
भारत में श्रीलंका के उच्चायुक्त मिलिंद मोरगोडा ने अगस्त 2022 में नई दिल्ली में एक साक्षात्कार में भारत-श्रीलंका संबंधों के बारे में कहा, ”जब इस क्षेत्र की सुरक्षा में भारत ही रखवाला है। भारत को इस क्षेत्र का सुरक्षा रखवाला मानने वाला श्रीलंका अकेला नहीं है। हिंद महासागर क्षेत्र (आईओआर) के लगभग सभी देशों के साथ-साथ भारत से जमीनी सीमा साझा करने वाले पड़ोसी देश भी इधर ऐसी ही बातें कहने लगे हैं। इससे इस क्षेत्र के साथ-साथ दुनिया भर में भारत के बढ़ते कद का पता चलता है।
‘नेट सेक्युरिटी प्रोवाइडर प्रोवाइडर’ या कुल सुरक्षादाता शब्द अभी थोड़ा स्पष्ट है और उसके कई मायने निकाले जा सकते हैं। हालांकि, मोटे तौर पर, इसका मतलब आतंकवाद, समुद्री डकैती, नशीले दार्थों की तस्करी, हथियार तस्करी, मानव तस्करी जैसी सामान्य सुरक्षा चिंताओं को दूर करके क्षेत्र में स्थिरता कायम करने की क्षमता और इच्छाशक्ति है। इस भूमिका में भूकंप और सूनामी जैसी प्र्रकृतिक आपदाओं के दौरान मानवीय सहायता प्र्रदान करना, और जलवायु परिवर्तन, ग्लोबल वार्मिंग, पर्यावरण संरक्षण और ऐसे मुद्दों पर साझा लक्ष्यों की दिशा में काम करना शामिल है, जिन ध्यान न दिया जाए तो दुनिया के लिए विनाशकारी साबित हो सकते हैं।
कुल सुरक्षादाता बनने और क्षेत्र में स्थिरता कायम रखने में भूमिका अदा करने के लिए ताकत और इच्छाशक्ति दोनों की आवश्यकता होती है। भारत ने पिछले कुछ वर्षों इसका प्र्रदर्शन किया है। इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि यह दुनिया को एक परिवार के रूप में देखने के भारतीय सांस्कृतिक मूल्य से भी जुड़ता है, जिसे ”वसुधैव कुटुंबकम” कहा गया है।
भारत की भौगोलिक स्थिति भी ऐसी भूमिका निभाने के लिए आदर्श है। हिंद महासागर में भारत की केंद्रीयता अफ्रीका के पूर्वी तट से मलक्का तट और उससे आगे तक भारत की पहुंच को सक्षम बनाती है। भूमि सीमाओं में उसक दायरे में पड़ोसियों के साथ यूरेशियाई क्षेत्र भी आता है। इस भूमिका के सैन्य मामलों में क्षमता निर्माण, साझा प्र्रशिक्षण, सैन्य सहायता प्र्रदान करने के प्र्रोटोकॉल और स्थिरता कायम करने के लिए सैन्य बलों की तैनाती शामिल होगी। राजनयिक मोर्चे पर, इसमें चिंताजनक मुद्दों से निपटने के लिए द्विपक्षीय और बहुपक्षीय भागीदारी का निर्माण शामिल है।
भारत की कुल सुरक्षादाता के रूप में भूमिका उसके सांस्कृतिक मूल्यों और उसकी आर्थिक और सैन्य ताकत दोनों का नतीजा है। कई वर्षों तक इस भूमिका की आकांक्षा ही बनी रही। जनवरी 2016 में पूर्व प्र्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार रहे शिवशंकर मेनन ने कहा कि भारत पहले सीमित क्षमताओं और अन्य देशों से ऐसी सुरक्षा प्र्रदान करने के कारण ऐसी भूमिका से संकोच करता रहा। लेकिन अब स्थिति बदल रही है और भारत को ”इस क्षेत्र में स्थिरता और सुरक्षा के लिए वास्तविक राजनीतिक और सैन्य योगदान देना होगा जो हमारी अर्थव्यवस्था और सुरक्षा के लिए बहुत महत्वपूर्ण है।”
भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए गठबंधन के 2014 में सत्ता संभालने के बाद इस दिशा में फोकस बढ़ा है। मार्च 2015 में मॉरीशस की अ नी यात्रा के दौरान प्र्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सुरक्षित और स्थिर हिंद महासागर क्षेत्र के लिए सागर सिद्धांत की घोषणा की, जो सभी को सुरक्षा और समृद्धि प्र्रदान करे। सागर क्षेत्र में सेक्युरिटी ऐंड ग्रोथ फॉर आल का कूटशब्द है। जून 2018 में, सिंगापुर में शंगरीला डायलॉग में प्र्रधानमंत्री मोदी ने भारत के हित क्षेत्र को अफ्रीका के पूर्वी तट से लेकर अमेरिका के पश्चिमी तट तक विस्तृत बताया और कहा कि दुनिया की नियति हिंद-प्र्रशांत क्षेत्र के घटनाक्रमों से गहरे प्र्रभावित होगी और विरासत की चुनौतियों के बावजूद, हमारी ”सामूहिक आशाओं और आकांक्षाओं” में उसे आकार दिया जा सकता है। उन्होंने आह्वान किया कि यह ऐसा स्वतंत्र, खुला, समावेशी क्षेत्र बने, जिसमें प्र्रत्येक राष्ट्र को प्र्रगति और समृद्धि के समान अवसर हो और क्षेत्र एक सामान्य नियम से संचालित हो, जिसमें सभी देशों की संप्र्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान हो, चाहे उनका आकार या ताकत कुछ भी हो। उन्होंने समुद्र और वायु मार्ग दोनों में स्वतंत्र नौवहन और अबाध व्यापार की सुविधा मुहैया कराने की बात की और हिंद-प्र्रशांत क्षेत्र में स्वतंत्र और खुले नेविगेशन तथा नियम आधारित व्यवस्था के प्र्रति भारत की प्र्रतिबद्धता को दोहराया।
बतौर कुल सुरक्षादाता भारत
2014 के बाद से, भारत इस भूमिका को निभाने में धीरे-धीरे लेकिन लगातार आगे बढ़ा है। पहले इस तरह का कदम उठाने में थोड़ी दुविधा रहती थी। भारत की विदेश नीति 2014 के बाद से पड़ोसियों के साथ-साथ व्यापक हिंद-प्र्रशांत क्षेत्र और दूसरे देशों से संबंधों के बारे में कहीं अधिक मुखर रही है। अतीत की दुविधा को तोड़कर अब भारत की विदेश नीति ज्यादा सक्रिय रुख अपना रही है।
भारत के पड़ोसियों को सहायता प्र्रदान करने में अग्रणी भूमिका निभाने का पहला संकेत प्र्रधानमंत्री मोदी के जून 2014 में, पद संभालने के महज एक महीने बाद, भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) को दिए गए उस निर्देश में मिला कि ऐसा उपग्रह विकसित किया जाए, जिसका उपयोग दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संघ (सार्क) के सभी सदस्य देश कर सकें। लिहाजा, 2017 में संचार उपग्रह जीसैट-09 लॉन्च हुआ, जिसे दक्षिण एशियाई उपग्रह कहा जाता है। जीसैट-09 लाभार्थी देशों को टेली-कम्युनिकेशन, टेली-एजुकेशन और दूसरी सेवाएं प्र्रदान करता है। वह मौसम डेटा, प्र्राकृतिक आपदाओं पर अलर्ट आदि भी प्र्रदान करता है। उसके बाद से भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम में भी एक अलग किस्म की तेजी आई। लिहाजा, चंद्रयान या स्वदेशी क्रायोजेनिक इंजन और इसरो के लॉन्च वाहनों के लिए अर्ध क्रायोजेनिक इंजन का विकास होने लगा। जिसका उद्घाटन 27 सितंबर 2022 को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने किया। 