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दिल्ली में नई शराब नीति पर रार, मुसीबत में केजरीवाल सरकार

दिल्ली में नई शराब नीति पर रार, मुसीबत में केजरीवाल सरकार

दिल्ली की सत्तारूढ़ आम आदमी पार्टी (आप) अपनी नई शराब नीति को लेकर बडी मुसीबत में फंसती नजर आ रही है। दिल्ली के मुख्यमंत्री एवं आप के नेता अरविंद केजरीवाल एवं उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया इस मुसीबत में पार्टी का बचाव करने में लगे हैं। केंद्र में सत्तारूढ़ भाारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने केजरीवाल और सिसोदिया को चुनौती देते हुये कहा है कि वे आबकारी नीति को लेकर तकनीकी सवालों का सही सही जवाब दें क्योंकि आबकारी के सवालों पर ‘कट्टर ईमानदारी’ और ‘बिरादरी’ के नाम की ‘मक्कारी’ नहीं चल पायेगी। कांग्रेस भी केजरीवाल सरकार पर हमलावर हो रही है और यह मुद्दा राष्ट्रीय क्षितिज मंडल पर आरोप प्रत्यासरोप के धूमकेतु की भांति सबका ध्यान आकृष्ट  कर रहा है।

नई शराब नीति में कथित अनियमित्ताजओं की जांच का काम अब केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबाआई) देख रहा है और उसकी आंच मनीष सिसोदिया के दफ्तर और घर तक जा पहुंची है। सिसोदिया के बचाव में केजरीवाल ने आरोप लगाये हैं कि केंद्र सरकार विपक्ष की सरकारों को एक एक कर निशाना बना रही है और उन्हें गिराने के लिये केंद्रीय जांच एजेंसियों का खुला दुरूपयोग किया जा रहा है। दरअसल इस साल के अंत में गुजरात और हिमाचल प्रदेश के विधानसभा चुनाव होने हैं और आप भाजपा के गढ में सेंध लगाने की कोशिश कर रही है। आप गुजरात पर ज्यानदा ध्याजन दे रही है जिसकी बड़ी वजह है कि यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का गृह राज्य है और इसे भाजपा का अभेद्य दुर्ग माना जाता है। अभी तक इस दुर्ग को भेदने की जी तोड़ कोशिश कांग्रेस द्वारा होती रही है लेकिन उसके कमजोर पडऩे और पंजाब में उसे हराने के बाद आप का मनोबल काफी ऊंचा है। केजरीवाल आयेदिन गुजरात के दौर पर रहने लगे हैं और उन्हें लगता है कि उनके लिये नरेंद्र मोदी सरकार से टक्कर लेने और अपना राजनीतिक ग्राफ बढाने का यह सुनहरा मौका है।

अरविंद केजरीवाल नई शराब नीति के कारण आप को होनेवाले संभावित नुकसान को भांप चुके है और यही एक बड़ी वजह है कि उन्होंने इस मुसीबत को टालने के लिये सबसे पहला कदम यह उठाया कि नई शराब नीति वापस ले ली और पुरानी शराब नीति को लागू करने का एलान कर दिया जो एक सितंबर से लागू होने जा रही है। जैसे ही नई शराब नीति को वापस लेने और पुरानी शराब नीति को फिर बहाल करने का एलान किया गया विपक्ष को नया हथियार मिल गया और अब केजरीवाल सरकार के लिये जबाब देना भारी पड रहा है। भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन करने वाले समाजसेवी एवं जननेता अन्ना हजारे के आंदोलन से निकले केजरीवाल खुद जान गये हैं कि इस मामले में भ्रष्टांचार के जो आरोप लग रहे हैं उससे पार पाना आसान नहीं होगा। पंजाब में आप की सरकार बनने का जश्न खत्म भी नही हुआ था कि भ्रष्टाचार के आरोपों के कारण वहां के स्वास्थ्य मंत्री को इस्तीफा देना पड़ा। इसका नतीजा यह हुआ मुख्यमंत्री भगवंत सिंह मान के इस्तीफे से रिक्त हुई संगरूर लोकसभा सीट के उपचुनाव में आप हार गई और शिरोमणि अकाली दल अमृतसर के उम्मीदवार सिमरनजीत सिंह मान विजयी रहे। अभी वह इस मुसीबत से पूरी तरह उबरी नही थी कि दिल्ली की नई शराब नीति ने उसके बेदाग छवि के दावे पर ग्रहण लगा दिया।

