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समग्र शिक्षा की तरफ निर्णायक कदम

समग्र शिक्षा की तरफ निर्णायक कदम

आप यदि मीडिया व्यवसाय शुरू करना चाहते हैं तो उद्यमी के तौर पर आपको मुख्यत: तीन विषयों का ज्ञान चाहिए। सबसे पहले भाषा, आखिरकार मीडिया व्यवसाय अभिव्यक्ति का दूसरा नाम है तो भाषा के सशक्त ज्ञान के बिना मीडिया व्यवसाय शुरू ही नहीं हो सकता। फिर आपको आईटी और तकनीकी कौशलों की जरूरत पड़ेगी। डिजिटल मीडिया के बढ़ती पहुँच के कारण, इस व्यवसाय का पूरा परिदृश्य बदल गया है, प्रिंट से इलेक्ट्रॉनिक और अब इलेक्ट्रॉनिक से डिजिटल आज मीडिया के नए दौर में सफल होने के लिए आप में सूचना प्रौद्योगिकी की सामान्य समझ होना अनिवार्य है। अंतत: और बेहद जरूरी आपको कॉपोर्रेट नियमों-कानूनों की जानकारी चाहिए। अन्य व्यवसायों की तरह मीडिया भी सरकार द्वारा नियंत्रित व्यवसाय है। मीडिया समूहों को भी कर्मचारी कल्याण संबंधी नीतियों का पालन करना होता है, कर चुकाने होते हैं और अपनी लेखांकन प्रणाली संभालनी होती है। ऐसे में एक व्यवसाय में ही सफल होने के लिए आपको तीन अलग-अलग विशेष कौशल चाहिए। इसी तरह तकरीबन प्रत्येक व्यवसाय में सफलता के लिए आपको किसी एक के बजाय अनेक विषयों में ज्ञान चाहिए। अब यक्ष प्रश्न यह है कि क्या हमारी मौजूदा शैक्षणिक प्रणाली से एक व्यक्ति इन तीनों विषयों का ज्ञान हासिल कर सकता है। इसका सीधा उत्तर नहीं है।

हमारी वर्तमान शिक्षा प्रणाली का पैटर्न बेहद अजीब है। इसमें दसवीं तक सब कुछ एक साथ सिखाया जाता है, फिर दसवीं के बाद अचानक अलग-अलग विषयों को बिल्कुल अलग-थलग कर दिया जाता है। विज्ञान का छात्र अर्थशास्त्र नहीं पढ़ सकता और वाणिज्य का छात्र राजनीति नहीं पढ़ सकता। विषय की विशेषज्ञता पर बल देने की दौड़ में ज्ञान की विभिन्न शाखाओं के अंतसंर्बंधों को हम भूल जाते हैं। इसका परिणाम यह होता है कि हमारे पास लिपिकीय काम करने वाले बाबुओं या विषय रटकर बने अधिकारियों की बहुतायत है लेकिन ऐसे उद्यमी बहुत कम हैं जिसे एक ही काम में कई विषय क्षेत्रों के ज्ञान की जरूरत पड़ती है। ऐसे में 34 वर्ष के बाद आई इस नई शिक्षा नीति से क्या हम यह उम्मीद कर सकते हैं कि यह बच्चों को ऐसी समग्र, तर्कसंगत और विवेचनात्मक सोच दे पाएगी जिससे हम दुनिया के पीछे चलने के बजाय इसके रहनुमा बन सकें।

गौरतलब है कि भारत की पहली शिक्षा नीति 1968 में आई, दूसरी नीति 1986 में आई और इसके 34 वर्षों के बाद यह तीसरी और नई शिक्षा नीति आई है। दूसरी तरफ इस नई नीति और 1986 की नीति के बीच यूपीए सरकार का 2004 का न्यूनतम साझा कार्यक्रम था जिसमें शिक्षा की समग्र दृष्टि के बजाय अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थानों, अल्पसंख्यक समुदायों में आधुनिक एवं तकनीकी शिक्षा और अल्पसंख्यकों को शिक्षा में आरक्षण देने पर ही बल दिया गया था, मानो शिक्षा सभी के लिए नहीं बल्कि अल्पसंख्यकों के लिए ही जरूरी हो। शिक्षा में मात्र अल्पसंख्यकों के हितों को आगे बढ़ाने के उस दौर से नई शिक्षा नीति का वर्तमान समय भारतीय राजनीति के उस सकारात्मक परिवर्तन का प्रतीक है जहां सरकार वर्ग विशेष की फिक्र करने के बजाय भारत के नागरिकों की चिंता करती है।

