
गुजरात चुनाव को देखते ही बहुत पहले से कार्पेट बॉम्बार्डिंग कैम्पेन करने वाले आप की नजर गांधीनगर की गद्दी हासिल करने से ज्यादा राष्ट्रीय पार्टी के सिम्बल लेने पर लगी हुयी है , तो दूसरी और कांग्रेस अपनी जमीन ढूंढ रही है , तो भाजपा गुजरात में इस चुनाव में अपना नया कीर्तिमान बनाने में लगी है।
गुजरात में 2017 के चुनाव में भाजपा को 99 सीट तक सीमित रखने के बाद गुजरात की गद्दी हासिल करने की कांग्रेस के सपनों को आप और ओवेसी की पार्टी ने धुंधला करना शुरू कर दिया है। गुजरात में विधान सभा चुनाव से पहले होने वाले नगर निगम , जिला पंचायत , तालुका पंचायत के चुनाव मिनी विधानसभा माने जाते है और 2021 में हुए इस चुनाव में कांग्रेस को बड़ी जीत की उम्मीद थी , क्योंकि कोरोना काल में मजदूरों को हुई मुश्किलें , महंगाई के मुद्दों पर जितना चाहती थी , मगर आप और ओवेसी के पार्टी ने उनकी इस उम्मीद पर पानी फेर दिया।
शहरी और ग्रामीण इलाकों में आप और ओवैसी की पार्टी ने कांग्रेस की वोट बैंक में भारी सेंध मारी जिसके चलते कांग्रेस नगर निगम से लेकर ग्राम पंचायत के चुनाव में कांग्रेस को करारी हार का सामना करना पड़ा। कांग्रेस को उम्मीद थी कि 2017 के विधानसभा और 2019 के लोकसभा चुनाव में आदिवासी और मुस्लिम इलाको में भारी मात्रा में नोटा का वोटिंग हुआ था और वह उसका फायदा उठा पाएगी, मगर चुनाव की घोषणा होते ही कांग्रेस के दिग्गज आदिवासी नेता अश्विन कोतवाल , मोहनसिंग राठवा जैसे नेता ने कांग्रेस का हाथ छोड़ कर भाजपा का दमन थामते ही कांग्रेस की उम्मीदों पर पानी फिरता हुआ नजर आने लगा है। पिछले चुनाव में गुजरात से सटे राजस्थान के जिलों में अच्छा प्रदर्शन करने वाली कांग्रेस के लिए बड़ी मुश्किलें तब खड़ी हुई, जब राजस्थान में राजकीय अस्थिरता के कारण कोई नेता इसबार कोई प्रचार करने नहीं आ पाए।
तो दूसरी और नगर निगम के चुनाव में शहरी इलाको में 13, 28% वोट शेयर पानेवाली आम आदमी पार्टी ने चुनाव घोषित होने से पहले अपने कैंडिडेट घोषित करने के अलावा कार्पेट बॉम्बिंग कैम्पेन शुरू किया मगर चुनाव के समय उनके मुख्यमंत्री का नाम घोषित होते ही भाजपा और कांग्रेस से आप में आये नेताओं ने आप पार्टी से किनारा करना शुरू करदिया जिसके चलते आप ने अब खुद की चुनावी रणनीति बदली है वह अपने आप को राष्ट्रीय पार्टी बनाने के लिए जरूरी 6.6% वोट इकट्ठा करने में लग गयी है।
गुजरात में विधान सभा की 182 सीट पर 2,25 लाख से 3 लाख मतदाता है। गुजरात में चुनाव के दौरान 64 से 66 % मतदान होता है सिर्फ 1950 और 2012 में 70% से ज्यादा मतदान हुआ था। ऐसे में त्रिकोणीय जंग होता है और 66% मतदान होता है तो जीत के लिए एक कैंडिडेट को 66 से 68 हजार वोट चाहिए। क्योंकि पिछले चुनाव के मुकाबले इस चुनाव में निर्दलीय कैंडिडेट कम है , और आप के पास ऐसा कोई चेहरा नहीं है की वह इतने वोट बटोर सके इसीलिए आप अब राष्ट्रीय पार्टी बनने के लिए मेहनत कर रही है।
दूसरी और 2017 में भाजपा को 99 सीट तक सीमित रखनेवाली कांग्रेस को यह मालूम है कि भाजपा की सीट भले ही कम मिली हो मगर उसका वोट शेर 1.15% बढ़ा था। ऐसे में अगर आप 6.6% वोट शेयर ले जाती है तो कांग्रेस को भारी खामियाजा उठाना पड़ सकता है क्योंकि भाजपा और कांग्रेस के बीच जीत में 7.69% वोट का अंतर था अगर आप 6.6% वोट ले जाती है तो कांग्रेस 40 से 45 सीट के दायरे में रह जाएगी।, अगर आप 10.5% से ज्यादा वोट शेयर लेती है तो भाजपा को उसका खामियाजा उठाना पड़ सकता है क्योंकि 28 सीट ऐसी है कि जहां भाजपा और कांग्रेस सिर्फ 2% वोट से जीती है। और आप अगर ज्यादा वोट शेयर ले जाता है तो भाजपा को नुकसान हो सकता है। इसीलिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह ने कार्पेट बॉम्बार्डिंग कैम्पेन शुरू किया है और प्रधानमंत्री ने खुद भाजपा के कार्यकर्त्ता से मिलकर पन्ना प्रमुख की कार्रवाई का जायजा लिया है क्योंकि पन्ना प्रमुख भाजपा का ट्रम्प कार्ड है। एक पन्ना प्रमुख के सिर पर 30 लोगों को वोटिंग कराने की जिम्मेदारी होती है अगर वह कुशलता से वोटिंग कराये और एक पन्ना प्रमुख की मेहनत से सिर्फ 2.5% वोटिंग भाजपा की और करवाए तो भाजपा के लिए जीत आसान ही नहीं मगर नया कीर्तिमान भी बना सकता है , मगर ऊंट किस करवट पर बैठेगा वह 8 दिसंबर को ही पता चल पायेगा।
भार्गव परीख