
द्रौपदी मुर्मू, एक ग्रामीण, गरीब, जनजातीय परिवार की महिला होने के कारण भारत के सबसे अधिक वंचित समुदाय का प्रतिनिधित्व करती हैं। उनका भारत के सर्वोच्च पद पर आसीन होना, देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी एवं केन्द्र सरकार के नेतृत्व में भारतीय प्रजातंत्र की परिपक्वता को छूने का प्रतीक है। द्रौपदी मुर्मू के जीवन यात्रा को हम गौर से विश्वलेषित करें तो स्पष्ट है कि वे न सिर्फ जीवन लक्ष्यों के स्पष्ट निर्धारण बल्कि लक्ष्यों के मार्ग में आने वाली समस्त चुनौतियों का साहस के साथ सामना करने के बाद एक विजेता के रूप में उभरने वाली आदर्श जनजातीय व्यक्तित्व हैं।
एक शैक्षणिक संस्थान के प्रमुख के रूप में मेरे लिए द्रौपदी मुर्मू शिक्षकों, विद्यार्थियों एवं युवाओं के लिए एक साक्षात आदर्श हैं। ऐसे में समय में जब हम राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 को संपूर्ण स्वरूप में लागू करने जा रहे हैं जिसमें सामाजिक सरोकार केन्द्र में हैं, हमारी नवनिर्वाचित राष्ट्रपति मुर्मू का सामाजिक सरोकारों एवं समुदाय की बेहतरी के लिए समर्पण एक प्रेरणा स्त्रोत होगा। द्रौपदी मुर्मू जनजातीय समुदाय का प्रतिनिधित्व करती हैं। ऐसे में उनका सर्वोच्च पद पर पहुंचना जनजातीय संस्कृति के साथ ही मूल्यों को सर्वोच्च प्राथमिकता के साथ स्थापित करने के सरकार की प्रतिबद्धता को स्पष्ट करता है।
द्रौपदी मुर्मू का राष्ट्रपति बनना भारत के लिए ही नहीं वरन समूचे विश्व के लिए अहम है। जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों से जूझ रहे विश्व के सैंकड़ों देशों को प्रकृति के सराथ तादात्म स्थापित कर विकास के नये प्रादर्श गढ़ने के लिए न सिर्फ प्रेरित करेगी बल्कि उन्हें जनजातीय गौरव एवं संस्कृति के प्रति ज्यादा संवेदनशील बनायेगी।
सबके साथ, सबके प्रयास से आत्मनिर्भर होते भारत गणराज्य के 140 करोड़ लोगों की नुमाइंदगी पूरी दुनिया में करेंगी। यह हमारे गौरवशाली इतिहास एवं वैभवशाली परंपरा के साथ अक्षुण्ण समृद्ध पुरातन संस्कृति का सजीव उदाहरण है कि मूलरूप से वनवासी पृष्ठभूमि से सरोकार रखने वाली द्रौपदी मुर्मू समूचे विश्व में भारत के गौरव की पताका फहराएंगी। यह पहला अवसर है जबकि देश की राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री दोनों ही आजादी के बाद के जन्म लेने वाले प्रखर व्यक्तित्व हैं। आदिवासी जननायक भगवान बिरसा मुंडा के प्रदेश वर्तमान झारखंड की प्रथम महिला राज्यपाल के रूप में कार्यों का संपादन कर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने राष्ट्रीय गौरव को बढ़ाया।
दिल्ली से लगभग 2000 किलोमीटर दूर ओडिशा के सुदूर में स्थित है देश की पहली आदिवासी महिला राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू का घर। साफ सडक़ें, सबके घर पीने के पानी की पाइप लाइन, डिजिटल क्रांति से सभी को चकित कर देने वाली बैंक खाते से लेकर अन्य सभी व्यवस्थाएं, पार्षद से राष्ट्रपति तक का सफर तय करने वाली द्रौपदी मुर्मू के दृढ़ संकल्प के विकास की गाथा को स्थापित करता है।
जब देश आजादी की हीरक जंयती मना रहा था तब द्रौपदी मुर्मू ने अपने राजनीतिक जीवन का प्रारंभ किया था। और आज जब देश स्वतंत्रता की 75वीं वर्षगांठ को आजादी के अमृत महोत्सव के रूप में मना रहा है तब वे देश की नवनिर्वाचित राष्ट्रपति के रूप में हम सभी को गौरवान्वित कर रही हैं।
आदिवासी क्षेत्र की सभी चुनौतियों का सामना करने का जज्बा रखने वाली द्रौपदी मुर्मू के जीवन में प्राणविदारक कष्टों ने सभी मोड़ पर उन्हें तोडऩा का प्रयास किया लेकिन जीवन के प्रति सकारात्मकता के भाव और सशक्त दृढ़ संकल्प के परिणामस्वरूप उन्होंने सभी महिलाओं के सम्मुख आदर्श स्थापित किया। जीवन के तमाम झंझावातों के बावजूद उन्होंने अपने व्यक्तित्व को परिमार्जित करते हुए आदर्श के रूप में प्रस्तुत किया।
