
भाजपा की उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू ने राष्ट्रपति पद के चुनाव में विपक्षी दलों के उम्मीदवार यशवंत सिन्हा को हराकर भारत की पहली आदिवासी महिला राष्ट्रपति बन गई हैं। आदिवासी समुदाय की बेटी ने 15वें राष्ट्रपति पद का चुनाव जीत कर इतिहास रच दिया है। द्रौपदी मुर्मू ने 25 जुलाई 2022 को राष्ट्रपति के रूप में पद और गोपनीयता की शपथ ली। नवनिर्वाचित राष्ट्रपति ने अपने संबोधन में कहा कि, ‘भारत में गरीब सपने देख सकता है और मेरा चुना जाना इसका सबूत है’। आगे कहा कि, ‘यह मेरी व्यक्तिगत उपलब्धि नहीं है बल्कि भारत के प्रत्येक गरीब की उपलब्धि है’। उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में आदिवासियों के योगदान और बिरसा मुंडा के बलिदान से प्रेरणा लेने की बात कही। आगे उन्होंने देश की गरीब से गरीब जनता के विकास के लिए केंद्र व राज्य सरकारों की ओर से डिजिटल माध्यम का उपयोग करते हुए कई बड़े कदम उठाए जाने की बात कही। अपने संबोधन में द्रौपदी मुर्मू ने जो बाते कहीं है उससे तो यह साफ है कि आने वाले भविष्य में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सरकार गरीबों के कल्याण के लिए कई बड़े और ऐतिहासिक कदम उठाए जाएंगे।
द्रौपदी मुर्मू की जीत के साथ भाजपा की समावेशी राजनीति देखने को मिली
भाजपा 2014 से ही समावेशी राजनीति की शुरुआत कर चुकी है। जिसमें भाजपा ‘सबका साथ और सबका विकास’ का नारा लेकर आई और द्रौपदी मुर्मू की जीत के साथ ही यह सिद्ध हो गया कि मोदी सरकार अपने सिद्धांतों पर अटल रूप से चल रही है। भाजपा सभी वर्गों को, खास कर सीमांत क्षेत्रों के प्रतिनिधियों को शीर्ष पदों पर बिठाने, सत्ता में समुचित भागीदारी देने और उनका गौरव बढ़ाने का लगातार प्रयास करती हुई दिखाई देती है। इससे पहले एक मुस्लिम ए. पी .जे. अब्दुल कलाम, दूसरे राम नाथ कोविन्द जो कि एक दलित समाज से आते हैं और अब एक आदिवासी महिला को राष्ट्रपति प्रत्याशी बनाना पार्टी की समावेशी राजनीतिक दृष्टि को दर्शाता है। पिछले 70 वर्षों से राजनीति करने के बावजूद कांग्रेस दलित, वंचित और आदिवासियों के साथ न्याय नहीं कर पाई। अगर न्याय किया होता तो क्या द्रौपदी मुर्मू की उम्मीदवारी के ऐलान के साथ ही पूरी राजनीति में हलचल नहीं मचता? यह एक सामान्य सी बात होती अगर इससे पहले की सरकारों ने दलितों, वंचितों और आदिवासियों के लिए कुछ किया होता परंतु ऐसा नहीं है यह भाजपा के कार्यकाल में संभव हुआ है। इसलिए शायद द्रौपदी मुर्मू को गैर एनडीए दलों का भी समर्थन प्राप्त हुआ है। इस बार एक और आश्चर्य करने वाली घटना सामने आई है जिससे यह साफ हो जाता है कि द्रौपदी मुर्मू एक ऐसी असाधारण उम्मीदवार है जिसे कुछ राजनीतिक दल के लोग अपनी पूर्व मर्यादा के कारण खुलकर सपोर्ट न कर पाने के कारण, उस दल के नेताओं ने क्रॉस वोटिंग कर दी। इससे उनकी मजबूत राजनीतिक शख्सियत की भी पहचान होती है।
द्रौपदी मुर्मू गरीब, दलित, वंचित और आदिवासी का प्रतिनिधित्व
