
गोवा में मंदिर दर्शन! मैंने तो आज तक कभी नहीं सुना।” बड़ी हैरत से दीक्षा ने सीमा से कहा। साथ ही उसने कहा, “आप भी मम्मी, कोई मंदिर देखने गोवा थोड़े ही जाता है?” दूसरी ओर से फोन पर हमारी बेटी दीक्षा थी। मोबाइल फोन स्पीकर पर था। उसकी अचरज से भरी आवाज़ सुनकर लगा कि उसका बस चले तो वह फोन से बाहर आकर हमसे पूछे कि “सब ठीक ठाक है ना?” क्योंकि प्रचलित बात तो यही है कि जो गोवा आकर मंदिर की बात करे तो लोग आमतौर से मानेंगे कि उसके दिमाग का कोई पेंच हिल गया है। हुआ यों कि हम एक विवाह में भाग लेने गोवा गये थे। आजकल दूर जाकर विवाह करने का चलन बढ़ गया है। वर और वधू पक्ष एक जगह ही सगे संबंधियों और बंधु बांधवों को बुला लेते हैं। दो तीन दिन में विवाह के सभी कार्यक्रम संपन्न कर लिए जाते हैं। आजकल की भाषा में इसे ‘डेस्टिनेशन वेडिंग’ कहा जाता है।
हम भी एक मित्र की बिटिया के विवाह में भाग लेने हम गोवा गये हुए थे। बड़ा भव्य प्रबंध था। बड़ी लगन और ठाठ से मित्रवर ने बिटिया के ब्याह का इंतज़ाम किया था। ऐसा लगता था मानो किसी राजकुमारी का विवाह हो रहा हो। दिन की उड़ान से गोवा पहुंचे थे। हम दक्षिण गोवा के एक बड़े रिसोर्ट में ठहरे थे। शादी के कार्यक्रम शाम में थे और हमारे पास दो तीन घंटे का समय था। कमरे में बैठना न तो हमारे और न ही सीमा के स्वभाव में हैँ। तो हमने यूँ ही होटल में पूछ लिया कि गोवा में कैसीनो, बार और समुद्र तट के अलावा क्या और भी कुछ देखने योग्य है? हम अधिक दूर जाना नहीं चाहते थे। हमें बताया गया कि पास ही में एक भव्य मंदिर है। क्या हम जाना चाहेंगे? सच तो ये है कि बस हमने भी यूँ ही हाँ कह दिया। कुछ तो औपचारिकता और कुछ ‘गोवा में मंदिर’ के बारे में कौतूहल के कारण हम चल पड़े।
तब ये सोचा ही नहीं था कि हम कोई अलग सी अथवा अनूठी जगह देखने जा रहे हैँ। आई टी सी होटल से कोई पंद्रह बीस मिनट की यात्रा के बाद जब हम अपनी टैक्सी से उतरे तो मंदिर की विशालता और भव्यता ने हमें सम्मोहित सा ही कर दिया। दीप स्तम्भ के पीछे ढलते सूरज की लालिमा से कत्थई सफ़ेद रंग का मंदिर अत्यंत गरिमापूर्ण लग रहा था। गोधूलि बेला के सूर्य भगवान की रक्ताभ किरणे मंदिर के शिखर को अद्भुत आभा दे रहीं थी। ये महालसा नारायणी का मंदिर था। यहाँ भगवान विष्णु अपने मोहिनी रूप में विराजमान हैँ। मंदिर का मंडप विशाल था और विधान से पूजा की व्यवस्था थी। कहीं कोई आपाधापी, भीड़भाड़ या मारामारी नहीं। सब कुछ शांत, व्यवस्थित और करीने से था। हमें मंदिर में बड़ी शांति मिली और जब हम अर्चना करके आये तो लगा कि एक नई ऊर्जा सी मिली है।
जियो के हमारे गोवा के सहकर्मी तौरप्पा लमानी ने हमारे प्रफुल्लित चेहरों को देखा तो मंदिर की कहानी बताई। उनके अनुसार जब पुर्तगालियों ने गोवा पर कब्ज़ा किया तो उन्होंने कई मंदिरों को ध्वस्त किया। दक्षिण गोवा आज भी घने जंगलों से भरा है। उन दिनों तो ये जंगल और भी गहन थे। तो विधर्मी पुर्तगालियों के अत्याचारों से बचने अपने भगवान कि मूर्तियों को लेकर कुछ भक्त यहाँ भाग आये। कालांतर में भक्तों ने भव्य मंदिर का निर्माण किया।
