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भारत जोड़ो नही कांग्रेस जोड़ो है संकट

भारत जोड़ो नही कांग्रेस जोड़ो है संकट

ग्रेस अपने राजनीतिक पराभव से उबरने की लगातार कोशिश कर रही है। अब उसने पार्टी को संजीवनी देने के लिये भारत जोड़ो यात्रा शुरू की है जिसके नायक एक बार फिर राहुल गांधी हैं। नरेंद्र मोदी सरकार के खिलाफ इस बार वह महंगाई और बेरोजगारी को मुद्दा बनाने की मुहिम छेड़ऩा चाहते हैं और इस यात्रा के जरिये जनता जनार्दन में अलख जगाने का संकल्पी व्यकक्ता कर रहे हैं। इस क्रम में दिल्ली के रामलीला मैदान में कांग्रेस पार्टी ने बड़ी रैली की जिसमें राहुल गांधी के अलावा गांधी परिवार के और किसी सदस्य  ने शिरकत नही की। कई कद्दावर नेता भी नही दिखे लेकिन सत्तां संभाल रहे राजस्थान के मुख्य मंत्री अशोक गहलोत,छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भुपेश बघेल और अनेक वरिष्ठ नेता अपने दलबल के साथ मौजूद थे। राहुल ने एक बार फिर सरकार पर आरोप लगाया कि वह प्रवर्तन निदेशालय (ईडी)और केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) का डर पैदा करना चाहती है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वतंत्रता दिवस के मौके पर लाल किले के प्राचार से दिये अपने भाषण में भ्रष्टाचार के खिलाफ निर्णायक लडाई में देशवासियों से साथ देने की अपील की जिसके कारण विपक्षी दल असहज महसूस कर रहे हैं और खास कर भ्रष्टाचार के आरोपों का सामना कर रहे नेता रक्षात्मक होने के बजाय आक्रामक तेवर अपना रहे हैं। कोई कह रहा है कि हम जांच से डरते नही तो कोई कह रहा है कि वे जांच एजेंसियों का उनके घर आने पर उनका स्वागत करेंगे। पिछले एक दशक से राहुल गांधी नेशनल हेराल्ड धन शोधन मामले में अपनी मां और कांग्रेस की अध्याक्ष सोनिया के साथ ईडी की जांच का सामना कर रहे हैं और इस मामले में जमानत पर हैं। ईडी के अधिकारी उनसे नेशनल हेराल्ड कंपनी का मालिकाना हक लेने की प्रक्रिया में कथित भारी अनियमित्ताओं को लेकर पूछताछ कर चुके हैं।

केंद्र में सत्तारूढ भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ विपक्ष एकजुट हो रहा है और उसमे शामिल हो रहे राजनीतिक दल शायद यह मान बैठे हैं कि अब उनके पास अपने बूते मोदी सरकार से लड़ पाना संभव नही है।वे 2024 के लोकसभा चुनाव को लेकर अभी से लामबंद हो रहे हैं और इसी क्रम में कांग्रेस भी सबसे आगे दिखने की कोशिश में है। बिहार में एक बार फिर नया राजनीतिक बदलाव हुआ है और पुराने प्रतिद्वंदी फिर से राजनीतिक सगे संबंधी बन गये है। कभी राष्ट्रीिय जनता दल के नेता लालू यादव के मुखर विरोधी रहे जनता दल के नेता और बिहार के मुख्यमंत्री नीतिश कुमार ने यादव परिवार का दामन फिर से थाम लिया है। कांग्रेस भी नीतिश की नई गठबंधन सरकार में शामिल हो गई है। नीतिश कुमार ने राहुल गांधी से दिल्ली आकर मुलाकात की और एक बार फिर कहा कि वह प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नही हैं। उन्होंने यह भी दलील दी है कि इस बार थर्ड फ्रंट नही बल्कि मेन फ्रंट बनेगा जो मोदी सरकार के खिलाफ लडेगा।

