
भारत के अभिन्न मित्र जापान के पूर्व प्रधानमंत्री शिंजो आबे नही रहे। उनकी हत्या एक पूर्व नौसैनिक ने आठ जुलाई,2022 को कर दी, जब वह जापान की पुरानी राजधानी नारा में एक चुनावी जनसभा को संबोधित कर रहे थे। हमलावर तेत्सुया यामागामी द्वारा पीठ पीछे पूरी दुनिया शिंजो आबे की इस क्रूर और जघन्य हत्या से स्तब्ध है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शिंजो के सम्मान में एक दिन के राष्ट्रीय शोक मनाने के साथ उनके निधन पर गहरी पीडा व्यक्त की और उन्हें अपना प्यारा दोस्त बताया। मोदी ने श्रद्धांजलि देते हुये आबे के साथ अपने घनिष्ठ रिश्तों के बारे में एक लेख लिखा और भारत एवं जापान के बीच बने प्रगाढ़ संबंध में उनकी भूमिका को पूरी आत्मीयता से साझा किया।
शिंजो आबे पर हमलावर ने दो गोलियां चलाईं जिसमें उसका पहला निशाना चूक गया था। दूसरी गोली उनके सीने में लगी और दिल की धमनी क्षतिग्रस्त होने से काफी खून बह गया जो उनके लिये जानलेवा साबित हुआ। आबे की सुरक्षा में चूक हुई। सुरक्षाकर्मी उनको पीछे से कवर नहीं दे पाये, यहां तक कि पहली गोली चलने के बाद डक डाउन कवर ( जिस पर हमला हो रहा हो उसे तुरंत जमीन पर लिटा दिया जाये और सुरक्षाकर्मी उसे घेरकर सुरक्षा कवच बन जायें) नहीं दिया गया। दरअसल आबे के अधिकतर सुरक्षाकर्मी हमलावर के पीछे भागे और इस दौरान हमलावर को आबे को दोबारा निशाना बनाने का पूरा मौका मिल गया। सामान्य तौर पर अतिविशिष्ट व्यक्तियों (वीवीआईपी) के लिये चारों ओर से सुरक्षा कवच बनाया जाता है और सुरक्षाकर्मी हमले की स्थिति में पलक झपकते हरकत में आ जाते हैं। हैरत वाली बात है कि शिंजो आबे पूर्व प्रधानमंत्री थे फिर भी सुरक्षा से जुडेÞ इन तय मानदंडों का पालन क्यों नही किया गया।
जापान में इस तरह वारदातें पहले भी हुई हैं। 90 वर्ष पहले नौसेना के अधिकारियों ने ही प्रधानमंत्री सुयोशी इनोकाई की हत्या कर दी थी। तख्तापलट की कोशिश में हमलावारों ने 15 मई 1932 को इनोकोई की उनके सरकारी आवास में गोली मारकर हत्या कर दी थी। इससे पहले भी जापान के और दो प्रधानमंत्री की हत्या की गई। जापान में पार्टी कैबिनेट प्रणाली की स्थापना करने वाले प्रधानमंत्री ताकाशी हारा की चार नवंबर,1921 को टोक्यो रेलवे स्टेशन पर रेलकर्मी कोनिची नाकाओका ने चाकू घोंपकर हत्या कर दी थी। फिर नौ वर्ष बाद जापान के प्रधानमंत्री ओशाची हामागुची, जिन्हे ‘लायन प्राइममिनिस्टर’ भी कहा जाता था को युवा दक्षिणपंथी सगोया तोमियो ने 14 नवंबर,1930 को टोक्यो रेलवे स्टेशन पर गोली मार दी थी। हालांकि उस समय उनकी मौत नहीं हुई थी लेकिन नौ महीने बाद गोली के घाव के कारण उन्होंने दम तोड़ दिया था।
शिंजो आबे का जन्म 21 सितंबर 1954 को टोक्यो में हुआ। दरअसल आबे परिवार का भारत के साथ रिश्ता पुराना है। शिंजो के नाना नोबुसुके किशी 1957 से 1960 तक जापान के प्रधानमंत्री रहे। उनके पिता शिंतारो आबे 1982 से 1986 तक जापान के विदेश मंत्री रहे। शिंजो के नाना नोबूसुके 1957 में स्वतंत्र भारत की यात्रा करने वाले जापान के पहले प्रधानमंत्री थे। शिंजो ने 2007 में भारत यात्रा के दौरान उन कहानियों को याद किया था जो उन्होंने बचपन में नाना के मुख से भारत के बारे में सुनी थी। उनकी शादी अकी आबे से हुई जो रेडियो जॉकी रह चुकी हैं। अकी आबे का शिंजो के जीवन में बड़ा प्रभाव था