ब्रेकिंग न्यूज़ 

समाजवादी पार्टी ने खेला खूनी खेल? : श्रीरामचरितमानस के नाम पर सवर्ण, दलित और पिछड़ों को बांटने की साजिश

समाजवादी पार्टी ने खेला खूनी खेल? : श्रीरामचरितमानस के नाम पर सवर्ण, दलित और पिछड़ों को बांटने की साजिश

समाजवादी पार्टी वोटों की खातिर एक बार फिर धर्म की आड़ में दंगे फसाद करानें के आरोप में फंस गयी। पिछले साल उत्तर प्रदेश के विधान सभा चुनाव में समाजवादी पार्टी के सत्ता में आने के सपने चकनाचूर हो गये थे। अगले साल लोकसभा के चुनावों में लोगों का भाजपा की तरफ रूझान देख कर सपा ने सनातन धर्म पर उंगली उठाकर वोट बांटनें का प्रयास किया है। सपा नेता स्वामी प्रसाद मौर्य को ये जिम्मेदारी सौंपी गयी, इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता। हिन्दुओं के पवित्र ग्रंथ और उसमें से कुछ चौपाइयों को हटाने की बात कह कर दलित और महिलाओं पर ओछी टिप्पणी कर हिन्दुओं पर निशाना साधा गया। ये काम उत्तर प्रदेश सरकार में पूर्व मंत्री रह चुके स्वामी प्रसाद मौर्य को सौंपा गया। स्वामी प्रसाद मौर्य पिछला विधान सभा चुनाव हारे थे। उन्हें समाजवादी पार्टी ने विधान सभा सदस्य बना कर भेजा। जिस तरह से स्वामी प्रसाद ने सीधे प्रेस मे जाकर हिन्दुओं के वोटों को बांटने के लिये श्रीरामचरितमानस (आम भाषा में रामायण) को बदनाम करने का काम किया। उससे साफ जाहिर होता है कि दलितों को सनातन धर्म से दूर कर, उनमें नफरत पैदा करके वे दंगे कराना चाहते थे।

जब इस बात को लेकर पूरे देश में स्वामी पर थू-थू हो रही थी, हर समाज का व्यक्ति उन्हे भला बुरा कह रहा था तब भी वे अपनी बात पर जमें रहे। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रह चुके समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव बराबर चुप्पी साधे रहे और हिन्दु समाज को बांटने के प्रयास पर स्वामी प्रसाद को वाह वाही देते हुये उन्हें पार्टी का महामंत्री बनानें का इनाम दिया। हालांकि सपा नेता के मंसूबे पूरे न हो सके क्योंकि कहीं पर दंगे फसाद नहीं हुये और उनकी मेहनत विफल हो गयी। जिन चौपाइयों पर घटिया टिप्पणी की गयी उन पर कई बार चर्चा हो चुकी है। अखिलेश और स्वामी प्रसाद भलीभांति रामचरितमानस और इन चौपाइयों से परिचित होंगे, इसमें कोई संशय नहीं हो सकता।  इतने लम्बे राजनैतिक जीवन में स्वामी प्रसाद ने कभी इस बात पर न कोई बात कही न कोई आपत्ति कभी उठायी।

हारे थके राजनीति में पिटे अखिलेश यादव कोई नयी चाल की तलाश में थे। खास तौर से हाल ही में आजमगढ़ और रामपुर में हुये उप चुनाव में हारने के बाद। ये दोनों सपा के मजबूत किले माने जाते थे। यहां उनका मुस्लिम, यादव यानि MY फेक्टर पिट गया था। अखिलेश के पिता समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव इसी को आधार बना कर राजनीति करते आये, थे जब कभी इस जोड़ी में कमी दिखाई दी तो उसे मजबूत करने के लिये घटिया राजनीति का सहारा लेने से भी नहीं चूके। उनके मुख्यमंत्री रहते हुये उत्तर प्रदेश में अनेंको हिन्दु, मुस्लिम दंगे हुये। यही दंगे मुस्लिम वोटों को बंटोरने का सपा का हथियार था वर्ना उन्हीं के राज में लगातार दंगे क्यों होते थे। उसी राजनीति का सहारा उनके पुत्र अखिलेश यादव ने भी लिया और उनके शासनकाल में मुजफ्फर नगर, कैराना में एतिहासिक दंगा हुआ जहां पर सैकड़ों हिन्दुओं का अपना घर छोड़ कर पलायन करने पर मजबूर होना पड़ा था। आज भी हिन्दुओं के वे जख्म भरे नहीं हैं क्योंकि अखिलेश का पूरा प्रशासन पर प्रभारी मंत्री आजम खां के इशारों पर मुसलमानों की रक्षा कर रहा था, उनका पक्ष ले रहा था। मुलायम सिंह के राज में हुये दंगों की एक बानगी देखिये।

मुलायम सिंह के राज में वृहत हिन्दु, मुिस्लम दंगे हुये

  •       बदांयू        1989
  •       कानपुर       1990
  •       मऊ         2005
  •       लखनऊ       2006
  •       गोरखपुर      2007

