
हाल ही में भारत सहित दुनिया भर में पर्यावरण दिवस पर अनेकों कार्यक्रम हुए। जिसमें पर्यावरण संरक्षण पर जोर दिया गया और इस बात का प्रण किया गया कि न केवल जल और जंगल को हरा भरा किया जायेगा बल्कि जो जहां रहता है, वह वहीं के आसपास की जगहों को साफ रखने का प्रयास करेगा। इस बात को सुनिश्चित किया जाएगा कि रिहाइशी इलाकों में भी प्रकृति प्रदत्त उपहारों का संरक्षण किया जाएगा ताकि आने वाली पीढिय़ां भी उसका लाभ उठा सके। लेकिन ऐसा लगता है कि इस प्रकार की सभी घोषणाएं और प्रण केवल पर्यावरण दिवस के दिन तक ही सीमित रहती हैं और उसके बाद इंसान फिर से प्रकृति को बर्बाद करने और उसे दूषित करने में लग जाता है। वास्तव में ग्रामीण क्षेत्रों की अपेक्षा शहरी इलाकों में पर्यावरण के साथ सबसे अधिक छेड़छाड़ और उसे दूषित किया जाता है। जहां विकास के नाम पर पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने में कोई कसर नहीं छोड़ी जाती है।
पिछले कुछ वर्षों में देश के अन्य राज्यों की तरह केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर में भी पर्यावरण का तेजी से ह्रास हुआ और यह सिलसिला रुकने का नाम नहीं ले रहा है। जहां विकास की धारा बहाने के एवज में पर्यावरण को हर दृष्टिकोण से नुकसान पहुंचाया जा रहा है। हालांकि दावा तो यही किया जाता है कि किसी भी नए निर्माण में पर्यावरण संरक्षण का पूरा ध्यान रखा जाता है, लेकिन जमीनी सच्चाई सभी को पता है। इसमें कोई दो राय नहीं है कि धारा 370 की समाप्ति के बाद से जम्मू कश्मीर की तकदीर और तस्वीर दोनों पूरी तरह से बदल रही है। यह केंद्र शासित प्रदेश प्रगति की एक नई राह पर चल पड़ा है। बात करें सडक़, यातायात, फ्लाईओवर, टनल, आदि कि, तो ऐसा कोई जिला नहीं जहां सरकार ने विकास के काम शुरू नहीं किया हो। अब तो तवी रिवर फ्रंट का निर्माण कार्य की शुरुआत कर सरकार ने जम्मू की तस्वीर ही बदल डाली है।
लेकिन विकास के इस दौर में कुछ ऐसे भी क्षेत्र हैं, जहां न तो पूरी तरह से विकास ही हुआ है और न ही पर्यावरण संरक्षण पर गंभीरता से ध्यान दिया गया है। शहरीकरण के नाम पर बढ़ती आबादी से निकले कचरे नदी और तालाब को प्रदूषित कर रहे हैं। जिससे बीमारियां फैलने का खतरा बढ़ गया है। ऐसा ही एक क्षेत्र है जम्मू संभाग के कठुआ जिला स्थित बिलावर तहसील का छोटा सा गांव भड्डू। जिसकी समस्या तो छोटी सी है, परंतु यही छोटी सी समस्या कब विकराल रूप धारण कर डेंगू और मलेरिया जैसी जानलेवा बीमारियां फैला देंगी, इस का कोई पता नहीं। इसकी वजह से इंसानी आबादी को कभी भी एक बड़ी आपदा का सामना करना पड़ सकता है। दरअसल गांव के बीचो-बीच एक छोटा सा तालाब है, जिसमें काफी दिनों से बहुत ही गंदा पानी जमा हुआ है। उसकी साफ-सफाई का हल नहीं हो पा रहा है। हालांकि इस तालाब को साफ करने के लिए ‘बैक टू विलेज’ प्रोग्राम से लेकर पंचायत के प्लान तक हो चुकी है, परंतु पिछले तीन चार सालों से कोई हल नजर नहीं आया है।