आइए अब नई शिक्षा नीति की बात करें। नई शिक्षा नीति प्रस्तावित करती है कि विज्ञान एवं कला, शैक्षणिक एवं सह-शैक्षणिक और शैक्षणिक एवं पेशेवर पढ़ाई के बीच बेहद कड़ा फर्क नहीं किया जाएगा। यह समग्र शिक्षा की तरफ निर्णायक कदम है। ज्ञान के विभिन्न क्षेत्रों के बीच परस्पर संबंध हैं, अकसर हमें विशेषज्ञता के बजाय विविध ज्ञान क्षेत्रों में समन्वय की जरूरत पड़ती है, ऐसे में विज्ञान एवं कला और पेशेवर एवं शैक्षणिक विषयों में समन्वय लाने से हमारे बच्चे विविध दृष्टिकोण जानने में सक्षम होंगे और आज की जरूरतों के अनुसार स्वयं को ढाल पाएंगे। इस बारे में शोध बताते हैं कि शिक्षा के विविध क्षेत्रों को साथ लाने से रचनात्मकता और नवीन सोच, विवेचनात्मक सोच, समस्या-समाधान सक्षमताओं, टीमवर्क और संचार कौशलों में काफी सुधार आता है। इसके साथ छात्रों में तर्कसंगत सोच लाने के लिए सबसे महत्वपूर्ण यह है कि नई नीति शिक्षण सामग्री को रटने के बजाय विषयों से संबंधित सक्षमताओं का विकास सुनिश्चित करेगी। इसका अर्थ है कि अगर दसवीं कक्षा के बच्चे के पाठ्यक्रम में एनिमेशन विषय हो तो वह एनिमेशन का सैद्धांतिक पक्ष जानने के साथ-साथ एनिमेटेड सामग्री बनाने में सक्षम होना चाहिए ताकि वह नौकरी में काम करते-करते सीखने के बजाय सीधे कामकाजी सदस्य बन सके।

नई नीति किताबों का बोझ कम करने के लिए भी कृतसंकल्प है। ऐसा इसलिए किया जा रहा है ताकि बच्चे किताबी जानकारी का बोझ ढोने के बजाय अवधारणाएं, विचार और अनुप्रयोग सीख सकें। इसके अलावा बच्चों को प्रश्न पूछने और बातचीत के माध्यम से सीखने के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा। इन सब के साथ, नई शिक्षा नीति में मातृभाषा को शिक्षा का माध्यम बनाने का प्रस्ताव छात्रों की संभावनाओं को मूर्त रूप देने का सबसे सशक्त साधन है। हमारी आजकल चल रही अंग्रेजी माध्यम की शिक्षा में हमारे बच्चे विषय और ज्ञान की गूढ़ समझ हासिल करने के बजाय ज्यादातर समय विदेशी भाषा को सीखने एवं समझने की गंवा देते हैं। इस बारे में पर्याप्त शोध प्रमाण हैं कि यदि बच्चा मातृभाषा में पढ़ाई करता है तो वह जल्दी और बेहतर सीखता है। नई शिक्षा नीति में मातृभाषा में शिक्षण प्रोत्साहित करने के साथ-साथ मातृभाषा में उच्च गुणवत्ता वाली पाठ्यक्रम पुस्तकें तैयार करने पर भी जोर दिया गया है। इस कदम से हमारे बच्चे विदेशी भाषा समझने पर समय गंवाने के बजाय विभिन्न विषयों की अवधारणाएं समझने पर ध्यान दे सकेंगे। ’

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