
जरा कल्पना करिए, एक पढ़े-लिखे,धार्मिक परिवार की किशोरी अचानक गुम हो जाए। उसके माता-पिता परेशान होकर उसकी तलाश कर रहे हों। लेकिन कुछ दिनों बाद पता चले कि बड़े नाजों से पाली गई उनकी नाजुक सी बिटिया सीरिया या लेबनान के आतंकियों के बीच पहुंच गई है, जहां हर रोज उसके साथ दर्जनों लोग बर्बरता से बलात्कार करते हैं।
या फिर उनकी मासूम बच्ची देश के ही किसी अंधेरे कोने में कैद है, जहां उसका नाम बदल दिया गया है, उसके साथ हर रोज बेरहमी से मारपीट की जाती है, गंदी गालियां दी जाती हैं, मुंह में जबरन गोमांस ठूंसा जाता है और एक दिन उसे किसी वेश्यालय पर बेच दिया जाता है।
या फिर बड़े लाड़-प्यार और अरमान से पाली गई बच्ची की सड़ी गली लाश किसी सूटकेस में बंद मिलती है। जिसके किडनी, लीवर, आंखें, खून निकालकर बेचा जा चुका होता है।
इस तरह की कल्पना भी किसी संवेदनशील हृदय को दहशत में डाल देगी। लेकिन यह सच है। इस तरह की घटनाएं आपके आस-पास घट रही हैं। यही है लव जिहाद। जो कि एक कटु सच्चाई बन चुका है। लेकिन हम सब इससे आंखे मूंदकर बैठे हुए है।
ईसाईयों ने सबसे पहले उठाया लव जिहाद का मामला
दक्षिण भारत में कर्नाटक और केरल से लगभग 32 हजार हिंदू और ईसाई लड़कियां अपने घरों से गायब हुई हैं। जिनका धर्म परिवर्तन कराया गया और फिर उसमें से ज्यादातर को सीरिया, अफगानिस्तान और ISIS या हक्कानी नेटवर्क के प्रभाव वाले क्षेत्र में पहुंचा दिया गया। आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि लड़कियों फंसाकर आतंकियों को सप्लाई करने का आरोप किसी हिंदूवादी संगठन ने नहीं लगाया है। यह आरोप लगाया है केरल के चर्च ने। जिसके उच्च अधिकारियों ने यह महसूस किया कि पिछले सात सालों में सिर्फ केरल से उनके समुदाय की 10 हजार से ज्यादा लड़कियां गायब हो गई हैं। केरल के कोट्टायम जिले के बेहद उच्च ईसाई पदाधिकारी (बिशप) मार जोसेफ कल्लारनगट्ट ने एक सार्वजनिक कार्यक्रम में खुले तौर पर कहा कि लड़कियों को अपने जाल में फंसाने के लिए मजहबी कट्टरपंथी युवक उन्हें प्यार के झांसे में फंसाने के अलावा नशे की आदत भी डाल देते हैं। नशे के जाल में फंसी लड़कियां उन जिहादियों का बात मानने के लिए किसी भी हद तक चली जाती हैं। उन्होंने इसे नारकोटिक्स जेहाद का नाम दिया। बिशप मार जोसेफ कल्लारनगट्ट सायरो मालाबार चर्च से संबंधित हैं ।
केरल से लड़कियों को गायब करके उन्हें आतंकवादियों के पास भेजे जाने की घटना पर एक फिल्म भी बन रही है। जिसका नाम है केरला-फाइल्स। इस फिल्म में केरल से गायब हुई हजारों लड़कियों की दर्द भरी दास्तां को बड़े पर्दे पर उकेरा जा रहा है। केरला-फाइल्स फिल्म को बना रहे निर्देशक सुदीप्तो सेन और निर्माता विपुल अमृतलाल शाह ने इसके पीछे बड़ी रिसर्च की है। सुदीप्तो सेन ने तो कई अरब देशों और आतंकवाद प्रभावित इलाकों का दौरा भी किया है। वहीं विपुल शाह कई सालों से इस विषय पर रिसर्च कर रहे हैं। इन दोनों ने अपने शोध में पाया कि साल 2009 से लेकर अब तक कर्नाटक के मैंगलोर और केरल के अलग अलग इलाकों से 32000 हिंदू और ईसाई लड़कियां गायब हुईं। जिन्हें अलग-अलग हथकंडों का सहारा लेकर पहले मुसलमान बनाया गया और फिर उन्हें आतंकवादियों के हाथों सौंप दिया गया।