द्रौपदी मुर्मू को भाजपा ने राष्ट्रपति पद का प्रत्याशी बनाकर देश में गरीब, दलित, वंचित और आदिवासी समाज को राजनीति में सशक्त बनाने की एक नई दिशा दी है। द्रौपदी मुर्मू के राष्ट्रपति बनते ही समाज के सभी वर्गो को लग रहा है कि लोकतांत्रिक संस्थाओं और शीर्ष पदों में अब उनकी समुचित हिस्सेदारी है। भाजपा ने पूरे देश और दुनिया के सामने सामाजिक बदलाव के नए प्रतिमान गढ़े हैं। जिससे यह साफ है कि भाजपा दिन-प्रतिदिन अपने जनाधार बढ़ाने में लगी है न कि कांग्रेस की तरह परिवार को मजबूत करने के कारण सिमटी जा रही है। मुर्मू की वजह से बीजेपी को 2024 के ओडिशा विधानसभा चुनाव में भी फायदा हो सकता है।
द्रौपदी मुर्मू का संपूर्ण जीवन है प्रेरणादायी
20 जून 1958 को ओडिशा के एक आदिवासी परिवार में द्रौपदी मुर्मू का जन्म हुआ। जैसा कि द्रौपदी मुर्मू ने अपने संबोधन में कहा कि मैं जिस पृष्ठभूमि से आती हूं वहां मेरे लिए प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त करना भी एक सपने जैसा ही था। लेकिन अनेक बाधाओं के बावजूद मेरा संकल्प दृढ़ रहा और मैं कॉलेज जाने वाली गांव की पहली बेटी बनी। मैं जनजातीय समाज से हूं और वार्ड कौंसिलर से लेकर भारत की राष्ट्रपति बनने तक का अवसर मुझे मिला है। इस तरह उनका जीवन चुनौतियों से भरा हुआ रहा और इतना ही नहीं उनके सामाजिक, राजनीतिक और पारिवारिक जिंदगी में भी ऐसे ही संघर्ष शामिल रहे।
द्रौपदी मुर्मू का जीवन कठिनाइयों से भरा रहा है। विवाह के कुछ वर्ष बाद ही पति श्यामचरण मुर्मू और दो बेटों की असमय मृत्यु होने के बाद वह अपने मानसिक संबल के लिए ब्रह्मकुमारी संस्था से जुड़ गई। धीरे-धीरे हिम्मत से काम लिया और अपने विपरीत आर्थिक परिस्थितियों में भी साहस दिखाते हुए संघर्ष का मार्ग चुना। अपनी एक मात्र बेटी के लालन-पालन के लिए कभी शिक्षक तो कभी लिपिक जैसी नौकरियां की। उन्होंने कड़ी मेहनत से अपनी बेटी को योग्य बनाया। उनकी बेटी का नाम है-इतिश्री, जिनकी शादी हो चुकी। उन्होंने पहाड़पुर में अपने पति और बेटों की समाधि बनाई है और साथ में एक बड़ा विद्यालय बनाया है जहां नि:शुल्क शिक्षा की व्यवस्था है। आदिवासी समाज के लिए द्रौपदी मुर्मू और भी बहुत कुछ करना चाहती थी और हम सभी जानते हैं ‘जहां चाह है, वहां राह है’ इसी भावना से वह रायरंगपुर नगर पंचायत में पार्षद का चुनाव जीत कर अपने सक्रिय राजनीति की शुरूआत की। इसके बाद, द्रौपदी मुर्मू भाजपा के अनुसूचित जनजाति मोर्चा से जुड़ी रहीं और राष्ट्रीय कार्यकारिणी की सदस्य भी रहीं। उड़ीसा में बीजू जनता दल एवं भाजपा की सरकार में मंत्री भी रहीं और 2015 में झारखंड की पहली महिला राज्यपाल भी बनीं। द्रौपदी मुर्मू हमेशा गरीबों और दलितों के साथ-साथ हाशिए के लोगों को सशक्त बनाने में जुटी रहीं।
द्रौपदी मुर्मू का राष्ट्रपति बनना न केवल आदिवासी समाज के लिए बल्कि पूरे भारत के लिए गौरव का विषय है। सामाजिक रूढिय़ों और बाधाओं से लड़ते हुए द्रौपदी मुर्मू ने देश के सर्वोच्च पद तक का सफर तय किया है जो सभी देशवासियों के लिए अनुकरणीय और प्रेरणादायी हैं। जो आने वाले भविष्य में भाजपा के लिए भी मील का पत्थर साबित होंगी।
प्रेरणा कुमारी