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राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 : असंख्य संभावनाओं को साकार करने का साधन

राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 : असंख्य संभावनाओं को साकार करने का साधन

आप सभी जानते हैं कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति का मूल आधार, शिक्षा को संकुचित सोच के दायरों से बाहर निकालना और उसे 21वीं सदी के आधुनिक विचारों से जोड़ना है। हमारे देश में मेधा की कभी कोई कमी नहीं रही है। लेकिन, दुर्भाग्य से हमारे यहाँ ऐसी व्यवस्था बना कर दी गई थी जिसमें पढ़ाई का मतलब केवल और केवल नौकरी ही माना जाने लगा था। शिक्षा में ये विकार गुलामी के कालखंड में अंग्रेजों ने अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए, अपने लिए एक सेवक वर्ग तैयार करने के लिए किया था। आजादी के बाद, इसमें थोड़ा बहुत बदलाव हुआ भी लेकिन बहुत सारा बदलाव रह गया। अब अंग्रेजों की बनाई व्यवस्था कभी भी भारत के मूल स्वभाव का हिस्सा नहीं थी और न हो सकती है। अगर हम हमारे देश के पुराने कालखंड की तरफ नजर करें। हमारे यहाँ शिक्षा में अलग-अलग कलाओं की धारणा थी। और बनारस तो मेरी काशी तो इसका जीवंत उदाहरण है। बनारस ज्ञान का केंद्र केवल इसलिए नहीं था, क्योंकि यहाँ अच्छे गुरुकुल और शिक्षण संस्थान थे। बनारस ज्ञान का केंद्र इसलिए था, क्योंकि यहाँ ज्ञान और शिक्षा, बहुआयामी थी। शिक्षा में यही विविधता हमारी शिक्षा व्यवस्था का भी प्रेरणास्रोत होनी चाहिए। हम केवल डिग्री धारक युवा तैयार न करें, बल्कि देश को आगे बढ़ने के लिए जितने भी मानव संसाधनों की जरूरत हो, हमारी शिक्षा व्यवस्था वो देश को उपलब्ध करायें, देश को दे। इस संकल्प का नेतृत्व हमारे शिक्षकों और शिक्षण संस्थानों को करना है। हमारे शिक्षक जितनी तेजी से इस भावना को आत्मसात करेंगे, छात्र-छात्राओं को देश के युवाओं को उतना ही ज्यादा, देश के आने वाले भविष्य को भी उतना ही ज्यादा लाभ होगा।

नए भारत के निर्माण के लिए, नई व्यवस्थाओं का निर्माण, आधुनिक व्यवस्थाओं का समावेश उतना ही जरूरी है। जो पहले कभी नहीं हुआ, जिन लक्ष्यों को पाने की देश कल्पना भी नहीं करता था, वो आज के भारत में हकीकत में हमारे सामने निर्माण हो रही है। अब आप देखिए, कोरोना की इतनी बड़ी महामारी से हम न केवल इतनी तेजी से उबरे, बल्कि आज भारत दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ रही बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में एक हैं। आज हम दुनिया के तीसरे सबसे बड़े स्टार्टअप इकोसिस्टम हैं। स्पेस टेक्नोलॉजी जैसे क्षेत्रों में, जहाँ पहले केवल सरकार ही सब करती थी, वहां अब प्राइवेट प्लेयर्स के जरिए युवाओं के लिए एक नई दुनिया तैयार हो रही है, पूरा अंतरिक्ष उनके बहुत पास में आ रहा है दोस्तों। देश की बेटियों के लिए, महिलाओं के लिए भी जो क्षेत्र पहले बंद हुआ करते थे, आज वो सेक्टर बेटियों की प्रतिभा के उदाहरण प्रस्तुत कर रहे हैं।

जब देश का मिजाज ऐसा हो, जब देश की रफ़्तार ऐसी हो तो हमें अपने युवाओं को भी खुली उड़ान के लिए नई ऊर्जा से भरना होगा। अभी तक स्कूल, कॉलेज और किताबें ये तय करते आये थे कि बच्चों को किस दिशा में जाना है। लेकिन राष्ट्रीय शिक्षा नीति के बाद अब युवाओं पर दायित्व और बढ़ गया है। और इसके साथ ही हमारी भी ये जिम्मेदारी बढ़ गई है कि हम युवाओं के सपनों और उड़ान को निरंतर प्रोत्साहित करें, उसके मन को समझें, उसकी आकांक्षाओं को समझें, तभी तो खाद पानी डाल पाएंगे। उसे समझे बिना कुछ भी थोपने वाला युग चला गया है दोस्तो। हमें इस बात का हमेशा ध्यान रखना होगा, हमें वैसा ही शिक्षण, वैसी ही स्ंस्थानों की व्यवस्थाएं, वैसा ही ह्यूमन रिसोर्स डेवलेपमेंट का हमारा मिजाज, अपने आपको सज्ज करना ही होगा। नई नीति में पूरा फोकस बच्चों की प्रतिभा और चॉइस के हिसाब से उन्हें स्किल्ड बनाने पर है। हमारे युवा स्किल्ड हों, कॉन्फिडेंट हों, प्रैक्टिकल हों, कैल्कुलेटिव हों, शिक्षा नीति इसके लिए जमीन तैयार कर रही है।