भाजपा को आप को घेरने का मौका चाहिये था उसने केजरीवाल और सिसोदिया को एक ही कटघरे में खड़ा करने की मुहिम छेड़ दी है। उसने हमलावर होते हुये कहा है कि दिल्ली की आबकारी नीति को लेकर वह राजनीतिक नहीं बल्कि तकनीकी सवाल पूछ रही है और आबकारी के तकनीकी सवाल के जवाब आबकारी पर होने चाहिए, न कि ‘कट्टर ईमानदारी’ और ‘बिरादरी’ पर। पार्टी ने दिल्ली सरकार की आबकारी नीति के कुछ प्रावधानों को उद्धृत किया है जिसमें स्पष्ट कहा गया है कि शराब उत्पादक, थोक वितरक और खुदरा वितरक, परोक्ष या प्रकारान्तर, किसी भी प्रकार से संबद्ध नहीं होना चाहिए अन्यथा एकाधिपत्य का खतरा बन जाएगा। लेकिन हकीकत दूसरी नजर आ रही है जिसमें ऐसे कई उदाहरण मौजूद हैं जिनमें उत्पादक एवं वितरक एक ही हैं। इंडो स्प्रिट नामक एक कंपनी को उत्पादन का लाइसेंस मिला, उसे ही जोन 04, 23 एवं 22 में वितरण का भी लाइसेंस दिया गया।

भाजपा ने कहा है कि ये उसके आरोप नहीं है, बल्कि आबकारी विभाग ने दिल्ली सरकार से यह पूछा है। गत 25 अक्टूबर 2021 को आबकारी विभाग ने पत्र लिख कर जवाब मांगा था लेकिन इसका कोई जवाब नहीं दिया गया। केजरीवाल सरकार ने आबकारी नीति को सीधे सीधे ध्वकस्तन कर दिया है। लोगों में मिथ्या, भ्रम एवं झूठ फैलाया जा रहा है। दस्तावेजों के अनुसार उत्पादक वही है जो थोक वितरक है और वही खुदरा वितरक भी है तथा इस ‘कट्टर ईमानदारी’ के असत्य को निर्लज्जता से फैलाने वाले भी वही हैं।

भाजपा की दलील है कि आबकारी नीति को बनाने के लिए गठित समिति ने तय किया था कि किसी एक ब्रांड को बढ़ावा नहीं दिया जाएगा। एक पेटी के साथ एक पेटी मुफ्त शराब का प्रचार करना गलत था। समिति का मत था कि थोक वितरक एक सरकारी उपक्रम होना चाहिए जैसे कि कर्नाटक में है, लेकिन  ऐसा नहीं किया गया। केजरीवाल सरकार ने थोक वितरक का कमीशन दो प्रतिशत से बढ़ाकर 12 प्रतिशत क्यों किया, इसका कोई उत्तर नहीं है। नीति में 800 दुकानें खोलने एवं एक-एक आदमी को अलग-अलग दुकानें देने की बात कही गयी थी लेकिन यहां एक ही आदमी को सौ-सौ दुकानें आवंटित की गयी हैं। महादेव एवं बड़ी पंजाब जैसी दो कंपनियां हैं जिनको तीनों लाइसेंस मिले हुए हैं। यही नहीं थोक वितरक लाइसेंस धारकों को जमानत के144 करोड़ रुपए वापस कर दिये गये और छोटे व्यापारियों को कुछ नहीं दिया गया। नीति में लिखा है कि किसी को भी पैसा वापस नहीं किया जाना चाहिए।

भाजपा ने तंज कसते हुये कहा कि दिल्ली ऐसा पहला प्रदेश होगा जहां आबकारी मंत्री और शिक्षा मंत्री एक ही व्यक्ति है। शिक्षा मंत्री ने शराब के सेवन की आयुसीमा घटा दी ताकि विद्यार्थी भी शराब का सेवन कर सकें। पाठशाला तो बनाई नही, बहुत सारी मधुशाला जरूर खोल दी। जब मंत्री महोदय से सवाल विज्ञान का किया जाता है तो वह उत्तर इतिहास का देते हैं क्योंकि दिल्ली के 60 प्रतिशत स्कूलों में विज्ञान पढ़ाया ही नहीं जाता है। वर्ष 2019-20 में दिल्ली में दस हजार करोड़ रुपए की शराब बिकी और 4200 करोड़ रुपए का आबकारी शुल्क मिला। वर्ष 2020-21 में 7860 करोड़ रुपए की शराब बिक्री हुई और आबकारी शुल्क 3300 करोड़ रुपए का मिला। लेकिन वर्ष 2021-22 के सात माह में दस हजार करोड़ रुपए से अधिक की शराब बिकी और आबकारी शुल्क महज 158 करोड़ रुपए मिला। गणित साफ है, राजस्व में तीन हजार करोड़ रुपए और आबकारी शुल्क में 3500 करोड़ रुपए के राजस्व का नुकसान हुआ। अगर यह सही है और किसी सरकार को उसकी नीति से 6500 करोड़ रुपए का नुकसान होता है तो उसे निश्चित रूप से गंभीर अपराध ही माना जायेगा। अब यह सवाल उठ रहे हैं कि आखिर ये पैसा कहां गया। केजरीवाल सरकार को आबकारी से जुड़े इन सवालों के जबाब देने होंगे और जितनी देर होगी उतना ही ज्यादा खामियाजा आप को भुगतना पड़ सकता है।