और उसकी एक बड़ी वजह यह थी कि जब भी उन्हें ये लगता था कि शिंजो गलत कर रहे हैं तो वह उन्हें टोक देती थीं। शिंजो के बारे में जगजाहिर है कि वह महिलाओं का बेहद सम्मान करते थे और उनको सशक्त बनाने के लिये उन्होंने जो अनेक कदम उठाये जिसके लिये उन्हें जापान ही नही बल्कि पूरी दुनिया में सराहा जाता है। शिंजो ने जापान के द्वितीय विश्व युद्ध के घावों को भरने और देश की जनता का मनोबल ऊंचा करने के लिये यादगार कदम उठाये। उन्होंने चीन के साथ पुरानी दुश्मनी खत्म करने की कोशिश की। वह बीजिंग की यात्रा करने वाले जापान के पहले प्रधानमंत्री थे। जापानी साम्राज्य के दौर में वहां की फौज ने जो ज्यादतियां की थीं उसके लिये उन्होंने चीन और कोरिया से क्षोभ व्यक्त किया था।
शिजों आबे पहली बार प्रधानमंत्री बनने के बाद जब भारत आये थे तो उन्होंने संसद में दिये गये भाषण में समकालीन राजनीतिक, रणनीतिक और आर्थिक वास्तविकता के रूप में हिंद प्रशांत क्षेत्र के उदभव की परिकल्पना की जिसका लक्ष्य दुनिया को नया स्वरूप देना था। उन्होंने समानता एवं समृद्धि को अपना ध्येय बनाया। क्वाड, आसियान के नेतृत्व वाले मंच, इंडो पैसिफिक ओशन इनिशियेटिव, एशिया अफ्रीका ग्रोथ कोरिडोर जैसे अनेक मंचों को यथार्थ में प्रभावी बनाने के उपाय किये। उन्होंने इंडो पैसिफिक क्षेत्र में रक्षा, संपर्क, बुनियादी ढांचे और स्थिरता सहित अनेक क्षेत्रों में जापान की रणनीतिक भागीदारी को नये आयाम दिये। यही वजह है कि यह क्षेत्र अपने भविष्य के प्रति अधिक आशावादी है और आश्वस्त है। भारत में मेट्रो ट्रेन से लेकर बुलेट ट्रेन की परिकल्पना जापान की देन है। शिंजो के कार्यकाल में भारत जापान के बीच आर्थिक और औद्योगिक क्षेत्र में नित नये कीर्तिमान स्थापित हुये। दरअसल इस दौरान जापान ने चीन के मुकाबले भारत को ज्यादा तव्वजो दी और भारत-जापान के मधुर रिश्ते को लेकर चीन की खिसियाहट अक्सर जगजाहिर होती रहती है।
नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद शिंजो 2015 में गणतंत्र दिवस समारोह के मुख्य अतिथि बने और राजपथ पर उनकी मौजूदगी के कई सार्थक मायने निकाले गये। उन्होंने जापान भारत के संबंधों को नई ऊंचाईयों पर ले जाने में कोई कसर नही छोड़ी। उनके इस योगदान के लिये भारत ने उन्हें पद्मश्री से अलंकृत किया। शिंजो शुरू से ही मोदी से काफी प्रभावित थे और 2007 में जब मोदी जापान की यात्रा पर गये थे तो शिंजो ने परंपराओ से हटकर उनका अभिवादन किया था। नरेंद्र मोदी ने अपने श्रद्धांजलि लेख में लिखा है, ‘मेरे मित्र, आबे सान शिंजो जापान के एक उत्कृष्ट राजनेता, एक महान वैश्विक राजनेता और भारत जापान के प्रबल हिमायती अब हमारे बीच नही हैं। जापान और पूरी दुनिया ने एक महान दूरदर्शी नेता और मैने एक अत्यंत प्रिय मित्र खो दिया है।’ जापान में पहली मुलाकात के बाद से ही दोनों की दोस्ती औपचारिकताओं से मुक्त हो गई थी। उनका क्योटो में तोजी मंदिर का दर्शन करना, शिंकानसेन ट्रेन में यात्रा करना, अहमदाबाद में साबरमती आश्रम की यात्रा, काशी में गंगा आरती, टोक्यो में विस्तृत चाय समारोह, उनकी यादगार मुलाकातों की एक लंबी सूची है जो सिर्फ दो राजनेताओं के आत्मीय रिश्तों को बयां नही करती बल्कि दो देशों की दोस्ती की अद्वितीय मिसाल पेश करती है।
अशोक उपाध्याय
(लेखक पूर्व संपादक, यूनीवार्ता, हैं)