
नागपुर: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने भारत की जाति व्यवस्था को विभाजनकारी बताया है। उनका मानना है कि जाति व्यवस्था की शुरुआत काम के बंटवारे के लिए किया गया था। लेकिन बाद में इसका इस्तेमाल मतभेद पैदा करने के लिए होने लगा।
उत्तिष्ठ भारत कार्यक्रम को किया संबोधित
संघ प्रमुख मोहन भागवत ने रविवार 14 अगस्त को नागपुर में आयोजित उत्तिष्ठ भारत कार्यक्रम में उपरोक्त बयान दिया। उन्होंने कहा कि हम अलग अलग दिख सकते हैं। लेकिन हमारे अस्तित्व में एकता है। हमें देश के हित और समाज के हित के लिए इस जीवन को समर्पित कर देना चाहिए। वह महाराष्ट्र के नागपुर शहर में ‘भारत@2047: माई विजन माई एक्शन’ विषय पर आयोजित एक समारोह में बोल रहे थे।
भागवत का कहना था कि ‘भारत के अस्तिस्व में एकता है। हम जरूर अलग दिख सकते हैं। हम अलग-अलग चीजें खा सकते हैं, लेकिन हमारे अस्तित्व में एकता है। उन्होंने कहा कि हमारे आगे बढ़ने से दुनिया भारत से सीख सकती है। हमें यह चाहिए समाज और देश के लिए काम करने का संकल्प लें।’
पूरी दुनिया देख रही है भारत की तरफ
मोहन भागवत ने विशेष तौर पर कहा कि ‘पूरी दुनिया विविधता के प्रबंधन के लिए भारत की ओर देख रही है। जब विविधता को कुशलता से प्रबंधित करने की बात आती है तो दुनिया भारत की ओर इशारा करती है। दुनिया विरोधाभासों से भरी है लेकिन द्वैत का प्रबंधन केवल भारत से ही होगा।’
‘भारत@2047: माई विजन माई एक्शन’ कार्यक्रम के दौरान आरएसएस प्रमुख ने कहा कि ‘हम देश के लिए फांसी पर चढ़ेंगे। हम देश के लिए काम करेंगे। हम भारत के लिए गीत गाएंगे। यह जीवन भारत को समर्पित होना चाहिए। हमारे देश में जो विविधता की खूबी है उसके लिए पूरी दुनिया आशावादी नजरों से हमारी ओर देखती है। अगर किसी को यह गलतफहमी तो मैं बता देना चाहता हूं कि हमारा देश अहिंसा का पुजारी है न कि दुर्बलता का।’
इतिहास को छिपाया गया
मोहन भागवत ने इतिहास लेखन की विसंगतियों की तरफ इशारा करते हुए कहा कि ‘ऐसी कई ऐतिहासिक घटनाएं हुई हैं जो हमें कभी नहीं बताई गईं और न ही सही तरीके से सिखाई गईं। उदाहरण के लिए, जिस स्थान पर संस्कृत व्याकरण का जन्म हुआ वह भारत में नहीं है। क्या हमने कभी एक सवाल पूछा कि ऐसा क्यों है? यह मुख्य रूप से इसलिए है क्योंकि हम पहले अपने ज्ञान को भूल गए थे और बाद में विदेशी आक्रमणकारियों ने भूमि पर कब्जा कर लिया था, जो मुख्य रूप से उत्तर पश्चिम क्षेत्र से आए थे।’
जाति से पैदा होते मतभेद
आरएसएस प्रमुख ने बताया कि ‘हमने अनावश्यक रूप से जाति और अन्य समान संरचनाओं को महत्व दिया। काम के लिए बनाई गई प्रणालियों का इस्तेमाल लोगों और समुदायों के बीच मतभेद पैदा करने के लिए किया गया था। भाषा, पहनावे, संस्कृतियों में हमारे बीच छोटे अंतर हैं, लेकिन हमारे पास ऐसा दिमाग होना चाहिए जो बड़ी तस्वीर देखे और इन चीजों में न फंसे। देश की सभी भाषाएं राष्ट्रीय भाषाएं हैं, विभिन्न जातियों के सभी लोग मेरे हैं, हमें ऐसा स्नेह रखने की जरूरत है।’
मोहन भागवत जी ने आजादी के अमृत महोत्सव के एक दिन पहले नागपुर में आयोजित कार्यक्रम के दौरान अपने विचार प्रकट किए।