इसी महीने के आखिर में, 29 जुलाई को राष्ट्रीय शिक्षा नीति को दो साल पूरे होने वाले हैं। आज जब कोई काम अपने हाथों में लेता है, तो समस्यायों का समाधान भी तेजी से निकलता है। समस्या समझकर के यार मैं कहां पडूं, इसमें तो समाधान कभी नहीं निकलता है। इन दो सालों में देश राष्ट्रीय शिक्षा नीति को लागू करने की दिशा में कई ठोस कदम उठा चुका है। इस दौरान, एक्सेस, क्वालिटी और फ्यूचर रेडीनेस जैसे जरूरी विषयों पर हुई वर्कशॉप्स ने भी बहुत मदद की है। देश-विदेश के एकेडमीशियंस से से जो चचार्एँ हुईं, मेरा भी देश के शिक्षामंत्रियों के साथ, शिक्षाविदों के साथ जो संवाद हुआ, उसने भी इसकी गति को आगे बढ़ाया है और अभी कुद दिन पहले हमारे धर्मेंद्र जी ने देशभर के शिक्षा मंत्रियों को भी बुलाया है। जैसे आपके साथ चर्चा कर रहे हैं, उनके साथ भी की थी। लगातार कोशिश हो रही है कि इन चीजों को हम शत-प्रतिशत साकार कैसे करें पाएं? राज्य सरकारों ने भी अपने अपने स्तर पर इस दिशा में कई महत्वपूर्ण कदम उठाये हैं। और आज सभी के प्रयासों का परिणाम है कि देश, और खासकर देश का युवा इस बड़े बदलाव में भागीदार बन रहा है।

नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति के लिए देश के एजुकेशन सेक्टर में एक बड़े इंफ्रास्ट्रक्चर ओवरहॉल पर भी काम हुआ है। आज देश में बड़ी संख्या में नए कॉलेज खुल रहे हैं, नए विश्वविद्यालय खुल रहे हैं, नए आईआईटी और आईआईएम की स्थापना हो रही हैे 2014 के बाद से, देश में मेडिकल कॉलेजों की संख्या में 55 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। युवाओं को बेहतर अवसर देने के लिए, यूनिवर्सिटीज में समान स्टैंडर्ड्स के लिए इस वर्ष से कॉमन यूनिवर्सिटी इंट्रेंस टेस्ट (सीयूईटी) भी लागू किया गया है। ऐसे ही कई और भी रिफॉम्स किये गए हैं। देश के इन प्रयासों का परिणाम है कि वर्ल्ड यूनिवर्सिटी रैंकिंग में भारतीय संस्थानों की संख्या में धीरे-धीरे संख्या में वृद्धि हो रही है। ये बदलाव केवल शुरूआत है। अभी हमें इस दिशा में लम्बी दूरी तय करनी है।

मुझे ये भी संतोष है कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति अब मातृभाषा में पढाई के रास्ते खोल रही है। इसी क्रम में, संस्कृत जैसी प्राचीन भारतीय भाषाओँ को भी आगे बढाया जा रहा है। मैं यहाँ देख रहा हूँ कि, इस आयोजन में भी संस्कृत से जुड़े लोगों के लिए विशेष व्यवस्था है। काशी की धरती से हुई ये शुरूआत निश्चित ही भारतीय भाषाओं और भारतीय संकल्पों को नई ऊर्जा देने का काम करेगी।

मुझे पूरा विश्वास है, आने वाले समय में भारत दुनिया में वैश्विक शिक्षा का एक बड़ा केंद्र बनकर उभर सकता है। करीब 180 उच्च शिक्षा संस्थानों में अंतर्राष्ट्रीय मामलों के लिए विशेष कार्यालय की स्थापना भी की गयी है। मैं चाहूँगा कि आप सभी इसी दिशा में न केवल जरूरी विमर्श करें, बल्कि भारत के बाहर की व्यवस्थाओं से भी परिचित होने का प्रयास करें। ये नई व्यवस्था, भारत की शिक्षा व्यवस्था को अंतरराष्ट्रीय अनुभवों से भी जोड़ने में मदद करेंगी।