नीतिश कुमार की नई पहल के बाद विपक्ष की एकता को लेकर लंबे समय सक्रिय तृणमूल कांग्रेस की नेता ममता बनर्जी अचानक से मौन से हो गई हैं। ममता ने हाल के राष्ट्र पति और उपराष्ट्रपति के चुनाव में विपक्ष के साझा उम्मीदवार से किनारा कर लिया था। विपक्ष की एकजुटता को लेकर शुरू हुये प्रयासों के बीच कांग्रेस में मोहभंग और उसके नेतृत्व  का संकट उसके लिये कहीं ज्यादा बडी परेशानी का सबब है। कांग्रेस के वरिष्ठ  नेता गुलाम नबी आजाद के इस्तीफे ने पार्टी को हिला कर रख दिया है। आजाद का गांधी परिवार से लगभग चार दशक पुराना रिश्तो है और वह पार्टी के पुराने और दिग्ग ज नेताओं के चर्चित समूह जी23 में शामिल थे। उन्होंने राहुल गांधी पर निशाना साधा है।

कांग्रेस की नाव को भंवर से निकालने वाले दिग्गज नेताओं का पार्टी को छोड़कर जाने का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है। कभी ये नेता गांधी परिवार के पास कांग्रेस की बागडोर रहने के पक्षधर थे लेकिन अब उसी को खिलाफ कड़वे बोल बोल रहे हैं। अब उन्हेें कांग्रेस में अपना भविष्य नजर नहीं आ रहा है। नरेन्द्र मोदी की सरकार बनने के बाद से कांग्रेस में नेतृत्व  को लेकर उहापोह की स्थिति बनी हुई है। सोनिया गांधी के स्वोस्य्की  को लेकर खबरें आती रही हैं और उनकी सक्रियता निरंतर कम होती जा रही है। पिछले लोकसभा चुनावों के बाद से कांग्रेस असंतोष के भंवर में फंसती चली जा रही है।

पहले यह लग रहा था कि राहुल गांधी पार्टी के सर्वमान्य  नेता बन सकते हैं लेकिन उनकी युवा टीम के बाकी नेताओं के बढ़ते प्रभाव के कारण उनके कट्टर समर्थक असहज हो गये। पिछले लोकसभा चुनाव में बडी पराजय ने राहुल गांधी की छवि को लेकर अनेक सवालिया निशान लगाये। राहुल गांधी पार्टी का नेतृत्व संभालने से हिचकिचाते दिखे जिसके कारण एक बार फिर सोनिया गांधी पर कांग्रेस को एकजुट करने और उसे मजबूत करने की जिम्मेदारी आ गई।

एक रिपोर्ट के अनुसार, 2014 और 2021 के बीच हुए चुनावों के दौरान 222 चुनावी उम्मीदवारों ने कांग्रेस पार्टी छोड़ी, जबकि 177 सांसदों और विधायकों ने पार्टी को अलविदा कहा। भाजपा की केंद्र में 2014 में  सरकार बनने के बाद से अब तक कई दिग्गज और बड़े नेता कांग्रेस का साथ छोड़ चुके हैं। कांग्रेस पार्टी छोडऩे वाले अन्यं प्रमुख नेताओं में अमरिंदर सिंह,नारायण दत्तग तिवारी, अजीत जोगी, शंकर सिंह वाघेला, कपिल सिब्बुल, जयंती नटराजन, हेमंत बिस्व़ सरमा, रीता बहुगुणा, जगदंबिका पाल, आर पी एन सिंह, सुनील जाखड, हार्दिक पटेल, अश्विनी कुमार, नरेश रावल, राजू परमार,जितिन प्रसाद, सुष्मिता देव, मुकुल संगमा, पीसी चाको, टाम वडक्क्न, नारायण राणे, सतपाल महाराज, प्रियंका चतुर्वेदी शामिल हैं।

नेहरू गांधी परिवार के हाथ में कांग्रेस की कमान को लेकर असंतोष का लंबा इतिहास है। आजादी के आंदोलन से लेकर देश के आजाद होने तक यह परिवार सुर्खियों में रहा है। राष्ट्र पिता महात्माा गांधी को पंडित जवाहर लाल नेहरू पर बहुत भरोसा था और कई मौकों पर उन्होंने नेहरू को आगे करके अनेक दिगगज नेताओं की अनसुनी की। यही नही नेहरू को कांग्रेस की कमान सौंपने के लिये गांधी जी ने ब्रह्मास्त्रक का इस्तेंमाल किया और सरदार वल्लयभ भाई पटेल को नेहरू का साथ नही छोडऩे के लिये राजी किया। देश आजाद हुआ और नेहरू के हाथ में सत्ताह की बागडोर आई। नेहरू के निधन के बाद लाल बहादुर शास्त्री प्रधानमंत्री बने और नेहरू की बेटी इंदिरा गांधी उनके मंत्रिमंडल में सूचना प्रसारण मंत्री बनीं। पुराने दिग्ग ज कांग्रेसी नेता जो इस परिवार को लेकर असंतोष जाहिर करते रहते थे उन्हों ने लालबहादुर शास्त्री  के आकस्मिगक निधन के बाद इंदिरा गांधी को  प्रधानमंत्री बनने से रोकने भरपूर कोशिशें की लेकिन वे कामयाब नही हुये।

