
दोस्तों आज मैं फिर आप सबके सामने आया हूँ राहुल गाँधी की बात करने। क्या करूँ, मज़बूर हूँ। ना चाहते हुए भी राहुल गाँधी कुछ ना कुछ ऐसा कर डालते हैं या कह देते हैं की उनकी बात करनी ही पड़ती है। वैसे एक तरह से यह उनकी एक PR मशीनरी का भी कमाल कह सकते हैं । जो उनसे कुछ न कुछ उल्टा सीधा बुलवा कर न्यूज़ में बनाये रखती है उनको। अब आप सबको पता ही है राहुल गाँधी ने महाभारत का प्रयोग किया है एक अपनी अलग analogy पेश करने के लिए। उन्हें भाजपा कौरव और कांग्रेसी पांडव नज़र आ रहे हैं। इसी एनालॉजी में वह GST भी ले आते हैं तो अम्बानी-अडानी को भी। अब क्या कहूं कुछ समझ ही नहीं आता। ऐसी बेवकूफी भरी बातों पर।
जब हम नए री-ब्रांडेड राहुल गांधी की बात करते हैं, तो इसका एक महत्वपूर्ण कारक उनका नरम हिंदुत्व को अपनाना है। भारत जोड़ो यात्रा के दौरान मंदिरों का दौरा, तो महाभारत, रामायण के उद्धहरणो का इस्तेमाल, इस तथ्य को सिद्ध करता है। इस यात्रा से भले ही गांधी वंशज अपने राजनीतिक करियर (ना जाने कितनी बार) की एक नयी शुरुआत कर रहे हों, फिर भी वे तथ्यों को गलत तरीके से उद्धृत करके खुद को शर्मिंदा करने से परहेज नहीं कर रहे हैं। खासकर, जब यह महाभारत जैसे प्राचीन हिंदू महाकाव्यों से हो।
हाल ही में हुई भारत जोड़ो यात्रा प्रेस कॉन्फ्रेंस में राहुल गांधी ने बीजेपी पर तीखा हमला बोला। इस कांफ्रेंस में, गांधी ने पीएम मोदी, बीजेपी और मौजूदा सरकार की आलोचना की ही। साथ में भाजपा को बुराई के रूप में चित्रित करने के लिए उन्होंने कुछ तुलनाएं कीं। उन्होंने अपनी बात पर बल देने के लिए महाभारत से उपमाएँ लेने का प्रयास किया। उन्होंने कथित तौर पर भाजपा को सत्ता के लिए लड़ने वाले कौरवों के रूप में और कांग्रेस को सच्चाई के लिए लड़ने वाले पांडवों के रूप में चित्रित करने की कोशिश की।
अब यह तो आप खुद समझ सकते हैं इस बेवकूफी भरे तुलना के कई गहरे निहितार्थ होंगे। क्योंकि यह गांधी के वंशज द्वारा अपने खोखले कद को बढ़ाने के एक और हताश प्रयास को प्रदर्शित करता है।
सबसे पहले, यह प्राचीन हिंदू महाकाव्यों के बारे में उनके ज्ञान की कमी को उजागर करता है। यह न केवल उनकी अज्ञानता को प्रदर्शित करता है बल्कि हिंदू मतदाताओं को लुभाने में उनकी दिखावटी प्रवृत्ति को भी प्रदर्शित करता है। बस तुलना करने के लिए, उन्होंने एक हिंदू महाकाव्य का इस्तेमाल किया और घोर अशुद्धियों में लिप्त रहे।
राहुल की छवि-बदलाव कुछ और नहीं बल्कि नई बोतल में पुरानी शराब है। भले ही कांग्रेस पार्टी उनकी छवि को बदलने के लिए लगातार नित नए प्रयोग कर रही हो। लेकिन उनकी गलतबयानी विवाद पैदा करती रहती है और उन्हें एक विदूषक की तरह पेश करती है। यह खुद को फिर से प्रमोट करने के प्रयासों पर कुठाराघात तो है ही, साथ ही उनके अज्ञानी रूप को सामने ले आता है।
यह भाजपा का मुकाबला करने के लिए एक चाल के रूप में नरम हिंदुत्व को बढ़ावा देने के उनके प्रयासों के लिए यह एक बड़ा झटका साबित हो सकता है। गंभीरता से नेतृत्व करने के लिए, कम से कम राहुल गांधी निष्कर्ष और तुलना पर कूदने से पहले सभी तथ्यों और आंकड़ों की जांच कर सकते हैं। ऐसी गलतियों से कोई न्याय नहीं होगा, लेकिन वास्तव में यह दोहराता है कि उनका नरम हिंदुत्व एजेंडा सिर्फ एक और तुष्टिकरण नीति से ज्यादा कुछ नहीं है।
आलू से सोना बनाना, तो शिव जी से संवाद, ना जाने ऐसे कितने मामले हैं जिससे बार बार यह साबित हो गया है कि राहुल बाबा खुद को हंसी का पात्र बनाने से कभी नहीं चूकेंगे। अब आज आगे मुझे कुछ नहीं कहना है, आप ही सोचिये आप ही फैसला कीजिये। क्या एक विदूषक जिसको भारत के ग्रंथों, आम जनमानस की भावनाओ का ना अता है ना पता है, वह खुद को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार माने बैठा है, उसे आप चुनना पसंद करेंगे?
लेखक: नीलाभ कृष्ण