श्रद्धा वाल्कर के 35 टुकड़े लव जिहाद का ज्वलंत सबूत
दिल्ली के महरौली इलाके में हुई श्रद्धा वाल्कर का हत्यारा आफताब लव जिहाद का सबसे घिनौना चेहरा है। जो श्रद्धा को अपने जाल में फंसाकर मुंबई से दिल्ली लेकर आया और उसे 35 टुकड़ों में काट दिया। आफताब ने मई 2022 में ही श्रद्धा की हत्या कर दी थी और उसके शरीर के टुकड़ों में डीप फ्रीजर में रख दिया था। बेहद शातिर आफताब पूरी योजना के साथ एक-एक करके श्रद्धा के शरीर के टुकड़ों को ठिकाने लगा रहा था। हालांकि कुत्सित मानसिकता के कुछ लोग आफताब की इस जघन्य करतूत का भी बचाव करने से बाज नहीं आ रहे हैं और उसे एक झगड़े का नतीजा बता रहे हैं। जैसे आफताब ने किसी झगड़े के दौरान गुस्से में आकर श्रद्धा की हत्या कर दी हो। लेकिन आफताब की मजहबी मानसिकता से पर्दा तब उठ गया, जब उनका नार्को टेस्ट हुआ। जिसमें आफताब ने खुलकर कबूल लिया कि वह जन्नत में 72 हूरों को हासिल करने के लिए लव जिहाद कर रहा था। आफताब ने कहा कि उसे श्रद्धा की हत्या करने का जरा भी पछतावा नहीं है। अगर उसे फांसी भी हो गई तो कोई अफसोस नहीं होगा। क्योंकि उसे जन्नत मिलेगी, जहां 72 हूरें उसका इंतजार कर रही हैं।
आफताब का यह बयान बेहद अहम है। उसके दिमाग में साफ है कि चाहे वह जितनी भी जघन्य तरीके से हत्या कर दे। लेकिन उसका जन्नत जाना तय है। क्योंकि यह उसकी मजहब में बताया गया है। इसी से समझ जाइए कि समस्या की जड़ कहां पर है।
आफताब ने श्रद्धा के अलावा भी 20 हिंदू लड़कियों को अपने प्यार के जाल में फंसाया था। वह एक डेटिंंग वेबसाइट के जरिए लड़कियों को फंसाता था। हत्यारा आफताब अमीन लव जिहाद का कोई पहला केस है। लव जिहाद एकतरफा मामला है। इसमें लड़की के पास कोई चुनाव ही नहीं रह जाता है। अगर वह जिहादी की बात मान जाती है तो उसकी जिंदगी नर्क बन जाती है और अगर उसने मना कर दिया तो उसकी हत्या हो जाती है।
इसके पहले हजारों ऐसे मामले हो चुके हैं। जो कि लगातार जारी है
26 अक्टूबर 2020 में हरियाणा के फरीदाबाद ने तौसीफ ने निकिता तोमर की गोली मारकर हत्या कर दी। क्योंकि उसने तौसीफ का प्रस्ताव स्वीकार नहीं किया था।
23 अगस्त 2022 को शाहरुख नाम के लव जिहादी ने अपने घर में सो रही अंकिता नाम की लड़की को पेट्रोल डालकर जिंदा जला दिया। क्योंकि अंकिता ने उसकी बात मानने से इनकार कर दिया था।
17 जून 2020 को गाजियाबाद में नैना कौर नाम की एक सिख लड़की की चाकू मारकर हत्या कर दी गई। क्योंकि उसने शाहरुख नाम के लड़के का प्रेम प्रस्ताव अस्वीकार कर दिया था।
