिक ज्ञान के साथ नव चुनौतियों से जूझने का तार्किक एवं चिंतनशील आधार भी देती है। ’
उमेश चतुर्वेदी