लगता है मुलायम सिंह के शासन काल में दंगे एक नियमित प्रयोग था। इस तरह हिन्दु, मुस्लिम में दूरी बना कर वे सत्ता में आते रहे। यही खूनी खेल अखिलेश के राज में भी हुआ जब उन दंगो को उनकी सरकार मौन होकर देखती रही। इससे स्पष्ट हो गया कि उनकी पार्टी का हाथ इसमें था। इसी तरह मुलायम सिंह के राज में राम भक्तों पर गोलियां चलाई गयीं, जिसमें कई लोग मौत का शिकार भी हुये। जबकि उसे शक्ति प्रयोग कर भी रोका जा सकता था, पर ऐसा कृत्य केवल एक धर्म के लोगों को अपनी पार्टी से जोड़े रखने के लिये किया गया। दंगा भड़कने के कारण कभी हिन्दु, मुस्लिम एक नहीं हो पाये। जैसे ही एकता की कड़ी मजबूत दिखाई दी तो फिर दंगे एैसे दलों का हथियार बन गया। अखिलेश राजनीति के नौसिखिये थे। कैराना दंगो में बदनाम हो गये, हिन्दु समाज उनकी चाल समझ कर भाजपा के झंडे तले इकट्ठा हो गया और सपा को धूल चटा दी। दोबारा फिर भाजपा सत्ता में आयी क्योंकि योगी के राज में पांच साल कोई दंगा नहीं हुआ। हिन्दु, मुस्लिम में अखिलेश अपने पिता की तरह खाई नहीं खोद पाये थे।

अगले वर्ष 2024 में लोक सभा चुनाव होना है, मुस्लिम यादव समीकरण को जिन्दा करनें में असफल होते जा रहे अखिलेश कोई न कोई प्रयोग की तलाथ में थे। उधर उत्तर प्रदेश की जनता योगी राज में सुरक्षित और खुश नजर आ रही थी। अपराधियों का डर मन से निकल गया था। मकान, जमींनों पर कब्जा बन्द था। एैसे में एक मात्र तरीका था दंगे। हिन्दु, मुसलमान भी दंगो से तंग आ गया था, योगी राज में सभी सुरक्षित थे, गुंडे भीतर हो गये या प्रदेश से भाग गये, बुलडोजर की लोकप्रियता

बड़ गयी। केन्द्र और प्रदेश सरकार की योजनाओं ने विकास के नये आयाम जोड़े। इन बातों को भावनाओं से खिलवाड़ करके ही भुलाया जा सकता था। इस खेल के लिये एक बदनाम हो चुके महत्वकांक्षी नेता की तलाश थी क्योंकि हिन्दु, मुस्लिम दंगे कराने वाले नेताओं के हौसलें पस्त हो चुके थे। एैसे में स्वामी प्रसाद को इस काम के लिये चुना गया। उन्होंने ये काम कर दिखाया और हिन्दुओं में दलित समाज या पिछड़े वर्ग को बरगलानें के लिये नया अध्याय खोला।

श्रीरामचरितमानस की चौपाई ‘ढोल गंवार शूद्र (क्षुत्र) पशु नारी” गलत व्याख्या शुरू कर उन्हें उकसानें का काम शुरू कर दिया। हालांकि ये शब्द समुद्र ने बोले थे जो भगवान श्री राम से क्षमा याचना कर रहा था। उसमें भी लाइन का अर्थ अशिक्षित यानि अज्ञानता उन्हें बराबर शिक्षा सीख देने से था। खैर जब बात बड़ी तो दूर तलक जायेगी। सवाल उठे कि ये “ टाईमिंग ” क्या थी फिर इसके ऊपर सपा मुखिया अखिलेश यादव ने चुप्पी क्यों साध ली। कोई भी टिप्पणी नहीं की न खेद जताया न माफी मांगी न ही स्वामी प्रसाद को माफी मांगने को कहा। जब साधु सन्त समाज भड़का तब भी वे चुप रहे।

‘अखिलेश यादव ने स्वामी प्रसाद को सनातन समाज को दो फाड़ करनें का काम सुपुर्द किया था तभी उन्हें इस नाटक के तुरन्त बाद पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव के पद से नवाजा गया ”

‘प्रत्यक्षम कि प्रमाणम ” प्रत्यक्ष को साख की क्या आवश्यकता।

स्वामी प्रसाद यहीं नहीं रूके, उन्होंने चौपाई हटानें के साथ साथ रामचरितमानस ग्रंथ को प्रतिबन्धित करने की मांग की क्योंकि उसी ग्रंथ में भगवान श्री राम के दलित कही जाने वाली आदिवासी महिला के जूंठे बेर बड़े प्रेम से खाये थे। भगवान श्री राम ने पिछड़े कहे जाने वाले मल्लाह केवट को गले लगाया था, उन्हें अपना भाई माना था। इन प्रसंगों के रहते कोई भला रामचरितमानस के नाम पर कैसे दलित पिछडों को इस धार्मिक ग्रंथ से दूर कर सकता था।

स्वामी प्रसाद ने तो ब्राह्मण को भी भला बुरा कहा। सपा के शीर्ष नेता ये भूल गये कि रावण ब्राह्मण था और क्षत्री राजा द्वारा मारा गया था। फिर भी आज ब्राहम्ण क्षित्रय राजा राम की पूजा करता है और ब्राह्मण राजा रावण को राक्षस मानता है, उसका पुतला जलाता है। ब्राह्मणों पर घटिया टिप्पणी करके भी अखिलेश एंड कम्पनी ब्राहम्णों, दलितों, पिछड़ों, सवर्ण आदि के बीच खाई खोदने या सनातन धर्म में फूट डालने में कभी सफल नहीं हो सकती। इस धर्म की विशेषता है कि सभी को कुटुम्ब या अपने परिवार का मानता है, सहनशीलता सिखाता है नहीं तो अब तक समाजवादी पार्टी को लेने के देने पड़ जाते। श्रीरामचरितमानस की प्रतियां जला कर भी दंगे नहीं करा सके क्योंकि लोगों को योगी सरकार पर भरोसा है और कानून ऐसे लोगों को अवश्य सजा देगा।

 

डॉ. विजय खैरा

 

Leave a Reply

Your email address will not be published.