27 मार्च 2019 को एंटी-सैटेलाइट टेस्ट (मिशन शक्ति) का सफल प्र्रदर्शन ऐसा कारनामा था जिसे पहले केवल अमेरिका, रूस और चीन ने ही पूूरा किया था। परीक्षण का प्र्रमुख मकसद तो भारत-चीन सामरिक संतुलन की कोशिश था, मगर वह कई उभरती हुई भारतीय बैलिस्टिक मिसाइल रक्षा प्र्रौद्योगिकियों के विकास में भी मददगार होगा। इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि अंतरिक्ष के उपयोग पर किसी भी बाद की संधियों के दौरान अब भारत सिद्ध क्षमता वाला देश की तरह शामिल होगा। जब भी इस क्षेत्र में आपदाएं आई हैं, भारत मानवीय सहायता और आपदा राहत देने में भी सक्रिय रहा है।
भारत ने दिसंबर 2014 में समुद्र के स्तर में बढ़ोतरी के दौरान मालदीव को सहायता प्र्रदान की। 25 अप्र्रैल 2015 (ऑपरेशन मैत्री) को 7.6 तीव्रता के भूकं की चपेट में आने पर नेपाल को तत्काल सहायता प्र्रदान की गई।
इसके बाद, भारत ने पुनर्निर्माण के प्र्रयास में सहायता प्र्रदान की।
2017 में, भारत ने बांग्लादेश और श्रीलंका की सहायता की, जब वे क्रमश: विनाशकारी चक्रवात और बाढ़ की चपेेट में थे। इस तरह के अधिकांश संकट लाल सागर और मलक्का जलडमरूमध्य के बीच समुद्री बेल्ट में होते हैं और भारत कभी भी सहायता और सहायता प्र्रदान करने से नहीं कतराता है।
भारत युद्धग्रस्त क्षेत्रों से अपने जवानों को निकालने में भी सक्रिय रहा है, और इस प्र्रक्रिया में मित्र देशों के कर्मियों को भी निकाला है। 2015 में यमन, 2021 में अफगानिस्तान और हाल ही में 2022 में यूक्रेन में मदद भारत की प्र्रतिबद्धता के उदाहरण हैं। यह भारत के बढ़ते प्र्रभाव की मिसाल है, विशेष रूप से कई बड़े देश अपने जवानों को निकालने में लडख़ड़ा गए और ऐसा करने के लिए भारत की मदद मांगी। इन सभी ने भारत की साख में इजाफा किया है, जिसने एक तरह से भारत को जरूरत के समय सहायता प्र्रदान करने के वाला रखवाला बना दिया है।
क्षमता विकास
कुल सुरक्षादाता होने के नाते आर्थिक और सैन्य ताकत को विश्वसनीय होने की भी आवश्यकता होती है। 2014 के बाद से भारत की सैन्य क्षमता को बढ़ाने के लिए ठोस प्र्रयास किए गए हैं। अमेरिका से सी130जे सुपर हरक्यूलिस विमान के साथ-साथ चिनूक हेलीकॉप्टरों की खरीद से भारत की सामरिक क्षमता बढ़ी है। फ्रांस से राफेल लड़ाकू जेट और अमेरिका से अपाचे हेलीकॉप्टरों की खरीद के माध्यम से हवाई हमले की क्षमता को बढ़ाई गई। स्वदेशी मोर्चे पर, भारत के तेजस लड़ाकू जेट की उम्र हो चली है इसलिए पांचवीं पीढ़ी के एएमसीए (उन्नत मध्यम लड़ाकू विमान) परियोजना पर फोकस किया गया है। उम्मीद है कि 2025-26 में इसका पहला प्र्रोटोटाइप रोल आउट होना चाहिए। भारत का स्वदेशी रूप से विकसित हल्के लड़ाकू हेलीकॉप्टर (एलसीएच) की तैनाती हो चुकी है। इसका पहला हेलीकॉप्टर नवंबर 2021 में पीएम मोदी ने वायु सेना को सौंप। भारत ने विमानवाहक पोत की डिजाइन और निर्माण में भी अपनी क्षमता का प्र्रदर्शन किया है। 