इन तीन दिनों में आप लोग अलग अलग सेशंस में कई महत्वपूर्ण विषयों पर चर्चा करने वाले हैं। मैं चाहूँगा कि आपकी इस चर्चा से देश के लिए अलग-अलग क्षेत्रों में नए रास्ते खुलें, युवा पीढ़ी का मार्गदर्शन हो। दुनिया के कई देशों ने अलग-अलग क्षेत्रों में जो रफ़्तार पकड़ी है, उसमें एक बड़ा योगदान वहाँ की यूनिवर्सिटीज का भी है। यूनिवर्सिटीज लगातार सामाजिक आर्थिक और वैज्ञानिक विषयों पर रिसर्च करती हैं, सरकार को सुझाव देती हैं। यही कल्चर, यही कार्यपद्धति हमें अपने यहाँ भी विकसित करने की जरूरत है। इससे यंग जनरेशन को देश और देश की नीतियों की समझ आती है, और वो उसकी संभावनाओं से भी परिचित होते हैं। मेरा हमेशा से मानना रहा है कि देश के युवाओं की इनोवेटिव सोच और नए आइडियाज से नई व्यवस्थाओं को भी ज्यादा से ज्यादा जुड़ना चाहिए। इससे फ्रेश टैलेंट आता है, फ्रेश आइडियाज आते हैं।

सरदार पटेल यूनिवर्सिटी के लोगों ने रूरल डेवलेपमेंट में काफी रिसर्च करके कुछ किताबें तैयार की थी। उस दिन उन्होंने मुझे गिफ्ट की। मैंने जरा बड़ी बारीकी से उसे देखा, मुझे बड़ा इंटरेस्ट लगा। मैंने डिपार्टमेंट को काम दिया। मैंने कहा कि भई ये जो स्टूडेंट्स ने काम किया है। आप जरा देखिए सरकार जहां जा रही है और ये बच्चें जो कह रहे हैं, कितना अंतर है और आप हैरान हो जाएंगे उसमें से बहुत सी चीजें मुझे रूरल डेवलेपमेंट के मेरे काम में इतने मदद आयी। विद्यार्थियों ने टीचर्स का किया हुआ काम था।। जो सरकार में एअर कंडीशन कमरे में बैठकर के निर्णय करना मुश्किल होता है जी। जो फील्ड में हमारी ये पीढ़ी जाती है बहुत अच्छा उसका अर्क निकालकर के ले आती है। और कुछ चीजों का कल्पना भर का लाभ हुआ हो ये भी ध्यान में आता है, और मुझे विश्वास है। अब जैसे हमारे यहां एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी है।

अब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी लैब में जो करती है। कितना ही अच्छा काम करे, लेकिन उसको सर्टिफिकेट भी मिल जाये, इंटरनेशनल मैगजीन में उसका आर्टिकल भी छप जाये। उसको डिग्री भी मिल जाये, लेकिन वो तो मामला लैब में ही रह जाएगा। हमारे पास लैब टू लैंड का रोडमैंप भी होना चाहिए ना। जो लैब में है वो लैंड में भी तो उतरना चाहिए ना। और जैसे लैब टू लैंड होना चाहिए वैसे ही लैंड पर यूनिवर्सिटी में नहीं गए ऐसे लोगों का अनुभव भी बहुत ज्यादा होता है। औरे जो लैंड का अनुभव है। उसको लैब में भी लाना चाहिए और लैब में वो कैसे आये? रिसर्च को कैसे इनरिच करे, परंपरागत अनुभव को कैसा करें ये सोचकर हम कदम उठा सकते हैं। इसी तरह, हमारे यहां ट्रेडिशनल मेडिसिन आयुर्वेद का हमारा ज्ञान हो उसको चुनौती तो आप भी नहीं करोगे, मैं भी नहीं करुंगा। लेकिन दुनिया के कई देश हैं, जो ट्रेडिशनल मेडिसिन में हमसे आगे निकल रहे हैं। ऐसा इसलिए, क्योंकि आज के समय में परिणाम और प्रमाण दोनों की जरूरत होती है। हम ये कहें कि भई मैं ये जड़ी-बूटी लेते हुए फायदा होता है, परिणाम मिलता है, लेकिन हम मान के चले और सभी यूनिवर्सिटी के छात्र मेरा कुछ न यहां से सुनकर के जाये चलेगा, दो शब्द मेरे सुनकर के चलके जाइएगा और उस पर मंथन कीजिएंगा। हमें परिणाम तो मिल जाते हैं, लेकिन प्रमाण नहीं होते हैं और इसलिए हमारे पास परिणाम के साथ-साथ प्रमाण होने चाहिए। हमारे पास डेटाबेस होना चाहिए। हमारे पास उसका पूरा डिटेल रिकॉर्ड होना चाहिए, कहां से कैसे बदलाव हुआ है। हम भावना के आधार पर दुनिया नहीं बदल सकते हैं। दुनिया के सामने उसे मॉडल के रूप में प्रस्तुत नहीं कर सकते हैं। और इसलिए परिणाम होने के बावजूद भी प्रमाण की आवश्यकता आज की विश्व को बहुत जरूरी है। और इसलिए अब हमारी यूनिवर्सिटीज जो परिणाम से हम परिचित हैं लेकिन जिसमें प्रमाण का अभाव है, उन प्रमाण की पूर्ति करने के लिए मैकेनिज्म बनाना, व्यवस्थाएं विकसित करना, परंपराएं विकसित करना ये आप सब साथियों के मदद के बिना होना नहीं है। एविडेंस बेस्ड ट्रेडिशनल मेडिसिन पर रिसर्च का ये काम भी हमारी यूनिवर्सिटीज बहुत अच्छी तरह कर सकती हैं।

