
रखंड के दुमका में जिंदा जलाई गई अंकिता सिंह की आखिऱकार मौत हो ही गई। पांच दिन तक वह जिंदगी की जंग लड़ती रही। आरोप है कि शाहरुख नाम के युवक ने उसे जिंदा जला दिया था। अंकिता पर शाहरुख ने फोन पर बात करने का दबाव बनाया था। अंकिता नहीं मानी तो उसके घर में घुसकर शाहरुख ने पेट्रोल छिड़कर आग लगा दी। अंकिता को हॉस्पिटल ले जाया गया लेकिन आखिकार वह जिंदगी से जंग हार गई। इस बीच शाहरुख का एक वीडियो भी वायरल हुआ, जिसमें पुलिस कस्टडी के अंदर वह मुस्कुरा रहा है। शाहरुख वही है, जिससे अंकिता बात नहीं करना चाहती थी। शाहरुख ने अंकिता का नंबर कहीं से ले लिया था। इसके बाद उसे फोन करके परेशान कर रहा था। अंकिता ने शाहरुख को कई बार समझाया कि मुझे कॉल मत करो, लेकिन वह माना नहीं। नौबत धमकी तक आ गई। शाहरुख धमकी देने लगा कि अगर तुम मुझसे बात नहीं करोगी तो मैं तुम्हें मार डालूंगा। अंकिता ने शाहरुख की इस हरकत के बारे में परिवार को बताया। इससे पहले परिवार वाले कुछ कर पाते वारदात हो गई।
यहाँ पर मीडिया इसे एकतरफा प्यार की संज्ञा दे रहा है। झारखंड की अंकिता की मृत्यु के मामले में भी मीडिया ने कई खेल कर दिए हैं, परन्तु यह मामला मीडिया ही नहीं कथित बुद्धिजीवियों पर भी प्रश्न उठाता है! झारखंड की अंकिता बच सकती थी, बच सकती थी वह शाहरुख़ के डाले गए पेट्रोल की आग से, यदि उसकी व्यथा को कोई मुख्यधारा का मीडिया जनता तक पहुंचाता। मीडिया तो मीडिया, प्रशासन ने भी अंकिता की परेशानी पर ध्यान नहीं दिया। क्योंकि प्रशासन तो समझौता कराने में लगा हुआ था, जब तीन वर्ष पहले शाहरुख छेनी हथौड़ा लेकर अंकिता के घर में घुस गया था, तो लोगों ने पकड़ कर पीटा था, और फिर मामला पुलिस तक पहुंचा था। मगर समझौता हो गया था। पिछले महीने फिर से 2 अगस्त को भी आरोपी ने अंकिता के घर की ग्रिल तोड़कर घुसने की कोशिश की थी। परन्तु इस बार भी समझौता हो गया था। शाहरुख इतने वर्षों से परेशान कर रहा था, और अंत में आकर उसने जला ही दिया। यह दुर्भाग्य ही है कि कोई शाहरुख किसी अंकिता को इस हद तक परेशान करता रहता है और उसे डर भी नहीं है। यह उसकी विकृत हंसी भी जाहिर होता है। उसे यह डर ही नहीं था कि वह क्या कर रहा है? उसके लिए मुस्लिम बनाना ही एकमात्र लक्ष्य था। वह चाहता था कि कैसे भी अंकिता मुस्लिम बन जाए। जैसा अंकिता के पिता ने भी तमाम इंटरव्यू में बताया कि शाहरुख अंकिता को परेशान करता था, और कहता था कि दोस्ती करो, इस्लाम क़ुबूल करो।
मीडिया खासकर लेफ्ट-मुस्लिम नियंत्रित मीडिया, इस मामले में हमेशा की तरह शाहरुख़ को बचाने की कोशिश में लगा है। शाहरुख पेशे से मजदूर है। इस मुस्लिम-लेफ्ट मीडिया के अनुसार वह अंकिता से एकतरफा इश्क करता था। क्या आपको लगता है कि सारी समस्या की जड़ एकतरफा इश्क है? नहीं! एकतरफा इश्क समस्या नहीं है, समस्या है हिन्दू लड़कियों का मुस्लिम आशिक को इंकार करना। क्योंकि यह एक वर्चस्व की जंग है, जिसमें हर हिन्दू लड़की एक निशाना है।
पाठकों के लिए यह आश्चर्य होना चाहिए की कैसे जहाँ यह मामला पूरी तरह से पहचान का मामला होना चाहिए, अर्थात लड़की की धार्मिक पहचान समाप्त करने वाला, वहीं मीडिया इसे मात्र सिरफिरे की करतूत, या एकतरफा प्यार तक सीमित कर देता है। यह मामला एकतरफा प्यार का तो हो ही नहीं सकता , क्योंकि इसमें प्यार है ही नहीं! प्यार कभी भी इतना स्वार्थी नहीं होता कि जिसके साथ जीवन बिताने का सोचा जाए, उसकी ही हत्या कर दी जाए, या उसे ही जला दिया जाए, यह बहुत ही भयावह मंजर है। इसे हम कुछ भी कह सकते हैं पर यह प्यार नहीं है।