2 सितंबर 2022 को स्वदेश निर्मित विमानवाहक पोत आईएनएस विक्रांत को कमीशन किया गया। इससे भारत ऐसी क्षमता वाले चुनिंदा देशों के क्लब में शामिल में हो गया है। भारत ने पहले ही पनडुब्बियों और युद्धपोतों का निर्माण कर लिया है और अब, स्वदेशी विमानवाहक पोत के साथ, जहाज निर्माण क्षमता में एक कदम आगे बढ़ा रहा है। बुलेट प्र्रूफ जैकेट, आर्टिलरी गन, छोटे हथियार, गोला-बारूद, मिसाइल और बख्तरबंद वाहनों से लेकर अपने ने शस्त्रागार में स्वदेशी उपकरणों के एक बड़े जखीरे के साथ भारतीय सेना की क्षमता भी बढ़ी है।
रक्षा मंत्रालय की एक नीतिगत हल भी महत्वपूर्ण है, जिससे पहली बार रक्षा उत्पादन में निजी क्षेत्र बड़ी भूमिका मिली है। तमिलनाडु और उत्तर प्र्रदेश मे दो रक्षा औद्योगिक गलियारों से रक्षा उत्पादन में स्वदेशी अभियान को काफी बढ़ावा मिलेगा, जिससे भारत रक्षा औद्योगिक केंद्र बन जाएगा। निर्यात नियमों में भी ढील दी गई है। नतीजतन, भारत ने फिलीपींस को ब्रह्मोस सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल निर्यात करने के लिए 37.5 करोड़ अमेरिकी डालर के सौदे पर हस्ताक्षर किए। यह महत्पूर्ण है कि इससे भारत हथियारों और उप करणों का प्र्रमुख निर्यातक बन सकता है। 2014-15 में, भारत का रक्षा निर्यात सिर्फ 1940 करोड़ रुपए था। यह 2021-22 में बढ़कर 12815 करोड़ रुपए हो गया है, जो वास्तव में विश्वसनीय प्र्रदर्शन है। रक्षा मंत्रालय ने 2025 तक 1.75 लाख करोड़ रुपए के रक्षा उत्पादन का लक्ष्य रखा है, जिसमें 35,000 करोड़ रुपए का निर्यात शामिल होगा। देश के रक्षा उत्पादन में अभी तक सार्वजनिक क्षेत्र की भागीदारी ही रही है, निजी क्षेत्र की भूमिका 20 से 30 प्र्रतिशत होने की उम्मीद है। यानी भारत अब रक्षा औद्योगिक के युग में प्र्रवेश कर रहा है। सभी प्र्रकार की वस्तुओं और सेवाओं के लिए स्वदेशी उत्पादन पर जोर अब भारतीय उद्योग जगत में भी चर्चा का विषय बन गया है। कॉर्पोरेट क्षेत्र निर्धारित लक्ष्यों को प्र्रप्त करने और आयातित वस्तुओं पर निर्भरता कम करने पर अपना ध्यान लगा रहा है। कोई आश्चर्य नहीं कि भारत अब 30 खरब डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने की ओर अग्रसर है और हाल ही में ब्रिटेन को छोड़कर दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है।
बहुपक्षीय व्यवस्थाएं
भारत की ‘ पड़ोसी पहले’ की नीति ने मौजूदा बहुपक्षीय व्यवस्थाओं को मजबूत किया है। बंगाल की खाड़ी बहु-क्षेत्रीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग हल (बिम्सटेक) और आसियान देशों के लिए ‘एक्ट ईस्ट’ नीति दोनों की प्र्रशंसा हुई है। इसके अलावा पश्चिम देखो नीति पश्चिम एशिया के देशों पर केंद्रित है। इन सभी पहलों पर जोर की वजह से सिंगापुर से लेकर खाड़ी देशों तक में भारत के संबंध मजबूत हुए हैं। इस क्षेत्र से परे, भारत