इस सिलसिले में स्थानीय निवासी अभी मेहरा का कहना था कि पहले इस तालाब में बहुत साफ-सुथरा पानी होता था। यहां पर हम लोग नहाते थे। परंतु कुछ ही समय बाद इस तालाब की सफाई न करने की वजह से यह न केवल गंदा हो चुका है बल्कि प्रदूषित भी हो गया है। इसके चलते यहां पर मच्छरों से ऐसी गंदी बीमारी पैदा हो सकती है जिससे पूरा गांव प्रभावित हो सकता है। ऐसा ना हो इसके लिए पंचायत को जल्द इस ओर ध्यान देने और इसकी सफाई करवाने की जरूरत है। वहीं आशा कार्यकर्ता त्रिशला देवी भी इस गंदे तालाब से चिंतित हैं। उन्होंने बताया कि उनका घर इस दूषित तालाब से बिल्कुल करीब है। इसमें कई वर्षों से गंदा पानी इक_ा हो रहा है। जिसकी वजह से यहां आसपास बहुत ही ज्यादा दुर्गंध और मच्छर है। उन्होंने आशंका जताई कि यदि इसे जल्द साफ नहीं किया गया तो स्थानीय स्तर पर बीमारियां फैल सकती हैं।
उन्होंने कहा कि इस गंदे तालाब के जिम्मेदार स्वयं हम सभी हैं। यदि स्थानीय स्तर पर लोग जागरूक होते तो नौबत यहां तक कभी नहीं आती। प्रकृति द्वारा यह तालाब स्थानीय लोगों के लिए बहुत बड़ा वरदान था, जिससे उनकी जल की समस्या हल हो सकती थी। लेकिन हम मनुष्यों ने इसे अपनी समस्या ही बना लिया। अब यह सामुदायिक जिम्मेदारी बनती है कि सब मिलकर न केवल इसकी सफाई करें बल्कि इसे संरक्षित करने का भी काम करें, ताकि हमारी आने वाली पीढिय़ां इसका भरपूर लाभ उठा सकें। उन्होंने कहा कि स्थानीय पंचायत इस संबंध में सबसे बड़ी भूमिका निभा सकता है क्योंकि यह तालाब हम लोगों की लापरवाही और पंचायत की अनदेखी के कारण ही दूषित हुआ है।
इस संबंध में गांव के सरपंच जगदीश सपोलिया ने कहा कि पंचायत में पैसे की कमी के चलते कई सालों से इसकी साफ-सफाई का कार्य नहीं हो पा रहा है। 2019-20 के पंचायती प्लान में इस तालाब की साफ-सफाई एवं निर्माण कार्य को रखा गया था। परंतु अभी तक हमें इसके लिए कोई पैसा नहीं मिला है, जिसकी वजह से यह काम अधूरा पड़ा हुआ है। सरपंच ने कहा कि पंचायती प्लान में गांव के सभी छोटे बड़े तालाबों की साफ सफाई का प्रस्ताव है। परंतु पैसे की कमी के चलते हम इस कार्य को अंजाम नहीं दे पा रहे हैं। वहीं गांव की पंच उषा देवी के अनुसार इस तालाब के संबंध में ‘बैक टू विलेज’ प्रोग्राम में भी गंभीरता से चर्चा हुई थी। लेकिन अभी तक इसका कोई हल नहीं हो पाया है। हालांकि वार्ड नंबर 6 में स्थित तालाब की मरम्मत हो चुकी है, परंतु पिछले तीन-चार सालों में इस तालाब की समस्या का कोई हल नहीं हो पा रहा है, इसके लिए पूरी पंचायत और मोहल्ला प्रयासरत है।
प्रश्न यह है कि ‘बैक टू विलेज’ जैसे महत्वपूर्ण प्रोग्राम में भी इसका कुछ हल नहीं हो पाया और अभी तक पंचायत का प्लान भी मंजूर नहीं हो पाया, ऐसे में आम आदमी इस समस्या से कैसे निपटे? दरअसल इस समस्या का हल इस प्रकार निकालने की जरूरत है जिससे इसका सदुपयोग भी हो जाये और इसे दूषित होने से भी बचाया जाए। इसके लिए जहां आम लोगों में जागरूकता जगाने की जरूरत है वहीं पंचायत और स्थानीय प्रशासन को भी इस मुद्दे को गंभीरता से हल करने की जरूरत है, ताकि समय रहते न केवल किसी गंभीर बीमारी से बचा जाये बल्कि पर्यावरण को भी संरक्षित किया जा सके।
साभार : hindi.indiawaterportal.org
भरत डोगरा