
दीपक कुमार रथ
(editor@udayindia.in)
हमारे देश को स्वतंत्रता हासिल किए हुए 75 वर्ष पूरे हो गए हैं। यह सभी देशवासियों के लिए गर्व और उल्लास का अवसर है। हर घर पर हमारा राष्ट्रीय तिरंगा ध्वज लहरा रहा है और देशवासी इस मौके को राष्ट्रीय त्योहार की तर्ज पर मना रहे हैं। भारत जैसे महान राष्ट्र में एकता, राष्ट्रीयता और अखंडता को सर्वोपरि माना जाता है। पूरी दुनिया में जहां भी भारतीय बसते हैं वहां तिरंगा ध्वज को अपने दिल से लगाकर सम्मान देते हैं। भारत के जैसी पवित्र भूमि दुनिया में कहीं और नहीं है, जहां विराट सांस्कृतिक विरासत एकता में अनेकता के साथ विराजमान होती है। आज वास्तव में भारत का यश और कीर्ति पूरे संसार में फैल रही है। नए भारत का मूलमंत्र पूरे संसार में बसे भारतीयों के बीच तेजी से प्रसारित हो रहा है। शिक्षक, किसान, वैज्ञानिक, डॉक्टर या किसी भी और पेशे से आने वाले लोग हों, आज सभी को भारतीय होने पर गर्व महसूस होता है। इसका श्रेय जाता है हमारे यशस्वी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को, जिन्होंने हर भारतीय के दिल में यह विश्वास जगाया है कि वह सर्वश्रेष्ठ हैं और आने वाले चंद सालों में भारत विश्वगुरु की गद्दी पर आसीन हो जाएगा।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी हर क्षेत्र में सफलता की नई दास्तान लिख रहे हैं। यही नहीं भारत गंभीर मुश्किलों का सामना कर रहे अपने पड़ोसियों की मदद के लिए भी बाहें फैलाकर खड़ा है। भारत का पड़ोस, जिसमें दक्षेस (दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन) के देश यानी अफगानिस्तान, बांग्लादेश, भूटान नेपाल, मालदीव, पाकिस्तान और श्रीलंका की भौगोलिक संरचना बेहद जटिल है। पड़ोसी देशों के साथ रिश्ते भारत की विदेश नीति का सबसे अहम हिस्सा है। मोदी सरकार का साफ तौर यह सोचना है कि शांतिपूर्ण सहयोग ही विकास की मूल कुंजी है। दक्षिण एशिया में स्थिरता और समृद्धि का माहौल बना रहने से ही भारत में भी सुख शांति का वातावरण रहेगा। हमारा देश अलग-अलग क्षेत्रों में विश्वास बहाल करने के लिए प्रतिबद्ध है, जिसके तहत व्यापार और निवेश को बढ़ावा देने की नीति अपनाई गई है। इससे पड़ोसी देशों के साथ-साथ भारत की भी आर्थिक प्रगति होगी। सामान्य तौर पर देखों तो भारत पड़ोसी देशों को हमेशा सर्वोच्च प्राथमिकता देता है। यह एक सामान्य कहावत है कि ‘अच्छे रिश्ते बनाने हैं तो पड़ोसियों से दूरी रखना बेहतर है’। यह एक सीमा तक सच हो सकता है, लेकन आज के दौर में पड़ोसी देशों के साथ अच्छे रिश्ते बनाने के लिए नागरिकों के बीच आपसी संपर्क, व्यापार और राजनीतिक समझ की सख्त जरुरत होती है। पड़ोसी देशों के प्रति भारत की जिम्मेदारियां बेहद बढ़ गई हैं क्योंकि उनकी हालत इन दिनों बेहद बुरी हो गई है। श्रीलंका की अभूतपूर्व आर्थिक तबाही ने वहां ना केवल सत्ता परिवर्तन कर दिया है बल्कि भारत के लिए भी खतरा बढ़ा दिया है। श्रीलंका जैसी आर्थिक तबाही के संकेत भारत के कुछ और पड़ोसी देशों में दिखाई दे रहे हैं, जिसकी वजह से वहां भी गंभीर राजनीति अस्थिरता पैदा हो सकती है।
वहीं दूसरी तरफ भारत तेजी से प्रगति के पथ पर अग्रसर है। विश्व बैंक की रिपोर्ट के मुताबिक भारत दुनिया में सबसे तेजी से बढऩे वाली अर्थव्यवस्था है। यह कोई आश्चर्य नहीं है कि भारत की गिनती इस क्षेत्र में सबसे स्थिर देशों में होती है, जो कि तेजी के विकास के रास्ते पर बढ़ रहा है। बात चाहे क्षेत्रफल, जनसंख्या और सकल घरेलू उत्पाद की हो या फिर उभरती आर्थिक शक्ति और जिम्मेदार परमाणु शक्ति संपन्न देश की, भारत ने हर क्षेत्र में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी सुदृढ़ छवि निर्मित की है, जो कि इसे दुनिया से अलग करती है। पिछले कुछ दशकों में यह साफ तौर पर देखा जा सकता है कि हमारे पड़ोसी देशों की दुर्दशा के पीछे चीन की विभाजनकारी नीतियों की बड़ी भूमिका है। श्रीलंका, पाकिस्तान, मालदीव और लाओस के अलावा दक्षिण एशिया के ब्रुनेई, कंबोडिया, इंडोनेशिया, मलेशिया, म्यांमार, फिलीपींस, सिंगापुर, थाईलैण्ड, पूर्वी तिमोर, ताइवान, वियतनाम जैसे कई देशों को चीन से गंभीर समस्या है। विस्तारवादी चीन हमेशा इन छोटे देशों की जमीन हड़पने की फिराक में लगा रहता है, जिसका ये सभी देश विरोध करते हैं। यही वजह है कि आसियान देशों के सदस्य देश चीन की विस्तारवादी नीति की खुलकर आलोचना करने लगे हैं। जबकि दूसरी तरफ एक सशक्त नेतृत्व के अंतर्गत भारत तेजी से अपनी सनातन सांस्कृतिक परंपरा से परिचित हो रहा है। हालत ये है कि आज पूरा विश्व भारत की समृद्ध सनातन परंपरा की तरफ आशा भरी निगाहों से देख रहा है। क्योंकि दुनिया भर के देशों को यह अच्छी तरह एहसास हो चुका है कि वैश्विक समस्याओं का समाधान भारत के नेतृत्व में ही संभव हो सकता है।