ने ब्रिक्स और एससीओ में भी प्र्रमुख भूमिका निभाई है। ब्रिक्स (बीआरआइसीएस) पांच प्र्रमुख उभरती बाजार अर्थव्यवस्थाओं- ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका के लिए कूटशब्द है। जीडीपी के मामले में, चीन, भारत, ब्राजील और रूस फिलहाल विश्व रैंकिंग में क्रमश: दूसरे, पांचवे, आठवे और ग्यारहवें स्थान पर हैं और दक्षिण अफ्रीका 32 वें स्थान पर है। चीन, भारत, ब्राजील और रूस जी-20 का भी हिस्सा हैं। यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि ब्रिक्स देशों में दुनिया की लगभग 42 प्र्रतिशत आबादी रहती है। राजनीतिक, आर्थिक और सुरक्षा संगठन, शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) मुख्य रूप से सुरक्षा पर केंद्रित है, जिसमें मुख्य खतरों को आतंकवाद, अलगाववाद और अतिवाद के रूप में वर्णित किया गया है। एससीओ भारत को मध्य एशियाई देशों के साथ अपने ने संबंधों को गहरा करने के साथ-साथ इस क्षेत्र में आतंकवाद विरोधी कोशिशें को आगे बढ़ाने के लिए मंच प्र्रदान करता है।
भारत चतुर्भुज सुरक्षा वार्ता का भी सदस्य है, जिसे क्वाड कहा जाता है और यह चार देशों-ऑस्ट्रेलिया, भारत, जापान और अमेरिका का समूह है। मार्च 2021 में, क्वाड समिट में जारी संयुक्त बयान में हिंद-प्र्रशांत क्षेत्र को स्वतंत्र, खुला, समावेशी और लचीला बनाने और अंतरराष्ट्रीय कानून को बढ़ावा देने की बात कही गई।
क्वाड भारत के लिए ब्रिक्स और एससीओ की तुलना में एक पूरी तरह अलग समूह का प्र्रतिनिधित्व करता है। दोनों में यूरेशिया में भारत के हितों पर ध्यान दिया गया है, जबकि क्वाड हिंद-प्र्रशांत क्षेत्र में भारत की चिंताओं से जुड़ा हुआ है, जिसमें स्वतंत्र और खुले नेविगेशन पर ध्यान दिया गया है, जो भारत की सुरक्षा और आर्थिक विकास के लिए महत्वपूर्ण है। भारत अब अपने राष्ट्रीय हितों को खुलकर बताने और उन्हें आगे बढ़ाने में संकोच नहीं करता है, जो आज सबसे अलग हैं। यह गुटनिरपेक्षता की पूर्ववर्ती नीति से रणनीतिक स्वायत्तता में बदलाव का प्र्रतीक है। भारत अब किसी एक या दूसरे महाशक्ति गुट के सामने झुकना नहीं चाहेगा।
निष्कर्ष
भारत की बढ़ती सामरिक और आर्थिक क्षमता के प्र्रति अब सकारात्मक रवैया बन रहा है। यह, भारत के ‘वसुधैव कुटुंबकम’ के सांस्कृतिक मूल्य के साथ मिलकर एक विश्वसनीय छवि बना रहा है। भारतीय सैन्य क्षमता में वृद्धि के साथ-साथ उसकी बढ़ती आर्थिक ताकत भारत की विदेश नीति में महत्वपूर्ण घटक बन गया है। भारत ने अतीत की हिचक को त्याग दिया है, यही कारण है कि उसे हिंद-प्र्रशांत क्षेत्र में सुरक्षा रखवाला के रूप में तेजी से मान्यता मिल रही है, यानी वह न केवल अपने ने सुरक्षा हितों की, बल्कि अपने पड़ोसियों की भी देखभाल करने में सक्षम है।
मेजर जनरल ध्रुव सी. कटोच
(थल सेना के पूर्व अधिकारी, सेना के प्र्रमुख थिंक टैंक, सेंटर फॉर लैंड वारफेयर स्टडीज के पूर्व निदेशक हैं। फिलहाल वे इंडिया फाउंडेशन के निदेशक हैं।)