ममतामयी स्वभाव और त्याग की भावना ने उन्हें आदिवासी समाज के साथ अपने समकालीनों से अलग पहचान दिलाई है। जीवन में विरक्ति का भाव और भविष्य की जरूरतों को तरजीह न देते हुए उन्होंने अपने पति और बेटों की मृत्यु के बाद अपने ससुराल की जमीन शिक्षण संस्थान के नाम दान कर दी। वर्तमान समय में इस जमीन पर छात्र-छात्राओं के लिए हॉस्टल के साथ-साथ एसएलएस स्कूल के नाम पर शिक्षण संस्थान संचालित हो रहा है।
द्रौपदी मुर्मू समकालीन राजनीति में एक आदर्श व्यक्तित्व हैं जिन्होंने राजनीति को समाज सेवा और लोकोपकार के माध्यम के रूप में अपनाया न कि शक्ति और सत्ता प्राप्ति के लिए। उन्होंने अपने पूरे राजनीतिक जीवन में सर्वोच्च राजनीतिक सुचिता और मूल्यों का पालन किया। यही कारण है कि उनके राष्ट्रपति बनने पर राजनीतिक रूप से उनके विपक्षियों ने भी उनके प्रति सम्मान व्यक्त किया।
संथाल आदिवासी परिवार से नाता रखने वाली द्रौपदी मुर्मू को साल 2007 में ओडिशा विधानसभा द्वारा साल के सर्वश्रेष्ठ विधायक के लिए नीलकंठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। उस वक्त उनके पास ओडिशा सरकार में परिवहन, वाणिज्य, मत्स्य पालन और पशुपालन जैसे मंत्रालयों को संभालने का दायित्व था। द्रौपदी मुर्मू रायरंगपुर सीट से दो बार भारतीय जनता पार्टी की विधायक एक बार ओडिशा में बीजेडी-बीजेपी गठनबंध में मंत्री भी रहीं।
गोस्वामी तुलीदास द्वारा रचित रामचरित मानस की इस उक्ति राम-काज किन्हें बिना, मोहे कहां विश्राम को द्रौपदी मूर्मु का राजनीतिक और सामाजिक जीवन स्वमेव चरितार्थ करता है। उनके जीवन का प्रत्येक क्षण गांव और गरीब के विकास के लिए समर्पित रहा। उनके विकास के मॉड्ल और दृष्टिकोण की व्यापकता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि उन्होंने गांव तक मूलभूत सुविधाएं जैसे प्रधानमंत्री आवास योजना, शौचालय, सरकारी योजनाएं, पानी, बिजली, सडक़, स्कूल, स्वास्थ्य सुविधाएं हों या फिर आधुनिक समाज के साथ कदमताल मिलाते हुए गांव का डिजिटाइजेशन करना हो या वित्तीय समावेशन के लिए बैंकिंग सुविधाएं हों का समूचा नेटवर्क गांव और गरीब के लिए स्थापित किया।
आजादी के अमृत महोत्सव में जनजातीय गौरव एवं अस्मिता के प्रति विश्वास एवं सम्मान व्यक्त करने के लिए यह एक ऐतिहासिक प्रयास है। इसके माध्यम से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के सपनों के न्यू इंडिया को गढऩे के प्रयासों को एक नया बल मिलेगा क्योंकि एक शिक्षक के रूप में अपना सार्वजनिक जीवन प्रारंभ करने वाली द्रौपदी मुर्मू का भारत के सर्वोच्च पद पर पहुंचकर राष्ट्रपति बनना मात्र उनके जीवन की सफलता नहीं बल्कि भारतीय प्रजातांत्रिक परंपराओं की जीत है। यह सिर्फ उनके जीवन का एक नया अध्याय नहीं होगा अपितु वचिंत वर्ग के उन तमाम लोगों के जीवन के लिए नया आत्मविश्वास भरने वाला नया अध्याय होगा जिनके लिए द्रौपदी मुर्मू जीवनभर समर्पित रही हैं। यह पूरे वैश्विक समुदाय के लिए भी अवसर होगा कि वे जलवायु परिवर्तन की समस्या के समाधान हेतु भारतीय प्राचीन ज्ञान पंरपरा, गौरवशाली इतिहास एवं वैभवशाली संस्कृति को समझे और आत्मसाथ करें। और सबसे महत्वूपूर्ण द्रौपदी मुर्मू के जीवन से प्रेरणा लेकर ये भारत के जन-जन के लिए समाजसेवा और राष्ट्र निर्माण के लिए स्वयं को पुन: समर्पित करने के लिए कृत संकल्पित होने का भी क्षण होगा।
आलोक चक्रवाल
(लेखक उप-कुलपति, गुरू घासीदास विश्वविद्यालय, बिलासपुर, छत्तीसगढ़ हैं)