साल 2012 में असम से रूमीनाथ नाम की एक शादीशुदा महिला विधायक का कांग्रेसी मंत्री अहमद सिद्दिकी ने ब्रेनवाश किया और उसकी शादी जैकी जाकिरा नाम एक बांग्लादेशी से करवा दी। रुमीनाथ का अपहरण करके बांग्लादेश ले जाया गया। रुमीनाथ के साथ दर्जनों बार सामूहिक बलात्कार किया गया और उसे वाहन चोरी के आपराधिक रैकेट में शामिल कर दिया गया।
झारखंड में रांची की नेशनल लेबल की शूटर तारा शाहदेव को रकीबुल हसन नाम के जिहादी ने रंजीत कुमार का नकली नाम रखकर प्यार के जाल में फंसाया और उससे शादी कर ली। इसके बाद तारा को बुरी तरह प्रताड़ित किया गया और उसे मुसलमान बनाने के लिए टॉर्चर किया जाने लगा। लेकिन यह मामला नेशनल मीडिया में उछलने के बाद तारा को इससे मुक्ति मिली। अब वह सामान्य जिंदगी जी रही है। लेकिन यह सिलसिला तारा शाहदेव, अंकिता सिंह,अंकिता तोमर, रुमीनाथ, नैना कौर, श्रद्धा वाल्कर पर ही थमा नहीं है। ऐसे हजारों लाखों मामले दबे हुए हैं, जो कभी चर्चा में ही नही आए।
क्यों नहीं थमता लव जिहाद
लव जिहाद के लगातार जारी रहने का सबसे बड़ा कारण है जिहादियों को उनके समुदाय से मिलने वाला नैतिक, सामाजिक, आर्थिक और कानूनी समर्थन। लव जिहाद के सैकड़ों मामले पकड़ में आते हैं, उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई भी होती है। लेकिन यह जिहादी कितना भी जघन्य कृत्य क्यों ना कर ले, उसके समुदाय से अपराधी के खिलाफ कोई बयान जारी नहीं होता। बल्कि उसे एक तरह का सामाजिक सम्मान ही मिलता है कि उसने अपने जो किया अपने मजहब को बढ़ाने के लिए किया। इस तरह का नैतिक समर्थन इन जिहादियों को उनके अंजाम से बेखौफ कर देता है।
आफताब के मामले में ही देखिए। श्रद्धा के माता-पिता और परिजनों के बारे में आज पूरे देश को जानकारी है। लेकिन आफताब अमीन के अम्मी-अब्बा के बारे में किसी को कुछ भी नहीं पता। पूरी दुनिया में जिस आफताब की चर्चा हो रही है, ऐसे राक्षस को जिन्होंने जन्म दिया, वह बिल्कुल चर्चा से बाहर हैं।
आफताब और उसका परिवार मुंबई में पालघर जिले के वसई इलाके की यूनिक पार्क हाउसिंग में रहता था। पुलिस वहां जांच के लिए पहुंची थी। लेकिन वहां जाकर पता चला कि लगभग एक महीने से वह सभी अपना मकान खाली करके जा चुके हैं। सोसायटी के सचिव आफताब खान को उनके बारे में कोई जानकारी नहीं है। आफताब के भाई-बहन, मां-बाप को जैसे जमीन निगल गई या फिर आसमान खा गया। सब लापता है, उनके बारे में कोई जानकारी ही सामने नहीं आ रही है। क्या आफताब के परिजनों को भी उसकी लव जिहादी मुहिम के बारे में पहले से जानकारी थी? अगर वह लोग आफताब के गुनाह के बारे में जानते थे तो पुलिस को बताया क्यों नहीं, इसका मतलब क्या यह नहीं है कि वह लोग भी इस जघन्य करतूत में शामिल थे?