यही नही 1969 में राष्ट्रशपति के चुनाव में नीलम संजीव रेड्डी कांग्रेस समर्थित उम्मीदवार बने लेकिन इंदिरा गांधी ने वी वी गिरी को उम्मीदवार बनवाया और चुनाव से ऐन पहले अपील की कि लोग अपनी अंतरआत्मा की आवाज वोट दे सकते हैं। नतीजा यह हुआ कि नीलम संजीव रेड्डी हार गये और अंतत: कांग्रेस का विभाजन हो गया। कांग्रेस की कमान और देश की सत्ता  इंदिरा गांधी के हाथ में आ गई। इमरजेंसी लगने से पहले और बाद में कांग्रेस पुराने दिग्गीज नेता इंदिरा गांधी के खिलाफ थे और जनता पार्टी बनाकर उन्हों ने सत्ता भी हासिल की लेकिन फिर आपसी कलह के कारण बिखर गये। नतीजा यह हुआ कि इंदिरा गांधी की सत्ता में वापसी हुई। इंदिरा की हत्या के बाद राजीव गांधी उत्तराधिकारी बने और सहानुभूति की लहर के सत्तां पर काबिज हो गये।

बोफोर्स घोटाले के कारण राजीव गांधी सत्ता से बाहर हो गये लेकिन उन्हों ने विपक्ष में रहते हुये फिर सहानुभूति बटोरी और कांग्रेस की जीत सुनिश्चित की। चुनाव प्रचार के दौरान राजीव की हत्याय के बाद पी वी नरसिंह राव प्रधानमंत्री बने और उनके कार्यकाल में गांधी परिवार ने कांग्रेस से किनारा कर लिया था लेकिन फिर सोनिया गांधी आगे आईं और 2004 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को मिली जीत ने इस परिवार की धाक फिर से कायम कर दी। दस साल केंद्र की सत्ता  में रहने के बाद 2014 में कांग्रेस भाजपा से हार गई और तब से यह परिवार अपने वर्चस्व की लडाई लड रहा है। संगठन के लिहाज से कांग्रेस कमजोर हो रही है और गांधी परिवार इस सच को जान रहा है, अब देखना होगा कि वह अपनी कमियों को दूर करने के लिये कौन सा रास्तां अख्तियार करेगी।

लेकिन गुलाम नबी आजाद ने कांग्रेस छोडने की वजह गिनाते हुये जिस तरह से राहुल गांधी पर निशाना साधा उससे कांग्रेस में यह बहस तेज हो गई कि गांधी परिवार के सदस्ये को फिर कांग्रेस की कमान सौंपी जानी चाहिये या नहीं। कांग्रेस के अध्यंक्ष पद के चुनाव की तारीखों का एलान हो चुका है और 17 अक्टूरबर को चुनाव कराना तय हुआ है। कांग्रेस के वरिष्ठक नेता शशि थरूर के अध्य क्ष पद का चुनाव लडने की अटकलें लग रही हैं। आनेवाले दिनों में गांधी परिवार पर असंतुष्टी एवं दिग्गज कांग्रेसी नेताओं की प्रतिक्रियायें आयेंगी लेकिन यह पहली बार नही हो रहा है। लेकिन रामलीला मैदान की रैली में जिस तरह से राहुल गांधी को फिर से अध्य्क्ष बनाने के समर्थन में नारे लगे उससे यह संदेश गया कि पुराने दिगगज नेताओं में इस बात को लेकर एक्राय नही है कि अध्यंक्ष पद गांधी परिवार के अलावा किसी और को सौंपा जाय या नहीं। यह भी सच है कि कांग्रेस लगातार बिखर रही है और जिस तरह से राहुल गांधी के नेतृत्व  में पार्टी  केंद्र सरकार के खिलाफ जनजागरण के लिये भारत जोड़ो यात्रा कर रही है वह दरअसल कांग्रेस जोड़ो अभियान है।

अशोक उपाध्याय
(लेखक पूर्व संपादक, यूनीवार्ता, है)

 

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