मीडिया और सारा विमर्श इसे प्यार की ओर लेकर जाता है, और एक प्रकार से जो हिन्दुओं का सांस्कृतिक जीनोसाइड इस माध्यम से किया जाता है, उसका संकुचन कर देता है। यह घटनाएं कभी भी प्यार का हिस्सा नहीं थी और न ही हैं एवं न ही रहेंगी। यह इस बात का गुस्सा है कि आखिर ‘काफिऱÓ लड़कियों की इतनी हिम्मत! निकिता तोमर का भी यही मामला था, और दिल्ली में एयर होस्टेस का कोर्स कर रही एक लड़की का भी, जिसे बीच सड़क पर चाकू से वार करके ‘आदिलÓ ने मार दिया था। झारखंड में जो कुछ भी अंकिता के साथ हुआ वह न ही पहला है और न ही आखरी! यह काफिरों की कोख और काफिरों के शरीर पर अधिकार की भावना है।
वरिष्ठ पत्रकार सोनाली मिश्रा लिखती है ‘यह जो इंकार का दुस्साहस है, वही इन लड़कियों की मौत का कारण बनता है कि आखिर इंकार कर कैसे दिया? क्योंकि काफिर लडकियाँ तो माल-ए-गनीमत होती हैं। निकिता तोमर ने इंकार करने का दुस्साहस किया तो उसे सरे आम गोली मार दी गयी।
जो ऐसी हत्याएं होती हैं, वह कट्टरपंथी इस्लामी विस्तारवादी मानसिकता का प्रदर्शन करती हैं, जहाँ पर यह विकल्प दिया जता है कि या तो हमारी बात मानो या फिर मैं तुम्हें मार दूंगा। बस यही विमर्श है इसके अतिरिक्त कुछ नहीं। प्यार में सिरफिरे आशिक जैसी बातें इस विमर्श से ध्यान हटाने की चाल है। न ही निकिता वाले मामले में प्यार का लेनादेना था क्योंकि जब भी ऐसे मामले होते हैं तो उसमें लड़की की धार्मिक पहचान मिटाना पहली शर्त होती है, जैसा हम रोज ही देखते हैं।
यह हत्या होती है उस खीज की, जो उस एक काफिर की कोख को कब्जे में न ले पाने के चलते उपजती है। तभी मंदिरों के गर्भगृह पर आक्रमण किया जाता है और मंदिर के गर्भगृह पर कब्जे का प्रयास होता है जिससे उस गर्भ में अपना विमर्श स्थापित कर सकें!
एक-एक लड़की, जो भी इस जाल का शिकार होती है, वह इसीलिए शिकार होती है क्योंकि संघर्ष यही है कि उसकी कोख से जो नया जन्म होगा वह किस विमर्श का होगा? कबीलाई तहजीब का या युगों-युगों से सनातनी सभ्यता का! हर सभ्यता की लड़की उस सभ्यता को आगे ले जाने का माध्यम है, वह इसे अपनी कोख के माध्यम से करती है, जब वह अपनी ही संस्कृति के पुरुष से प्रेम करती है, वह नई संस्कृति को अपनी कोख में पल्लवित करती है! और जो कबीलाई मानसिकता है वह इसी पर अपना अधिकार जमाने की कोशिश करती है! यही जंग है, यही सांस्कृतिक पहचान नष्ट करने का षड्यंत्र है!
संस्कृति का मानव सभ्यता से गहरा संबंध है। सभ्यता की आत्मा वहां की संस्कृति है। संस्कृति के खत्म होते ही सभ्यता का भी विनाश हो जाता है। इसका ज्वलंत उदाहरण हमने यूनान, रोम और मिस्र आदि सभ्यताओं के विलुप्त होने में देख सकते हैं। लोग भले ही उन पुरानी सभ्यताओं में रहने वाले लोगों के ही वंशज हों, किन्तु आज वे सांस्कृतिक रूप से बिलकुल अलग हैं। इस प्रकार संस्कृति मानव सभ्यता की आत्मा है। वर्तमान समय के सभी वैज्ञानिक और तकनीकी उपलब्धियां इन पुरातन सभ्यताओं की ही देन है। विज्ञान, गणित व खगोल के लगभग सभी प्रारंभिक ज्ञान भारतीय, चीनी, यूनानी, एवं सभ्यताओं से लिए गए हैं।
वर्तमान समय में कई समृद्ध सभ्यताओं का वजूद खत्म हो गया है, और इसमें भी कोई दो रे नहीं होनी चाहिए की उनको समाप्त करने के पीछे संसार में इस्लाम और ईसाई चरमपंथियों की महत्वपूर्ण भूमिका है। इन पंथों की ऐसी प्रवृति के पीछे उनकी विस्तारवादी महत्वाकांक्षा है। इस्लाम और ईसाई के अलावा दुनिया के किसी भी पंथ में पूरी दुनिया का धर्मपरिवर्तन कराने का उद्देश्य नहीं है। रेगिस्तान में जन्मे इन दो पंथों ने धर्म के नाम पर जितने लोगों को मारा है, उतने लोग किसी भी विश्व-युद्ध, आकाल या महामारी में नहीं मारे गए। लोगों को मारने के साथ साथ इन्होने वहाँ की संस्कृति का भी समूल नाश कर अपने पंथ को स्थापित किया।
हिन्दू सभ्यता एवं संस्कृति विश्व की उन बची-खुची प्राचीन सभ्यताओं में से एक है, जिसे ये दोनों तमाम कोशिशों के बाद भी पूरी तरह खत्म नहीं कर पाये। हालांकि ये अभी भी प्रयासरत हैं और उनका क्षद्म-युद्ध अभी भी जारी है। अंकिता को जि़ंदा जलाना इसी युद्ध का एक हिस्सा है। यही कल्चरल जेनोसाइड है।
नीलाभ कृष्ण