यहां तक कि ओवैसी या किसी दूसरे मुस्लिम नेता ने श्रद्धा की हत्या के मामले पर कोई बयान ही नहीं दिया है। इसकी बजाए इस समुदाय के लोग सोशल मीडिया पर तरह तरह के सवाल खड़े करके श्रद्धा की जघन्य हत्या से मामले को भटकाने की कोशिश कर रहे हैं।
लव जिहाद या इस तरह के दूसरे मामलों में अगर कोई अपराधी कानून की गिरफ्त में आ भी जाता है तो उसके लिए बड़े से बड़े वकीलों की फौज खड़ी कर दी जाती है। कई बार तो देखा गया है कि बेहद मामूली पृष्ठभूमि वाले अपराधियों की पैरवी के लिए बड़े महंगे वकील हायर किये जाते हैं। जिन्हें किसी इस्लामी संगठन की तरफ से फीस दी जाती है।
एक संगठित नेटवर्क की तरह काम करता है लव जिहाद
साल 2009 में केरल हाई कोर्ट ने लव जिहाद पर ही सुनवाई के दौरान टिप्पणी की थी कि झूठी मोहब्बत के जाल में फंसाकर धर्मांतरण का खेल केरल में वर्षों से संगठित रूप से चल रहा है। पुलिस सूत्रों ने केरल हाई कोर्ट को बताया था कि इस्लामी आतंकवादी संगठन का चेहरा ‘पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया’ की छात्र शाखा ‘कैंपस फ्रंट’ संगठित रूप से लव जिहाद करा रही थी। इसके लिए वह शैक्षणिक परिसरों में मुस्लिम युवकों को फैंसी कपड़े, मोटरसाइकिल और मोबाइल फोन देकर दूसरे धर्म की लड़कियों को फंसाने के काम में लगाता था।
लव-जिहाद के संगठित अभियान का वर्णन ‘Why We Left Islam’ नामक पुस्तक में भी है। इसमें वैसे लव-जिहादियों के संस्मरण हैं, जो दूसरे मजहब की लड़कियों को बरगलाकर मुसलमान बनाते रहे थे। वे उन लड़कियों को अपने जाल में फंसाने के लिए झूठी मोहब्बत का दिखावा करने से लेकर, ब्लैकमेलिंग और खुद को ईसाई बताकर शारीरिक संबंध बनाने तक कई प्रपंचों का इस्तेमाल करते थे। जितने रसूखदार परिवार की लड़की के साथ यह प्रपंच किया जाता, इनाम की रकम उतनी ही बड़ी होती थी। मिस्र में तो ईसाई लड़कियों को धर्मांतरित कराने पर गाजे-बाजे के साथ जुलूस निकाला जाता है।
इन लव जिहादियों का एक ही उद्देश्य होता है कि येन-केन-प्रकारेण किसी भी तरह से दूसरे धर्म की लड़कियो को अपने शिकंजे में फंसाया जाए। उन्हें ना तो पढ़ना लिखना होता है, ना ही करियर की चिंता होती है। वहीं दूसरे धर्मों के लड़के पढ़ाई-लिखाई, स्वरोजगार या फिर नौकरी पाने की कोशिश में जुटे होते हैं। लेकिन इन लव जिहादियों का तो बिजनेस या फिर करियर प्लानिंग दूसरे धर्म की लड़कियों को फंसाने तक सीमित होती है। इसके अलावा यह लव जिहादी हिंदू, सिख या ईसाई नाम रखकर धोखा देने, खुद को रईस दिखाने के लिए मदरसों से मिले पैसों का इस्तेमाल, मोटरसायकिल जैसे प्रपंचों का इस्तेमाल करते हैं।
इसके अलावा हिंदू, सिख, बौद्ध या ईसाई लड़कियों को बचपन से इन लव जिहादियों के बारे में कोई जानकारी नहीं दी जाती है। जिसकी वजह से कई लड़कियां इनका शिकार बन जाती हैं।
याद रखिए स्वामी विवेकानंद ने कहा था कि जब हिंदू धर्म से कोई अलग होता है तो केवल एक हिंदू ही कम नहीं होता, बल्कि हिंदुओं का एक शत्रु बढ़ता है।
महर्षि अरविंद ने भी एकतरफा धर्मांतरण की छूट को राष्ट्रीय एकता के लिए घातक बताया था। महापुरुषों द्वारा दी गई गंभीर सीखों से अपने बच्चों को वंचित रखके हम उन्हें लव जिहादियों के चंगुल में धकेल रहे हैं। लव जिहाद जैसी तमाम समस्याओं का एक ही समाधान है कि इस तरह की मानसिकता को तैयार में जुटे सिस्टम पर ही प्रहार किया जाए। जो कि ऐसे बर्बर कारनामों के लिए प्रशिक्षण देता है। लव जिहादियों के खिलाफ कार्रवाई तो जैसे किसी विशाल वृक्ष के पत्ते तोड़ने जैसा है। लव जिहाद जैसी तमाम समस्याओं के स्थायी समाधान के लिए दुनिया में आतंकवाद का जहर फैला रहे मजहबी कट्टरपंथ के इस पेड़ की जड़ पर प्रहार करना होगा। देश में कई राज्यों में लव जिहाद के खिलाफ कानून तैयार हो रहे हैं। इस बारे में राष्ट्रीय रुप से संसद को विचार करके एक सख्त कानूनी व्यवस्था तैयार करने की जरुरत अब शिद्दत से महसूस होने लगी है।
अंशुमान आनंद