हमारे देश में डेमोग्राफिक डिविडेंड हमारी बहुत बड़ी ताकत है। चर्चा भी करते हैं लेकिन क्या कोई यूनिवर्सिटी है जिसने इसका स्टडी किया है कि आखिर ये डेमोग्राफिक डिविडेंड है क्या। क्या दुनिया में जब डेमोग्राफिक डिविडेंड का अवसर आया था तब उस दुनिया के उद्देश्य ने किस प्रकार के कदम उठाये थे। वहां की यूनिवर्सिटी कैसे व्यवहार करती थी और उसका बैनिफिट कैसे लिया। बहुत बार हम कहते हैं दोहराते रहते हैं। लेकिन डेमोग्राफिक डिविडेंड की संभावनाओं पर हम क्यों न काम करें, उस सामर्थ्य का उपयोग हम आने वाले 20,25,30 साल के लिए देश को कैसे दे सकते हैं। हम सबको याद रखना होगा कि देश के भविष्य निर्माण का, राष्ट्रीय शिक्षा नीति का नेतृत्व आप सब साथियों के हाथ में है। मुझे विश्वास है कि अखिल भारतीय शिक्षा समागम में आपके मंथन से निकला अमृत, आपके सुझाव, देश को एक नई दिशा देंगे। जिन नौजवानों के साथ आपका समय बीतता है, उनको वर्तमान के लिए नहीं आने वाले कल के लिए तैयार करना है। अगर आने वाले कल के लिए तैयार करना है तो आपको आने वाले साल के लिए तैयार होना है। अगर आप आने वाले साल के लिए तैयार होते हैं तो आपको इंस्टीट्यूट को आने वाले 100 सालों के लिए तैयार करना है, तब जाकर के इस काम को प्राप्त कर सकते हैं और उसी भाव के साथ आप लोग काशी की इस पवित्र धरती पर हैं। मां गंगा के तट पर विराजमान हैं। सांस्कृतिक पूरी परंपरा हमें नई चेतना और प्रेरणा देने वाली परंपरा है। उस परंपरा में से कुछ न कुछ अमृत बिंदु आपके भी नसीब में आएंगे, जो अमृत बिंदु लेके जाएंगें। वहां जब आप उसको रखोगे वो युवा युवती भी आने वाले अमृतकाल में भारत के उज्जवल भविष्य को गढ़ने के लिए काम आएगी, मैं फिर एक बार विभाग का इस कार्यक्रम की रचना के लिए धन्यवाद करता हूं। आप सब उत्साह और उमंग के साथ इसमें शरीक हुए हैं। मुझे विश्वास है तीन दिन में आप थक नहीं जाएंगे, मैं बैठे-बैठे कार्यक्रम देख रहा था। मुझे लग रहा है पता नहीं आपका क्या होगा तीन दिन के बाद। लेकिन आप एकेडमिक वर्ल्ड के हैं तो जरूर उसको आगे बढ़ाएंगे, मेरी आपको बहुत-बहुत शुभकामनाएं।

 

 

नरेंद्र मोदी

(07 जुलाई 2022 को वाराणसी में अखिल भारतीय शिक्षा समागम के उद्घाटन के अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भाषण के  संपादित अंश)

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