केजरीवाल और उनके सहयोगियों संजय सिंह और आशुतोष ने पूर्व केंद्रीय मंत्री अरूण जेटली पर दिल्ली एवं डिस्ट्रिक क्रिकेट एसोसियेशन में अध्यक्ष पद पर रहते हुये वित्तीय अनियमित्तायें करने के आरोप लगाये थे और जुबानी जंग के जरिये भाजपा को भी घेरने की कोशिश की थी। जेटली इस आरोप से इतने व्यथथित हो गये कि उन्होंने इन नेताओं के खिलाफ मानहानि का मुकदमा ठोंक दिया। यह प्रकरण वर्ष 2015 में हुआ और इसका अंत 2018 में केजरीवाल के माफीनामे से हुआ। नई शराब नीति के बारे में जो तथ्य सामने आये हैं वह केजरीवाल सरकार के हक में नही जाते दिखते हैं लेकिन केजरीवाल और सिसोदिया अपने बचाव में मुद्दे से हटकर दूसरे मुद्दे खड़े करने की कोशिश कर रहे हैं। पहले शिक्षा नीति को लेकर सिसोदिया का बचाव किया गया और अब भाजपा पर आप के विधायकों की खरीद फरोख्त करने और दिल्ली  में उसकी सरकार गिराने के गंभीर आरोप लगाये गये हैं। केजरीवाल ने दिल्ली विधानसभा का विशेष  सत्र बुलाया और विश्वास मत प्रस्ताव लाने की घोषणा कर डाली। इस सत्र में भाजपा के विधायकों को मार्शल आउट करा दिया गया और विपक्ष को शराब नीति पर बोलने का मौका नही देने का आरोप झेलना पडा।

सीबीआई ने मनीष सिसोदिया और अन्य अभियुक्तों के खिलाफ आपराधिक साजिश रचने के लिये आईपीसी की धारा 120-बी, अनुचित लाभ लेने के लिए अकाउंट्स के साथ फर्जीवाड़ा करने के लिये 477-ए और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम से जुड़े प्रावधानों के तहत मामला दर्ज किया है।मनीष सिसोदिया और तत्कालीन आबकारी आयुक्त ए गोपी कृष्णा और अन्य लोगों पर लाइसेंस धारकों को अनुचित तरीके से फायदा पहुंचाने के लिए सक्षम प्राधिकरण से मंजूरी लिए बगैर आबकारी नीति, 2021-2022 से जुड़े फैसले लेने के आरोप भी लगे हैं। उनपर आरोप है कि आबकारी नीति में गैर-कानूनी तरीके से बदलाव किये गये और लाइसेंस फीस एवं बगैर  अनुमति के लाइसेंस विस्तार में लाइसेंस धारकों को अनुचित फायदे पहुंचाने के लिए नियमों का पालन नहीं किया गया। प्राथमिकी में दर्ज किया गया है कि बड़ी रिटेल प्राइवेट लिमिटेड के निदेशक अमित अरोड़ा, दिनेश अरोड़ा और अर्जुन पांडे सिसोदिया के करीबी सहयोगी हैं जो लाइसेंस धारकों से एकत्र किए गए पैसे सरकारी कर्मचारियों तक पहुंचाते थे।एक और कंपनी महादेव लिकर को लाइसेंस जारी किया गया था। सनी मारवाह इसके अधिकृत हस्ताक्षरकर्ता हैं जो शराब कारोबारी पोंटी चड्डा (जिनकी साल 2012 में हत्या हुई थी) के परिवार की कंपनियों में निदेशक भी हैं। पोंटी चड्डा की वर्ष 2012 में हत्या  कर दी गई थी।

दिल्ली की मंत्रिपरिषद ने पहले उप मुख्यमंत्री को पूरी नीति में जरूरत होने पर छोटे-मोटे कुछ बदलाव करने का अधिकार दिया था लेकिन तत्कालीन उप-राज्यपाल की सलाह पर 21 मई 2021 को मंत्रिपरिषद ने ये फैसला वापस ले लिया था। इसके बावजूद आबकारी विभाग ने उप मुख्यमंत्री की अनुमति से विचाराधीन फैसले लिए और लागू भी किए अर्थात नीति में बदलाव किए गए। सीबीआई ने प्राथमिकी में वरिष्ठ आईएएस अधिकारी प्रवीण राय के पत्र का भी जिक्र किया है जिसमें लिखा है कि प्राथमिक तौर पर ये लगता है कि इस मामले में आबकारी विभाग की कार्रवाई में नियमों का गंभीर उल्लंघन किया गया है। इससे सरकारी खजाने को भी बड़ा नुकसान हुआ है इसलिएये मामला आगे की जांच के लिए सीबीआई को सौंपा जा सकता है। अगर मनीष सिसोदिया और अन्य अभियुक्त इस मामले में संबंधित अदालत में दोषी पाए जाते हैं तो उन्हें कम-से-कम छह महीने के कारावास की सजा हो सकती है। दिल्ली के उप-राज्यपाल विनय कुमार सक्सेना ने दिल्ली की आबकारी नीति को लागू करने में कथित अनियमितताओं को लेकर जांच की सिफारिश की थी।

 

Deepak Kumar Rath

 

अशोक उपाध्याय
(लेखक पूर्व संपादक, यूनीवार्ता, हैं)

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