हमारी उत्सुकता कर कुछ और बढ़ गयी थी। इसलिए अगले दिन हम दक्षिण गोवा में ही दो मंदिर देखने और भी गये। ये थे कवंडे पोंडा में शांता दुर्गा मंदिर और और बांदौरा पोंडा में महालक्ष्मी मंदिर। शांतदुर्गा मंदिर के स्थापत्य पर पुर्तगाली छाप दिखाई दी। दोनों ही मंदिर विशाल और भव्य हैं। बड़े प्रांगण में सामाजिक समागनों जैसे विवाह आदि की व्यवस्था है। अंदर आराध्य के दर्शनों का भी बेहतर इंतज़ाम था।
खास बात ये कि इन सभी मंदिरों के बाहर बड़े बड़े अक्षरों में लिखा हुआ था कि आप दर्शन के लिए बहुत अधिक उघडे परिधानों में नहीं आ सकते। लिखा था कि महिलाओं के लिए मिनी स्कर्ट, बिनबाजू के ऊपरी वस्त्र, नाभि दर्शना अधोवस्त्र और पुरुषों के लिए अत्यधिक कैज़ुअल परिधानों में मंदिर में आना मना है। इस दिन दोपहर का समय हो गया था तो भूख भी लगी थी। हमने मंदिर की कैंटीन में भोजन प्रसाद लिया। सिर्फ सत्तर रुपये में भरपेट सात्विक भोजन मिलना आनंददायक था। खाना इतना स्वादिष्ट था कि हमें लगा कि सिर्फ इसी भोजन के लिए भी मंदिर जाया जा सकता था।
हमने और जानकारी ली तो पता चला कि गोवा में अन्य कई बड़े मंदिर भी हैं। तांबड़ी सुरला (गोवा बेंगलूर हाईवे) पर एक प्राचीन शिव मंदिर भी है। सप्तकोटेश्वर मंदिर, कामाक्षी मंदिर, मारुति मंदिर, मंगेशी मंदिर, चंद्रेश्वर भूतनाथ मंदिर और महादेव मंदिर। इनमें कई मंदिर तो अत्यंत प्राचीन है। अभी तक हम सुनते आये थे कि ब्रह्माजी का मंदिर सिर्फ राजस्थान के पुष्कर में है। पर यहाँ पता चला कि गोवा के वालोपी में भी ब्रह्माजी का एक मंदिर हैं।
ये तो रही बड़े बड़े मंदिरों की बात। जब हम अपने रिसोर्ट में सुबह सुबह नाश्ते के लिए निकले तो देखा कि एक कोने से भजन की मधुर आवाज़ आ रही है। नज़दीक गए तो देखा कि कोने में एक छोटा सा सुरम्य मंदिर था। यहाँ शिवलिंग, नंदी और साथ में गरुड़ की मूर्ति विराजमान थी। रामबहादुर नाम के एक भक्त पूजा कर रहे थे। पास ही के बेल के पेड़ से बिल्बपत्र तोड़कर हमें चढ़ाने के लिए दिए भी।
ये सब गोवा में देखना हमारे लिए बिल्कुल नया अनुभव था। गोवा की एक छवि प्रसिद्ध है। लोग यहाँ सिर्फ मौजमस्ती, पीना-पिलाना, नाच-गाने के लिए आते हैं। मनोहारी समुद्र तटों के अलावा पर्यटन के लिए पुर्तगाली स्थापत्य पर बने कई पुराने चर्च भी यहाँ मशहूर हैं। परन्तु इससे आगे गोवा का पर्यटन कभी आगे नहीं गया। ये छवि शायद कुछ कारणों से प्रचलित की गयी होगी।
पर गोवा में भव्य, प्राचीन सिध्दपीठ मंदिर भी हैं ये अधिकांश पर्यटकों को नहीं मालूम। गोवा का ये रूप जो हमने देखा वह अनुपम और विलक्षण है। इन आध्यत्मिक रंगों के बिना गोवा पूरा नहीं होता। अगली बार गोवा जाएँ तो इन रंगों को भी देखें। कभी यहाँ भी जाइये। यकीन मानिये, आपको अच्छा लगेगा और अपने विरासत पर और अधिक गर्व होगा ।
उमेश उपाध्याय